दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना और मंदिर तक पहुंचने के तरीके

दधिमती माता मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर दधिमती माता को समर्पित है, जिन्हें लक्ष्मी का अवतार और ऋषि दधीचि की बहन माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, दधिमती ने दैत्य विकटासुर का वध कर भक्तों की रक्षा की थी। यह मंदिर दाधीच (दाहिमा) ब्राह्मणों की कुलदेवी और कुलमाता के रूप में पूजनीय है।

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दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर (Dadhimati Mata Temple Goth Manglod)

मंदिर का नाम:-दधिमती माता मंदिर (Dadhimati Mata Temple)
स्थान:-गोठ और मांगलोद गांवों के बीच, जायल तहसील, नागौर, राजस्थान
समर्पित देवता:-दधिमती माता (लक्ष्मी माता का अवतार)
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि (चैत्र और अश्विन)

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर का इतिहास

पौराणिक कथाएं, किवदंतिया और धार्मिक महत्व

प्राचीन कथाओं के अनुसार दधिमती माता ऋषि दधीचि की बहन थीं। उन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। एक प्रमुख किंवदंती के अनुसार, माघ महीने की अष्टमी को उन्होंने दैत्य विकटासुर का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने दैत्यों द्वारा चुराए गए संसार के सारतत्व को निकालने के लिए “दधिसागर” (दही के सागर) का मंथन किया था, जिसके कारण उनका नाम दधिमती पड़ा था। एक अन्य जनश्रुति राजा मान्धाता द्वारा किए गए एक यज्ञ से उनकी उत्पत्ति को जोड़ती है। इस यज्ञ के लिए राजा ने चार हवन कुंडों का निर्माण किया था, जिनमें गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा नदियों का जल उत्पन्न हुआ था और प्रत्येक कुंड के जल का स्वाद अलग था।

इस मंदिर में दधिमती माता की मूर्ति से जुड़ी एक किवदंती है, पौराणिक कथाओं और जनश्रुतियों के अनुसार मंदिर बनने से पहले यहां एक घना जंगल था। कहा जाता है गोठ मंगलोद का एक जाट था चांगल, वो यहां अपनी गाये चरा रहा था। तब दधिमती माता ने उनको आवाज लगाई की में पृथ्वी पर अवतरित हो रही हु, तू डरना मत तब उस जाट ने कहा कि माता में नही डरूंगा। उसके बाद जैसे ही माता का शरीर बाहर निकलने लगा, आंधी तूफान आने लगा और धरती कपकपाने लगी थी। और जैसे दधिमती माता का कपाल बाहर निकलना शुरू हुआ वह ग्वाला यह देख कर डर गया और चिल्लाने लगा था। उसके बाद माता पूरी तरह प्रकट नहीं हुई थी। इसलिए आज भी यहां पर सिर्फ माता के कपाल की पूजा होती है।

ऐतिहासिक कालक्रम और निर्माण

प्रसिद्ध इतिहासकार रामकरण आसोपा इस मंदिर को गुप्तकालीन मानते हैं, जिसका निर्माण 608 ईस्वी में हुआ था। दूसरी ओर, डॉ. राघवेन्द्र सिंह मनोहर और कई अन्य इतिहासकार इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार नरेश भोजदेव प्रथम (836-892 ईस्वी) के शासनकाल के समकालीन मानते हैं। स्थानीय जनश्रुतियाँ और लोक कथाएँ मंदिर को 2000 साल से अधिक पुराना बताते हैं। राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ‘‘इस मंदिर के आस-पास का प्रदेश प्राचीनकाल में दधिमती (दाहिमा) क्षेत्र कहलाता था।”

मंदिर में साल में दो बार, चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों के दौरान विशाल मेलों का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इन मेलों के दौरान सप्तमी के दिन देवी की एक प्रतीक स्वरूप प्रतिमा को पालकी में बिठाकर कपाल कुंड तक ले जाया जाता है।

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दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर की वास्तुकला और संरचना

यह मंदिर प्रतिहार काल की महामारू शैली में निर्मित है। इसकी वास्तुकला की सादगी और भव्यता का अनूठा संगम है। इस संरचना में चार बड़े चौक भी हैं, जो इसे एक भव्य और विशाल परिसर बनाते हैं। मंदिर की दीवारों और गुंबद पर की गई बारीक और व्यापक नक्काशी इसे एक उत्कृष्ट कलाकृति बनाती है। गुंबद पर पूरी रामायण की कथा को हाथ से उकेरा गया है, जो कलात्मक दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ है। देवी के इस मंदिर में रामायण के इन चित्रों में राम, लक्ष्मण, सीता वन गमन से शुरू होकर, मारीच वध, कुंभकर्ण, रावण वध, वानरों द्वारा समुद्र पर सेतु बांधने आदि कई घटनाओं के सुन्दर चित्रों का समायोजन किया गया है जो दर्शनीय है।

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर का मुख्य गर्भगृह
दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर का मुख्य गर्भगृह

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में दधिमती माता के कपाल की पूजा की जाती है। इस मंदिर से जुड़ी जो सबसे चमत्कारी बात है, यह है कि यहां एक अनोखा स्तंभ है। माना जाता है कि यह स्तंभ जमीन पर टिका हुआ नहीं है। जमीन और स्तंभ के बीच में खाली जगह है। इस चमत्कारी स्तंभ को मनोकामना स्तंभ भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस पर धागा और नारियल बांधकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है।

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर का चमत्कारी मनोकामना स्तंभ
दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर का चमत्कारी मनोकामना स्तंभ

वहीं मंदिर के पास कुछ ही दूरी पर कपाल कुंड के नाम से एक कुंड स्थित है। मान्यता है कि इस कुंड कभी पानी सूखता नहीं है। इस मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार कपाल कुंड में सात बावड़ियां है। इन्हीं में भूगर्भ का पानी लगातार आता है। चैत्र और आश्विन के नवरात्र में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है। यह उस प्रतिमा की प्रतिकृति है। जो मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है।

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर में स्थित कपाल कुंड
दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर में स्थित कपाल कुंड

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: दधिमती माता मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित है।

मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: जोधपुर हवाई अड्डा (Jodhpur Airport) मंदिर से लगभग 172 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन नागौर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर नागौर से लगभग 37 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर नागौर पहुँच सकते हैं। नागौर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

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