भादरिया राय माता मंदिर, जिसे आवड़ माता या स्वांगियां माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जैसलमेर का एक प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर भादरिया गाँव, तहसील पोकरण, ज़िला जैसलमेर में स्थित है। यह मंदिर अपनी शांतिपूर्ण वातावरण, चमत्कारिक कथाओं, और नवरात्रि के भव्य उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर न केवल श्रद्धालुओं, बल्कि जैसलमेर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में रुचि रखने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है इसका भूमिगत विशाल पुस्तकालय (ग्रंथालय), जिसमें 1 लाख से भी अधिक पांडुलिपियाँ और धार्मिक ग्रंथ संरक्षित हैं।
भादरिया राय माता मंदिर जैसलमेर (Bhadariya Rai Mata Temple Jaisalmer)
मंदिर का नाम:- | भादरिया राय माता मंदिर जैसलमेर (Bhadariya Rai Mata Temple) |
स्थान:- | भादरिया गाँव, पोकरण, ज़िला जैसलमेर, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भादरिया राय माता (माता आवड़/स्वांगियां माता, भाटी राजपूतों की कुलदेवी) |
निर्माण वर्ष:- | विक्रम संवत् 1885 ( लगभग 1828 ईस्वी), महारावल गजसिंह द्वारा |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | नवरात्रि (चैत्र और शारदीय) |
भादरिया राय माता मंदिर जैसलमेर का इतिहास
भादरिया राय माता मंदिर की नींव सदियों पुरानी किंवदंतियों और लोक कथाओं में निहित है, जो देवी आवड़ और उनके सात बहनों के दिव्य स्वरूप से जुड़ी हैं।
आवड़ माता और उनकी सात बहनों की कथा
देवी आवड़ की उत्पत्ति सिंध प्रांत के सवैया चारण समुदाय से मानी जाती है, जो पारंपरिक रूप से गौपालन और अश्वपालन का व्यवसाय करते थे। इसी वंश में चेला राम चारण सिंध से आकर मांड प्रदेश (वर्तमान जैसलमेर) के चेलक गांव में बस गए थे। उनके वंशज मामड़िया चारण हुए, जिन्हें कोई संतान नहीं थी। संतान की कामना से उन्होंने हिंगलाज माता की सात बार पैदल यात्रा की थी। एक रात, हिंगलाज माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और उनसे पूछा कि उन्हें पुत्र चाहिए या पुत्री, तो चारण ने कहा कि माता स्वयं उनके घर जन्म लें। जिनमें सबसे बड़ी और प्रमुख कन्या का नाम आवड़ रखा गया। इन सातों बहनों ने अपने जन कल्याणकारी कार्यों और परोपकारी स्वभाव से आवड़ देवी के नाम से ख्याति प्राप्त की और उन्हें कल्याणी देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा।
प्रारंभिक स्थापनाएँ और तनोट माता से संबंध
भादरियाजी माता मंदिर की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं; कुछ वृत्तांतों के अनुसार यह 1100 वर्ष से भी अधिक पुराना है, और इसकी प्रारंभिक संरचना संभवतः महारावल देवराज द्वारा निर्मित की गई थी। भाटी राजपूत नरेश रावत तनु भाटी का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विक्रम संवत 828 में, उन्होंने आवड़ माता के लिए एक मंदिर का निर्माण कर उनकी मूर्ति स्थापित की थी। तनुराव भाटी द्वारा निर्मित होने के कारण यह मंदिर तनोट माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
मंदिर की स्थापना
वर्तमान मंदिर की स्थापना और प्रतिष्ठा का श्रेय जैसलमेर के महाराजा गज सिंह को जाता है। मंदिर की नींव और प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1888 (जो 1831-1832 ईस्वी के अनुरूप है) में अश्विन माह की पूर्णिमा को हुई थी। महाराजा गज सिंह द्वारा यह निर्माण एक युद्ध में अप्रत्याशित विजय के बाद किया गया था, जिसे उन्होंने माता रानी के आशीर्वाद का परिणाम माना था। मान्यता है कि संवत् 1885 में जैैसलमेर व बीकानेर शासकों के बीच जब युद्ध हुआ, तब भादरियाराय माता ने कई चमत्कार भी दिखाए। जिसके बाद तत्कालीन महारावल गजसिंह ने भादरिया में मंदिर का निर्माण करवाया था। विक्रम संवत् 1969 माघ शुक्ल चतुर्दशी को पूर्व महारावल शालीवान ने भादरिया माता को चांदी का सिंहासन भेंट किया था।
संत हरिवंश सिंह निर्मल (भादरिया महाराज) द्वारा जीर्णोद्धार
जीर्णोद्धार और विस्तार का एक महत्वपूर्ण और व्यापक चरण संत हरिवंश सिंह निर्मल के नेतृत्व में हुआ था। हरियाणा क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हरवंशसिंह निर्मल ने गोवंश की तस्करी को रोकने का कार्य किया तथा भादरिया स्थित माता मंदिर में ही रुक गए। उन्होंने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था और साथ ही गोवंश के लिए गोशाला की स्थापना की थी। इसी के चलते उन्हें भादरिया महाराज के नाम से प्रसिद्धि मिली थी। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के साथ समाधि के भी दर्शन करते है। मंदिर परिसर में ही भादरिया महाराज का मंदिर बनाया गया है। उन्होंने अपने जीवन के लगभग 50 वर्ष भादरिया में समर्पित किए थे।
विशाल भूमिगत पुस्तकालय (श्री भादरिया महाराज ग्रंथागार) की स्थापना
संत भादरिया महाराज ने रेतीले धोरों के बीच ज्ञान के भंडार के रूप में भूमिगत पुस्तकालय की भी स्थापना की, जिसमें वर्तमान में 1 लाख से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। यह एशिया के बड़े पुस्तकालयों में शुमार है। इसके अलावा एक साथ 4 हजार लोगों के बैठने व पुस्तकों के अध्ययन की व्यवस्था की गई है।
भादरिया राय माता मंदिर जैसलमेर की वास्तुकला और संरचना
मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की वास्तुकला है, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि मंदिर पर शिखर नहीं है। दिखने में मंदिर साधारण लगता है, लेकिन इसकी बनावट अद्भुत रूप से मजबूत है। मंदिर एक ऊंचे टीले पर स्थित है, जिस तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। मंदिर संभवतः पारंपरिक राजस्थानी शैली में बना है, जिसमें पीले बलुआ पत्थर और चुना का उपयोग किया गया है।
मंदिर की संरचना
- माता के परिवार में सात बहनें और एक भाई था। मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर की आवड़ देवी की सभी बहनों एवं भाई सहित की मूर्तियों को यहां स्थापित किया गया है। आवड़ देवी मध्य में कमलासन पर पद्मासन लगाए हुए विराजमान है। मूर्ति चार भुजाओं से युक्त, हाथों में चूड़ धारण किए हुए है। प्रथम दाहिने हाथ में त्रिशूल, द्वितीय दाहिने हाथ में माला, बाएं हाथ में खड्ग, द्वितीय बाएं हाथ में कमल का फूल है। गले में मुक्ताहार है। सभी छह बहनों के हाथों मे चूड़ एवम् गले में मुक्ताहार है, और सभी बहनों का दूसरा हाथ एक – दूसरी बहन के कन्धे पर दिया हुआ है। इन देवियों का भाई बायीं छोर पर है जिनके दाहिने हाथ में चंवर है, जिसे ये आवड़ देवी पर डाल रहे हैं।
- मंदिर परिसर में बड़ी भूमिगत लाइब्रेरी है, जिसमें लाखों पुस्तकें हैं। यह लाइब्रेरी 16 फीट भूमिगत है और 4000 से अधिक लोगों को एक साथ समायोजित कर सकती है। यह पुस्तकें दर्शन, धर्म, और शास्त्रों पर आधारित हैं और अच्छी तरह से संरक्षित हैं। यह लाइब्रेरी मंदिर की संरचना का एक अनूठा हिस्सा है और सांस्कृतिक तथा शैक्षिक महत्व को बढ़ाती है। यह अध्ययन और शोध के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां प्रतिवर्ष हजारों लोग आते हैं।
- संत श्री हरिवंश सिंह निर्मल (भादरिया महाराज) का सुंदर श्वेत संगमरमर का समाधि स्थल भी यहीं स्थित है, जहां 2010 में उन्होंने समाधि ली थी। यह भी एक दर्शनीय संरचना है। इस परिसर में भादरिया महाराज का एक मंदिर भी बनाया गया है।
- मंदिर परिसर में भादरिया महाराज को समर्पित एक संग्रहालय भी है, जो उनकी जीवन यात्रा और योगदान को दर्शाता है।
- मंदिर परिसर में एक विशाल गौशाला भी है, जहां हजारों गायों की सेवा की जाती है। इसके अतिरिक्त, यहां निरंतर हवन-यज्ञ के लिए एक यज्ञशाला भी बनी हुई है।

भादरिया राय माता मंदिर जैसलमेर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: भादरिया राय माता मंदिर भादरिया गाँव, तहसील पोकरण, ज़िला जैसलमेर, राजस्थान में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जैसलमेर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 75 से 80 किलोमीटर दूर है। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 230 से 240 किलोमीटर दूर है। दोनो हवाई अड्डे से टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुँच सकते है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन श्री भादरियाजी लाठी है, जो मंदिर से 12 किमी दूर है। दुसरा नजदीकी रेलवे स्टेशन जैसलमेर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर लगभग 80 किलोमीटर दूर है। दोनो रेलवे स्टेशन से टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुँच सकते है।
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है, विशेष रूप से यदि आप जैसलमेर या जोधपुर से यात्रा कर रहे हैं। मंदिर जैसलमेर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है।