लौद्रवा जैन मंदिर, राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक जैन तीर्थस्थल है। यह मंदिर श्वेतांबर जैन संप्रदाय को समर्पित है और भगवान पार्श्वनाथ (23वें जैन तीर्थंकर) की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। लौद्रवा, 8वीं-9वीं शताब्दी में भाटी राजवंश की राजधानी के रूप में जाना जाता था, और यह मंदिर उस समय की समृद्धि और सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है। अपनी जटिल नक्काशी, पीले बलुआ पत्थर की वास्तुकला, और ऐतिहासिक महत्व के कारण, यह मंदिर जैन श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
लौद्रवा जैन मंदिर जैसलमेर (Lodhurva Jain Temple Jaisalmer)
मंदिर का नाम:- | लौद्रवा जैन मंदिर (Lodhurva Jain Temple) |
स्थान:- | लौद्रवा, जैसलमेर, राजस्थान (जैसलमेर शहर से 15 किलोमीटर) |
समर्पित देवता:- | भगवान पार्श्वनाथ (23वें जैन तीर्थंकर) |
निर्माण वर्ष:- | 9वीं शताब्दी; पुनर्निर्माण विक्रम संवत 1675 (1618 ई.) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महावीर जयंती, पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक |
लौद्रवा जैन मंदिर जैसलमेर का इतिहास
लौद्रवा जैन मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में लौद्रवा शहर की स्थापना के साथ हुआ था। लौद्रवा उस समय काक नदी के किनारे एक समृद्ध और हरा-भरा क्षेत्र था, जो व्यापार और कृषि का केंद्र था। यह क्षेत्र प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित था, जो इसे आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता था। भाटी राजपूत वंश के रावल देवराज ने लौद्रवा को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था, और इसी दौरान मंदिर का निर्माण भी हुआ था। यह मंदिर भाटी शासकों के संरक्षण और उस समय के लौद्रवा की समृद्धि का प्रतीक था।
लौद्रवा जैन मंदिर को अपने इतिहास में कई बार आक्रमणकारियों द्वारा लूटा और नष्ट किया गया। सबसे उल्लेखनीय विनाश महमूद गजनी (1025 ई.) और मुहम्मद गोरी (1152 ई.) द्वारा किया गया था। विशेष रूप से, 1152 ई. में मुहम्मद गोरी द्वारा किए गए विनाश के बाद मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था। रावल जैसल भाटी वंश के एक प्रसिद्ध राजकुमार ने 1156 ई. में अपनी राजधानी लौद्रवा से जैसलमेर स्थानांतरित कर दी थी। यह स्थानांतरण लौद्रवा पर बार-बार होने वाले आक्रमणों और इसकी असुरक्षित स्थिति के कारण हुआ, विशेष रूप से 1152 ई. में मुहम्मद गोरी द्वारा मंदिर के विनाश के बाद।
मंदिर लंबे समय तक खंडहरों में रहा, लेकिन 17वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण हुआ था। मंदिर को 1615 ई. में सेठ थारू शाह नामक एक धनी जैन व्यापारी द्वारा बड़े पैमाने पर मरम्मत और जीर्णोद्धार किया गया था। आधुनिक काल में भी मंदिर के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। 1970 के दशक के आसपास अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया था। इसके बाद, 2000 के दशक की शुरुआत में इसके पूर्व वैभव को पुनर्जीवित करने के लिए व्यापक जीर्णोद्धार कार्य भी किया गया था। आज, लौद्रवा जैन मंदिर लौद्रवा के खंडहरों में खड़ा एकमात्र संरचना है।
लौद्रवा जैन मंदिर जैसलमेर की वास्तुकला और संरचना
जैसलमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित लौद्रवा जैन मंदिर, जिसे लौध्रुवा पार्श्वनाथ जैन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान में जैन वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी जटिल नक्काशी और अनूठी संरचनात्मक विशेषताओं के लिए भी प्रसिद्ध है।
वास्तुकला की विशेषताएँ
- मंदिर का निर्माण मारु-गुर्जर शैली में हुआ है, जो पश्चिमी भारत में विकसित हुई और इसमें जटिल नक्काशी, सुंदर स्तंभ, और अलंकृत तोरण द्वार शामिल हैं। यह शैली जैन मंदिरों में प्रचलित थी और राजस्थान की वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- मंदिर का निर्माण पीले बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से किया गया है, जो इसे सोने की तरह चमकदार रंग देता है।
- मंदिर का प्रवेश द्वार एक अलंकृत तोरण द्वार है, जो जैन वास्तुकला की एक विशिष्ट विशेषता है। यह द्वार पत्थर की जटिल नक्काशी से सजा हुआ है और प्रवेश के समय भक्तों का स्वागत करता है। तोरण में शैव प्रभाव भी दिखाई देता है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है।
- मंदिर की दीवारों पर जाली (जालीदार पत्थर के पैनल) का कार्य किया गया है, जो हवा और प्रकाश को गुजरने देते हुए भी गोपनीयता और सौंदर्य को बनाए रखता है। ये जाली पत्थर की कारीगरी का एक उत्कृष्ट नमूना हैं और प्रत्येक पंक्ति का डिज़ाइन भिन्न है, जो शिल्पकारों की रचनात्मकता को दर्शाता है।
- मंदिर की दीवारें एक अकॉर्डियन (बैलोन) की तरह मुड़ी हुई हैं, जो इसे अन्य जैन मंदिरों से अलग बनाती है। यह डिज़ाइन न केवल सौंदर्यशास्त्रीय है, बल्कि संरचनात्मक रूप से भी मजबूत है, जो मंदिर को रेगिस्तानी तूफानों से बचाता है।
- पूरे मंदिर में अद्भुत जटिल नक्काशी देखी जा सकती है। दीवारों, स्तंभों और गुंबदों पर देवी-देवताओं, जानवरों, वनस्पतियों और ज्यामितीय पैटर्न की बारीक नक्काशी की गई है।
संरचना का विवरण
- मंदिर के गर्भगृह में मुख्य देवता भगवान पार्श्वनाथ की एक आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा काले संगमरमर से बनी है। इस मूर्ति के ऊपर 100 सांपों के हुड़ बने हुए हैं।
- मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर हैं, जिनमें से कुछ श्वेतांबर जैन परंपरा के अन्य तीर्थंकरों को समर्पित हैं।
- मंदिर परिसर को एक ऊँची दीवार से घेरा गया है, जो इसकी सुंदरता को बाहर से छिपाती है। यह दीवार मंदिर की गोपनीयता और सुरक्षा को बढ़ाती है और प्रवेश के समय एक रहस्यमयी अनुभव देती है।
- मंदिर में कलपुत्र (मनोकामना पूर्ण करने वाला पुत्र) और कल्पवृक्ष (इच्छा पूरी करने वाला वृक्ष) की विस्तृत नक्काशी मौजूद है। कल्पवृक्ष की नक्काशी मंदिर के भीतर एक महत्वपूर्ण आकर्षण है।
लौद्रवा जैन मंदिर जैसलमेर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: लौद्रवा जैन मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के लौद्रवा गांव में स्थित है। मंदिर जैसलमेर शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है।
मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग लौद्रवा जैन मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है। जैसलमेर शहर से मंदिर की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है।
- रेल मार्ग: रेल मार्ग से लौद्रवा जैन मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जैसलमेर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 17 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से मंदिर तक टैक्सी, बस, या अन्य स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते है।
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से लौद्रवा जैन मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 285 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस, या अन्य स्थानीय परिवहन से जैसलमेर पहूंच सकते हैं और वहा से मंदिर तक।