श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 9: राज विद्या योग | Bhagwat Geeta Chapter 9
श्रीमद्भागवत गीता का नवां अध्याय “राज विद्या योग” कहलाता है। यह गीता का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है। “राजविद्या” का अर्थ है …
“भागवत गीता” कैटेगरी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के अध्यायों, श्लोकों और उनके सरल अर्थों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करते हैं। इस श्रेणी के अंतर्गत गीता के श्लोकों की व्याख्या, आध्यात्मिक संदेश, जीवन प्रबंधन से जुड़ी शिक्षाएं और प्रत्येक श्लोक का भावार्थ सरल भाषा में समझाया गया है। यदि आप भगवद गीता को समझना चाहते हैं या अपने जीवन में इसके सिद्धांतों को अपनाना चाहते हैं, तो यह कैटेगरी आपके लिए बेहद लाभकारी है।
श्रीमद्भागवत गीता का नवां अध्याय “राज विद्या योग” कहलाता है। यह गीता का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है। “राजविद्या” का अर्थ है …
श्रीमद्भागवत गीता का आठवां अध्याय “अक्षर ब्रह्म योग” कहलाता है। यह परमात्मा की प्राप्ति, योग, ध्यान, और अंतकाल में भगवान के स्मरण …
श्रीमद्भागवत गीता का सातवाँ अध्याय “ज्ञान विज्ञान योग” कहलाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को परम सत्य, उनकी दिव्य प्रकृति, और भक्ति …
श्रीमद्भागवत गीता का छठा अध्याय “ध्यानयोग” कहलाता है। गीता का छठा अध्याय – ध्यान योग, आत्मा की खोज, मन की एकाग्रता और …
श्रीमद्भागवत गीता का पांचवा अध्याय “कर्म संन्यास योग” कहलाता है। यह अध्याय कर्मयोग और संन्यास योग के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर …
श्रीमद्भागवत गीता का चौथा अध्याय “ज्ञान कर्म संन्यास योग” कहलाता है। यह अध्याय कर्मयोग और ज्ञानयोग के बीच संतुलन स्थापित करते हुए यह सिखाता …
श्रीमद्भागवत गीता का तीसरा अध्याय “कर्म योग” कहलाता है। यह मानव जीवन में कर्म के महत्व और निष्काम कर्म की अवधारणा को स्पष्ट करता …
श्रीमद्भागवत गीता का दूसरा अध्याय “सांख्य योग” कहलाता है। यह गीता का आधारभूत अध्याय माना जाता है। “सांख्य” शब्द का अर्थ है ज्ञान या …
श्रीमद्भागवत गीता का पहला अध्याय “अर्जुन विषाद योग” कहलाता है। यह अध्याय महाभारत के युद्ध के ठीक पहले की स्थिति का वर्णन …