वराह मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह को समर्पित है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय की आस्था का एक दुर्लभ केंद्र है। इस मंदिर का मूल निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजा अनाजी चौहान द्वारा कराया गया था।
वराह मंदिर पुष्कर (Varaha Temple Pushkar)
| मंदिर का नाम:- | वराह मंदिर पुष्कर (Varaha Temple Pushkar) |
| स्थान:- | पुष्कर, अजमेर जिला, राजस्थान |
| समर्पित देवता:- | भगवान वराह (भगवान विष्णु का तीसरा अवतार) |
| निर्माण वर्ष:- | 12वीं शताब्दी (लगभग 1123-1150 ईस्वी) |
| निर्माणकर्ता:- | राजा आनाजी चौहान (सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दादा) |
| प्रसिद्ध त्यौहार:- | जल झुलनी एकादशी, वराह जयंती |
वराह मंदिर पुष्कर का इतिहास
पौराणिक पृष्ठभूमि और धार्मिक महत्व
वराह मंदिर का अस्तित्व हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित ब्रह्मांडीय संघर्षों और ईश्वरीय हस्तक्षेप की कथाओं में गहराई से निहित है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं। जब-जब पृथ्वी पर पाप का भार बढ़ता है तथा धर्म की हानि होती है, तब-तब वे अवतार लेते हैं। वराह अवतार विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में तीसरा अवतार है, और इसे ‘सतयुग’ का अवतार माना जाता है।
प्राचीन काल (सतयुग) में ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए—हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु। ये दोनों असुर बहुत शक्तिशाली थे। अजेय बनने के लिए हिरण्याक्ष ने हजारों वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
हिरण्याक्ष ने कहा: “हे पितामह! मुझे ऐसा वरदान दें कि मैं किसी भी देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष या मनुष्य के हाथों न मारा जाऊं।” इसके बाद उसने उन जानवरों की सूची भी गिनाई जिनसे उसे मृत्यु का भय न हो। इस सूची में उसने शेर, बाघ, हाथी, सांप आदि सबका नाम लिया, लेकिन अपने अहंकार में उसने ‘वराह’ (सुअर) को तुच्छ समझकर उसका नाम नहीं लिया। ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया।
वरदान पाकर हिरण्याक्ष निरंकुश हो गया। उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओं को भगा दिया। उसका अत्याचार इतना बढ़ा कि उसने पृथ्वी (भू-देवी) को अपनी जगह से हटाकर ब्रह्मांड के तल में स्थित गर्भोदक सागर (रसातल) में छिपा दिया। पृथ्वी के डूबने से सृष्टि में असंतुलन पैदा हो गया और मनुष्यों व देवताओं में हाहाकार मच गया।
हिरण्याक्ष ने ‘वराह’ के हाथों न मरने का वरदान नहीं माँगा था, इसलिए भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण करने का निर्णय लिया।कथाओं के अनुसार, एक दिन जब ब्रह्मा जी ध्यान में थे, तो उनकी नासिका (नाक) से एक छोटा सा अंगूठे के आकार का वराह (सुअर) निकला। देखते ही देखते वह छोटा सा वराह एक विशालकाय पर्वत के समान बड़ा हो गया और भीषण गर्जना करने लगा। यह भगवान विष्णु का तीसरा अवतार (वराह अवतार) था।
विशालकाय वराह रूप धारण कर भगवान विष्णु समुद्र में कूद पड़े। उन्होंने रसातल में जाकर पृथ्वी देवी को खोज निकाला और उन्हें अपने दो बड़े नुकीले दाँतों पर उठा लिया और समुद्र की सतह की ओर आने लगे। जब हिरण्याक्ष ने देखा कि एक विशाल वराह पृथ्वी को ले जा रहा है, तो उसने उन्हें ललकारा। उसने भगवान का मजाक उड़ाते हुए कहा, “हे वनचर! यह पृथ्वी मेरी है, इसे छोड़ दे।”
भगवान वराह ने पहले पृथ्वी को सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया और फिर हिरण्याक्ष की चुनौती स्वीकार की। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। हिरण्याक्ष ने अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग किया, लेकिन भगवान विष्णु के तेज के आगे उसकी एक न चली। और अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया था।
पुष्कर और वराह का विशेष संबंध
स्थानीय किंवदंतियों और वराह पुराण के अनुसार, इसका संबंध सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से है:
जब भगवान ब्रह्मा पुष्कर में अपना महान यज्ञ कर रहे थे, तो राक्षस उसमे विघ्न डालने का प्रयास नही करे, इसलिए ब्रह्मा की प्रार्थना पर भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए और यज्ञ की रक्षा की थी। इसी कारण पुष्कर में वराह का स्थान ब्रह्मा के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है। पुष्कर झील का ‘वराह घाट’ वह स्थान माना जाता है जहां भगवान वराह स्वयं प्रकट हुए थे। मान्यता है कि वराह देव के शरीर से टपका पसीना या जल की बूंदें इस घाट को पवित्र बनाती हैं। यही कारण है कि पुष्कर की प्रसिद्ध परिक्रमा वराह घाट और वराह मंदिर से ही शुरू होती है।
ऐतिहासिक विश्लेषण: निर्माण, विध्वंस और पुनरुत्थान
इस मंदिर की नींव 12वीं शताब्दी के पूर्वार्ध (1123-1150 ईस्वी) में रखी गई थी। इसका निर्माण अजमेर और सांभर के शासक राजा आनाजी चौहान (जिन्हें अर्णोराज भी कहा जाता है) ने करवाया था। आनाजी चौहान, महान योद्धा पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दादा थे।
उस समय, पुष्कर एक प्रमुख वैष्णव तीर्थ के रूप में उभर रहा था। आनाजी ने इस मंदिर को एक भव्य तीर्थस्थल के रूप में बनवाया था, जो उस दौर की समृद्ध मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का प्रतीक था। मंदिर की ऊंचाई और भव्यता ऐसी थी कि इसे दूर से ही देखा जा सकता था।
मुगल बादशाह जहांगीर ने जहांगीरनामा (तुजुक-ए-जहांगीरी) में जहांगीर ने स्वयं इस घटना का उल्लेख किया है। जब उसने 1613 के आसपास पुष्कर का दौरा किया, तो वराह की मूर्ति (जिसका सिर सूअर का और शरीर मनुष्य का था) को देखकर उसे घृणा हुई। उसने इसे “मूर्खतापूर्ण रूप” मानते हुए मंदिर को तोड़ने और मूर्ति को पुष्कर झील में फेंकने का आदेश दिया।
जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय, जो एक महान खगोलशास्त्री और नगर नियोजक थे, ने 1727 में वराह मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण करवाया । आज हम जिस संरचना को देखते हैं, उसका मूल ढांचा उन्हीं की देन है। उन्होंने मंदिर को सुरक्षा प्रदान करने के लिए इसे एक किलेनुमा रूप दिया, ताकि भविष्य में इसे आसानी से तोड़ा न जा सके।
वराह मंदिर पुष्कर की वास्तुकला और संरचना
मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी हवेली शैली से प्रभावित है। इसमें ऊंची दीवारें, एक विशाल प्रवेश द्वार और बीच में खुला आंगन है। यह शैली 18वीं सदी के राजपूत वास्तुकला की विशेषता है। बार-बार के आक्रमणों के इतिहास को देखते हुए सवाई जय सिंह ने इसे बाहरी हमलों से बचाने के लिए ऊंची दीवारों और मजबूत पत्थर की चिनाई का उपयोग किया था।
मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंचने के लिए लगभग 40 पत्थर की सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यह ऊंचाई न केवल मंदिर को भव्यता देती है बल्कि झील और आसपास के क्षेत्र का मनोरम दृश्य भी प्रदान करती है। मंदिर के शीर्ष पर एक गुंबद है, जो मुगल और राजपूत शैलियों को दर्शाता है।
मंदिर के सभा मंडप में सुंदर नक्काशीदार स्तंभ हैं। कुछ स्तंभों पर सोने की परत या सुनहरे रंग का काम किया गया है। इन स्तंभों पर पौराणिक पक्षी गरुड़ (भगवान विष्णु का वाहन) की आकृतियां उकेरी गई हैं, जो वैष्णव मंदिरों की एक पहचान है। दीवारों, छतों और मेहराबों पर जटिल नक्काशी है जिसमें फूलों के पैटर्न, ज्यामितीय आकृतियां और पौराणिक दृश्य शामिल हैं। गर्भगृह के द्वार पर आदमकद द्वारपालों (जय और विजय) की मूर्तियां हैं, जो पहरेदार के रूप में खड़े हैं।
मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान वराह की मूर्ति स्थापित है। भगवान वराह अपने दांतों पर एक पृथ्वी (भूदेवी) को लिए हुए है।
वराह मंदिर पुष्कर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: वराह मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: पुष्कर तक हवाई मार्ग से पहुँचने के रणनीतिक रूप से दो हवाई अड्डे जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और नव विकसित किशनगढ़ हवाई अड्डा है।
- जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो पुष्कर से लगभग 150-160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, अधिकांश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए प्राथमिक प्रवेश बिंदु बना हुआ है। यह हवाई अड्डा भारत के सभी प्रमुख महानगरों (दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, कोलकाता) और अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों (जैसे दुबई, मस्कट) से सीधे जुड़ा हुआ है। यह व्यापक नेटवर्क यात्रियों को उड़ान के समय और एयरलाइनों के चयन में लचीलापन प्रदान करता है, जो विशेष रूप से उन तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है जो सीमित समय के लिए यात्रा कर रहे हैं। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं।
- किशनगढ़ हवाई अड्डा: अजमेर के पास स्थित किशनगढ़ हवाई अड्डा, जिसे ‘अजमेर हवाई अड्डे’ के रूप में भी जाना जाता है, पुष्कर के लिए निकटतम हवाई अड्डा है, जो ब्रह्मा मंदिर से केवल 40 से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत सरकार की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (UDAN) के तहत विकसित, यह हवाई अड्डा उन तीर्थयात्रियों के लिए है, जो जयपुर के ट्रैफिक से बचना चाहते हैं। वर्तमान में, यहाँ दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहरों से सीमित उड़ानें संचालित होती हैं। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: अजमेर जंक्शन उत्तर-पश्चिम भारत के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों में से एक है। यह दिल्ली-अहमदाबाद-मुंबई मुख्य लाइन पर स्थित है, जो इसे देश के लगभग हर हिस्से से जोड़ता है। अजमेर के लिए नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद से सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। अजमेर जंक्शन पुष्कर से लगभग 14 से 15 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर अजमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं। पुष्कर पहुंचने के बाद आप पैदल सीढियों से या रोपवे से मंदिर तक पहुंच सकते हो।
वराह मंदिर पुष्कर:- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
- पुष्कर में वराह मंदिर कहाँ स्थित है?
वराह मंदिर पुष्कर के मुख्य बाजार के पास स्थित है। यह प्रसिद्ध पुष्कर झील से केवल 400-500 मीटर की पैदल दूरी पर है।
- वराह मंदिर किस देवता को समर्पित है?
यह मंदिर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार को समर्पित है।
- वराह मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?
मूल मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजा अर्णोराज (आनाजी) चौहान ने करवाया था। बाद में मुगलों द्वारा नष्ट किए जाने पर, इसका पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था।
