शिला देवी मंदिर राजस्थान के जयपुर के आमेर किले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर शिला देवी/शिला माता को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना कछवाहा वंश के महान शासक, मुगल सम्राट अकबर के सेनापति, राजा मान सिंह प्रथम द्वारा 16वीं शताब्दी के अंत में की गई थी।
शिला देवी मंदिर आमेर जयपुर (Shila Devi Temple Aamer Jaipur)
| मंदिर का नाम:- | शिला देवी मंदिर (Shila Devi Temple) |
| मंदिर के अन्य नाम:- | शिला माता मंदिर (Shila Mata Temple) |
| स्थान:- | आमेर किला, (Amber Fort), जयपुर, राजस्थान |
| समर्पित देवता:- | शिला देवी/शिला माता |
| निर्माण वर्ष:- | 1604 ईस्वी |
| प्रसिद्ध त्यौहार:- | चैत्र और आश्विन नवरात्रि में लक्खी मेला |
शिला देवी मंदिर आमेर जयपुर का इतिहास
शिला देवी मंदिर आमेर किले के भीतर केंद्र में स्थित है, जिसका निर्माण स्वयं मान सिंह ने 16वीं शताब्दी के अंत में शुरू किया था। शिला देवी की प्रतिमा का इतिहास राजा मान सिंह प्रथम के बंगाल में सैन्य अभियानों से सीधे जुड़ा हुआ है। लगभग 1580 ईस्वी के आसपास, राजा मान सिंह ने बंगाल के जस्सोर (जैसोल) राज्य पर विजय प्राप्त की थी। इस विजय के परिणामस्वरूप, वह वहां से इस चमत्कारिक प्रतिमा को आमेर लेकर आए थे।
प्रतिमा की प्राप्ति के संबंध में कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, जैसोर के राजा ने परास्त होने पर यह प्रतिमा मान सिंह को भेंट स्वरूप प्रदान की थी। दूसरी कथा के अनुसार, मान सिंह ने स्वयं इस बड़ी चमत्कारी प्रतिमा को प्राप्त करना चाहा था। एक तीसरी मान्यता यह है कि देवी ने स्वयं राजा मान सिंह को स्वप्न में दर्शन देकर यह निर्देश दिया कि उनकी प्रतिमा समुद्र में पड़े एक शिलाखंड (स्लैब) के रूप में मिलेगी, जिसे प्राप्त किया जाए। चूंकि प्रतिमा एक काले पत्थर की शिला के रूप में प्राप्त हुई थी, इसलिए इसका नाम ‘शिला देवी’ पड़ा था।
माना जाता है की जब राजा मान सिंह शिला को आमेर लाए, तब यह केवल एक काले पत्थर का खंड (स्लेब) थी। उन्होंने शिल्प कलाकारों से इस शिला पर महिषासुर मर्दिनी का विग्रह उत्कीर्ण करवाया था। इस विग्रह में देवी को शूल दैत्य पर प्रहार करते हुए दिखाया गया है, जो उनके उग्र तांत्रिक स्वरूप को दर्शाता है।
शिला देवी की पूजा पद्धति की विशिष्टता इस बात में है कि मान सिंह केवल मूर्ति ही नहीं लाए, बल्कि उसके साथ बंगाल के कारीगरों और पुजारियों को भी आमेर लाए थे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि देवी की पूजा उनके तांत्रिक स्वरूप और बंगाली पद्धति के अनुसार ही हो, जो आज भी मंदिर में जारी है। बंगाली पुजारियों का यह आगमन इस बात का प्रमाण है कि राजा उस तांत्रिक ज्ञान और शुद्ध अनुष्ठानिक परंपरा की निरंतरता को अत्यधिक महत्व देते थे, जो उनकी नई ‘इष्ट देवी’ के लिए आवश्यक थी, और यह परंपरा राजस्थान की स्थानीय परंपराओं से अलग थी।
बलि प्रथा का इतिहास: नरबलि से पशुबलि तक
शिला माता मंदिर की परंपराओं में बलि प्रथा का इतिहास विवादास्पद रहा है। मंदिर से जुड़ी एक जनश्रुति के अनुसार, माता ने राजा मान सिंह से यह वचन लिया था कि उन्हें प्रतिदिन एक नरबलि दी जाएगी। हालांकि, कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि नरबलि वाली घटना का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है।
समय के साथ, संभवतः नैतिक या सामाजिक बदलावों के कारण, राजाओं ने वचन निभाना मुश्किल पाया और नरबलि की जगह पशुबलि दी जाने लगी थी। यह पशुबलि की परंपरा भी सदियों तक चली। यह प्रथा, भले ही कठोर लगे, राजसत्ता को दैवीय रूप से शक्तिशाली और सुरक्षित स्थापित करने का एक प्रतीक थी। सामाजिक विरोध और कानूनी दबाव के कारण आखिरी पशुबलि लगभग 1985 में दी गई थी, जिसके बाद इस परंपरा को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया था।
मूर्ति का दिशा परिवर्तन और जयपुर का विकास
शिला देवी से जुड़ी एक जनश्रुति जयपुर राज्य के विकास के सिद्धांत से जुड़ी है: “इसके सामने तो विनाश है और इसकी पीठ पीछे विकास है”। यह सिद्धांत देवी की शक्ति को सीधे राज्य के भाग्य और भौगोलिक समृद्धि से जोड़ता है।
प्रारंभ में जब आमेर मुख्य राजधानी थी तो मूर्ति को दक्षिण मुखी रखा गया था, जिसकी पीठ आमेर के महल और उसके विकास को संरक्षण देती थी। 18वीं शताब्दी में, जब सवाई जय सिंह द्वारा जयपुर शहर (1727 ईस्वी) की स्थापना की गई, तो नए केंद्र की समृद्धि सुनिश्चित करना राजसी प्राथमिकता बन गई थी। इस राजनीतिक बदलाव को धार्मिक स्वीकृति देने के लिए, माता के मुख को उत्तर दिशा की ओर (उत्तराभिमुख) कर दिया गया, ताकि उनकी पीठ नए शहर जयपुर की तरफ हो जाए। इस प्रतीकात्मक कार्य के बाद ही जयपुर ने अभूतपूर्व विकास किया, जैसा कि जनश्रुति बताती है। यह धार्मिक कदम इस बात की पुष्टि करता है कि शासक नए शहर के लिए दैवीय अनुमोदन और संरक्षण चाहते थे।
शिला देवी मंदिर आमेर जयपुर की वास्तुकला और संरचना
शिला देवी मंदिर की वास्तुकला राजपूत और बंगाली शैलियों का एक अनूठा समन्वय प्रस्तुत करती है। मंदिर के कुछ भाग, विशेष रूप से स्तंभों में बंगाली वास्तुशैली के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। मंदिर का वर्तमान स्वरूप व्यापक रूप से 1906 में महाराज सवाई मान सिंह द्वितीय द्वारा करवाए गए पुनर्निर्माण का परिणाम है। इस जीर्णोद्धार के दौरान पूरे मंदिर को संगमरमर से बनवाया गया था, जो आधुनिक राजपूत स्थापत्य कला और समृद्धि का प्रतीक है।
मंदिर के आंतरिक स्थापत्य और प्रवेश द्वार पर उच्च तांत्रिक शक्ति पूजा की परंपराओं को दर्शाया गया है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार चांदी से बना हुआ है। प्रवेश द्वार के ऊपर नवदुर्गा के प्रतिरूप तथा दशमहाविद्याओं (काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला) का चित्रण किया गया है। यह दशमहाविद्याओं का समावेश सिद्ध करता है कि यद्यपि मूर्ति को ‘दुर्गा’ के रूप में पूजा जाता है। इसके अतिरिक्त, मुख्य द्वार पर लाल मूंगे पत्थर की भगवान गणेश जी की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है।
मंदिर के मुख्य गर्भगृह में शिला देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति को हमेशा वस्त्रों, आभूषणों और सजावट से ढका रखा जाता है। जिसमें माता का केवल मुंह और हाथ ही दिखाई देते है। शिला माता का विग्रह महिषासुर मर्दिनी के रूप में है। देवी की मूर्ति काले पत्थर से बनी है और यह एक शिलाखंड पर विराजमान है। विग्रह में देवी को अष्टभुजा रूप में दर्शाया गया है: उनके दाहिने हाथों में तलवार, चक्र, त्रिशूल और बाण हैं, जबकि बाएं हाथों में ढाल, अभय मुद्रा, राक्षस का सिर और धनुष हैं, जो देवी के विजयी स्वरूप को प्रस्तुत करते हैं।

शिला देवी के बाई ओर कछवाहा राजाओं की कुलदेवी अष्टधातु की हिंगलाज माता की मूर्ति भी बनी हुई है। भारतीय शक्ति पीठों में भैरव को देवी का संरक्षक और तांत्रिक अधिष्ठाता माना जाता है। शिला देवी मंदिर में भी यह परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण है; मंदिर में माता के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं जब भक्त इसके बाद बीच में स्थित भगवान भैरव के दर्शन करते हैं।
शिला देवी मंदिर आमेर जयपुर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: शिला देवी मंदिर राजस्थान के जयपुर के आमेर किले में स्थित है।
Shila Mata Temple Jaipur Google Map Location:
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: सांगानेर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मोती शिला देवी मंदिर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके आमेर किले तक पहुँच सकते हैं। आमेर किले तक पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते है।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन शिला देवी मंदिर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके आमेर किले तक पहुँच सकते हैं। आमेर किले तक पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते है।
- सड़क मार्ग: मंदिर जयपुर से लगभग 14 किलोमीटर दूर है। जयपुर से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके आमेर किले तक पहुँच सकते हैं। आमेर किले तक पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते है।
