भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ | Bhadrakali Mata Temple Hanumangarh

भद्रकाली माता मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के घग्घर नदी के किनारे अमरपुरा थेडी गांव में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर माता भद्रकाली को समर्पित है। स्थानीय लोगों और दूर-दराज के श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर आस्था, शांति और मनोकामना पूर्ति का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना से मुगल सम्राट अकबर की एक किंवदंती भी जुड़ी है, जिसने इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व प्रदान किया है।

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भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ (Bhadrakali Mata Temple Hanumangarh)

मंदिर का नाम:-भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ (Bhadrakali Mata Temple Hanumangarh)
स्थान:-अमरपुरा थेड़ी गांव, हनुमानगढ़, राजस्थान
समर्पित देवता:-माता भद्रकाली
निर्माण वर्ष:-लगभग 500 साल पहले
निर्माता:-मुगल सम्राट अकबर
प्रसिद्ध त्यौहार:-चैत्र और आश्विन नवरात्रि, वार्षिक मेला

भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ का इतिहास

भद्रकाली माता मंदिर की स्थापना से जुड़ी सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से प्रचलित कथा मुग़ल बादशाह अकबर से संबंधित है। लोककथाओं के अनुसार, लगभग 500 से 600 साल पहले अकबर अपनी सेना के साथ इस क्षेत्र से गुजर रहा था, जो उस समय एक घना जंगल था। उसकी सेना भूख और प्यास से व्याकुल थी।

उसी समय अकबर को एक बूढ़ी औरत (जो स्वयं माता भद्रकाली थीं) दिखाई दी थी। जब अकबर ने उनसे पानी मांगा, तो माता ने ज़मीन से थोड़ा पानी निकालकर उसकी प्यास बुझाई। जब पानी कम पड़ने लगा, तो उन्होंने फिर से ज़मीन से पानी निकालकर दिया था। इस चमत्कार से प्रभावित होकर अकबर ने माता के चरणों में झुककर भोजन की प्रार्थना की थी।

माता ने तब उनकी पूरी सेना की भूख को शांत किया था। इस दैवीय अनुभव से अभिभूत होकर, अकबर ने उसी स्थान पर मंदिर के निर्माण का आदेश दिया और एक मूर्ति स्थापित करवाई थी। मंदिर में पहले से स्थापित की मूर्ति खंडित हो गई थी, उसके बाद महाराजा गंगा सिंह जी ने नई मूर्ति की पुनर्स्थापना करवाई थी। पुरानी खंडित मूर्ति आज भी मंदिर के गर्भगृह में नई मूर्ति के पीछे स्थापित है।

बावन शीश और महात्मा की जीवित समाधि

मंदिर परिसर में एक जीवित समाधि बनी हुई है। यह समाधि मंदिर के पहले पुजारी की है ऐसा माना जाता है कि भटनेर की भाटी शासकों ने भटनेर दुर्ग बनवाने या उसका जीर्णोद्धार करवाने का फैसला लिया और उसे बनवाना शुरू किया था। जैसे ही उसका निर्माण शुरू होता है, वैसे ही रात को वह वापस वह गिर जाता था। ऐसा कई बार हुआ था।

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इससे परेशान होकर भाटी शासक मंदिर आया और पुजारी जी से इस बात पर सलाह-मशवरा किया तो पुजारी जी ने कहा कि माताजी बलि मांग रही है। नर के बावन शीश की बलि देनी होगी। राजा ने आसपास के राजे-रजवाड़ों को आदेश दिया और बावन शीश कटवा कर दुर्ग में चुन दिए और तब से वह स्थिर रहने लगा और दुर्ग का निर्माण सम्पन्न हुआ। आज भी देखा जा सकता है, भटनेर दुर्ग में बावन बुर्ज है।

राजा एक दिन फिर महात्मा जी के पास आए और बोले कि बाबा जी मेरे पास धन खत्म हो गया है। राजा के प्रति आस्था गहरी होती थी हर व्यक्ति की, बाबाजी ने उसे अपनी गुदडी़ पकड़ाते हुए कहा कि रोज़ मेरी धूप अगरबत्ती करना, और गुदड़ी से पैसा निकाल लेना लेकिन एक शर्त है जब तुम्हारी आवश्यकता पूरी हो जाए तब मुझे ये वापिस लाकर देना। राजा उस समय हामी भरकर चला गया लेकिन बाद में उसकी नीयत में खोट आने की वजह से उसने गुदड़ी न देने का फैसला लिया और पुजारी जी की हत्या की योजना बनायी और उन्हें बुलवाया।

पुजारी जी को राजा के लोगों ने कहा कि आपको किले में आने का बुलावा है, बहुत बात करने के बाद वे उनके साथ निकल पड़े और जब किले में गए तो किला दिखाते वक़्त उनको एक बुर्ज से धक्का दे दिया और वे नीचे गिर पड़े, कथा यह है कि उनको कुछ नहीं हुआ और वे उठकर सीधे मंदिर आ गए और हनुमानगढ़ को उस दिन से श्राप दे दिया कि अब इस दुर्ग में कोई राज नहीं करेगा, और कुछ समय बाद उन्होंने जीवित समाधि ले ली थी। वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन राजस्थान देवस्थान विभाग द्वारा किया जाता है

भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ की वास्तुकला और संरचना

भद्रकाली माता मंदिर की वास्तुकला हिंदू और मुगल शैलियों का एक अनूठा संगम है। इसकी संरचना में एक बरामदा, एक रसोई, गर्भगृह और एक प्रार्थना कक्ष शामिल है, जिसके ऊपर एक गोल गुंबद बना हुआ है। मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से ईंटों, गारे और चूने से किया गया है।

मंदिर के इतिहास में इसकी प्रतिमाओं का अपना एक अलग महत्व है। लोककथाओं के अनुसार, अकबर द्वारा स्थापित एक प्राचीन मूर्ति आज भी मुख्य गर्भगृह में मौजूद है, जो मुख्य प्रतिमा के पीछे रखी गई है। इस मूर्ति को लगभग 500 साल पुरानी माना जाता है। हालांकि, मंदिर के पुजारी बताते हैं कि 1982 में पुरानी मूर्ति खंडित हो गई थी। इस घटना के बाद, महाराजा गंगा सिंह ने एक नई मूर्ति स्थापित करवाई थी। वर्तमान में गर्भगृह में स्थापित मुख्य प्रतिमा लाल पत्थर से बनी है, जिसकी ऊँचाई 2.6 फीट है और वह गहनों से सुसज्जित है।

हनुमानगढ़ के भद्रकाली माता के मंदिर में स्थापित मूर्ति
हनुमानगढ़ के भद्रकाली माता के मंदिर में स्थापित मूर्ति

भद्रकाली माता मंदिर हनुमानगढ़ तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: भद्रकाली माता मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ के अमरपुरा थेडी में घग्गर नदी के शांत तट पर स्थित है, जो हनुमानगढ़ शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर है।

मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: चंडीगढ़ हवाई अड्डा (Chandigarh Airport) मंदिर से लगभग 315 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: भद्रकाली माता मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन हनुमानगढ़ रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 13 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर हनुमानगढ़ से लगभग 7 से 8 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर हनुमानगढ़ पहुँच सकते हैं। हनुमानगढ़ पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

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