वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना, धार्मिक महत्व और लोक परंपराएं

राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गांव में बसा वीर तेजाजी मंदिर एक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, जो लोक देवता वीर तेजाजी महाराज को समर्पित है। तेजाजी, जिनका जन्म 1074 ईस्वी में यहीं हुआ, अपनी वीरता, गाय रक्षा, और वचन पालन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कथा तब शुरू होती है जब उन्होंने अपनी गायों को चोरों से बचाने के लिए युद्ध किया और अंत में सर्पदंश से अपनी शहादत दी। यह मंदिर न केवल उनकी जन्मभूमि और शहादत का प्रतीक है, बल्कि हिंदू, सिख, और मुस्लिम भक्तों के लिए आस्था का केंद्र भी है। तेजाजी को सर्पदंश से रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है, और हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आशीर्वाद लेने आते हैं।

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वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर (Veer Tejaji Temple Kharnal Nagaur)

मंदिर का नाम:-वीर तेजाजी मंदिर (Veer Tejaji Temple)
स्थान:-खरनाल, परबतसर तहसील, नागौर जिला, राजस्थान
समर्पित देवता:-वीर तेजाजी महाराज
प्रसिद्ध त्यौहार:-वार्षिक पशु मेला (श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या तक)

वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर का इतिहास

वीर तेजाजी का परिचय और वंशावली

वीर तेजाजी, जिन्हें ‘तेजा बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रमुख लोक देवता हैं। उनकी ख्याति राजस्थान से परे मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों तक फैली हुई है, जहां उन्हें कृषि के उपकारक और नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है। लोक कथाओं में उन्हें भगवान शिव के ग्यारह प्रमुख अवतारों में से एक माना गया है।

उनका जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव में विक्रम संवत 1130 (1074 ईस्वी) के माघ शुक्ल चौदस के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम ताहड़देव (थिरराज) और माता का नाम रामकंवरी था। तेजाजी के पांच बड़े भाई और एक छोटी बहन राजल थी। बचपन से ही उनमें असाधारण आभा थी, जिसके कारण उन्हें ‘तेजा’ नाम दिया गया, जिसका अर्थ है ‘तेजस्वी’। उनका विवाह पनेर गांव के रायमल जी की पुत्री पेमल से हुआ था। पेमल के साथ तेजाजी का विवाह पुष्कर में 1074 ईस्वी में हुआ था जब तेजा 9 महीने के थे और पेमल 6 महीने की थी।

उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि धोलिया गोत्र के जाट समुदाय से है। उनका जीवनकाल 1074 ईस्वी से 1103 ईस्वी तक माना जाता है, जब उन्होंने 29 वर्ष की आयु में बलिदान दिया था।

वचन पालन और गौ रक्षा का महान बलिदान

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लोक कथा के अनुसार, वे अपनी पत्नी को लेने अपने ससुराल जा रहे थे, तब उन्हें रास्ते में लाछा गूजरी (गुर्जर समाज की महिला) मिली थी, वह उनकी गायों को चोरों से छुड़ाने के लिए गए थे। रास्ते में, उन्होंने एक जलते हुए नाग को बचाया, जिसने क्रोधित होकर उन्हें डसने का प्रयास किया था। तेजाजी ने नाग को वचन दिया कि वह पहले गायों को छुड़ाने का अपना कर्तव्य पूरा करेंगे और उसके बाद वापस लौटकर उसे डसने देंगे।

इस वचन का पालन करने के लिए, तेजाजी ने अकेले ही 350 चोरों से युद्ध किया और उन्हें परास्त करके गायों को सुरक्षित वापस लाया था। इस युद्ध में वह बुरी तरह घायल हो गए और खून से लथपथ थे। जब वह नाग के पास वापस लौटे, तो नाग ने देखा कि उनके शरीर पर डसने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचा है। तब तेजाजी ने नाग से अपनी जीभ पर डसने के लिए कहा था। इस महान वचनबद्धता से प्रसन्न होकर नाग ने उन्हें सर्पों के देवता होने का वरदान दिया और कहा कि उनके थानक पर आने वाले हर व्यक्ति पर सर्पदंश का असर खत्म हो जाएगा। इस प्रकार, तेजाजी ने अपने प्राणों का बलिदान करके लोक आस्था में अमरत्व प्राप्त कर लिया था।

मंदिर का ऐतिहासिक विकास और वर्तमान निर्माण

वीर तेजाजी महाराज का खरनाल में पहले एक छोटा और पुराना मंदिर था, जिसकी मूर्ति प्राकृतिक रूप से मिट्टी से निकली थी और लगभग 1000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। उसके बाद खरनाल गांव के मध्य में वीर तेजाजी महाराज का तीन मंजिला भव्य मंदिर बना हुआ था। पुरानी संरचना, जो आरसीसी और सीमेंट से बनी थी, को हटाकर अब एक नए और भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इस पुनरुत्थान की शुरुआत 10 जून 2022 को हुई थी।

परियोजना की अनुमानित लागत को लेकर भी भिन्न-भिन्न जानकारी उपलब्ध है। वर्तमान में, इस पवित्र स्थल को एक भव्य तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसमें ₹100 करोड़ से ₹400 करोड़ तक की लागत का अनुमान लगाया गया है।

वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर की वास्तुकला और संरचना

खरनाल गांव के मध्य में वीर तेजाजी महाराज का तीमंजिला भव्य मंदिर बना हुआ था। उसके बाद पुरानी संरचना, जो आरसीसी और सीमेंट से बनी थी, को हटाकर अब एक नए और भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इस पुनरुत्थान की शुरुआत 10 जून 2022 को हुई थी। नए मंदिर की वास्तुकला पूरी तरह से पारंपरिक भारतीय शैली पर आधारित है और इसके निर्माण में मकराना के उच्च गुणवत्ता वाले सफेद संगमरमर का उपयोग किया जा रहा है।

परियोजना की अनुमानित लागत को लेकर भी भिन्न-भिन्न जानकारी उपलब्ध है, जो इसके बढ़ते दायरे को इंगित करती है। शुरुआती रिपोर्टों में इस परियोजना की लागत ₹100 करोड़ बताई गई थी, जबकि बाद में यह अनुमान ₹200 करोड़ और फिर ₹400-450 करोड़ तक पहुँच गया था।

खरनाल गांव में तेजाजी के मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं, जो उनकी कहानी को पूरा करते हैं और भक्तों के लिए अलग-अलग धार्मिक महत्व रखते हैं। ये स्थल तेजाजी की लोक गाथा को एक मूर्त रूप देते हैं।

लीलण घोड़ी की समाधि

तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण उनके जीवन और मृत्यु की कहानी का एक अभिन्न अंग है। तेजाजी के बलिदान के बाद, लीलण घोड़ी अकेले ही खरनाल वापस आई और उनकी माता रामकंवरी तथा बहन राजल को तेजाजी के बलिदान की खबर सुनाई थी। इसके बाद, तेजाजी के वियोग में दुखी होकर उसने उसी स्थान पर अपने प्राण त्याग दिए थे। लीलण की समाधि खरनाल गांव के तालाब के पास स्थित है, और इस स्थान पर एक छोटा मंदिर बना हुआ है। भक्त इस समाधि पर आकर लीलण की वफादारी और तेजाजी के प्रति उसकी भक्ति को सम्मान देते हैं।

बूंगरी माता (राजल) मंदिर

बूंगरी माता (राजल) मंदिरयह मंदिर तेजाजी की बहन राजल को समर्पित है। तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर, राजल ने अपने भाई के दुख में उसी स्थान पर धरती में समाधि ले ली। यह मंदिर गांव के बाहर तालाब की पाल पर बना हुआ है। स्थानीय मान्यता है कि बूंगरी माता की पूजा करने से अच्छी बारिश होती है। कुछ भक्त बूंगरी माता तालाब से मिट्टी लेकर भी पूजा करते हैं, और इस मिट्टी से त्वचा संबंधी रोगों के उपचार की भी मान्यता है।  

तेजाजी पैनोरमा

खरनाल में एक तेजाजी पैनोरमा भी स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य आधुनिक माध्यमों से तेजाजी की जीवनी को दर्शाना है। पैनोरमा में कलाकृतियों और मूर्तियों के माध्यम से तेजाजी के जीवन की प्रमुख घटनाओं को चित्रित किया गया है, जिसमें उनके जन्म से लेकर लाछा गूजरी की गायों की रक्षा के लिए 350 चोरों से हुए भयंकर युद्ध तक की कहानी शामिल है। इस पहल का उद्देश्य युवा पीढ़ी को तेजाजी के सत्यवादी, गौ रक्षक और वचन पालन जैसे आदर्शों से जोड़ना है। यह एक आधुनिक प्रयास है जो तेजाजी की विरासत को केवल धार्मिक पूजा तक सीमित न रखकर एक शैक्षिक और सांस्कृतिक रूप भी प्रदान करता है।

बड़कों की छतरी

खरनाल गांव के तालाब की पाल पर पत्थरों से निर्मित एक प्राचीन छतरी भी स्थित है। इस छतरी के बीचों बीच एक शिवलिंग स्थापित है, और यह माना जाता है कि तेजाजी प्रतिदिन यहां आकर भगवान शिव की उपासना करते थे।

वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर धार्मिक महत्व और लोक परंपराएं

प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को, जिसे तेजा दशमी के नाम से जाना जाता है, खरनाल में एक विशाल वार्षिक मेला लगता है। यह मेला तेजाजी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है और यह भक्तों की आस्था का एक महाकुंभ होता है। राजस्थान के विभिन्न जिलों के साथ-साथ, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

तेजाजी की लोक कथाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू सर्पदंश से जुड़ा हुआ है। उनकी कहानी से प्राप्त वरदान के अनुसार, उनके थानक (पूजा स्थल) पर सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का इलाज संभव माना जाता है। खरनाल के मंदिर में इस मान्यता से संबंधित कई पारंपरिक उपचार पद्धतियां प्रचलित हैं। पुजारी, जिन्हें ‘भोपा’ कहा जाता है, उपचार के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। माना जाता है कि भोपा के शरीर में तेजाजी की आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है, जिसके बाद वह झाड़ा लगाकर विष का प्रभाव कम करते हैं।

सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को तेजाजी के नाम का पवित्र धागा ‘तांती’ बांधा जाता है, जिसे जहर के असर को खत्म करने वाला माना जाता है। कुछ स्थानों पर भोपा अपनी जीभ पर सांप से डसवाकर भी अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं, जिससे यह मान्यता और भी मजबूत होती है कि तेजाजी की कृपा से जहर बेअसर हो जाता है।

वीर तेजाजी मंदिर खरनाल नागौर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: यह मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के परबतसर तहसील में खरनाल गांव में स्थित है। यह मंदिर नागौर-जोधपुर राजमार्ग पर नागौर शहर से लगभग 15-20 किलोमीटर की दूरी पर है।

मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: जोधपुर हवाई अड्डा (Jodhpur Airport) मंदिर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: वीर तेजाजी मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन नागौर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर नागौर से लगभग 19 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर नागौर पहुँच सकते हैं। नागौर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

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