द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली (राजसमंद) | Dwarkadhish Temple Kankroli

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली, राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित एक प्रमुख हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के द्वारकाधीश स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर मेवाड़ के महाराणा राज सिंह द्वारा बनवाया गया था। द्वारकाधीश मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति और भक्ति का केंद्र भी है, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

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द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली (Dwarkadhish Temple Kankroli)

मंदिर का नाम:-द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple)
स्थान:-कांकरोली, राजसमंद, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान श्रीकृष्ण (द्वारकाधीश)
निर्माता:-मेवाड़ के महाराणा राज सिंह
निर्माण वर्ष:-1676
मुख्य आकर्षण:-भगवान द्वारकाधीश की भव्य मूर्ति, राजसमंद झील का अद्भुत दृश्य
प्रसिद्ध त्यौहार/उत्सव:-जन्माष्टमी, अन्नकूट, रथ यात्रा, होली

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली का इतिहास

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली का इतिहास बहुत पुराना है और यह भगवान कृष्ण के “द्वारकाधीश” रूप से जुड़ा है। माना जाता है कि इस मंदिर की मूर्ति का इतिहास प्राचीन काल से शुरू होता है। यह मूर्ति सिद्धपुर के बिंदु सरोवर से अपने आप प्रकट हुई थी। इसे ऋषि कार्दम, वशिष्ठ, राजा अंबरीष, राजा दशरथ, धर्मराज युधिष्ठिर तथा राजा परीक्षित जैसे महान लोगों ने पूजा था। बाद में, 1700 के दशक में लिखी गई “श्री द्वारकाधीश की प्राकट्य वार्ता” में कहा गया है कि वल्लभाचार्य ने इसे कन्नौज के नारायणदास दर्जी से लिया था। इस तरह, यह मूर्ति पुष्टिमार्ग संप्रदाय का हिस्सा बनी थी।

शुरुआत में द्वारकाधीश जी का मंदिर गोकुल में था। मुगल शासन के दौरान, हिंदू मंदिरों पर लगातार हमले, तोड़फोड़ और आगजनी का खतरा था। द्वारकाधीश जी की मूर्ति भी इस खतरे से अछूती नहीं थी। इस खतरे को भाँपते हुए, गोस्वामी गिरीधरजी ने मूर्ति को अपने साथ ले लिया और पहले अहमदाबाद आ गए। यह समय मुगल शासन की उथल-पुथल का था, जब मंदिरों की सुरक्षा बड़ी चुनौती थी।

अहमदाबाद में भी खतरा बना रहने के कारण, 1671 ईस्वी में गोस्वामी गिरीधरजी को मेवाड़ आमंत्रित किया गया। मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने उनका स्वागत किया और द्वारकाधीश जी की सेवा के लिए आसोतिया गाँव दिया था। यहाँ एक मंदिर बनाया गया, जहाँ मूर्ति को स्थापित किया गया। महाराणा राजसिंह ने इस मूर्ति को सुरक्षित रखने में बड़ी भूमिका निभाई, जो पुष्टिमार्ग संप्रदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी।

आसोतिया में मंदिर बनने के बाद, महाराणा राजसिंह ने राजसमंद झील का निर्माण करवाया। लेकिन भारी बारिश के कारण आसोतिया का मंदिर बाढ़ में डूब गया और यह एक टापू बन गया। यह एक बड़ी मुश्किल थी, क्योंकि मूर्ति की सेवा और भक्तों का आना-जाना मुश्किल हो गया। इस घटना ने मंदिर के लिए नई जगह की जरूरत को जन्म दिया था।

बाढ़ के बाद, अमर सिंह ने मंदिर के लिए नई जगह दी। उन्होंने दरीखाना और हवेली की ऊँची जमीन आवंटित की, जहाँ नया मंदिर बनाया गया। यह मंदिर हवेली शैली में बना और आज भी राजसमंद झील के किनारे खड़ा है। इसकी खूबसूरती आसपास की हरियाली से और बढ़ जाती है। समय के साथ मंदिर में और निर्माण कार्य हुए, जिसने इसे और भव्य बनाया।

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आज द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली वैष्णव भक्तों के लिए एक बड़ा तीर्थ स्थल है। यह पुष्टिमार्ग संप्रदाय का हिस्सा है और राजसमंद झील के किनारे होने की वजह से इसकी शांति और सुंदरता बनी रहती है। इसका इतिहास मेवाड़ के राजाओं की भक्ति और मूर्ति को बचाने की कोशिशों से जुड़ा है। यह मंदिर आज भी भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली की वास्तुकला और संरचना

द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली में है, जो राजस्थान के राजसमंद जिले में राजसमंद झील के किनारे बसा है। मंदिर बाहर से एक बड़े घर या हवेली की तरह दिखता है, जो इसे आम मंदिरों से अलग बनाता है। मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी हवेली शैली में है, जो पुष्टिमार्ग संप्रदाय के मंदिरों के लिए विशिष्ट है।

मंदिर को लाल पत्थर से बनाया गया है, जो इसे मजबूत और सुंदर बनाता है। इसकी दीवारों पर फूल, पत्तियाँ, हाथी और भगवान की छोटी-छोटी नक्काशी की गई है। मंदिर का सबसे खास हिस्सा गर्भगृह है, जहाँ भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति रखी है। यह मूर्ति लाल पत्थर की है और भगवान को राजा की तरह दिखाती है। गर्भगृह में सिर्फ पुजारी जा सकते हैं।

पुष्टिमार्ग संप्रदाय में भगवान को एक जीवित इंसान की तरह माना जाता है। इसलिए मंदिर में अलग-अलग कमरे हो सकते हैं। एक कमरा सोने के लिए, दूसरा खाने के लिए, और तीसरा खेलने या भक्तों से मिलने के लिए हो सकता है। ये कमरे मंदिर को एक हवेली की तरह बनाते हैं, जहाँ भगवान को राजा की तरह रखा जाता है। यह बात इसे आम मंदिरों से बहुत अलग करती है।

मंदिर राजसमंद झील के ठीक किनारे पर है। यहाँ से झील का पानी और आसपास की हरियाली बहुत सुंदर दिखती है। यह मंदिर को शांत और भक्ति से भरा माहौल देता है।

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का पता: द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली, राजसमंद, राजस्थान 313324

द्वारकाधीश मंदिर तक पहुँचने के लिए सबसे पहले, आपको उदयपुर पहुँचना होगा, जो विभिन्न परिवहन विकल्पों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है:

  • विमान से: निकटतम हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा (Dabok Airport) है, जो उदयपुर शहर से लगभग 22 किमी दूर है।
  • रेल से: उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो शहर के केंद्र से लगभग 2 किमी दूर है।
  • सड़क मार्ग से: उदयपुर राजस्थान और आस-पास के राज्यों के कई शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। आप टैक्सी या निजी वाहन से भी आ सकते हैं।

मंदिर तक स्थानीय परिवहन

उदयपुर से कांकरोली तक की दूरी लगभग 65 किमी है। यह यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग 8 (NH 8) पर होती है और लगभग 1-1.5 घंटे लेती है। परिवहन विकल्प हैं:

  • टैक्सी: उदयपुर से टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। आप ओला, उबर जैसे ऐप्स के माध्यम से भी बुक कर सकते हैं।
  • बस: सार्वजनिक/निजी बसें उदयपुर से कांकरोली तक चलती हैं।
  • निजी वाहन: अगर आपके पास अपनी गाड़ी है, तो NH 8 पर चलकर आसानी से कांकरोली पहुँच सकते हैं।

द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. द्वारकाधीश मंदिर राजस्थान में कहा है?

    राजस्थान में द्वारकाधीश मंदिर मुख्य रूप से कांकरोली, राजसमंद जिले में स्थित है। यह मंदिर राजसमंद झील के किनारे बना हुआ है और पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ के रूप में जाना जाता है।

  2. कांकरोली में किसका मंदिर है?

    कांकरोली में सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख मंदिर द्वारकाधीश मंदिर है। यह मंदिर राजसमंद झील के किनारे स्थित है और भगवान कृष्ण के द्वारकाधीश स्वरूप को समर्पित है। यह पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की महत्वपूर्ण पीठों में से एक है।


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