रामदेवरा मंदिर, राजस्थान के जैसलमेर जिले में पोखरण से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर में स्थित एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है। यह मंदिर लोकदेवता बाबा रामदेवजी को समर्पित है, जिन्हें हिंदू भक्त भगवान कृष्ण का अवतार और मुस्लिम भक्त “रामसा पीर” के रूप में पूजते हैं। मंदिर को “रुणिचा धाम” के नाम से भी जाना जाता है, जो इसका प्राचीन नाम है। यह स्थान साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है, क्योंकि यहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के भक्त आस्था के साथ आते हैं। हर साल भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर) में यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर (Ramdevra Temple Jaisalmer)
मंदिर का नाम:- | रामदेवरा मंदिर (Ramdevra Temple) |
स्थान:- | रामदेवरा, जैसलमेर, राजस्थान (पोखरण से 12 किलोमीटर) |
समर्पित देवता:- | बाबा रामदेवजी (रामसा पीर) |
निर्माण वर्ष:- | 1459 ई. में समाधि; 1931 में महाराजा गंगा सिंह द्वारा मंदिर निर्माण |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | रामदेवरा मेला (भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया से एकादशी) |
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर का इतिहास
रामदेवरा मंदिर बाबा रामदेवजी की समाधि स्थल पर बना है। लोकदेवता रामदेवजी का जन्म विक्रम संवत 1409 (सन 1352 ईस्वी) भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया में उण्डुकाश्मीर (बाडमेर) में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा अजमल (अजमल तंवर) और उनकी मां का नाम मैणादे था। उनका विवाह अमरकोट (वर्तमान पाकिस्तान) के सोढ़ा राजपूत दलेल सिंह की पुत्री नेतलदे/निहालदे के साथ हुआ था। उनके बड़े भाई का नाम वीरमदेव था। उनके गुरु का नाम बालीनाथ था। बालीनाथजी का धूना (आश्रम) पोकरण में स्थित है, जहाँ बाबा ने अपने बाल्यकाल में शिक्षा प्राप्त की थी।
बाबा रामदेवजी ने विक्रम संवत 1442 (सन 1385 ईस्वी) भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को 33 वर्ष की आयु में समाधि ली थी, उनका वर्तमान मंदिर उनकी समाधि स्थल पर बना हुआ है। उनके मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, लगभग 1931 ईस्वी में, बाबा रामदेवजी की समाधि के चारों ओर करवाया था। यह निर्माण कार्य मंदिर को एक भव्य तीर्थस्थल बनाने के लिए किया गया, जो आज भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का एक प्रमुख प्रतीक है, क्योंकि दोनों समुदाय बाबा रामदेवजी को समान श्रद्धा से पूजते हैं। हिंदुओं के लिए वे भगवान कृष्ण का अवतार हैं, जबकि मुसलमान उन्हें रामशाह पीर के रूप में मानते हैं। बाबा रामदेव ने अपने जीवन को समाज सुधार के लिए समर्पित किया था। उन्होंने समाज में व्याप्त लूट-खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगड़ों और अत्याचारों का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने जाति-पाति के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया और सभी धर्मों के लोगों को एक साथ मिलकर रहने की प्रेरणा दी। उनका पूरा जीवन गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित था। उन्हें छुआछूत और भेदभाव मिटाने वाले देवता के रूप में जाना जाता है। उनके इन प्रयासों को ‘कामड़िया पंथ’ की स्थापना के माध्यम से एक संगठित रूप मिला, जो उनके सामाजिक समरसता के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
बाबा रामदेव के चमत्कार और किंवदंतियाँ (‘पर्चे’)
बाबा रामदेव के जीवन से जुड़ी अनेक चमत्कारी कहानियाँ हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘पर्चे’ कहा जाता है। ये कहानियाँ उनकी दिव्य शक्तियों और लोक कल्याणकारी स्वरूप को दर्शाती हैं, और भक्तों की आस्था का आधार बनी हुई है।
प्रमुख चमत्कारों का विवरण:
बाबा रामदेव के जीवनकाल में 24 चमत्कारों की कहानियाँ प्रचलित हैं। ये चमत्कार उनकी अलौकिक शक्तियों और लोक कल्याणकारी स्वरूप को दर्शाते हैं:
- कपड़े का घोड़ा उड़ाने का चमत्कार: यह बाबा के जीवन का सबसे चर्चित और प्रसिद्ध चमत्कार है। बचपन में बाबा रामदेव ने अपनी माँ मैणादे से घोड़े की जिद की थी। जब एक दर्जी (रूपा दर्जी) ने कीमती वस्त्रों की बजाय चिथड़े का घोड़ा बनाया, तो रामदेव ने अपनी अलौकिक शक्ति से उस कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ा दिया। इस घटना से दर्जी ने अपनी गलती मानी और माफी मांगी। यह चमत्कार पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए बाबा को कपड़े का घोड़ा चढ़ाने की वर्तमान परंपरा से जुड़ा हुआ है।
- मक्का के पीरों से मिलन: एक प्रसिद्ध किंवदंती के अनुसार, मक्का से पांच पीर बाबा रामदेव की शक्तियों का परीक्षण करने आए थे। जब उन्होंने भोजन के लिए अपने निजी बर्तनों की अनुपस्थिति का बहाना बनाया, तो बाबा ने मुस्कुराते हुए चमत्कार से उनके बर्तन मक्का से मंगवा दिए। इस अलौकिक शक्ति से प्रभावित होकर, पीरों ने उन्हें प्रणाम किया और ‘राम सा पीर’ की उपाधि दी। उन्होंने बाबा के साथ रहने का निश्चय किया, और उनकी मज़ारें भी बाबा की समाधि के निकट स्थित हैं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
- भैरव राक्षस का अंत: पोखरण क्षेत्र में भैरव नामक एक नरभक्षी राक्षस का आतंक था, जो मानवों का वध करता था। बाबा रामदेव ने अपने गुरु बालीनाथजी के धूणे में छिपकर इस राक्षस का अंत किया, या उसे मारवाड़ छोड़कर जाने पर मजबूर किया था। आज भी रामदेवजी की पूजा के बाद भैरव राक्षस को ‘बाकला’ (एक प्रकार का प्रसाद) चढ़ाने का रिवाज इस क्षेत्र में प्रचलित है।
- अन्य उल्लेखनीय चमत्कार: इन 24 पर्चों में दूध को हाथ के इशारे से रोकना, सारथी सुधार को जीवित करना, विपदा में बहन सुगना को पर्चा देना, पुंगलगढ़ की लड़ाई में ठाकुरों को पर्चा देना, लखी बंजारे को पर्चा देना, बोए बाणिए की जहाज तिराना, अंधे साधु को दृष्टि देना, हडबू जी को परचा, और मरी हुई बिल्ली को जीवित करना जैसे कई अन्य चमत्कार शामिल हैं।
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर की वास्तुकला और संरचना
रामदेवरा मंदिर की वास्तुकला आधुनिक और पारंपरिक हिंदू मंदिर शैली का मिश्रण है, जो ईंट और मोर्टार से बना है। इसका बड़ा प्रवेश द्वार रंगीन चित्रों और चांदी की नक्काशी से सजा हुआ है, और लंबी सीढ़ी गर्भगृह तक ले जाती है, जहाँ बाबा रामदेवजी की मूर्ति स्थापित है। मंदिर की सजावट में ऐतिहासिक तस्वीरें और घोड़ों की प्रतिकृतियाँ शामिल हैं। परिसर में समाधि, डाली बाई का मंदिर, राम झरोखा, पर्चा बावड़ी, और राम सरोवर तालाब जैसे अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएँ हैं।
मंदिर परिसर में कई महत्वपूर्ण संरचनाएँ हैं, जो इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाती हैं:
- मंदिर का मुख्य आकर्षण, जहाँ बाबा रामदेव जी मूर्ति और समाधि स्थल है। यह गर्भगृह का हिस्सा है और भक्तों के लिए सबसे पवित्र स्थान है।
- बाबा रामदेवजी की मुंहबोली बहन डाली बाई का मंदिर जिसमें उनका कंगन भी बना हुआ है। मान्यता के अनुसार इस कंगन में से निकलने पर शरीर के कष्ट दूर होते हैं।
- राम झरोखा यह एक ऐतिहासिक चित्रों और घोड़ों की प्रतिकृतियों से सजा हुआ क्षेत्र है, जो बाबा रामदेवजी के जीवन और चमत्कारों को दर्शाता है।
- पर्चा बावड़ी एक प्राचीन कुआँ, जो मंदिर परिसर में स्थित है और पवित्र माना जाता है। इसे बाबा रामदेवजी ने स्वयं बनवाया था, और भक्त इसे दर्शन के लिए आते हैं।
- राम सरोवर तालाब एक पवित्र तालाब, जो मंदिर के पीछे की तरफ स्थित है। इसे भी बाबा रामदेवजी ने बनवाया था, और भक्त इसमें डुबकी लगाकर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।
- इस परिसर में मक्का से आए पाँच मुस्लिम पीरों की कब्रें भी हैं।
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: रामदेवरा मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के रामदेवरा गांव (रुणिचा) में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग रामदेवरा मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है। जैसलमेर से मंदिर की दूरी लगभग 119 किलोमीटर है और पोखरण से मंदिर की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। जैसलमेर या पोखरण से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग: मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन रामदेवरा रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 700 मीटर दूर है। यह स्टेशन मंदिर के बहुत करीब है, और पैदल चलकर पहुँचा जा सकता है। आप जैसलमेर (लगभग 125 किलोमीटर) तक ट्रेन से भी आ सकते हैं और फिर सड़क मार्ग से रामदेवरा पहुँच सकते हैं।
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से रामदेवरा मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 178 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से रामदेवरा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
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रामदेवरा मंदिर कहां स्थित है?
रामदेवरा मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के रामदेवरा गांव (रुणिचा) में स्थित है।
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रामदेवरा से जैसलमेर कितना किलोमीटर है?
रामदेवरा से जैसलमेर लगभग 120 किलोमीटर है।
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जोधपुर से रामदेवरा कितना किलोमीटर है?
जोधपुर से रामदेवरा लगभग 182 किलोमीटर है?
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रामदेवरा रेलवे स्टेशन का नाम क्या है?
रामदेवरा रेलवे स्टेशन का नाम रामदेवरा रेलवे स्टेशन ही है।