जीण माता मंदिर सीकर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना, धार्मिक मान्यताएं और उत्सव

जीण माता मंदिर (Jeen Mata Temple Sikar) राजस्थान के सीकर जिले में अरावली की पहाड़ियों के बीच रेवासा पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह मंदिर माता आदिशक्ति के अवतार जीण माता को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय रूप से “भंवरों की देवी” के नाम से जाना जाता है। यह स्थान शक्ति, भक्ति और चमत्कारों का प्रतीक है, जहां हर साल लाखों भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। विशेष रूप से चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान, मंदिर का परिसर भजनों, गरबा और आध्यात्मिक उत्साह से जीवंत हो उठता है।

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जीण माता मंदिर सीकर (Jeen Mata Temple Sikar)

मंदिर का नाम:-जीण माता मंदिर (Jeen Mata Temple)
स्थान:-जीणमाता गांव, सीकर जिला, राजस्थान (सीकर से 29 किलोमीटर, जयपुर से 112 किलोमीटर)
समर्पित देवता:-जीण माता (आदिशक्ति का अवतार)
निर्माण वर्ष:-लगभग 8 सदी में निर्मित
प्रसिद्ध त्यौहार:-चैत्र और अश्विन (शारदीय) नवरात्रि

जीण माता मंदिर सीकर का इतिहास

जीण माता और हर्ष की कथा: मंदिर की पौराणिक नींव

जीण माता मंदिर की नींव एक प्राचीन लोक-कथा में निहित है, जो माता और उनके बड़े भाई हर्ष के पवित्र रिश्ते पर आधारित है। किंवदंतियों के अनुसार, जीण माता का वास्तविक नाम जीवण था और उनका जन्म राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव में चौहान वंश के एक राजघराने में हुआ था। माता जीण को आदिशक्ति का अवतार और उनके भाई हर्ष को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। दोनों भाई-बहन में गहरा स्नेह था और वे एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक लगाव रखते थे।

कहानी के अनुसार, एक दिन जीण और उनकी भाभी (हर्ष की पत्नी) के बीच एक शर्त लगी थी। शर्त यह थी कि जब वे सरोवर से पानी भरकर लौटेंगी, तो हर्ष पहले किसका मटका उतारेंगे। यह इस बात का प्रतीक था कि हर्ष को दोनों में से किससे अधिक स्नेह है। हालांकि, रात में हर्ष की पत्नी ने उन्हें एक झूठी कहानी सुनाकर अपनी तरफ कर लिया था। जब वे घर पहुँचीं, तो हर्ष ने अपनी पत्नी का मटका पहले उतारा, जिससे जीण को गहरा आघात लगा। इस घटना से दुखी होकर जीण ने घर छोड़ दिया और अरावली की ‘काजल शिखर’ नामक पहाड़ी पर जाकर घोर तपस्या में लीन हो गईं थीं।

अपनी बहन को मनाने के लिए हर्ष उनके पीछे-पीछे आए थे। जब जीण ने वापस जाने से इनकार कर दिया और अपनी व्यथा सुनाई, तो हर्ष को अपनी पत्नी की चालाकी का एहसास हुआ था। जीण माता के घर न लौटने के निर्णय पर, हर्ष ने भी वापस न जाने का प्रण लिया और पास की एक पहाड़ी की चोटी पर भैरव के रूप में तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के प्रभाव से, जीवण बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुईं और ‘जयंती माताजी’ (जीण माताजी) के नाम से पूजी जाने लगीं थी, जबकि हर्ष ने भैरवत्व प्राप्त कर लिया था।

मंदिर का निर्माण और ऐतिहासिक विकास

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मंदिर के निर्माण के समय को लेकर कई विरोधाभासी मत मिलते हैं, जो इसकी प्राचीनता और लोक-इतिहास के मिश्रण को दर्शाते हैं। एक तरफ, कई स्रोत मंदिर को चौहान शासकों द्वारा आठवीं सदी में निर्मित मानते हैं, जिसे लगभग 1200 साल पुराना बताया गया है। वहीं, एक अन्य स्रोत के अनुसार, इसकी नींव सांभर के राजा सिंधराज ने संवत 1018 (लगभग 961 ईस्वी) में रखी थी, और बाद में चौहान राजा विग्रहराज द्वितीय ने इसका निर्माण करवाया था। यह भी कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान-I के शासनकाल में राजा हट्ठड़ द्वारा 1064 ईस्वी में किया गया था।

औरंगज़ेब और भंवरों की देवी की चमत्कारी कथा

जीण माता मंदिर के इतिहास का एक सबसे प्रसिद्ध और केंद्रीय हिस्सा मुगल बादशाह औरंगज़ेब से जुड़ी लोक-गाथा है। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, जब औरंगज़ेब की सेना ने शेखावाटी क्षेत्र में मंदिरों को नष्ट करने का अभियान शुरू किया, तो वे हर्षनाथ भैरव मंदिर को खंडित करने के बाद जीण माता मंदिर की ओर बढ़े।

जब सेना मंदिर को तोड़ने के लिए आगे बढ़ी, तो लोगों ने परेशान होकर माता से मदद की गुहार लगाई थी। लोगों की प्रार्थना पर, माता ने अपने चमत्कार से औरंगज़ेब की पूरी सेना पर लाखों मधुमक्खियों की एक विशाल फौज छोड़ दी थी। मधुमक्खियों के इस अप्रत्याशित और भीषण हमले से मुगल सेना लहूलुहान होकर अपनी जान बचाकर भाग खड़ी हुई। इस घटना से स्वयं बादशाह की हालत भी गंभीर हो गई थी।

इस चमत्कार से प्रभावित होकर औरंगज़ेब ने अपने अहंकार को छोड़ दिया और माता के सामने हाथ जोड़कर क्षमा याचना की थी। किंवदंतियों के अनुसार, उसने मंदिर के लिए अखंड ज्योति जलाने का वचन दिया और दिल्ली दरबार से दीपक के लिए तेल भेजने का प्रबंध किया था। यह माना जाता है कि वह अखंड ज्योति आज भी मंदिर में निरंतर प्रज्वलित है। इस घटना के बाद, जीण माता को ‘भंवरों की देवी’ भी कहा जाने लगा था।

जीण माता मंदिर सीकर की वास्तुकला और संरचना

जीण माता मंदिर की वास्तुकला में राजपूतों और चौहान वंशों की स्थापत्य शैली की झलक देखने को मिलती है। यह एक दक्षिणमुखी मंदिर है जिसके गर्भगृह में जीण भगवती की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों की मूर्तियाँ लगी हैं, जो यह बताती हैं कि प्राचीन समय में यह तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा। मंदिर के अंदर कई शिलालेख भी स्थापित हैं, जिनमें सबसे पुराना संवत 1029 (लगभग 972 ईस्वी) का है, जो इसकी प्राचीनता का एक महत्वपूर्ण प्रमाण माना जाता है।

मंदिर में चौबीस स्तंभ हैं जिन पर उत्कृष्ट नक्काशीदार आकृतियाँ हैं। मंदिर परिसर में भैरव मंदिर, शिव मंदिर, प्राकृतिक जल स्रोत स्थित है। मंदिर से ऊपर पहाड़ी पर जीण माता और उनके भाई हर्षनाथ का मिलाप स्थल है, जिसे काजल शिखर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की यहा पर जीण माता ने तपस्या की थी। और औरंगज़ेब द्वारा जलाई गई अखंड ज्योत यही पर है।

जीण माता मंदिर सीकर धार्मिक मान्यताएं, परंपराएं और उत्सव

जीण माता मंदिर अपनी कुछ अनूठी और रहस्यमयी परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें से एक है रोज सुबह माता को मदिरा (शराब) का भोग लगाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार माता इस भोग को स्वीकार करती हैं, और यह मदिरा चढ़ाते ही रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाती है। मंदिर से जुड़ी एक और प्रचलित मान्यता यह है कि जीण माता के दर्शन करने मात्र से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है।

मंदिर का एक और दुर्लभ पहलू यह है कि इसके पट कभी बंद नहीं होते हैं, और ग्रहण के दौरान भी आरती अपने तय समय पर होती है। यह चौबीसों घंटे भक्तों के लिए मंदिर के खुले होने को दर्शाता है, जो अपने आप में एक अनूठी प्रथा है। यह मंदिर साल भर भक्तों की भीड़ से भरा रहता है, खासकर दो विशाल ‘लखी मेलों’ के दौरान, जो हर साल चैत्र और अश्विन (शारदीय) नवरात्रों में आयोजित होते हैं। इन मेलों में देश भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

जीण माता मंदिर सीकर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: जीण माता मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में रेवासा की पहाड़ी पर स्थित है।

मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) मंदिर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन गोरियाँ रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 15 से 17 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर सीकर बस स्टैंड से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर सीकर पहुँच सकते हैं। सीकर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जीण मंदिर जयपुर से लगभग 108 किलोमीटर दूर है।

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