भर्तृहरि मंदिर राजस्थान के अलवर में सरिस्का नेशनल पार्क के निकट अलवर शहर से लगभग 30-36 किलोमीटर दूर स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान बाबा योगी भर्तृहरि नाथ को समर्पित है। यहाँ उज्जैन के शासक राजा भर्तृहरि की समाधि है। इस मंदिर का इतिहास उज्जैन के राजा भर्तृहरि से जुड़ा है, जो जीवन की निराशा से संन्यासी बने और यहां ध्यान कर समाधि ली थी।
भर्तृहरि मंदिर अलवर (Bhartrihari Temple Alwar)
मंदिर का नाम:- | भर्तृहरि मंदिर (Bhartrihari Temple) |
स्थान:- | अलवर, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | बाबा योगी भर्तृहरि नाथ (उज्जैन के शासक राजा भर्तृहरि की समाधि; जीवन की निराशा से संन्यासी बने और यहां ध्यान कर समाधि ली थी) |
निर्माण वर्ष:- | प्राचीन मंदिर |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | भाद्रपद मास में वार्षिक मेला, शिव से जुड़े सभी त्यौहार |
भर्तृहरि मंदिर अलवर का इतिहास
भर्तृहरि मंदिर का इतिहास भारतीय लोककथाओं और पौराणिक कथाओं से गहराई से जुड़ा है।
भर्तृहरि: कवि, सम्राट, और दार्शनिक
भर्तृहरि भारतीय इतिहास और साहित्य की एक महान विभूति हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। उनके पिता महाराज गंधर्वसेन थे, और वे उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) के राजा थे। राजसी पृष्ठभूमि से आने के बावजूद, भर्तृहरि ने स्वयं को एक महान संस्कृत कवि, धर्म, और नीति शास्त्र के प्रकांड ज्ञाता के रूप में स्थापित किया। संस्कृत साहित्य के इतिहास में उनकी पहचान मुख्य रूप से एक नीतिकार के रूप में है।
साहित्यिक विरासत: शतकत्रय (नीति, शृंगार, वैराग्य)
भर्तृहरि की साहित्यिक विरासत उनकी तीन प्रसिद्ध रचनाओं के समुच्चय पर आधारित है, जिसे शतकत्रय के नाम से जाना जाता है । प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं:
- शृंगारशतक: यह प्रेम और सौंदर्य के भोग पक्ष को दर्शाता है।
- नीतिशतक: यह शासन, नैतिकता, और राजधर्म के सिद्धांतों पर केंद्रित है।
- वैराग्यशतक: यह संसार के प्रति अनासक्ति, त्याग, और मोक्ष के मार्ग को समर्पित है।
ये तीनों शतक राजा भर्तृहरि के जीवन की तीन मुख्य अवस्थाओं को दर्शाते हैं: भोग, राजधर्म, और अंततः त्याग। वैराग्यशतक उनकी आध्यात्मिक यात्रा का सर्वोच्च प्रमाण है, जिसने उन्हें राजसी जीवन छोड़कर योग-साधना अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसके अतिरिक्त, भर्तृहरि को भाषा दर्शन पर आधारित अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ वाक्यपदीय का रचयिता भी माना जाता है।
वैराग्य का पौराणिक आधार
भर्तृहरि के वैराग्य ग्रहण करने की कथा भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती है। लोककथाओं और किंवदंतियों में अमर फल की कथा का उल्लेख मिलता है। यह कथा उनके वैराग्य की तीव्र भावना को दर्शाती है, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी से उत्पन्न मोह भंग के कारण धारण किया था। राज-पाट त्यागने के बाद उन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर नाथ पंथ की दीक्षा ली।
गुरु गोरखनाथ से दीक्षा और नाथ पंथ में भर्तृहरि का स्थान
राज-पाट त्यागने के बाद, राजा भर्तृहरि ने योग साधना का मार्ग अपनाया और महान योगी गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए थे। गुरु गोरखनाथ के आदेश का पालन करते हुए, बाबा भर्तृहरि ने सरिस्का की शांत, एकांत वादियों में गहन तपस्या शुरू की थी। वर्तमान भर्तृहरि मंदिर का स्थल ही वह स्थान है जहाँ उन्होंने वर्षों तक योग-साधना की थी। इस क्षेत्र में नाथ संप्रदाय का प्रभाव इतना गहन है कि मंदिर परिसर में बाबा भर्तृहरि की वंदना के साथ-साथ उनके गुरु गोरखनाथ जी और उनके सह-योगी बाबा गोपीचंद जी की भी जयकार की जाती है।
अलवर धाम की तपस्या स्थली: गुफा और धूना
अलवर स्थित भर्तृहरि धाम का केंद्रबिंदु वह प्राचीन साधना-स्थली है जहाँ राजा योगी भर्तृहरि ने घोर तपस्या की थी। मंदिर परिसर में एक प्राचीन गुफा स्थित है, जिसके अंदर बाबा भर्तृहरि जी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, और बाईं ओर माता की प्रतिमा विराजित है। नाथ संप्रदाय के अनुसार, यह गुफा इतनी पवित्र मानी जाती है कि इसके दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं को चारों धामों के पुण्य का फल प्राप्त होता है।
आधुनिक जीर्णोद्धार का कालक्रम: अलवर रियासत का योगदान
भर्तृहरि धाम के इतिहास में अलवर रियासत के शासकों का संरक्षण निर्णायक रहा है। मंदिर के वर्तमान स्वरूप के निर्माण और नवीनीकरण का श्रेय प्रमुख रूप से महाराजा जयसिंह (1892-1933 ई.) को जाता है। महाराजा जयसिंह ने 1924 में भर्तृहरि जी के मंदिर को व्यापक रूप से नया स्वरूप प्रदान किया था।
भर्तृहरि मंदिर अलवर की वास्तुकला और संरचना
भर्तृहरि मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक राजस्थानी शैली में निर्मित है। यह शैली 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए महत्वपूर्ण जीर्णोद्धार के प्रभाव को दर्शाती है। भर्तृहरि धाम की संरचना प्राचीन तपोभूमि और गुफा के रूप में स्थापित है। मंदिर तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो इसे एक शांत और सुंदर तीर्थस्थल बनाता है।
मंदिर की संरचना में मंडपों (स्तंभों वाले हॉल) और शिखरों (मीनारनुमा छत) को सजावटी ढंग से बनाया गया है। मंदिर की संरचना मुख्य रूप से योगी भर्तृहरि की समाधि के इर्द-गिर्द केंद्रित है। मंदिर में राजा भर्तृहरि का समाधि स्थल बना हुआ है। जहां पर बाबा भर्तृहरि की प्रतिमा स्थापित है और इसके नीचे एक अखंड ज्योत प्रज्वलित है। तथा उसके सामने बाबा भर्तृहरि का धुना बना हुआ है। मंदिर परिसर कई अन्य छोटे छोटे मंदिर भी बने हुए हैं।

यहां पर भर्तृहरि मंदिर के पीछे अमर गंगा की जल धारा बहती है। सबसे प्रसिद्ध स्थानीय किंवदंती अमर गंगा के उद्गम से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में अमर गंगा निकली थी। इस चमत्कार का भौतिक प्रमाण आज भी मंदिर परिसर में एक गुल्लर के पेड़ से जुड़ा है। कथा के अनुसार, बाबा भर्तृहरि ने अपनी योगिक शक्ति का प्रदर्शन करते हुए, अपने चिमटे (नाथ योगियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला उपकरण) को गुल्लर के पेड़ में गाड़ दिया था, जिससे वहाँ पवित्र गंगा की धारा प्रकट हुई थी।
भर्तृहरि मेला: अनुष्ठान, संस्कृति, और लोक आस्था
भर्तृहरि धाम का वार्षिक मेला राजस्थान के सांस्कृतिक और धार्मिक कैलेंडर का एक प्रमुख आयोजन है। इसे भर्तृहरि अष्टमी और भर्तृहरि मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता है। यह आमतौर पर तीन दिवसीय आयोजन होता है, जिसमें भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मुख्य मेला दिवस होता है।
मेले का आयोजन भर्तृहरि की तपोभूमि पर किया जाता है, जिसे विशेष रूप से कनफटे नाथों की तीर्थस्थली कहा जाता है। यह आयोजन नाथ संप्रदाय की परंपराओं और शक्ति का सबसे बड़ा सार्वजनिक प्रदर्शन होता है। मेले में दूर-दराज से साधु-संत बड़ी संख्या में आते हैं, और वे कई दिन पहले से ही मेला क्षेत्र में अपना डेरा जमा लेते हैं, जो भक्तों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र रहते हैं।
धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ यहाँ सामाजिक सेवा का भी वृहद प्रदर्शन होता है। स्थानीय भक्तों द्वारा भंडारों (सामुदायिक भोजन) का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके अलावा, भक्तों द्वारा प्याऊ आदि लगाकर जलसेवा भी की जाती है । तीर्थयात्री बाबा भर्तृहरि जी की गुफा में दर्शन करते हैं, धूना की परिक्रमा करते हैं, और परिसर में स्थित कुएं में स्नान भी करते हैं।
भर्तृहरि मंदिर अलवर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: भर्तृहरि मंदिर राजस्थान के अलवर में सरिस्का नेशनल पार्क के निकट अलवर शहर से लगभग 30-36 किलोमीटर दूर स्थित है।
Bhartrihari Temple Alwar Google Map Location:
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके अलवर शहर तक पहुँच सकते हैं। अलवर पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते हो। दिल्ली हवाई अड्डा भी विकल्प है, जो मंदिर से लगभग 197 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन अलवर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 36 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर अलवर बस स्टैंड से लगभग 36 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी, बस, या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर पहुँचने के बाद, आप स्थानीय बस, टैक्सी, या ऑटो-रिक्शा से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जयपुर से इस मंदिर की दूरी लगभग 125 किलोमीटर है।