ब्राह्मणी माता मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ के में पल्लू गांव में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर माता ब्रह्माणी, सरस्वती और महाकाली को समर्पित है। यह मंदिर नवरात्रि के दौरान अपने विशाल मेले के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ लाखों श्रद्धालु देशभर से माता के दर्शन और मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। किंवदंती के अनुसार, माता का यह स्थल कोटकल्लूर से पल्लू तक की यात्रा और उनके चमत्कारों से जुड़ा है, जो स्थानीय लोककथाओं में गहराई से बस्ता है।
ब्राह्मणी माता मंदिर हनुमानगढ़ (Brahmani Mata Temple Hanumangarh)
मंदिर का नाम:- | ब्राह्मणी माता मंदिर (Brahmani Mata Temple) |
स्थान:- | पल्लू, रावतसर, हनुमानगढ़, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | माता ब्रह्माणी, सरस्वती और महाकाली |
निर्माण वर्ष:- | विक्रम संवत 1365 (लगभग 1308 ईस्वी) (मूर्तियां प्रकट हुई थी) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | नवरात्रि (चैत्र और अश्विन) |
ब्राह्मणी माता मंदिर हनुमानगढ़ का इतिहास
पल्लू का इतिहास
पल्लू, राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की रावतसर तहसील में स्थित एक उप-तहसील मुख्यालय है, जो अपनी ऐतिहासिक विरासत, धार्मिक महत्व और पुरातात्विक समृद्धि के लिए विख्यात है। यह कस्बा थार मरुस्थल के रेतीले धोरों के बीच बसा हुआ है।
पुराने समय में पल्लू को प्रह्लादपुर और कोट किलूर जैसे नामों से जाना जाता था, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं। लोककथाओं के अनुसार, इस गाँव का वर्तमान नाम एक जाट सरदार की बेटी ‘पल्लू’ के नाम पर पड़ा है, जबकि इसका ऐतिहासिक अस्तित्व अनेकों बार बसा और उजड़ा है, जिससे हर कालखंड की एक अलग कहानी मिलती है। इस क्षेत्र पर बीकानेर के राजपूत राजाओं, परमारों, चौहानों, किलूर राजाओं और सिहाग जाटों ने शासन किया है।
पल्लू का इतिहास कई शासकों के अधीन रहा है। चौहानों के शासनकाल (11वीं-12वीं शताब्दी) में यह क्षेत्र जैन धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। इस अवधि की कई मूर्तियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं, जिनमें से कुछ को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली और बीकानेर संग्रहालय में रखा गया है। बाद में, सिहाग जाटों ने इस क्षेत्र पर अधिकार किया, जिनकी राजधानी सूई थी, और पल्लू उनका एक महत्वपूर्ण ठिकाना था। अंततः, 16वीं शताब्दी में राठौड़ों ने इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।
पल्लू के मौखिक इतिहास में महमूद गजनवी का उल्लेख मिलता है। दंतकथाओं के अनुसार, गजनवी ने 1025 ईस्वी के आसपास कोट किलूर के प्राचीन गढ़ पर आक्रमण कर उसे ध्वस्त कर दिया था। यह घटना पल्लू के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है।
सन् 1917 की खुदाई में पल्लू गाँव से मिली मां सस्वती की मूर्ति, 12 वीं शताब्दी के चौहान काल की हैं। सरस्वती की इस मूर्ति पर डाक विभाग द्वारा दो बार टिकिट जारी करना ये बताता हैं कि ये कितनी दुर्लभ कलाकृति है। आज यह नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई हैं।
मंदिर का इतिहास: दैवीय प्राकट्य और भोजराज सिंह की परंपरा
मंदिर की वर्तमान पहचान गीगासर (बीकानेर) के भोजराज सिंह नामक एक व्यक्ति की कहानी से जुड़ी है। दंतकथा के अनुसार, भोजराज सिंह अपने खोए हुए घोड़े की तलाश में इस क्षेत्र में आए थे। रात हो जाने के कारण वे यहां विश्राम करने एक पेड़ के नीचे रुक गए, माता ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और उन्हें अपनी सेवा करने का आदेश दिया था। सुबह जब वह जागे, तो उन्होंने देखा कि जमीन से तीन मूर्तियाँ—माता ब्रह्माणी, सरस्वती और महाकाली—स्वतः प्रकट हुई थीं। इस अलौकिक घटना के बाद, भोजराज सिंह ने वहीं रहकर माता की पूजा करना प्रारंभ कर दिया था।
मौखिक परंपरा और विभिन्न पुजारियों के अनुसार, देवियों की मूर्तियाँ विक्रम संवत 1365 (लगभग 1308 ईस्वी) में प्रकट हुई थीं, जो वर्तमान से लगभग 700 से अधिक वर्ष पुराना है। यह तिथि मंदिर की आधुनिक स्थापना और इसकी धार्मिक परंपराओं का आधार है।
भोजराज सिंह द्वारा शुरू की गई पूजा की परंपरा तब से लगातार चली आ रही है। उनके वंशज पीढ़ी-दर-पीढ़ी मंदिर के पुजारी के रूप में सेवा करते आ रहे हैं, जो इस धार्मिक स्थल के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है।
ब्राह्मणी माता मंदिर हनुमानगढ़ की वास्तुकला और संरचना
ब्राह्मणी माता मंदिर पुराने कोट किलूर किले की थेहड़ पर बना है, जिसका निर्माण तीन चरणों में हुआ था। वर्तमान परिसर में दो मुख्य मंदिर हैं: श्री ब्राह्मणी माता मंदिर और श्री माँ काली मंदिर, जिनका निर्माण क्रमशः सिंगरासर के सारसवा भादु और काबा भादुओं द्वारा किया गया था। दोनों मंदिरों में चांदी के दरवाजे लगे हैं, जो कई वर्षों पुराने होने के बावजूद आज भी नए जैसे दिखते हैं। गर्भगृह के चारो ओर परिक्रमा पथ बना हुआ है। काली माता के मंदिर के ठीक सामने भैरूजी का भी एक मंदिर है। मंदिर के मुख्य परिसर में माता ब्रह्माणी (जिनका वाहन हंस है), सरस्वती और महाकाली की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
इस मंदिर की सबसे अनूठी और महत्वपूर्ण परंपरा यह है कि माता के मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले द्वारपाल श्री सादूला जी के मंदिर में धोक लगाना अनिवार्य है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता ब्रह्माणी ने श्री सादूला जी को यह वरदान दिया था कि उनकी सेवा और समर्पण के लिए उन्हें एक श्रेष्ठ पद मिलेगा, और जो भी भक्त माता के दर्शन करने आएगा, उसे पहले उनके द्वारपाल को प्रणाम करना होगा। यह परंपरा पुजारियों पर भी लागू होती है, जिन्हें इसका पालन करना होता है।
ब्राह्मणी माता मंदिर हनुमानगढ़ धार्मिक उत्सव और मेले
पल्लू का ब्राह्मणी माता मंदिर अपने भव्य और विशाल मेलों के लिए प्रसिद्ध है, जो वर्ष में दो बार नवरात्रों के दौरान आयोजित होते हैं। चैत्र और अश्विन नवरात्र में लगने वाले इन मेलों में दूर-दराज से श्रद्धालु पैदल यात्रा करके आते हैं। सप्तमी और अष्टमी को मुख्य मेला भरता है।
ब्राह्मणी माता मंदिर हनुमानगढ़ तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: ब्राह्मणी माता मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रावतसर तहसील के पल्लू गांव में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: नाल हवाई अड्डा बीकानेर (Bikaner Airport) मंदिर से लगभग 166 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: ब्राह्मणी माता मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन अर्जनसर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 38 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर हनुमानगढ़ से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर हनुमानगढ़ पहुँच सकते हैं। हनुमानगढ़ पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।