चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर तहसील में, अरावली पर्वत की तलहटी में बसा आवरी माता मंदिर एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे लकवा, पोलियो, और अन्य लाइलाज रोगों के उपचार के लिए चमत्कारी माना जाता है। इसे आसावरा माता (Asawara Mata Temple) के नाम से भी जाना जाता है।
आवरी माता मंदिर आसावरा चित्तौडग़ढ़ (Avari Mata temple Bhadesar Chittorgarh)
मंदिर का नाम:- | आवरी माता मंदिर (Avari Mata Temple) |
स्थान:- | आसावरा, भदेसर तहसील, चित्तौड़गढ़, राजस्थान |
समर्पित देवी :- | आवरी माता |
निर्माण वर्ष:- | लगभग 750 वर्ष से अधिक पुराना (ऐतिहासिक अनुमान) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | नवरात्री, हनुमान जयंती |
आवरी माता मंदिर आसावरा चित्तौडग़ढ़ का इतिहास
आवरी माता मंदिर का इतिहास 750 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है, जो मेवाड़ की ऐतिहासिक और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है। मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक किंवदंती है, जो माता आवरी के चमत्कारी स्वरूप को दर्शाती है।
किवदंतियों के अनुसार मेवाड़ के महाराणा हमीरसिंह के शासनकाल में अंगतजी व आवाजी राठौड़ राजपूत नाम के दो सगे भाई उनकी फौज में फौजदार थे। महाराणा ने दोनों भाइयों को सेवा के फलस्वरूप जागीरदारी दी। अंगतजी भदेसर कस्बा व आवाजी राठौड़ राजपूत को असावरा कस्बे का वर्चस्व दिया। आवाजी के सात पुत्र व एक पुत्री थी। पुत्री का नाम केसर कुंवर था। केसर कुंवर विवाह योग्य हुई। आवाजी को पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी थी।
आवाजी ने अपने सातों पुत्रों को बुला कर पुत्री केसर कुंवर के लिए सुयोग्य वर ढूंढऩे के लिए सभी को अलग-अलग नगरों में भेजा। सभी भाई अपनी बहन का संबंध तय करने के लिए अलग-अलग दिशा में निकल पड़े। कुलदेवी की कृपा से जो भाई जहां गया, जिस स्थान पर गया उसने वहां अपनी बहन के लिए सुयोग्य वर का संबंध तय कर दिया। सातों भाइयों ने बहन के लिए अलग-अलग संबंध तय कर लिए। नियत समय पर सातों भाई लौटे। सभी ने आकर पिताजी को संबंध की बात बताई। सातों जगह संबंध की बात सुन कर पिताजी की चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई।
कैसर ने अपनी कुलदेवी की आराधना की और इस समस्या को ठीक करने का आग्रह किया। विवाह के दिन धरती फटी केसर उस में समा गई। पुत्री को धरती में समाते हुए देख पिता ने अपनी पुत्री का पल्लू पकड़ लिया। इससे नाराज केसर ने अपने पिता को श्राप दे दिया था। आवाजी ने श्राप मुक्ति होने के लिए मंदिर का निर्माण करवाया। जो आज आवरी माता के नाम से विख्यात है।
जिस स्थान पर माता की मूर्ति स्थापित है, वहीं पर केसर भूमिमग्न हुई थी। मंदिर को विशेष रूप से लकवा, पोलियो, और अन्य लाइलाज रोगों के उपचार के लिए चमत्कारी माना जाता है। मंदिर का प्रबंधन और रखरखाव आवरी माता मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
आवरी माता मंदिर आसावरा चित्तौडग़ढ़ की वास्तुकला और संरचना
मंदिर की वास्तुकला सरल है। मंदिर सामान्य हिन्दू शैली में निर्मित है, इस मंदिर के दो मुख्य द्वार तथा छोटे-छोटे शिखर बने हुए है। मंदिर के गर्भगृह में आवरी माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति फूलों और सोने के आभूषणों से सजी है, जो भक्तों को आकर्षित करती है।
भक्त मंदिर के पीछे स्थित पवित्र तालाब में स्नान करते हैं और माता की मूर्ति के स्नान का पानी पीते हैं, जिसे रोगों के निवारण में प्रभावी माना जाता है। मंदिर परिसर में एक हनुमान मंदिर भी है, जो आध्यात्मिक माहौल को और समृद्ध बनाता है।
आवरी माता मंदिर आसावरा चित्तौडग़ढ़ तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: यह मंदिर आसावरा गांव में स्थित है, जो भदेसर तहसील, चित्तौड़गढ़ जिले में आता है।
मंदिर तक पहुँचने के लिए विभिन्न परिवहन विकल्प उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जो चित्तौड़गढ़ से लगभग 90 किलोमीटर दूर है।। वहाँ से टैक्सी या बस से चित्तौड़गढ़ पहुँचें सकते है। फिर चित्तौड़गढ़ से आसावरा तक की दूरी, जो लगभग 40 किलोमीटर है, टैक्सी या बस से 1 घंटे में तय की जा सकती है।
- रेल मार्ग: चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से आसावरा तक पहुँचने के लिए ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, या स्थानीय बस का उपयोग कर सकते हैं।
- सड़क मार्ग: आसावरा चित्तौड़गढ़ से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। आप चित्तौड़गढ़ से टैक्सी, बस, या निजी वाहन लेकर आसावरा पहुँच सकते हैं।