हर्षनाथ मंदिर सीकर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना और किवदंती

हर्षनाथ मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में अरावली की हर्षगिरि पहाड़ी की चोटी पर बसा एक प्राचीन मंदिर है। 900 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव और हर्षनाथ भैरव को समर्पित है और शेखावाटी क्षेत्र की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। 10वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर के खंडहर आज भी अपने शिलालेखों, नक्काशीदार मूर्तियों और आध्यात्मिक शांति के लिए जाने जाते हैं। हर्ष पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और मंदिर की प्राचीनता हर भक्त और यात्री को एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करती है। विशेष रूप से महाशिवरात्रि और सावन मास में, यह स्थान भक्ति और प्रकृति के संगम से जीवंत हो उठता है।

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हर्षनाथ मंदिर सीकर (Harshnath Temple Sikar)

मंदिर का नाम:-हर्षनाथ मंदिर (Harshnath Temple)
स्थान:-हर्षगिरि पहाड़ी, सीकर, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान शिव और हर्षनाथ भैरव
निर्माण वर्ष:-लगभग 956 से 973 ईस्वी
प्रसिद्ध त्यौहार:-महाशिवरात्रि, सावन मास

हर्षनाथ मंदिर सीकर का इतिहास

हर्षनाथ मंदिर से जुड़ी प्रमुख किवदंतियां और पौराणिक कथाएं

सीकर में स्थित हर्षनाथ मंदिर कई किवदंतियों और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। ये कथाएं हर्षनाथ मंदिर के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं, और इसे भक्तों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र बनाती हैं।

हर्ष और हर्षनाथ नामकरण की कथा

पौराणिक कथा और जनश्रुतियों के अनुसार प्राचीन काल में त्रिपुर नामक राक्षस अपनी शक्ति के बल पर तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसके अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि उसने स्वर्ग पर भी आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में त्रिपुर राक्षस ने इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया और उन्हें स्वर्ग से बाहर निकाल दिया था।

स्वर्ग से निकाले जाने के बाद सभी देवतागण भयभीत और दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगे। अंततः उन्होंने पृथ्वी पर एक ऊंची और शांत पहाड़ी पर शरण लेने का फैसला किया। यह पहाड़ी ही वर्तमान में हर्ष पर्वत कहलाती है। देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुर राक्षस के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की थी।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने इसी पर्वत पर उन राक्षस का वध (संहार) किया था। राक्षस के संहार और स्वर्ग वापस मिलने की खुशी से सभी देवताओं को अपार हर्ष (अत्यधिक खुशी) की अनुभूति हुई थी। प्रसन्न हुए देवताओं ने इसी पहाड़ी पर भगवान शिव की स्तुति की थी। देवताओं के हर्ष से स्तुति करने के कारण इस पर्वत का नाम हर्ष पर्वत (या हर्षगिरि) पड़ा और भगवान शंकर हर्षनाथ कहलाए थे।

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हर्षनाथ भैरव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और किवदंती

हर्षनाथ मंदिर की नींव एक प्राचीन लोक-कथा में निहित है, जो हर्ष और उनकी बहन जीण के पवित्र रिश्ते पर आधारित है। किंवदंतियों के अनुसार, हर्ष का जन्म राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव में चौहान वंश के एक राजघराने में हुआ था। हर्ष को भगवान शिव का अवतार और माता जीण को आदिशक्ति का अवतार माना जाता है। दोनों भाई-बहन में गहरा स्नेह था और वे एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक लगाव रखते थे।

कहानी के अनुसार, एक दिन जीण और उनकी भाभी (हर्ष की पत्नी) के बीच एक शर्त लगी थी। शर्त यह थी कि जब वे सरोवर से पानी भरकर लौटेंगी, तो हर्ष पहले किसका मटका उतारेंगे। यह इस बात का प्रतीक था कि हर्ष को दोनों में से किससे अधिक स्नेह है। हालांकि, रात में हर्ष की पत्नी ने उन्हें एक झूठी कहानी सुनाकर अपनी तरफ कर लिया था। जब वे घर पहुँचीं, तो हर्ष ने अपनी पत्नी का मटका पहले उतारा, जिससे जीण को गहरा आघात लगा। इस घटना से दुखी होकर जीण ने घर छोड़ दिया और अरावली की ‘काजल शिखर’ नामक पहाड़ी पर जाकर घोर तपस्या में लीन हो गईं थीं।

अपनी बहन को मनाने के लिए हर्ष उनके पीछे-पीछे आए थे। जब जीण ने वापस जाने से इनकार कर दिया और अपनी व्यथा सुनाई, तो हर्ष को अपनी पत्नी की चालाकी का एहसास हुआ था। जीण माता के घर न लौटने के निर्णय पर, हर्ष ने भी वापस न जाने का प्रण लिया और पास की एक पहाड़ी की चोटी पर भैरव के रूप में तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के प्रभाव से, जीवण बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुईं और ‘जयंती माताजी’ (जीण माताजी) के नाम से पूजी जाने लगीं थी।

पहाड़ी पर एक स्वयंभू शिवलिंग था जिसे पंचमुखी महादेव कहा जाता था। उन्होंने अत्यंत भक्तिभाव से उस देवता की पूजा की और भगवान शिव ने उन्हें कलियुग में हर्ष बाबा या हर्ष भैरों के रूप में उनकी पूजा करने का आशीर्वाद दिया था। आज इसी पहाड़ी पर हर्षनाथ का मंदिर भी स्थित है, और हर्ष को हर्षनाथ भैरव के रूप में जाना जाता है।

मंदिर का निर्माण और ऐतिहासिक विकास

हर्षनाथ मंदिर का इतिहास चौहानों के उदय के साथ जुड़ा हुआ है। मंदिर के निर्माण और संरक्षण का विस्तृत विवरण एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत से प्राप्त होता है।

हर्षनाथ शिलालेख (973 ई.) का महत्व

हर्षनाथ मंदिर के उत्कर्ष का सबसे निर्णायक प्रमाण यहाँ प्राप्त काले पत्थर पर उत्कीर्ण शिलालेख है, जिसे हर्ष अभिलेख के नाम से जाना जाता है। यह शिलालेख वर्तमान में सीकर के सरकारी संग्रहालय में सुरक्षित है। इस अभिलेख की खोज 1834 में ब्रिटिश अधिकारियों डॉ. जी.ई. रैंकिन और सार्जेंट ई. डीन द्वारा पहाड़ी पर स्थित खंडहर मंदिर के बरामदे से की थी।

संस्कृत भाषा में लिखे गए इस अभिलेख को कवि रामचन्द्र ने लेखबद्ध किया था। यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1030 (973 ई.) का है। यह चौहान राजवंश के प्रारंभिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है, क्योंकि यह शासकों की एक श्रृंखला और उनके योगदानों का वर्णन करता है।

मंदिर निर्माण का कालक्रम: 956 ई. से 973 ई. तक

शिलालेख में वर्णित है कि मंदिर निर्माण का कार्य विक्रम सम्वत् 1013 (956 ई) को प्रारम्भ हुआ था। यह विशाल परियोजना विग्रहराज चौहान (द्वितीय) के शासनकाल में विक्रम सम्वत् 1030 (973 ई.) को पूरी हुई थी। इस प्रकार, मंदिर के मुख्य भाग को पूर्ण होने में लगभग 17 वर्षों का समय लगा था।

चाहमान राजवंश और हर्षनाथ का संबंध (राजकीय संरक्षण)

हर्षनाथ मंदिर चाहमानों के लिए केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं था; यह उनके वंश की पहचान का केंद्र था। शिलालेख शंभु (शिव) की भक्ति में चौहानों की वंशावली का वर्णन करता है और बताता है कि “पवित्र हर्ष” उनके कुलदेवता हैं, जिनके माध्यम से वंश प्रतिष्ठित हुआ था। विग्रहराज द्वितीय ने न केवल मंदिर को संरक्षण दिया और इसके पूरा होने के समय अभिलेख उत्कीर्ण कराया था, बल्कि इस अभिलेख में चाहमान वंश के अन्य शासकों, विशेष रूप से दुर्लभराज चौहान द्वितीय की जानकारी भी समाहित है। इस मंदिर को ‘कुलदेवता’ का दर्जा देना यह स्थापित करता है कि चौहानों ने अपनी राजनीतिक शक्ति को हर्ष (शिव) के दिव्य आशीर्वाद से जोड़ा था।

संरक्षण का सामाजिक-आर्थिक नेटवर्क

हर्षनाथ शिलालेख की एक विशिष्टता यह है कि यह केवल शाही संरक्षण पर प्रकाश नहीं डालता, बल्कि एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक नेटवर्क का भी दस्तावेजीकरण करता है जिसने मंदिर के निर्माण और रखरखाव में योगदान दिया था। अभिलेख में अधिकारियों, व्यापारियों (जिन्हें श्रेणियां या गिल्ड कहा जाता था), तीर्थयात्रियों, और प्रभावशाली शैव-पाशुपत संप्रदाय के संतो/संन्यासियों की भागीदारी का उल्लेख है।

अभिलेख इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करता है कि काम्यका में विशेष पेशों का पालन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति (यानी, श्रेणियों/गिल्डों के सदस्यों) को मंदिर के उपयोग के लिए नियमित रूप से एक निश्चित राशि का योगदान करना अनिवार्य था। यह दर्शाता है कि मंदिर का रखरखाव केवल शाही खजाने पर निर्भर नहीं था, बल्कि यह स्थानीय वाणिज्य, विशेषकर क्षेत्र के नमक नेटवर्क और व्यापार मार्गों से प्राप्त वित्त पर आधारित था।

17वीं शताब्दी का विनाश

10वीं शताब्दी में अपनी भव्यता की पराकाष्ठा पर पहुंचने के बाद, हर्षनाथ मंदिर को 17वीं शताब्दी के अंत में एक बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ा। 1679 ई. में, मुगल सम्राट औरंगजेब की सेनाओं द्वारा इस प्राचीन मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया था। मध्यकाल के अंत में राजनीतिक शत्रुता को प्रदर्शित करने के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों का विनाश करना तत्कालीन मुगल नीति का एक स्पष्ट भाग था।  

स्थानीय परंपरा और जनश्रुति के अनुसार, औरंगजेब को दिल्ली से हर्षनाथ मंदिर में जलते हुए दीपक की रोशनी दिखाई देती थी, जिससे प्रेरित होकर उसने इस भव्य मंदिर परिसर को नष्ट करने का अभियान चलाया था। जनश्रुति के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस अभियान के दौरान उसने 84 मंदिरों को ध्वस्त किया था।

इसी कथा का एक महत्वपूर्ण भाग जीण माता मंदिर से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि जब औरंगजेब ने पास के जीण माता मंदिर पर हमला किया, तो उसे मधुमक्खियों के एक विशाल झुंड ने पराजित कर दिया था। इसके बाद, औरंगजेब ने देवी से माफी मांगी और हर्ष भैरव के मंदिर को बख्श दिया था, जिसे वह तोड़ना भूल गया था।

विनाश की भयावहता आज भी खण्डहरों में दिखाई देती है। मूल मंदिर की खण्डित अवस्था और शिखर का पूर्ण रूप से गायब होना उस आक्रमण की क्रूरता को दर्शाते हैं। मंदिर के अवशेषों में अनेक सुंदर कला पूर्ण मूर्तियां, देवी-देवताओं, नर्तकों, संगीतज्ञों, और योद्धाओं की प्रतिमाएँ बिखरी पड़ी हैं, जिनमें से कई कलात्मक रूप से महत्वपूर्ण खंड सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

18वीं शताब्दी का पुनरुत्थान

विनाश के लगभग 40 वर्ष बाद, 18वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में धार्मिक आस्था का पुनरुत्थान हुआ था। 1718 ई. में सीकर के शासक राव शिव सिंह ने इस पवित्र स्थल के पुनर्वास और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया था। राव शिव सिंह ने पुराने मंदिर के अवशेषों का उपयोग करते हुए, मूल, खण्डहर हो चुके मंदिर के दाईं ओर, शिव को समर्पित एक नए मंदिर का निर्माण करवाया था। हालांकि, यह नया मंदिर, जो आज भी पूजा के लिए उपयोग किया जाता है, अपनी स्थापत्य शैली और भव्यता में मूल 10वीं शताब्दी के महा-मारू शैली के मंदिर जैसा आकर्षण नहीं रखता है ।  

आधुनिक उपयोग और विरासत चुनौतियाँ

हर्ष पर्वत अब केवल एक प्राचीन तीर्थस्थल नहीं है, बल्कि आधुनिक औद्योगिक और संचार गतिविधियों का केंद्र भी बन गया है। इस पर्वत पर 1971 में सीकर जिला पुलिस के वीएचएफ संचार का रिपीटर केंद्र स्थापित किया गया था। इसके अलावा, वर्ष 2004 में पवन विद्युत परियोजना प्रारंभ हुई और कई पवन चक्कियां लगाई गईं, जो बिजली का उत्पादन करती हैं।

हर्षनाथ मंदिर सीकर की वास्तुकला और संरचना

हर्षनाथ महादेव के मूल मंदिर का निर्माण महामेरु शैली में किया गया था। वर्तमान में ऐतिहासिक हर्षनाथ मंदिर एक खण्डहर अवस्था में है, लेकिन उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्य इसके मूल विन्यास और स्थापत्य भव्यता का संकेत देते हैं। वर्तमान में इस मंदिर परिसर में तीन मुख्य मंदिर स्थित है। पहला हर्षनाथ का मूल मंदिर है, जो अभी खंडहर अवस्था में है। दूसरा मूल मंदिर के पास ही स्थित शिव मंदिर है, जिसे 1718 ई. में सीकर के शासक राव शिव सिंह ने पुराने मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके बनाया था। तथा तीसरा मंदिर हर्ष भैरव मंदिर है।

हर्षनाथ मंदिर इस परिसर का मुख्य मंदिर है, जो अभी खंडहर अवस्था में है। इस मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर के गर्भगृह, दीवारों और स्तंभों पर अप्सराओं, गंधर्वों, नर्तकों, गणेश, पार्वती और योद्धाओं की जटिल नक्काशी की गई है। मंदिर के सामने सफेद पत्थर से बनी नंदी की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब की सेनाओं द्वारा इस प्राचीन मंदिर को पूरी तरह से नष्ट करने की कोशिश की थी।

इस मंदिर की खण्डित अवस्था और शिखर का पूर्ण रूप से गायब होना उस आक्रमण की क्रूरता को दर्शाते हैं। मंदिर के अवशेषों में अनेक सुंदर कला पूर्ण मूर्तियां, देवी-देवताओं, नर्तकों, संगीतज्ञों, और योद्धाओं की प्रतिमाएँ बिखरी पड़ी हैं, जिनमें से कई कलात्मक रूप से महत्वपूर्ण खंड सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

18वीं शताब्दी में सीकर के राव शिव सिंह ने मूल मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके उसी स्थान पर एक छोटा नया मंदिर बनवाया था। यह संरचना वर्तमान में पूजा के लिए उपयोग में लाई जाती है और मूल मंदिर के खंडहरों के पास स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में सफेद पत्थर का शिवलिंग स्थापित है।

इसी मंदिर परिसर में भूमिगत मंजिल (जमीन के नीचे) के एक छोटे से कमरे हर्ष भैरव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में हर्ष भैरव, भैरव जी और जीण माता की प्रतिमा स्थापित है।

हर्षनाथ मंदिर सीकर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: हर्षनाथ मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले की हर्षगिरि पहाड़ी (जिसे स्थानीय रूप से हर्ष पर्वत कहा जाता है) पर स्थित है। यह स्थान वर्तमान सीकर शहर से लगभग 22 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में हर्षनाथ नामक ग्राम की तलहटी में स्थित है। यह पहाड़ी समुद्र तल से लगभग 914.4 मीटर (3000 फीट) की प्रभावशाली ऊंचाई पर स्थित है। इस ऊंचाई से दूर-दूर बसे नगर और गांव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) मंदिर से लगभग 143 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन सीकर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 23 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर सीकर बस स्टैंड से लगभग 22 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर सीकर पहुँच सकते हैं। सीकर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। हर्षनाथ मंदिर जयपुर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है।

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