श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा | Shrinathji Temple Nathdwara

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप ‘श्रीनाथजी’ को समर्पित है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय के पुष्टिमार्ग परंपरा के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। श्रीनाथजी को भगवान कृष्ण के उस स्वरूप के रूप में पूजा जाता है, जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर भक्तों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। नाथद्वारा का अर्थ है “भगवान का द्वार,” और यह मंदिर भारत में लाखों भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा (Shrinathji Temple Nathdwara)

मंदिर का नाम:-श्रीनाथजी मंदिर (Shrinathji Temple)
स्थान:-नाथद्वारा, जिला राजसमंद, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान श्रीकृष्ण (श्रीनाथजी)
निर्माण वर्ष:-1672 ईस्वी
संप्रदाय:-वैष्णव संप्रदाय (पुष्टिमार्ग)
प्रसिद्ध त्यौहार:-जन्माष्टमी, अन्नकूट, होली, दीपावली, रथयात्रा

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा का इतिहास

श्रीनाथजी की मूर्ति का इतिहास मथुरा के पास गोवर्धन पर्वत से शुरू होता है। कहते हैं कि श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) सन 1466 में एक ब्रजवासी को अपनी खोई हुई गाय ढूंढते वक्त गोवर्धन पर्वत पर भगवान की बायीं भुजा दिखी थी। उसकी गाय उस भुजा पर दूध चढ़ा रही थी। इसे लोग भगवान का चमत्कार मानते हैं। इसके बाद 69 साल तक वहाँ के लोग उस भुजा की पूजा करते रहे और रोज़ दूध से स्नान कराते और पूजा करते थे। और प्रतिवर्ष नागपंचमी के दिन यहां मेला लगने लगा था।

फिर विक्रम संवत 1535 वैशाख कृष्ण एकादशी में एक और चमत्कार हुआ था। गोवर्धन पर्वत के पास आन्योर गाँव के सद्दू पाण्डे की हजारों गायों में से एक गाय नंदरायजी के गौवंश की थी, जिसे धूमर कहा जाता था। वह रोजाना तीसरे प्रहर उस स्थान पर पहुँच जाती थी, जहाँ श्री गोवर्धननाथजी की वाम भुजा प्रकट हुई थी। वहाँ एक छेद था। उसमें वह अपने थनों से दूध की धार झराकर वापस आती थी।

सद्दू पाण्डे को संदेह हुआ कि ग्वाला दोपहर में धूमर गाय का दूध दुह लेता है इसलिए यह गाय शाम के समय दूध नहीं देती है। एक दिन उसने गाय के पीछे जाकर स्थिति जाननी चाही, उसने देखा कि गाय गोवर्धन पर्वन पर एक स्थान पर जाकर खडी हो गयी और उसके थनों से दूध झरने लगा था। सद्दू पाण्डे को आश्चर्य हुआ। उसके निकट जाकर देखा तो उसे श्री गोवर्धननाथजी के मुखारविन्द के दर्शन हुए थे। उसी दिन वल्लभाचार्य का जन्म छत्तीसगढ़ के चंपारण्य में हुआ था।

शुरू में श्रीनाथजी की पूजा गोवर्धन पर्वत पर होती थी। लेकिन 1672 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन के मंदिरों पर हमला किया था। वह इस मूर्ति को अपने कब्जे में लेना चाहता था। मूर्ति को बचाने के लिए भक्तों ने इसे एक बैलगाड़ी में छिपाकर मथुरा से निकाल लिया था। पहले इसे यमुना नदी के रास्ते आगरा ले गए, जहाँ यह 6 महीने तक रही थी। फिर इसे और सुरक्षित जगह ले जाने के लिए बैलगाड़ी से दक्षिण की ओर ले जाया गया था। जब यह नाथद्वारा के पास सिहाद गाँव (अब नाथद्वारा) पहुँची, तो बैलगाड़ी का पहिया कीचड़ में फंस गया और आगे नहीं बढ़ा रहा था। भक्तों ने इसे भगवान की इच्छा समझा कि वे यहीं रहना चाहते हैं।

उस समय मेवाड़ के राजा महाराणा राजसिंह ने मूर्ति की रक्षा की जिम्मेदारी ली थी। उन्होंने यहाँ एक मंदिर बनाने का फैसला किया था। 1672 में गोस्वामी दामोदर दास बैरागी ने मंदिर का निर्माण करवाया था। तब से यह जगह श्रीनाथजी का घर बन गई और इसे “नाथद्वारा” यानी “भगवान का द्वार” कहा जाने लगा। यह मंदिर वल्लभाचार्य के वैष्णव संप्रदाय पुष्टिमार्ग का बड़ा केंद्र बन गया था।

1802 में मंदिर को एक बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा था। उस समय जसवंत राव होल्कर नाम का एक सेनापति, जो दौलत राव सिंधिया से हार गया था, बाद मेवाड़ वह मेवाड़ आ गया तथा शहर और मंदिर को लूटने के लिए नाथद्वारा की ओर बढ़े। यह खबर नाथद्वारा में पहले ही मिल चुकी थी और गोस्वामीजी ने महाराणा भीम सिंह से मदद की प्रार्थना की थी।

29 जनवरी 1802 को मूर्ति को बचाने के लिए महाराणा भीम सिंह के सैनिकों ने इसे उदयपुर ले गए थे। उनावास में, कोठारिया के ठाकुर विजय सिंह और उनके लोगों ने होल्कर की सेना के साथ युद्ध किया और युद्ध में मारे गए। होल्कर की सेना जल्द ही नाथद्वारा पहुँच गई थी। होल्कर के लोगों ने पहले शहर को बेरहमी से लूटा और फिर 10 लाख रुपये की मांग की थी।

सिंघवी मोतीचंद को आगे की बातचीत के लिए भेजा गया था, लेकिन होलकर ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, मंदिर के ताले तोड़ दिए और मंदिर के खजाने और कीमती सामान को लूट लिया था। इसके बाद होलकर की सेना ने न केवल नाथद्वारा शहर बल्कि पूरे जिले को लूट लिया था। मूर्ति को कुछ समय के लिए घासियार ले जाया गया, जहाँ एक छोटा मंदिर बनाया गया था। बाद में इसे फिर नाथद्वारा लाया गया था।

1934 में उदयपुर के राजा ने घोषणा की कि श्रीनाथजी को दी गई सारी संपत्ति मंदिर की है। तिलकायत महाराज इसके रखवाले होंगे, और उदयपुर का दरबार इसकी देखभाल करेगा। यह नियम आज भी मंदिर को चलाने में मदद करता है।

वर्तमान में श्रीनाथजी मंदिर दुनिया भर में फैले पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र है। विशेष अवसरों जैसे जन्माष्टमी, अन्नकूट, होली और दीपावली पर यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर ने नाथद्वारा को बहुत प्रभावित किया है। यहाँ की जिंदगी और रोज़गार मंदिर के आसपास चलते हैं।

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा की वास्तुकला और संरचना

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा, राजस्थान में स्थित, भगवान कृष्ण के एक रूप “श्रीनाथजी” को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है। यह वैष्णव संप्रदाय पुष्टिमार्ग का केंद्र है और अपनी अनोखी वास्तुकला और संरचना के लिए जाना जाता है। इसे “श्रीनाथजी की हवेली” के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह एक घर की तरह बनाया गया है, न कि पारंपरिक मंदिर की तरह।

श्रीनाथजी मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी हवेली शैली में है, जो इसे एक घर की तरह दिखाती है। यह नंद महाराज की हवेली, जो वृंदावन में है, से प्रेरित है। यह शैली मंदिर को पारंपरिक मंदिरों से अलग बनाती है। इसे “श्रीनाथजी की हवेली” कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भगवान को उनके निवास के रूप में देखा जाता है, न कि केवल पूजा के स्थान के रूप में।

मंदिर का परिसर कई आंगनों और सेवा कक्षों से बना है, जो पूजा और भोग के लिए इस्तेमाल होते हैं। इसमें फूल, दूध, पान और मिठाइयों के लिए स्टोररूम भी हैं। मुख्य प्रवेश द्वार भव्य है, और इसके ऊपर एक शिखर (spire) है, जिसमें सात झंडे लगे हैं, जो पुष्टिमार्ग वैष्णव संप्रदाय के सात घरों का प्रतीक हैं।

मुख्य गर्भगृह में काले संगमरमर से बनी श्रीनाथजी की मूर्ति है, जो भगवान कृष्ण को सात साल के बच्चे के रूप में गोवर्धन पर्वत उठाते हुए दिखाती है। मूर्ति के नीचे एक बड़ा हीरा भी लगा है, जो इसे और खास बनाता है। यह मूर्ति दर्शन के लिए कई जगहों से दिखाई देती है।

मंदिर में जाली का काम (latticework) है, जो राजस्थानी वास्तुकला की खासियत है। यह हवा और रोशनी के लिए जरूरी है और मंदिर को सुंदर बनाता है। मंदिर का परिसर बड़ा है, जिसमें कई इमारतें हैं, जो इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनाती हैं।

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का पता: श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा, राजसमंद, राजस्थान 313301, भारत

श्रीनाथजी मंदिर तक पहुँचने के लिए सबसे पहले, आपको उदयपुर पहुँचना होगा, जो विभिन्न परिवहन विकल्पों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है:

  • विमान से: निकटतम हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा (Dabok Airport) है, जो उदयपुर शहर से लगभग 22 किमी दूर है।
  • रेल से: उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो शहर के केंद्र से लगभग 2 किमी दूर है।
  • सड़क मार्ग से: उदयपुर राजस्थान और आस-पास के राज्यों के कई शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। आप टैक्सी या निजी वाहन से भी आ सकते हैं।

मंदिर तक स्थानीय परिवहन

उदयपुर से नाथद्वारा तक की दूरी लगभग 48 किमी है। यह यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग 8 (NH 8) पर होती है और लगभग 1-1.5 घंटे समय लेती है। परिवहन विकल्प हैं:

  • टैक्सी: उदयपुर से टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। आप ओला, उबर जैसे ऐप्स के माध्यम से भी बुक कर सकते हैं।
  • बस: सार्वजनिक/निजी बसें उदयपुर से नाथद्वारा तक चलती हैं।
  • निजी वाहन: अगर आपके पास अपनी गाड़ी है, तो NH 8 पर चलकर आसानी से नाथद्वारा पहुँच सकते हैं।

श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. श्रीनाथजी का मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है?

    श्रीनाथजी का मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के सात वर्षीय बाल स्वरूप को समर्पित होने के साथ-साथ वैष्णव धर्म के वल्लभ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व मुगल अत्याचारों से मूर्ति को बचाने के लिए वृंदावन से यहाँ लाने की कहानी से जुड़ा है। भक्तों के बीच चमत्कारिक कथाओं और भगवान की अनूठी सेवा परंपराओं, जैसे दिन में आठ बार दर्शन के कारण इसकी महिमा और बढ़ जाती है। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, और अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच नाथद्वारा में स्थित यह मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है।

  2. श्रीनाथजी मंदिर कहाँ स्थित है?

    श्रीनाथजी मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा शहर में स्थित है। यह उदयपुर से लगभग 48 किलोमीटर दूर है।

  3. श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा के पास कौन सा रेलवे स्टेशन है?

    श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा के पास उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो उदयपुर शहर के केंद्र से लगभग 2 किमी दूर है। उदयपुर से नाथद्वारा तक की दूरी लगभग 48 किलोमीटर है।

  4. श्रीनाथजी मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा कौन सा है?

    श्रीनाथजी मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा (डबोक एयरपोर्ट) है, जो नाथद्वारा से लगभग 48-60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप हवाई अड्डे से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन के माध्यम से नाथद्वारा पहुँच सकते हैं।


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