किराड़ू मंदिर बाड़मेर | Kiradu Temples Barmer

राजस्थान के बाड़मेर जिले में बसे किराड़ू मंदिर, इतिहास और रहस्य का एक अनूठा संगम हैं। इन्हें “राजस्थान का खजुराहो” कहा जाता है, क्योंकि इनकी जटिल नक्काशी और स्थापत्य शैली खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती है। यह पांच मंदिरों का समूह है, जिसमें सोमेश्वर मंदिर (शिव को समर्पित) सबसे प्रमुख है।

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ये मंदिर न केवल अपनी स्थापत्य सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि एक रहस्यमयी श्राप की कहानी के कारण भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के बीच आकर्षण का केंद्र हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, सूर्यास्त के बाद मंदिर परिसर में प्रवेश करना वर्जित है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहाँ रात में अलौकिक शक्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं।

किराड़ू मंदिर बाड़मेर (Kiradu Temples Barmer)

मंदिर का नाम:-किराड़ू मंदिर (Kiradu Temples)
स्थान:-किराड़ू गाँव, बाड़मेर जिला, राजस्थान
समर्पित देवता:-यह मंदिर समूह पांच मंदिरों से मिलकर बना है, जिनमें प्रमुख मंदिर सोमेश्वर मंदिर (शिव को समर्पित) है।
निर्माण वर्ष:-11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच

किराड़ू मंदिर बाड़मेर का इतिहास

किराड़ू मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। किराड़ू मंदिरों के निर्माण की सटीक तिथि को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यहाँ से प्राप्त अभिलेखों के आधार पर इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है कि इनका निर्माण मुख्य रूप से 11वीं और 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था। कहा जाता है कि 1161 ई. पूर्व इस स्थान का नाम ‘किराट कूप’ था।

इतिहासकारों के मुताबिक, इन मंदिरों का निर्माण परमार वंश और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा करवाया गया था। परमार शासक 10वीं शताब्दी के अंत में गुर्जर-प्रतिहार वंश के कमजोर पड़ने के बाद एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में उभरे थे। दूसरी तरफ़ परमार राजवंश अपने पड़ोसी क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करके अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था, लेकिन जल्द ही 11वीं शताब्दी की शुरुआत में पाटन के चालुक्यों ने उनका दमन कर दिया। चालुक्य गुजरात में शक्तिशाली हो रहे थे और अपने शासन का विस्तार कर रहे थे। आगे चलकर परमार चालुक्य शासकों के सामंत बन गए थे।

शिलालेखों से यह भी ज्ञात होता है कि 12वीं शताब्दी के मध्य तक किराड़ू चालुक्यों के संरक्षण में परमारों के शासनकाल में एक समृद्ध शहर था। किराड़ू मंदिरों के पतन का मुख्य कारण 13वीं शताब्दी में हुए विभिन्न आक्रमण माने जाते हैं। जैसलमेर के भाटी और गुलाम वंश के शासकों के आक्रमणों के दौरान इन मंदिरों को भारी क्षति पहुँची और अंततः नष्ट कर दिया गया था। इस हिंसा की याद आज भी इस कहावत में बरक़रार है – किराडूकथन या थानो, एक चढ़े एक उतरे (किराडू सेनाओं का पड़ाव-स्थल बन गया है, एक आगे बढ़ता है, और दूसरा पीछे हटता है)।

किराड़ू परिसर में पाँच मंदिरों में से चार शिव को और एक भगवान विष्णु को समर्पित है। सोमेश्वर मंदिर, जो समूह का सबसे प्रसिद्ध और विस्तृत मंदिर है, इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में परमार शासक सोमेश्वर ने अपने शासनकाल के दौरान करवाया था। विष्णु मंदिर को सबसे पुराना माना जाता है, जिसके निर्माण की तिथि स्पष्ट नहीं है, लेकिन स्थापत्य इतिहासकार जॉर्ज मिशेल ने इसे 10वीं शताब्दी का बताया है।

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किराडू मंदिरों के चार अभिलेखों में से तीन अभिलेखों की विवेचना की गई है। पहला शिलालेख सन 1152 का है। यह कुमारपाल (शासनकाल 1143-1172 ईस्वी) द्वारा अपनी प्रजा को कुछ विशेष दिनों में पशु-वध की मनाही का शाही फरमान है। यह फरमान आम आदमी के लिए 5 ड्राम और शाही परिवार के सदस्यों के लिए 1 ड्राम का दंड निर्धारित करता था, जो उस युग की सामाजिक-प्रशासनिक व्यवस्था और दंड प्रणाली पर प्रकाश डालता है।

दूसरा अभिलेख सन 1161 का है, जो संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। ये अभिलेख शिव मंदिर के प्रवेश-द्वार पर एक स्तंभ पर है, और ये किराड़ू की परमार शाखा का वंशक्रम प्रदान करता है। इसमें परमार सामंत सोमेश्वर का उल्लेख है, जिस पर जयसिम्हा सिद्धराज (शासनकाल सन 1092-1142 ईस्वी) की कृपादृष्टि पड़ गई थी। उसने सन 1148 में कुमारपाल के शासनकाल के दौरान ख़ुद को अच्छी तरह स्थापित कर लिया था। सोमेश्वर ने ही सोमेश्वर मंदिर बनवाया था, जो आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है।

एक तीसरा अभिलेख 1178 ईस्वी का है, जो सुल्तान मोहम्मद ग़ौरी (1149-1206 ईस्वी) के हमले से पहले किराड़ू मंदिरों के अछूते रहने का विवरण देता है। बाद में ग़ौरी को मुलराजा (शासनकाल 1175-1178 ईस्वी) के नेतृत्व वाली चालुक्य सेना ने हरा दिया था। उसके उत्तराधिकारी भीमदेव-द्वितीय (शासनकाल 1178-1240 ईस्वी) ने हमलावरों द्वारा मंदिर के तोड़े गये हिस्सों की मरम्मत करवाई थी।

रहस्यमयी किंवदंतियाँ और लोककथाएँ

किराड़ू मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के साथ-साथ एक प्राचीन और रहस्यमयी श्राप की कहानी के लिए भी जाना जाता है, जिसने इसे एक डरावना और वीरान स्थान बना दिया है। सबसे प्रचलित लोककथा एक महान संत धुंधलीनाथ और उनके शिष्यों से संबंधित है। एक बार धुंधलीनाथ को एक लंबी तीर्थ यात्रा के लिए बाहर जाना पड़ा और उन्होंने अपने शिष्यों को स्थानीय राजा और प्रजा के भरोसे यहीं रुकने को कहा। लेकिन शिष्य बीमार पड़ गए, तो एक कुम्हार की पत्नी को छोड़कर राजा और उसकी प्रजा में से किसी ने भी उसकी देखभाल नहीं की।

जब धुंधलीनाथ वापस आये और उन्हें इस बात का पता चला, तो उन्होंने क्रोधित हो कर श्राप दिया, कि जहां करुणा नहीं है, वहां मनुष्य नहीं होगा। उन्होंने कुम्हार की पत्नी को छोड़कर पूरे राज्य को पत्थर में बदलने का श्राप दे दिया, मगर उन्होंने उनके शिष्य की देखभाल करने वाली कुम्हार की पत्नी से कहा, कि वह शाम ढ़लने के पहले यहां से चली जाये। उन्होंने उसे सख्त चेतावनी दी कि वह जाते समय पीछे मुड़कर न देखे। लेकिन कुम्हार की पत्नी ने उत्सुकता के कारण, जाते समय जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, तो अन्य लोगों के साथ वह ख़ुद भी पत्थर की मूर्ति बन गई।

इसी रहस्यमयी श्राप और लोककथा के कारण, आज भी किराड़ू में सूर्यास्त के बाद कोई भी व्यक्ति नहीं रुकता है। पर्यटक और स्थानीय लोग शाम होते ही मंदिर परिसर छोड़ देते हैं। राजस्थान सरकार ने भी इस मान्यता के चलते शाम ढलने के बाद इस मंदिर में जाने पर आधिकारिक प्रतिबंध लगा दिया है।

किराड़ू मंदिर बाड़मेर की वास्तुकला और संरचना

किराड़ू मंदिर, बाड़मेर, अपनी विशिष्ट वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है, जिसे ‘राजस्थान का खजुराहो’ भी कहा जाता है।

वास्तुकला शैली:

  • मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से मारु-गुर्जर शैली में हुआ है, जिसमें दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का प्रभाव भी दिखाई देता है।
  • यह शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिरों की शैली से काफी समानता रखती है, विशेषकर बाहरी आवरण के संदर्भ में।
  • इन मंदिरों में भव्य रूप से अलंकृत भीतरी हिस्से और मुख्य शिखर के किनारों से निकले हुए सहायक स्तंभ इसकी विशेषता है।

संरचना और विशिष्टताएँ:

  • किराड़ू में पाँच मंदिरों का एक समूह है, जिनमें से सबसे प्रमुख सोमेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
  • सोमेश्वर मंदिर का निर्माण खंभों के सहारे किया गया है। यह भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, जबकि इसका बाहरी आवरण खजुराहो शैली का है।
  • समूह का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो स्थापत्य और कलात्मक दृष्टि से समृद्ध है।
  • तीन अन्य शिव मंदिर हैं, जो विभिन्न अवस्थाओं में हैं। इनमें से अधिकांश केवल गर्भगृह (मुख्य कक्ष) बचे हैं, और बाकी संरचना समय और आक्रमणों के कारण खंडहर में बदल गई है।
  • गर्भगृह की विग्रह पट्टिका मूर्तिकला का अद्भुत खजाना है, और गर्भगृह की देहरी भी कलात्मक है।

मूर्तिकला:

  • किराड़ू मंदिरों की दीवारों पर काले और नीले पत्थर पर हाथियों, घोड़ों और अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाती है।
  • मूर्तियों में जीवन की जीवंतता और आनंदमयी क्षणों की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  • यहाँ द्वारपालों के साथ गंगा-यमुना, सुर-सुंदरी (स्वर्गीय सुंदरियाँ), विद्याधर और नृत्यांगनाओं के साथ-साथ विभिन्न देव प्रतिमाओं का अंकन शिल्पकारों के उत्कृष्ट कौशल का प्रमाण है।
  • गर्भगृह में प्रधान पीठिका पर अंबिका माता की प्रतिमा स्थापित है।

वर्तमान स्थिति:

  • वर्तमान में, किराड़ू के अधिकांश मंदिर खंडहर में बदल चुके हैं। केवल भगवान शिव (सोमेश्वर मंदिर) और विष्णु के मंदिर ही अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं।
  • पूरा परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और इंटेक (INTACH) बाड़मेर चैप्टर की देखरेख में है।

किराड़ू मंदिर बाड़मेर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: किराड़ू मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले में हाथमा गाँव के पास स्थित है।

यहाँ तक पहुँचने के तरीको की जानकारी नीचे दी गई है:

  • सड़क मार्ग: सड़क मार्ग किराड़ू मंदिर तक पहुँचने का सबसे आम और सुविधाजनक तरीका है। किराड़ू मंदिर बाड़मेर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। आप बाड़मेर से टैक्सी, बस, निजी वाहन या अन्य स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए बाड़मेर रेलवे स्टेशन निकटतम स्टेशन है। बाड़मेर रेलवे स्टेशन से किराड़ू मंदिर तक की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। आप स्टेशन से टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहूंच सकते है।
  • हवाई मार्ग: हवाई यात्रा के लिए बाड़मेर में कोई हवाई अड्डा नहीं है, लेकिन निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर में है, जो किराड़ू से लगभग 220 किलोमीटर दूर है। जोधपुर हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस, निजी वाहन या अन्य स्थानीय परिवहन से बाड़मेर तक पहुँच सकते हैं, जो लगभग 200 किलोमीटर दूर है। बाड़मेर पहुँचने के बाद, किराड़ू तक का 35 किलोमीटर का सफर टैक्सी, बस, निजी वाहन या अन्य स्थानीय परिवहन से पूरा किया जा सकता है।

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