सीतामाता मंदिर, राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य के घने जंगलों में स्थित एक पवित्र धार्मिक स्थल है। यह मंदिर माता सीता को समर्पित भारत का एकमात्र मंदिर है, जहाँ उनकी एकल प्रतिमा स्थापित है। रामायण काल से जुड़ा यह मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी प्रतीक है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, माता सीता ने अपने वनवास का समय यहीं महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में बिताया था, और उनके पुत्र लव और कुश का जन्म भी इसी क्षेत्र में हुआ था। मंदिर के पास जाखम नदी, सागवान के जंगल, और एक विशाल बरगद का पेड़ इसे और भी आकर्षक बनाते हैं
सीतामाता मंदिर प्रतापगढ़ (Sita Mata Temple Pratapgarh)
मंदिर का नाम:- | सीता माता मंदिर (Sita Mata Temple) |
स्थान:- | सीता माता वन्यजीव अभ्यारण, प्रतापगढ़, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | माता सीता (एकल प्रतिमा) |
निर्माण वर्ष:- | प्राचीन (रामायण काल से संबंधित, सटीक तारीख अज्ञात) |
मुख्य आकर्षण:- | सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर मेला, हनुमान जयंती |
सीता माता मंदिर प्रतापगढ़ का इतिहास
सीतामाता मंदिर का इतिहास रामायण काल से गहराई से जुड़ा है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान राम ने माता सीता को वनवास दिया, तब उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में इस क्षेत्र में समय बिताया। यहीं पर उनके पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। एक प्रमुख किंवदंती के अनुसार, माता सीता ने अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए धरती माता से प्रार्थना की और यहीं धरती में समा गईं, जिसके कारण पहाड़ दो हिस्सों में फट गया।
मंदिर के आसपास का क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं से भरा है। यह माना जाता है कि लव और कुश ने भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को यहीं पकड़ा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। इसके अलावा, एक विशाल बरगद का पेड़, जो 12 बीघा में फैला है, लव और कुश के बचपन से जुड़ा माना जाता है। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, हनुमानजी को लव और कुश ने जिस पेड़ से बाँधा था, वह भी इस अभयारण्य में मौजूद है।
मंदिर में हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को एक भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, और गुजरात से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। यह मेला 4-5 दिनों तक चलता है और औसतन 1-1.5 लाख लोग इसमें शामिल होते हैं। मंदिर का प्राचीन स्वरूप समय के साथ संरक्षित रहा है, और हाल के वर्षों में वन विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा पर्यटक सुविधाओं को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
मंदिर का प्राकृतिक परिवेश सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है, जो 2 जनवरी, 1979 को राजस्थान सरकार द्वारा 422.95 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थापित किया गया था। यह अभयारण्य जैव विविधता और भू-संरचना के लिए जाना जाता है, और इसमें उड़न गिलहरी, चौसिंगा, और 108 औषधीय पौधों की प्रजातियाँ हैं।
सीता माता मंदिर प्रतापगढ़ की वास्तुकला और संरचना
मंदिर की सरचना साधारण और सरल है। मंदिर तक पहुँचने के लिए कच्चे रास्ते हैं, जो जंगल से होकर गुजरते हैं। मंदिर परिसर में पहुंचने पर सबसे पहले सीताकुंड आता है, पौराणिक मान्यतानुसार सीता माता पहाड़ को चीरकर इसी सीताकुण्ड में समा गयी थी। सीताकुंड से सीढियों के माध्यम से मंदिर तक जाया जाता है। यह एक छोटा सा मंदिर है, और मंदिर में माता सीता की मूर्ति स्थापित है।
मंदिर तक पहुंचने के इन रास्तों में यहाँ स्थित लव-कुश नाम की गर्म तथा ठन्डे पानी की धाराए श्रदालुओ के बीच आकर्षण का केंद्र है। इन्हीं रास्तों में एक हनुमान जी का स्थान है, जहां पौराणिक मान्यतानुसार, त्रेतायुग मे अश्वमेघ यज्ञ के दोरान लव और कुश ने भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को यहीं पकड़ा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा तथा श्री रामचन्द्र जी की चतुरंगिणी सेना को परास्त किया था। और हनुमानजी को लव और कुश ने जिस आम के पेड़ से बाँधा वह यहां स्थित है।
प्राचीन “12 बीघा बरगद का पेड़” (बारह बीघा बरगद), एक विशाल पेड़ जिसे वाल्मीकि के मार्गदर्शन में लव और कुश का खेल का मैदान और अध्ययन क्षेत्र माना जाता है। यद्यपि मूल पेड़ तना नष्ट हो गया हैं, लेकिन इसकी शाखाएँ अभी भी 12 बीघा में फैली हुई हैं।
सीता माता मंदिर प्रतापगढ़ तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: सीतामाता मंदिर राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के सीता माता वन्यजीव अभ्यारण में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के विकल्प:
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे आम और सुविधाजनक तरीका है। सीतामाता मंदिर प्रतापगढ़ शहर से लगभग 40-45 किलोमीटर दूर स्थित है। प्रतापगढ़ से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से यहां तक पहुंच सकते हो। उदयपुर से मंदिर लगभग 100-110 किलोमीटर दूर है।
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा डबोक का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है, जो लगभग 100 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन द्वारा प्रतापगढ़ और फिर सीता माता वन्यजीव अभयारण्य तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग से – मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन है ,जो मंदिर से लगभग 84 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन द्वारा प्रतापगढ़ और फिर सीता माता वन्यजीव अभयारण्य तक पहुँच सकते हैं। मंदिर के अन्य नजदीकी रेलवे स्टेशन उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 110 किलोमीटर दूर है।