पशुपतिनाथ महादेव मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के मांझवास गांव में स्थित एक पवित्र धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपतिनाथ स्वरूप को समर्पित है, जो नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है। मंदिर की विशेषता है इसकी 401 फीट लंबी गुफा और अष्टधातु से बना शिवलिंग, जो भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। मांझवास गांव नागौर शहर से 25 किलोमीटर दूर है। मंदिर की स्थापना की प्रेरणा इसके संस्थापक योगी गणेशनाथ महाराज की नेपाल यात्रा से मिली थी, जिन्होंने मंदिर के निर्माण के लिए 16 वर्ष की अभूतपूर्व तपस्या का प्रण लिया था।
पशुपतिनाथ महादेव मंदिर मांझवास नागौर (Pashupatinath Mahadev Temple Manjhwas Nagaur)
मंदिर का नाम:- | पशुपतिनाथ महादेव मंदिर (Pashupatinath Mahadev Temple) |
स्थान:- | मांझवास गांव, नागौर जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान शिव (पशुपतिनाथ) |
निर्माण वर्ष:- | मंदिर की नींव 1982 में प्राण प्रतिष्ठा 1998 में |
मुख्य आकर्षण:- | 401 फीट गुफा, अष्टधातु शिवलिंग |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महाशिवरात्रि, सावन, गुरु पूर्णिमा |
पशुपतिनाथ महादेव मंदिर मांझवास नागौर का इतिहास
नागौर के मांझवास गाँव में भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ महादेव मंदिर का इतिहास किसी प्राचीन राजवंश या पौराणिक कथा से नहीं, बल्कि एक आधुनिक संत योगी गणेशनाथ महाराज की गहरी आस्था और दूरदर्शिता से जुड़ा है।
इस मंदिर की स्थापना का विचार योगी गणेशनाथ महाराज को उनकी यात्राओं के दौरान आया था, जब वे नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित मूल पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करने गए थे। उस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की दिव्यता और स्थापत्य कला ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने भारत में, विशेष रूप से राजस्थान की भूमि पर उसी शैली का एक शिव मंदिर बनाने का प्रण लिया था।
उन्होंने मंदिर की नींव रखने के बाद यह संकल्प लिया था कि जब तक मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। यह तपस्या लगभग 16 वर्षों तक चली, जिस दौरान वे केवल जल पर ही जीवित रहे थे। इस संकल्प के साथ, मंदिर की नींव वर्ष 1982 में रखी गई थी। यह एक लंबी और धैर्यपूर्ण प्रक्रिया थी जो पूरे 16 साल तक चली थी। अंततः इस विशाल प्रयास का समापन वर्ष 1998 में विश्वकर्मा जयंती के दिन मंदिर की धूमधाम से प्राण प्रतिष्ठा के साथ हुआ था। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के 2 साल बाद गणेशनाथ महाराज की मृत्यु हो गई थी।
मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले, अष्टधातु की इस प्रतिमा को एक अद्वितीय यात्रा पर ले जाया गया था। इसे भारत के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए ले जाया गया, जिसमें 45 दिन लगे थे। इस यात्रा के दौरान, सभी ज्योतिर्लिंगों में वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार प्रतिमा का अभिषेक किया गया था।
पशुपतिनाथ महादेव मंदिर मांझवास नागौर की वास्तुकला और संरचना
मांझवास का यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो नेपाल की विशिष्ट शैली को भारत की भूमि पर जीवंत करता है। इसकी संरचना और केंद्रीय प्रतिमा, दोनों ही अपनी कलात्मकता और आध्यात्मिक गहराई के लिए विख्यात हैं।
यह मंदिर विशेष रूप से अपने गर्भगृह और संरचना के लिए प्रसिद्ध है, जिसे हूबहू काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर की प्रतिकृति के रूप में तैयार किया गया है। इस स्थापत्य को बनाने में लकड़ी, लोहे और एल्यूमीनियम जैसी सामग्रियों का उपयोग किया गया है। इस मंदिर का डिजाइन नेपाल के पगोडा शैली वाले मंदिर की भव्यता और विशिष्टता को दर्शाता है। भविष्य में, मंदिर के लिए एक भव्य प्रवेश द्वार भी नेपाल के मंदिर की तर्ज पर बनवाने की योजना है। मंदिर में एक भूमिगत परिक्रमा पथ भी है, जिसमें संतों और महापुरुषों की 281 प्रतिमाएँ स्थापित करने की योजना पर काम चल रहा है।
मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसके गर्भगृह में स्थापित भगवान पशुपतिनाथ की अष्टधातु से निर्मित प्रतिमा है। इस प्रतिमा का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है।

पशुपतिनाथ महादेव मंदिर मांझवास नागौर वार्षिक मेले और उत्सव
यह मंदिर अपनी वार्षिक आयोजनों के लिए जाना जाता है, जो देश भर से बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करते हैं। सबसे प्रमुख उत्सव महाशिवरात्रि है, जिसके दौरान एक विशाल मेले का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त, श्रावण (सावन) के पूरे महीने में, खासकर हर सोमवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है, जो विशेष अभिषेक अनुष्ठान में भाग लेते हैं। योगी गणेशनाथ महाराज के निर्वाण दिवस पर भी एक वार्षिक मेला और जागरण (जागरण) का आयोजन किया जाता है, जो गुरु की स्मृति और उनके योगदान को समर्पित है।
पशुपतिनाथ महादेव मंदिर मांझवास नागौर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: यह पशुपतिनाथ महादेव मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के मांझवास गांव में स्थित है, जो नागौर से लगभग 25 किलोमीटर दूर है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जोधपुर हवाई अड्डा (Jodhpur Airport) मंदिर से लगभग 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन नागौर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर नागौर बस स्टैंड से लगभग 19 से 20 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर नागौर पहुँच सकते हैं। नागौर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।