रानी सती मंदिर (Rani Sati Temple Jhunjhunu) राजस्थान के झुंझुनू में स्थित एक प्रमुख धार्मिक है। यह मंदिर रानी सती (जिन्हें नारायणी देवी के नाम से भी जाना जाता है।) को समर्पित है, जो एक राजस्थानी महिला थीं जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद सती प्रथा का पालन किया था। यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर है जो रानी सती को समर्पित है और शेखावाटी क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
रानी सती मन्दिर झुंझुनू (Rani Sati Temple Jhunjhunu)
मंदिर का नाम:- | रानी सती मन्दिर (Rani Sati Temple) |
मंदिर का अन्य नाम:- | दादी मां मंदिर |
स्थान:- | झुंझुनूं, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | रानी सती (नारायणी देवी/दादीजी) |
निर्माण वर्ष:- | मुख्य मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी में हुआ, लेकिन मूल इतिहास 16वीं-17वीं शताब्दी से जुड़ा है। |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | भाद्रपद अमावस्या |
रानी सती मन्दिर झुंझुनू का इतिहास
रानी सती की कहानी एक जटिल पौराणिक गाथा है जो कई युगों और जन्मों तक फैली हुई है। यह गाथा सिर्फ एक आत्मदाह की घटना नहीं है, बल्कि वीरता, प्रतिशोध और भक्ति के गहन प्रतीकों से भरी हुई है। रानी सती के जीवन और उनकी मृत्यु से जुड़ी घटनाओं के विवरण में व्यापक भिन्नता है। कुछ स्रोतों में उनकी मृत्यु का समय 1295 या 1595 बताया गया है, जबकि कुछ अन्य स्रोतों 14वीं शताब्दी या यहाँ तक कि 17वीं शताब्दी में मानते हैं।
महाभारत से पुनर्जन्म तक
लोककथाओं के अनुसार, रानी सती की कहानी का आरंभ महाभारत काल में होता है। उन्हें द्वापर युग में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का पुनर्जन्म माना जाता है।
महाभारत युद्ध में जब अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए, तो उत्तरा ने उनके साथ सती होने का निश्चय किया था। हालाँकि, उस समय वह गर्भवती थीं, इसलिए भगवान कृष्ण ने उन्हें रोक दिया और उन्हें यह वरदान दिया कि उनका सती धर्म कलयुग में पूरा होगा।
यह कथा इस बात पर ज़ोर देती है कि रानी सती का आत्मबलिदान कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं था, बल्कि एक पूर्व निर्धारित दैवीय इच्छा का परिणाम था।
नारायणी देवी और तन-धन दास
भगवान कृष्ण के वरदान के अनुसार, उत्तरा का पुनर्जन्म कलयुग में हरियाणा के डोकवा गांव में गुरसामल जी की पुत्री नारायणी के रूप में हुआ था। अभिमन्यु ने हिसार राज्य के दीवान जालीराम के पुत्र तन-धन दास के रूप में जन्म लिया था। उसके बाद इन दोनों का विवाह हुआ था।
तन-धन दास के पास एक विलक्षण घोड़ी थी, जिस पर हिसार के नवाब के बेटे (शहजादे) की नज़र थी। शहजादे ने उस घोड़ी को पाने के लिए ज़बरदस्ती की, जिसके परिणामस्वरूप तन-धन दास ने आत्मरक्षा में उसे मार डाला था। अपने बेटे की मृत्यु से क्रोधित होकर, नवाब ने तन-धन दास का पीछा किया और एक षड्यंत्र के तहत उसकी हत्या कर दी थी।
प्रतिशोध और आत्म-बलिदान
अपने पति के पार्थिव शरीर को देखकर, नारायणी ने रणचंडी का विकराल रूप धारण कर लिया था। उन्होंने अपने पति की तलवार लेकर नवाब और उसकी पूरी सेना का संघार किया, जिससे अपने पति की हत्या का प्रतिशोध पूरा हुआ। इस प्रतिशोध के बाद, उन्होंने अपने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया था। उन्होंने अपने घोड़े के रखवाले राणा जी को चिता तैयार करने का आदेश दिया था।
अपने पति के पार्थिव शरीर को देखकर उन्होंने मां भवानी का स्मरण किया था। कहा जाता है कि मां भवानी ने अपना त्रिशूल नारायणी को दे दिया अर्थात नारायणी के हाथ में मां भवानी का त्रिशूल प्रकट हो गया और उस त्रिशूल से ही नारायणी ने नवाब और उसकी पूरी सेना को मार डाला नवाब की पूरी सेना को मारने के बाद नारायणी अब सती होना चाहती थी।
परंतु तनधनदास के सेवक राणा जी जो जीवित थे उन्होंने नारायणी से कहा कि आप सती हो जाएंगी तो मैं आपके घर में और ससुराल में क्या जवाब दूंगा नारायणी ने कहा मेरे कर्तव्य से मुझे मत रोको और नारायणी अपने पति के शव को लेकर सती हो गई थी। तीन दिन तक सेवक राणा जी वही चिता के पास बैठा रहा वह समझ नहीं पा रहा था कि घर पर क्या मुंह दिखाऊंगा मैं सेवक होकर भी अपने मालिक और मालकिन को नहीं बचा सका तीसरे दिन सेवक राणा को सती देवी नारायणी ने दर्शन दिए और उनसे कहा कि जो भी हुआ है सबको सच सच बता दे और मैं यहां विराजमान हूं तथा नारायणी ने अपने पूर्व जन्म के रूप की सत्यता के बारे में भी बताया था।
देवी नारायणी ने सेवक राणा को यह भी कहा था कि मेरी भस्म लेकर यहां से राजस्थान चला जा जहां यह घोड़ी रुक जाएगी वहीं भस्म को प्रवाहित कर देना वह मेरा स्थान होगा और इस प्रकार घोड़ी राजस्थान में झुंझुनू आकर रुक गई झुंझुनू में भी दादी सती का स्थान है।
इसी घटना के बाद से उन्हें रानी सती के नाम से जाना जाने लगा था। यह कहानी उन्हें केवल एक समर्पित पत्नी के रूप में ही नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय और शक्तिशाली योद्धा के रूप में भी स्थापित करती है, जिनकी पूजा उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिए की जाती है। यह उनके सम्मान का एक महत्वपूर्ण कारण है, जो उन्हें पारंपरिक सती की अवधारणा से अलग करता है।
निर्माण का कालक्रम और संरक्षक
मंदिर के निर्माण के समय को लेकर विभिन्न स्रोतों में कुछ विरोधाभास पाए जाते हैं। अधिकांश स्रोत बताते हैं कि मंदिर 400 वर्ष से अधिक पुराना है। हालाँकि, एक कथा के अनुसार नारायणी देवी का सती होना 14वीं शताब्दी में हुआ था, और कुछ स्रोतों में यह भी उल्लेख है कि मंदिर का निर्माण भी उसी शताब्दी में हुआ था। इस भव्य संरचना के निर्माण और विकास का श्रेय मारवाड़ी समाज को दिया जाता है, जो झुंझुनू के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग था।
रानी सती मन्दिर झुंझुनू की वास्तुकला और संरचना
रानी सती मंदिर की वास्तुकला अत्यंत भव्य है और इसे भारत में स्थापत्य कला का एक सुंदर नमूना माना जाता है। मंदिर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से निर्मित है और बाहर से देखने पर किसी राजमहल जैसा दिखाई देता है। इसकी दीवारों पर सुंदर रंगीन चित्र, भित्तिचित्र और शीशे का काम किया गया है। मंदिर के मेहराब और स्तंभ मुगल काल की वास्तुकला से प्रभावित लगते हैं।
रानी सती मंदिर के गर्भगृह में किसी भी देवी या देवता की मूर्ति स्थापित नहीं है। इसके बजाय, यहाँ त्रिशूल की पूजा की जाती है, जो शक्ति और बल का प्रतीक है। यह पूजा विधि भक्तों को एक भौतिक मूर्ति की बजाय देवी की आंतरिक शक्ति और उनके द्वारा दिखाए गए साहस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है।
रानी सती मंदिर के परिसर में भगवान हनुमान मंदिर, सीता मंदिर, ठाकुर जी मंदिर, भगवान गणेश मंदिर और शिव मंदिर भी हैं। मुख्य मंदिर के साथ-साथ बारह छोटे सती मंदिर भी हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में कई अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी हैं। रानी सती मंदिर परिसर में भोजनशाला, आवासीय व्यवस्था, बगीचे और पूजा-हवन की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
रानी सती मन्दिर झुंझुनू के उत्सव और सांस्कृतिक महत्व
रानी सती मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। हर साल भाद्रपद अमावस्या (जो अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ती है) के दिन यहाँ एक बड़ा उत्सव आयोजित होता है, जिसमें देशभर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस दिन को ‘सतियों की अमावस्या’ के रूप में जाना जाता है और पितरों के संदर्भ में इसका विशेष महत्व माना जाता है। उत्सव में भजन संध्या और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी शामिल होते हैं।
रानी सती मंदिर विशेष रूप से मारवाड़ी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। देशभर से, विशेष रूप से कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और नागपुर जैसे शहरों से मारवाड़ी समुदाय के लोग इस वार्षिक उत्सव में शामिल होने के लिए झुंझुनू आते हैं।
रानी सती मन्दिर झुंझुनू तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: रानी सती मन्दिर राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) मंदिर से लगभग 195 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके झुंझुनू तक पहुँच सकते हैं। झुंझुनू पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते हो।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन झुंझुनू रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर झुंझुनू बस स्टैंड से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं।