नीलकंठ महादेव मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ तहसील के टहला गाँव में अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह स्थल सरिस्का बाघ अभयारण्य के बफर ज़ोन में आता है और राजोरगढ़ किले की खंडित दीवारों से घिरा हुआ है। आसपास का घना जंगल और अरावली पर्वतमाला का दृश्य इसे पर्यटकों के लिए भी आकर्षक बनाते हैं, हालांकि सुरक्षा के लिए सरिस्का के नियमों का पालन आवश्यक है।
नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर (Neelkanth Mahadev Temple Alwar)
मंदिर का नाम:- | नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) |
स्थान:- | सरिस्का बाघ अभयारण्य के भीतर, राजगढ़, अलवर जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान शिव |
निर्माण वर्ष:- | 6वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी (961 ईस्वी का शिलालेख) |
निर्माणकर्ता:- | महाराजाधिराज मथनदेव |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | श्रावण मास, महाशिवरात्रि |
नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर का इतिहास
नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास मुख्य रूप से यहाँ पाए गए शिलालेखों पर आधारित है, जो इसके निर्माण और संरक्षक के बारे में निश्चित जानकारी प्रदान करते हैं।
961 ईस्वी का शिलालेख
मंदिर का निर्माण काल 6वीं से 9वीं शताब्दी के बीच माना जाता है, लेकिन 961 ईस्वी (विक्रम संवत 1016) का एक शिलालेख मंदिर के निर्माण या प्रतिष्ठापना की निश्चित तिथि का उल्लेख करता है। यह शिलालेख संस्कृत भाषा में नागरी लिपि में लिखा गया है और इसमें 23 पंक्तियाँ शामिल हैं। यह पुरालेखीय अभिलेख गुर्जर-प्रतिहार शासकों विजयपालदेव और क्षितिपालदेव (जो कन्नौज के प्रतिहार शासक थे) को काल बताता है।
मंदिर का निर्माण महाराजाधिराज परमेश्वर मथानदेव द्वारा करवाया गया था, जो गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थे। मथानदेव महाराजाधिराज सवाता (Sawata) के पुत्र थे। 961 ईस्वी के शिलालेख का मुख्य उद्देश्य लाच्छुकेश्वर महादेव की एक मूर्ति की स्थापना की घोषणा करना था, जिसका नाम राजा की माता लच्छुका के नाम पर रखा गया था। इस मंदिर के रखरखाव और धार्मिक प्रबंधन के लिए, राजा मथनदेव ने व्याघ्रपतक गाँव से राजस्व अनुदान दिया था।
स्थानीय लोक कथाएँ इस मंदिर के निर्माण को पांडवों के समय से जोड़ती हैं, इसे हजारों वर्ष पुराना बताती हैं। हालांकि पुरातात्विक साक्ष्य 10वीं शताब्दी का बताते हैं, इन किंवदंतियों का अस्तित्व मंदिर की धार्मिक वैधता और तीर्थ यात्रा नेटवर्क को मजबूत करता है। एक अन्य स्थानीय किंवदंती इस स्थल को ऋषि श्रृंगी की तपस्या भूमि और ‘राम यज्ञ भूमि’ से जोड़ती है, जहाँ उन्होंने पुत्र कामेष्ठी यज्ञ किया था।
औरंगजेब और मधुमक्खियों की किंवदंती
राजोरगढ़ के 200 मंदिरों के खंडहरों के बीच नीलकंठ महादेव मंदिर के अकेले बचे रहने का श्रेय एक प्रसिद्ध लोक कथा को दिया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर परिसर को नष्ट कर दिया था, और उन्होंने नीलकंठ महादेव मंदिर पर हमला करने का प्रयास किया, तो उन्हें ‘मधुमक्खियों के झुंड’ ने हमला करके पीछे हटने पर मजबूर कर दिया । यह किंवदंती न केवल विनाश के लिए एक ऐतिहासिक कारण प्रदान करती है, बल्कि मंदिर के चमत्कारी संरक्षण की व्याख्या भी करती है, जिससे भक्तों के बीच इस स्थल की अलौकिक शक्ति में विश्वास मजबूत होता है।
नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर की वास्तुकला और संरचना
नीलकंठ महादेव मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो गुर्जर-प्रतिहार कला की परिपक्वता को दर्शाता है। मुख्य रूप से पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की प्रतीकात्मक वास्तुकला हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान और पौराणिक कथाओं को दर्शाती है। यह मंदिर लगभग दो किलोमीटर में फैले कई मंदिरों के एक विशाल परिसर का हिस्सा है।
मंदिर त्रिकूट शैली में निर्मित है, जिसका अर्थ है कि इसमें तीन गर्भगृह हैं। केंद्रीय गर्भगृह पश्चिममुखी है, जिसमें प्रमुख शिवलिंग स्थापित है। यह त्रिकूट योजना मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का एक उन्नत रूप है। हालांकि दो सहायक गर्भगृहों के शिखर खंडित हो चुके हैं, मुख्य शिखर अक्षुण्ण बना हुआ है और यह नागर शैली के लैटिना नागर किस्म का है। लैटिना नागर शैली की विशेषता एकल शिखर और गवाक्ष मेष से बनी पट्टियों से होती है, जो 10वीं शताब्दी के स्थापत्य के विकास के साथ मेल खाती है।
मंदिर की दीवारों, मुख्य मंदिर और उसके पार्श्व मंदिरों के वेदीबंध (आधारभूत साँचे), मंडप के चौखटों और स्तंभों, और तीन गर्भगृहों के द्वारशाखाओं (वास्तुशिल्प) पर मूर्तियाँ अंकित हैं। इन मूर्तियों में विष्णु, शिव, सूर्य, गणेश, ब्रह्मा, चामुंडा, वराह, नरसिंह और भैरव जैसे देवताओं के साथ-साथ सुरसुंदरी और अप्सराएँ (आकाशीय युवतियाँ), दिक्पाल (दिशाओं के देवता), मिथुन (प्रेममय जोड़े) और मैथुन (कामुक चित्र) की मूर्तियाँ भी शामिल हैं।
पूर्वमुखी बाहरी दीवार पर स्थित हरिहरर्क (या हरिहरपितामहार्क) एक अद्वितीय संयुक्त प्रतिमा है, जिसमें शिव, विष्णु, सूर्य और संभवतः ब्रह्मा की एक ही मूर्ति में आकृतियाँ समाहित हैं। मंदिर के बाहरी हिस्सों को उत्कृष्ट नक्काशी से सजाया गया है, जिसमें सुरसुंदरियाँ (दिव्य नर्तकियाँ), मिथुन (कामुक जोड़े), यालियाँ (पौराणिक जीव), और दिक्पाल शामिल हैं। इन मूर्तियों में एक अलंकृत, आभूषणों से सुसज्जित शिव और गौरी की खड़ी प्रतिमा भी शामिल है, जिसके पीछे नंदी स्थित है। मिथुन आकृतियों की उपस्थिति इस मंदिर को खजुराहो जैसे प्रमुख मध्यकालीन भारतीय मंदिर कला परंपराओं के साथ जोड़ती है।
मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री में एक महत्वपूर्ण अंतर देखने को मिलता है। मंदिर का बाहरी हिस्सा लाल-गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है, जबकि मंडप (स्तंभों वाला हॉल) के आंतरिक स्तंभ काले नाइस (gneiss) या शिस्ट (schist) पत्थर से निर्मित हैं। ये स्तंभ अष्टकोणीय आधार के साथ बेलनाकार होते हैं और उन पर घटपल्लव (कलश और पत्ते) रूपांकन उकेरे गए हैं। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 4 से 4.5 फीट बताई जाती है। स्थानीय मान्यताओं और कुछ स्रोतों के अनुसार, यह शिवलिंग पूर्ण रूप से नीलम पाषाण (Sapphire stone) से निर्मित है।

नीलकंठ मंदिर समूह के धार्मिक बहुलवाद को पास के नौगजा मंदिर के खंडहर देखने मिलते है। यह एक जैन मंदिर था जिसमें तीर्थंकर शांतिनाथ की एक विशाल प्रतिमा स्थापित थी। शिलालेखों के अनुसार, यह मूर्ति 922-923 ईस्वी में गुर्जर-प्रतिहार शासक महीपाल I देव के शासनकाल के दौरान स्थापित की गई थी।

इस परिसर में जल संग्रहण के लिए बावड़ियाँ (बाओली) और टैंक भी शामिल हैं। इस मंदिर समूह के पश्चिम में, मध्यकालीन हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक अनूठा उदाहरण, लछोरो टैंक, बस्ती को पानी की आपूर्ति करता है। पूरे परिसर की किलेबंद प्रकृति किले की दीवारों के अवशेषों से स्पष्ट होती है, जिनमें विभिन्न दिशाओं में स्थित प्रवेश द्वार हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: नीलकंठ महादेव मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ तहसील के टहला गाँव में अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह सरिस्का टाइगर रिजर्व के बफर जोन में है, जहाँ पहुँचने के लिए कठिन पहाड़ी और कच्चे रास्तों से गुजरना पड़ता है।
Neelkanth Mahadev Temple Alwar Google Map Location:
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके अलवर शहर तक पहुँच सकते हैं। अलवर पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते हो। दिल्ली हवाई अड्डा भी विकल्प है, जो मंदिर से लगभग 216 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन अलवर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर अलवर बस स्टैंड से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी, बस, या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर पहुँचने के बाद, आप स्थानीय बस, टैक्सी, या ऑटो-रिक्शा से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जयपुर से इस मंदिर की दूरी लगभग 114 किलोमीटर है।