कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा, उत्तरप्रदेश में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे कृष्ण जन्मस्थान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह वह स्थान माना जाता है जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। मंदिर का महत्व वैष्णव संप्रदाय में बहुत अधिक है, क्योंकि कृष्ण को विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। यह परिसर तीन मुख्य मंदिरों से मिलकर बना है: केशवदेव मंदिर, गर्भ गृह और भागवत भवन। लाखों श्रद्धालु यहां हर साल दर्शन के लिए आते हैं, विशेष रूप से कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर। मंदिर ब्रज क्षेत्र में स्थित है, जो कृष्ण की लीला स्थलियों से जुड़ा हुआ है।
श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा (Krishna Janmasthan Temple Mathura)
| मंदिर का नाम:- | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर (Krishna Janmasthan Temple) |
| स्थान:- | मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत |
| समर्पित देवता:- | भगवान श्रीकृष्ण, राधा-कृष्ण |
| निर्माण वर्ष:- | आधुनिक मंदिर का निर्माण 1953 से 1982 तक |
| प्रबंधन:- | श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान |
श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा का इतिहास
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है, जो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक फैला हुआ है।
पौराणिक और प्रारंभिक निर्माण का चरण
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का धार्मिक महत्व पौराणिक कथाओं में निहित है। माना जाता है कि वर्तमान परिसर, जिसे कटरा केशव देव कहा जाता है, वह स्थान है जहाँ भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को राजा कंस के कारागार में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था ।
पौराणिक परंपरा के अनुसार, इस पवित्र भूमि पर मंदिर निर्माण का सर्वप्रथम श्रेय भगवान कृष्ण के प्रपौत्र व्रजनाभ को जाता है। जनश्रुति और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के रिकॉर्ड भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि व्रजनाभ ने लगभग 5,000 वर्ष पूर्व पहला मंदिर बनवाया था।
पुरातात्विक साक्ष्य: ब्राह्मी शिलालेख और गुप्त काल
कटरा केशव देव से प्राप्त हुए शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपि में दर्ज जानकारी के अनुसार, शोडास के शासनकाल में वसु नामक एक व्यक्ति ने इस श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने तोरण द्वार और यज्ञ वेदिका का भी निर्माण कराया था।
इसके उपरांत, इतिहासकारों ने इस स्थल पर एक भव्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख किया है, जिसे द्वितीय मंदिर माना जाता है। यह मंदिर सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में (लगभग 400 ईस्वी) बनवाया गया था।
गजनवी का विध्वंस (11वीं शताब्दी)
मध्यकालीन इस्लामी आक्रमणों के दौरान यह पवित्र स्थल बार-बार विध्वंस का शिकार हुआ था। महमूद गजनवी ने 1017 ईस्वी (या कुछ स्रोतों के अनुसार 1031 ईस्वी) में मथुरा पर हमला किया और इस मंदिर को लूटकर पूरी तरह नष्ट कर दिया था।
12वीं शताब्दी का पुनर्निर्माण प्रयास
गजनवी के विनाश के बावजूद, धार्मिक उत्साह बना रहा था। लगभग 1150 ईस्वी के एक संस्कृत शिलालेख में राजा विजयपाल द्वारा इस स्थान पर एक विष्णु मंदिर की नींव रखने का उल्लेख है।
आगे चलकर 16वीं शताब्दी तक भी इसकी पूजा जारी रही; 1515 ईस्वी में वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु ने व्रत मंडला की परिक्रमा के दौरान इस मंदिर का दौरा किया और यहाँ परमानंद में नृत्य किया था। यह तथ्य दर्शाता है कि इस्लामिक शासन के शुरुआती दौर में भी, हिंदुओं ने निरंतर इस स्थल पर धार्मिक गतिविधियों को बनाए रखा था।
राजा वीर सिंह देव बुंदेला का भव्य केशवदेव मंदिर (1618 ईस्वी)
जन्मस्थान पर सबसे भव्य मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के आरंभ में ओरछा के राजपूत शासक वीर सिंह देव बुंदेला ने कराया था। यह निर्माण लगभग 1618 ईस्वी में मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल में हुआ था। वीर सिंह बुंदेला ने जहाँगीर के विरोधी अबुल फज़ल की हत्या करके मुगल दरबार में अपनी स्थिति मजबूत की थी। इस मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक कार्य नहीं था, बल्कि यह मुगल-राजपूत शक्ति संतुलन का एक सीधा राजनीतिक परिणाम था।
यह मंदिर अपनी अभूतपूर्व ऊंचाई और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध था। फ्रांसीसी यात्री जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने 1650 में इसका वर्णन लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक अष्टकोणीय संरचना के रूप में किया था। वेनिस के यात्री निकोलस मनुची ने 1650 के दशक में लिखा था कि यह मंदिर “इतनी ऊंचाई का था कि इसका सोने का पानी चढ़ा शिखर आगरा से देखा जा सकता था”। यह मंदिर 217×34 गज के आधार (बेस) पर बना था और इसमें तीन शिखर थे जो लगभग 250 फीट तक ऊँचे थे।
औरंगजेब द्वारा विध्वंस (1669 ईस्वी)
मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में केशवदेव मंदिर को पूरी तरह से नष्ट करने का आदेश दिया था। मंदिर के नष्ट होने से पहले, भक्तों ने केशवदेव की मूल प्रतिमा को गुप्त रूप से कानपुर के पास रसधान नामक स्थान पर ले जाकर बचाया था।
1670 में औरंगजेब ने विशेष रूप से मथुरा के केशवदेव मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया, और उसके स्थान पर शाही ईदगाह का निर्माण किया था।
इस विध्वंस की पुष्टि बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भी की है। मैनपुरी के एक नागरिक द्वारा दायर RTI के जवाब में, ASI ने मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के 1920 गजट के ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के आधार पर यह जानकारी दी कि केशवदेव मंदिर को औरंगजेब के कार्यकाल में तोड़ा गया था। मंदिर के विशाल खंडहरों पर औरंगजेब ने शाही ईदगाह ढाँचे का निर्माण करवाया था।
बीसवीं शताब्दी का पुनरुद्धार और आधुनिक मंदिर परिसर
बीसवीं शताब्दी में, राष्ट्रीय नेताओं और प्रमुख उद्योगपतियों के प्रयासों से इस पवित्र भूमि का पुनरुद्धार संभव हुआ, जिसने वर्तमान मंदिर परिसर को जन्म दिया था।
इस पुनरुत्थान के प्रेरणा स्रोत पंडित मदन मोहन मालवीय थे, जो इस ऐतिहासिक और वंदनीय जन्मस्थान की दुर्दशा से अत्यंत दुखी थे। उनकी प्रेरणा से, प्रमुख उद्योगपति सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने आर्थिक सहायता प्रदान की थी।
एक महत्वपूर्ण कानूनी कदम के तहत 7 फरवरी 1944 को जुगल किशोर बिड़ला द्वारा कटरा केशव देव की पूरी भूमि (13,000 रुपये में) रायकृष्ण दास के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से कानूनी रूप से खरीदी गई थी। इस भूमि अधिग्रहण का सबसे महत्वपूर्ण कानूनी निहितार्थ यह है कि यह भारत की स्वतंत्रता की तिथि 15 अगस्त 1947 से पहले किया गया था।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना और निर्माण
पंडित मदन मोहन मालवीय की मृत्यु (1946) के बाद, उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के उद्देश्य से सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की थी। उद्योगपति जयदयाल डालमिया भी इस पुनरुद्धार प्रयास में प्रमुख सहयोगी थे।
ट्रस्ट ने भूमि पर मालिकाना हक प्राप्त किया। इसके बाद, 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जिसे अब सेवा संस्थान कहा जाता है) नामक एक संस्था का पंजीकरण सोसायटीज पंजीकरण एक्ट के तहत किया गया था। इस संस्था ने ट्रस्ट की ओर से प्रबंधन निकाय के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया हालाँकि कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था।
वर्तमान मंदिर परिसर का विवरण
वर्तमान केशवदेव मंदिर के निर्माण का शिलान्यास 1953 में हुआ था। मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 16 सितंबर 1958 को पूरा हुआ था। पूरे परिसर का भव्य उद्घाटन 1982 में किया गया था।
वर्तमान परिसर में तीन मुख्य संरचनाएँ शामिल हैं: केशवदेव मंदिर, गर्भगृह मंदिर और भागवत भवन। गर्भगृह मंदिर को भगवान कृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान माना जाता है। शाही ईदगाह संरचना के अंतर्गत एक पुराना तहखाना आता है, जिसे ट्रस्ट के सदस्य भगवान कृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान मानते हैं, और वर्तमान में केशवदेव जी का छोटा मंदिर यहाँ विराजमान है। इस मंदिर परिसर का डिज़ाइन वास्तुकार प्रभाकर सोमपुरा द्वारा पारंपरिक नागर शैली में तैयार किया गया है।
श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा की वास्तुकला और संरचना
वर्तमान विशाल मंदिर परिसर का निर्माण कई चरणों में पूरा हुआ है, जो 20वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ था। वर्तमान मंदिर परिसर में केशवदेव मंदिर, गर्भ गृह मंदिर और भागवत भवन शामिल हैं।
केशवदेव मंदिर
वर्तमान केशवदेव मंदिर का निर्माण उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने अपनी माता जडियादेवी डालमिया की स्मृति में करवाया था। इसका निर्माण कार्य 29 जून 1957 को शुरू हुआ और 6 सितंबर 1958 को हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था। यह शाही ईदगाह के दक्षिण में स्थित है।
गर्भगृह मंदिर
यह सबसे पवित्र और केंद्रीय स्थान है, जिसे प्राचीन कारागार कोठरी माना जाता है, जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यह क्षेत्र सरल, प्राचीन स्वरूप को बनाए रखने पर केंद्रित है। यहां योगमाया की आठ-भुजाओं वाली मूर्ति है।
भागवत भवन
भागवत भवन का निर्माण 1965 में शुरू था और 1982 में पूरा हुआ था। इसमें पांच मंदिर शामिल हैं: मुख्य मंदिर जिसमें राधा और कृष्ण के छह फीट लंबी मूर्ति स्थापित हैं। दाहिनी ओर बलराम, सुभद्रा और जगन्नाथ का मंदिर है। बाईं ओर राम , लक्ष्मण और सीता का मंदिर है।
जगन्नाथ मंदिर के सामने गरुड़ स्तम्भ और चैतन्य महाप्रभु की प्रतिमा स्थापित है। राम मंदिर के सामने हनुमान जी मूर्ति स्थापित है। सभा भवन की छत, दीवारों और स्तंभों को कृष्ण और उनके सहयोगियों और भक्तों के जीवन की घटनाओं को दर्शाने वाले भित्ति चित्रों से सजाया गया है।
दीवारों पर कृष्ण लीला के चित्र और भगवद्गीता के श्लोक तांबे की प्लेटों पर उकेरे गए हैं, जो मंदिर परिक्रमा की दीवारों को सुशोभित करता है।
पोतरा कुंड
इन प्रमुख संरचनाओं के अलावा, परिसर में पोतरा कुंड भी एक महत्वपूर्ण संरचना है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका उपयोग बाल कृष्ण के जन्म के बाद पहले स्नान के लिए किया गया था।
श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर उत्तरप्रदेश kr मथुरा में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: आगरा हवाई अड्डा श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से लगभग 60 से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मथुरा तक पहुँच सकते हैं। मथुरा पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते है।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन रेलवे स्टेशन श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: प्रमुख शहरों से व्यापक सड़क संपर्क के कारण मथुरा एक अच्छी तरह से जुड़ा हुआ शहर है। मंदिर मथुरा बस स्टैंड से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। बस स्टैंड से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
