सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चुरू जिले के सालासर कस्बे में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो भगवान हनुमान जी को समर्पित है। सालासर बालाजी मंदिर, जिसे स्थानीय लोग सालासर धाम के नाम से भी जानते हैं। यह धाम न केवल भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि एक ऐसी कहानी का जीवंत प्रमाण भी है जो इतिहास, भक्ति और चमत्कार को आपस में जोड़ती है । लाखों श्रद्धालु यहाँ अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं।
सालासर बालाजी मंदिर चुरू (Salasar Balaji Temple Churu)
मंदिर का नाम:- | सालासर बालाजी मंदिर (Salasar Balaji Temple) |
स्थान:- | सालासर कस्बा, चुरू जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | हनुमान जी (बालाजी) |
निर्माण वर्ष:- | 1754 ईस्वी (लगभग) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा |
सालासर बालाजी मंदिर चुरू का इतिहास
राजस्थान के चूरू जिले में स्थित सालासर बालाजी मंदिर, हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थस्थलों में से एक है। यह धाम न केवल भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि एक ऐसी कहानी का जीवंत प्रमाण भी है जो इतिहास, भक्ति और चमत्कार को आपस में जोड़ती है।
दिव्य प्राकट्य: प्रतिमा का चमत्कारी उद्भव
सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास एक ऐसी घटना से शुरू होता है जिसे केवल एक ईश्वरीय लीला ही कहा जा सकता है। विक्रम संवत् 1811 (लगभग 1755 ईस्वी) की श्रावण शुक्ल नवमी नागौर जिले के असोटा गाँव में एक जाट किसान अपने खेत में हल जोत रहा था। अचानक उसका हल एक कठोर, पथरीली वस्तु से टकराया। जब उसने उस स्थान की खुदाई की, तो उसे मिट्टी में सनी हुई एक काली पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुई थी।
इस घटना के बाद, एक अद्भुत संयोग हुआ जिसने मंदिर के भविष्य को निर्धारित किया था। उसी रात, असोटा गाँव के ठाकुर को स्वप्न में आदेश मिला कि इस मूर्ति को सालासर भेजा जाए। आश्चर्यजनक रूप से, उसी रात सालासर में बालाजी के परम भक्त मोहनदास जी महाराज को भी स्वयं हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन दिए और मूर्ति के आगमन की सूचना दी थी। बालाजी ने मोहनदास जी को स्पष्ट निर्देश दिया कि बैलगाड़ी को कहीं रोका न जाए और वह जहां अपने आप रुक जाए, वहीं पर उनकी मूर्ति स्थापित की जाए।
ठाकुर ने दो बैल और एक रथ की व्यवस्था की और मूर्ति को सालासर की ओर रवाना कर दिया था। बैलगाड़ी बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, सालासर गाँव के वर्तमान मंदिर स्थल पर स्वतः ही रुक गई थी। यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि मंदिर के लिए स्थान का चयन स्वयं बालाजी की इच्छा पर आधारित था, जिससे सालासर को एक ‘स्वयंभू’ और ‘शक्ति स्थल’ के रूप में स्थापित किया जा सका। सालासर धाम में आज भी दक्षिण पोल पर वह बैलगाड़ी दर्शनाथ रखी हुई है, जो इस चमत्कारी यात्रा की एक स्थायी निशानी है।
संत शिरोमणि मोहनदास जी महाराज: भक्ति और तपस्या का आधार स्तंभ
सालासर बालाजी के इतिहास में संत शिरोमणि मोहनदास जी महाराज का योगदान सर्वोपरि है। सीकर के रुलियानी ग्राम के निवासी पंडित लच्छीराम जी पाटोदिया के सबसे छोटे पुत्र, मोहनदास जी बचपन से ही एक संत प्रवृत्ति के थे। वे अपनी विधवा बहन कान्ही और उनके पुत्र उदय को सहारा देने के लिए सालासर आए और यहीं पर उनकी भक्ति और तपस्या का मार्ग प्रशस्त हुआ था। मोहनदास जी की भक्ति इतनी गहन थी कि उन्हें स्वयं बालाजी ने दाढ़ी और मूछों वाले रूप में दर्शन दिए थे।
आरंभ में जब मोहनदास जी ने अपनी तपस्या शुरू की, तो लोगों ने उन्हें ‘बावलिया’ (पागल) कहकर उपेक्षा की थी। लेकिन चमत्कारों की एक के बाद एक घटनाओं ने उनकी दिव्यता को सिद्ध कर दिया था। जब डाकुओं ने गाँव पर हमला किया, तो बीकानेर रियासत के ठाकुरों ने उनसे सहायता मांगी। बाबा ने उन्हें बालाजी के नाम पर पताका फहराने की सलाह दी, जिसके परिणामस्वरूप डाकुओं का दल आत्मसमर्पण कर गया था। यह घटना उनकी आध्यात्मिक शक्ति का एक प्रमुख उदाहरण है और इसी के बाद ठाकुरों और आम जनता ने उनके प्रति अपनी श्रद्धा को प्रबलता से व्यक्त किया था। उनकी प्रारंभिक उपेक्षा और बाद में चमत्कारिक घटनाओं के कारण प्राप्त सामाजिक सम्मान यह दर्शाता है कि भारतीय संदर्भ में आध्यात्मिक शक्ति को अक्सर चमत्कारों के माध्यम से ही मान्यता मिलती है।
मंदिर परिसर के भीतर, एक पवित्र धूणा (अग्नि) आज भी निरंतर प्रज्वलित है। यह वही धूणा है जिसे मोहनदास जी ने स्वयं प्रज्वलित किया था और यह लगभग 300 वर्षों से अखंड रूप से जल रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस धूणे से प्राप्त भभूति (राख) भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर देती है। बालाजी मंदिर के पास ही मोहनदास जी और उनकी बहन कान्ही की समाधियां भी स्थित हैं, जहां आज भी उनके पैरों के निशान मौजूद माने जाते हैं।
निर्माण और स्थापत्य: आस्था का भौतिक स्वरूप
डाकुओं पर विजय के चमत्कारिक अनुभव के बाद, बीकानेर रियासत के ठाकुरों और जनता ने मिलकर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था। कुछ स्रोतों के अनुसार, यह कार्य मोहनदास जी के भांजे उदयराम जी द्वारा विक्रम संवत् 1815 (सन् 1759) में पूरा कराया गया था। मंदिर के निर्माण में सबसे उल्लेखनीय तथ्य मुस्लिम कारीगरों नूर मोहम्मद और दारू का योगदान है । यह हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और साझा सांस्कृतिक विरासत का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रारंभिक संरचना मिट्टी और पत्थर से बनी थी। समय के साथ, यह एक भव्य संरचना में परिवर्तित हुई, जिसमें ईंटों, चूने, सीमेंट और विशेष रूप से सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया था। मंदिर का संपूर्ण अग्रभाग सफेद संगमरमर से निर्मित है और गर्भगृह तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों में सोने और चांदी के पुष्प पैटर्न के साथ जटिल मोज़ेक कार्य किया गया है। मंदिर के दरवाजे और बर्तन भी चांदी से बने हैं।
सालासर बालाजी मंदिर चुरू की वास्तुकला और संरचना
सालासर बालाजी मंदिर का निर्माण राजस्थानी शैली में किया गया है। मोहनदास महाराज ने 1754 ई. में सालासर बालाजी मंदिर का निर्माण करवाया था, जो उस समय की सादगी को दर्शाती थी। उन्होंने सबसे पहले मुस्लिम कारीगरों नूरा और दाऊ की मदद से केवल मिट्टी और पत्थर से मंदिर का निर्माण करवाया था। समय के साथ, यह एक भव्य संरचना में परिवर्तित हुई, जिसमें ईंटों, चूने, सीमेंट और विशेष रूप से सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया था।
मंदिर का संपूर्ण अग्रभाग सफेद संगमरमर से निर्मित है; हालाँकि, गर्भगृह, सभा मंडप और परिक्रमा पथ को सोने और चाँदी की पच्चीकारी और फूलो आकृतियों से सजाया गया है। प्रवेश द्वार, द्वार और यहाँ तक कि अनुष्ठानों में प्रयुक्त होने वाले बर्तन भी चाँदी के बने हैं।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित बालाजी की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से बनी है। यह मूर्ति सोने के सिंहासन पर विराजमान है और इसके ऊपरी भाग में श्री राम दरबार है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि हनुमान जी को दाढ़ी और मूंछों के साथ दर्शाया गया है, जो अन्य हनुमान मंदिरों से भिन्न है। प्रतिमा के चारों तरफ सोने से सजावट की गई है और इस पर लगभग 5 किलोग्राम सोने से निर्मित एक भव्य स्वर्ण छत्र भी सुशोभित है।

मंदिर परिसर और उसके आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं जो मंदिर के इतिहास और आध्यात्मिक पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करते हैं। इनमें मोहनदास जी का धूणा और उनकी तथा कान्ही दादी (मोहनदास जी की बहन) की समाधि प्रमुख हैं। मंदिर के पास ही लगभग 1 से 2 किलोमीटर दूर अंजनी माता का मंदिर है, जो हनुमान जी की मां को समर्पित है। परिसर में एक प्राचीन कुआं भी है, जिसके पानी को पवित्र और रोगनाशक माना जाता है। यह कुआं भी मोहनदास जी की दूरदर्शिता का हिस्सा माना जाता है।

सालासर बालाजी मंदिर चुरू का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
सालासर बालाजी मंदिर भारत का एक ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान जी दाढ़ी और मूछों के साथ विराजमान हैं। इस अनूठी विशेषता का कारण महात्मा मोहनदास जी को दिए गए बालाजी के प्रत्यक्ष दर्शन हैं, जब हनुमान जी ने उन्हें इसी रूप में दर्शन दिए थे। इस धाम की सबसे प्रसिद्ध परंपराओं में से एक मन्नत का नारियल बांधना है। मान्यता है कि इस परंपरा की शुरुआत राव राजा देवी सिंह ने की थी, जिन्होंने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से नारियल बांधा था और उनकी इच्छा पूरी हुई थी।
एक अन्य महत्वपूर्ण परंपरा ‘सवामणी’ भोग है, जिसमें भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग 50 किलोग्राम विभिन्न व्यंजनों, जैसे चूरमा, बूंदी, लड्डू और पेड़े का भोग तैयार करवाते हैं। इन परंपराओं के अतिरिक्त, बालाजी को चूरमा और बूंदी का प्रसाद विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार, जब किसान को मूर्ति मिली थी, तो उसकी पत्नी उसके लिए बाजरे का चूरमा लाई थी, और तभी से यह भोग चढ़ाया जाने लगा था।
हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा को यहां बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से, अक्सर पैदल यात्रा करके, दर्शन के लिए आते हैं। सालासर धाम का एक छोटे मंदिर से एक विशाल तीर्थस्थल के रूप में विकसित होना, भारत में धार्मिक पर्यटन और आस्था के बढ़ते महत्व को दर्शाता है।
सालासर बालाजी मंदिर चुरू तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चुरू जिले के सालासर गांव में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) मंदिर से लगभग 184 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: सालासर बालाजी मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर चुरू से लगभग 75 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर चुरू पहुँच सकते हैं। चुरू पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।