आशापुरा माता मंदिर नाडोल (पाली) | Aashapura Mata Mandir Nadol

राजस्थान की पवित्र धरती पर बसे मंदिर न केवल आध्यात्मिक केंद्र हैं, बल्कि इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के प्रतीक भी हैं। पाली जिले के नाडोल गाँव में स्थित आशापुरा माता मंदिर ऐसा ही एक तीर्थस्थल है, जो माँ आशापुरा को समर्पित है। माँ आशापुरा, जिन्हें शाकम्भरी देवी का अवतार और चौहान राजवंश की कुलदेवी माना जाता है, भक्तों की आशाएँ पूरी करने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं। अरावली पहाड़ियों की तलहटी में बसा यह मंदिर 1077 वर्षों से भी अधिक पुराना है और नवरात्रि के दौरान मेले जैसा माहौल बन जाता है, जब लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

आशापुरा माता मंदिर नाडोल की सामान्य जानकारी

मंदिर का नाम:-आशापुरा माता मंदिर (Aashapura Mata Mandir)
स्थान:-नाडोल, देसूरी तहसील, जिला पाली, राजस्थान
समर्पित देवता:-माँ आशापुरा (शाकम्भरी देवी का अवतार, चौहान राजवंश की कुलदेवी)
निर्माण वर्ष:-10वीं शताब्दी (945-970 ईस्वी)
निर्माता:-राव लक्ष्मण सिंह (लाखणसी चौहान)
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि, गरबा, भक्ति भजन, और हवन

आशापुरा माता मंदिर नाडोल का इतिहास

आशापुरा माता मंदिर का इतिहास 10वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब इसे राव लक्ष्मण (लाखणसी) चौहान ने स्थापित किया था। इस मंदिर की स्थापना 945-970 ईस्वी के बीच हुई थी। किंवदंती है कि राव लक्ष्मण को माँ शाकम्भरी ने सपने में दर्शन दिए और उन्हें 12,000-18,000 घोड़ों की सेना प्रदान की थी, जिसके बल पर उन्होंने नाडोल में चौहान वंश की स्थापना की थी। इस विजय और उनकी आशाओं की पूर्ति के लिए माँ शाकम्भरी को “आशापुरा” (आशा पूरी करने वाली) नाम से पूजा जाने लगा था।

नाडोल में चौहान वंश की स्थापना विक्रम संवत 1030 (973 ईस्वी) में हुई, और माँ आशापुरा को चौहान राजवंश की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। न केवल चौहान, बल्कि जडेजा, कच्छ के गोसर, पोलादिया, और अन्य समुदाय (नवानगर, राजकोट, मोरवी, गोंडल) भी माँ आशापुरा को अपनी कुलदेवी मानते हैं। मंदिर का ऐतिहासिक महत्व हर्ष के शिलालेख, कर्नल जेम्स टॉड द्वारा लंदन की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी को भेंट किए गए शिलालेख, और नैणसी की ख्यात में दर्ज है, जो राव लक्ष्मण और माँ आशापुरा की कथा को प्रमाणित करते हैं।

मंदिर की स्थापना के समय नाडोल एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र था। चौहान शासकों ने यहाँ अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए माँ आशापुरा के आशीर्वाद को आधार बनाया था। मंदिर ने न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक एकता को भी बढ़ावा दिया था। यह मंदिर 1077 वर्ष से अधिक पुराना है, जो इसे राजस्थान के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक बनाता है।

आशापुरा माता मंदिर नाडोल की वास्तुकला और परिसर

आशापुरा माता मंदिर की वास्तुकला प्राचीन और आधुनिक शिल्पकला का मिश्रण है। मूल मंदिर, जो राव लक्ष्मण द्वारा 10वीं शताब्दी में बनवाया गया था, अपनी प्राचीनता और सादगी के लिए जाना जाता है। हाल के वर्षों में, मंदिर ट्रस्ट ने संगमरमर से एक भव्य नया मंदिर बनवाया है, लेकिन मूल गर्भगृह को यथावत रखा गया है। नया मंदिर संगमरमर की नक्काशी और आधुनिक डिज़ाइन के साथ श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

मंदिर परिसर विशाल है, जिसमें एक प्रांगण, सत्संग भवन, विश्राम भवन, और भोजनालय शामिल हैं। परिसर की एक प्रमुख विशेषता है राव लक्ष्मण द्वारा निर्मित प्राचीन बावड़ी, जिसका जल आज भी उपयोग में है। बावड़ी के द्वार पर गंगा माता की प्रतिमा स्थापित है, जो जल की पवित्रता का प्रतीक है। मंदिर के सामने राव लक्ष्मण की प्रतिमा भी स्थापित है, जो उनकी भक्ति और योगदान को श्रद्धांजलि देती है।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

मंदिर ट्रस्ट द्वारा भव्य प्रवेश द्वार और अन्य निर्माण कार्य प्रगति पर हैं। संगमरमर का उपयोग और आधुनिक सुविधाएँ, जैसे साफ-सफाई और श्रद्धालुओं के लिए बैठने की व्यवस्था, मंदिर को एक समकालीन तीर्थस्थल बनाती हैं। परिसर में प्राकृतिक सौंदर्य, विशेष रूप से अरावली पहाड़ियों का दृश्य, मंदिर के आध्यात्मिक माहौल को और बढ़ाता है।

आशापुरा माता मंदिर नाडोल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

माँ आशापुरा को शाकम्भरी देवी का अवतार माना जाता है, जो रुद्रयमल तंत्र और पुराणों में वर्णित हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, माँ आशापुरा अन्नपूर्णा का रूप हैं, जो भक्तों को भोजन, समृद्धि, और सुरक्षा प्रदान करती हैं। मंदिर में माँ की मूर्ति अद्वितीय है, जिसमें सात जोड़ी आँखें हैं, जो उनकी सर्वदृष्टि और सर्वशक्तिमान प्रकृति को दर्शाती हैं। यह मूर्ति भक्तों के बीच गहरी श्रद्धा का केंद्र है।

मंदिर का धार्मिक महत्व नवरात्रि के दौरान और भी बढ़ जाता है, जब यहाँ मेले जैसा माहौल बनता है। लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, और मंदिर परिसर गरबा, भक्ति भजनों, और विशेष पूजाओं से गूँज उठता है। नवरात्रि के दौरान माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, और भक्त उपवास, जागरण, और हवन जैसे अनुष्ठान करते हैं। मंदिर में सालाना करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है, जो मंदिर के विकास, भोजनालय, और श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए उपयोग होता है।

सांस्कृतिक रूप से, मंदिर चौहान वंश और अन्य समुदायों की एकता का प्रतीक है। यहाँ की परंपराएँ, जैसे पशुबलि पर प्रतिबंध (जो मंदिर के शिलालेख में दर्ज है), जैन और हिंदू समुदायों के बीच धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाती हैं। मंदिर में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे भक्ति संगीत और स्थानीय नृत्य, राजस्थान की समृद्ध परंपराओं को जीवंत करते हैं। माँ आशापुरा की पूजा न केवल राजस्थान, बल्कि गुजरात, मध्य प्रदेश, और अन्य राज्यों में भी प्रचलित है, जो इस मंदिर को एक राष्ट्रीय तीर्थस्थल बनाता है।

आशापुरा माता मंदिर नाडोल तक कैसे पहुँचें?

पता: नाडोल, देसूरी तहसील, जिला पाली, राजस्थान

यह मंदिर नाडोल गाँव में स्थित है, जो पाली जिले से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। आशापुरा माता मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल, और हवाई मार्ग उपलब्ध हैं:

  • सड़क मार्ग: पाली से नाडोल 80 किलोमीटर दूर है, जो 1.5-2 घंटे में पहुँचा जा सकता है। सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है, क्योंकि यह पाली, उदयपुर, और जोधपुर जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है।
  • रेल मार्ग: पाली मारवाड़ रेलवे स्टेशन (80 किलोमीटर) निकटतम है। यहाँ से टैक्सी या बस से नाडोल पहुँचा जा सकता है, जो 1-1.5 घंटे ले सकता है।
  • हवाई मार्ग: उदयपुर हवाई अड्डा (120 किलोमीटर) निकटतम है, जहाँ से टैक्सी या बस से 2.5-3 घंटे में नाडोल पहुँचा जा सकता है।

पाली के अन्य प्रसिद्ध मंदिरो के बारे में पढ़े:-

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now