राजस्थान के सिरोही जिले में अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा माउंट आबू न केवल एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, बल्कि जैन धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक, दिलवाड़ा जैन मंदिर का घर भी है, जिसे देलवाडा जैन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अपनी बेजोड़ संगमरमर की नक्काशी और स्थापत्य कला के लिए विश्वविख्यात है।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक आध्यात्मिक केंद्र है, वहीं कला और इतिहास के प्रेमियों के लिए यह एक अनुपम स्थापत्य कृति है। दिलवाड़ा मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। इस मंदिर की सुंदरता ऐसी है कि इसे ताजमहल के बाद भारत का सबसे उत्कृष्ट स्थापत्य माना गया है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू (Dilwara Jain Temple Mount Abu)
मंदिर का नाम:- | दिलवाड़ा जैन मंदिर (Dilwara Jain Temple) |
स्थान:- | माउंट आबू, सिरोही, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | जैन तीर्थंकरों (मुख्य रूप से आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी) |
मुख्य मंदिर:- | विमल वसाही, लूणा वसाही, पित्तलहर, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी |
निर्माण वर्ष:- | 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महावीर जन्म कल्याणक, पर्युषण |
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू का इतिहास
दिलवाड़ा जैन मंदिर, जो राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू में स्थित है, एक प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल है, जिसका इतिहास 11वीं से 16वीं शताब्दी के बीच का है। यह मंदिर समूह पांच प्रमुख मंदिरों से बना है, जिनमें से प्रत्येक का निर्माण विभिन्न कालों और संरक्षकों द्वारा किया गया था।
मंदिर का निर्माण उस समय हुआ जब जैन धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त था, विशेष रूप से सोलंकी और वाघेला राजवंशों के शासनकाल में। यह मंदिर समूह जैन समुदाय के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है और पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर समूह का निर्माण 11वीं से 16वीं शताब्दी के बीच विभिन्न चरणों में हुआ था। यहाँ पर प्रत्येक मंदिर के निर्माण काल और संरक्षकों की जानकारी दी गई है:
मंदिर का नाम | निर्माण वर्ष | संरक्षक/निर्माता | समर्पित तीर्थंकर |
---|---|---|---|
विमल वसाही मंदिर | 1031 ई. | विमल शाह (सोलंकी वंश राजा भीमदेव के मंत्री) | प्रथम तीर्थंकर, ऋषभनाथ (आदिनाथ) को समर्पित |
लूणा वसाही मंदिर | 1230 ई. | वास्तुपाल और तेजपाल (वाघेला शासक) | 22वें तीर्थंकर, नेमिनाथ को समर्पित |
पित्तलहर मंदिर | 1468-1469 ई. | भीम शाह (अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री) | आदिनाथ को समर्पित |
पार्श्वनाथ मंदिर | 1458-1459 ई. | संघवी मांडलिक परिवार | 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित । |
महावीर स्वामी मंदिर | 1582 ई. | ज्ञात नहीं, दीवार चित्र 1764 ई. में सिरोही कलाकारों द्वारा | 24वें तीर्थंकर महावीर को समर्पित है । |
- विमल वसाही मंदिर: यह सबसे पुराना मंदिर है, जिसका निर्माण 1031 ई. में गुजरात के चौलुक्य वंश (सोलंकी वंश) राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह द्वारा करवाया था। और प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आँखों में वास्तविक हीरे और गले में कीमती रत्नों का हार है, जो इसे विशेष बनाता है।
- लूणा वसाही मंदिर: इसका निर्माण 1230 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल ने करवाया, जो गुजरात के वाघेला शासकों के मंत्री थे। यह मंदिर 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित है और अपनी “हथीशाला” या “हाथी कक्ष” (10 पॉलिश किए गए संगमरमर के हाथियों की नक्काशी) के लिए प्रसिद्ध है। मन्दिर के मुख्य हॉल, जिसे रंग मंडप कहा जाता है, में 360 छोटे छोटे तीर्थंकरो की मूर्तियों के लिए जाना जाता है।
- पित्तलहर मंदिर: इसका निर्माण 1468-1469 ई. में भीम शाह, अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री ने करवाया था। यह मंदिर एक विशाल पीतल की मूर्ति (लगभग 4000 किग्रा) के लिए जाना जाता है, जो प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
- पार्श्वनाथ मंदिर: इसका निर्माण 1458-59 ई. में संघवी मांडलिक परिवार द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है और तीन मंजिला है, जो परिसर में सबसे ऊँचा है। यहाँ पौष कृष्ण पक्ष दशमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे मूर्ति पर पड़ती हैं, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।
- महावीर स्वामी मंदिर: इसका निर्माण 1582 ई. में हुआ था, और इसमें 1764 ई. में सिरोही के कलाकारों द्वारा दीवारों पर चित्रकारी की गई थी। यह मंदिर 24वें तीर्थंकर महावीर को समर्पित है और फूलों, कबूतरों, दरबारी दृश्यों, घोड़ों और हाथियों की जीवंत नक्काशी के लिए जाना जाता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू की वास्तुकला और संरचना
दिलवाड़ा जैन मंदिर जिसमें ऊंचे शिखर और गुंबदनुमा छतें शामिल हैं। ये मंदिर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बने हैं, जो अरावली पर्वतमाला से लाए गए थे। मंदिरों पर की गई बारीक नक्काशी जैन पौराणिक कथाओं, फूलों, पशु-पक्षियों और ज्यामितीय पैटर्न को दर्शाती है, जो उनकी सुंदरता को और बढ़ाती है। नक्काशी इतनी बारीक है कि इसे देखकर लगता है जैसे संगमरमर पारदर्शी हो।
प्रमुख वास्तु विशेषताएं
- सामग्री: मंदिरों का निर्माण शुद्ध सफेद संगमरमर से किया गया, जो अरासुरी पहाड़ियों से लाया गया था। पार्श्वनाथ मंदिर में भूरे बलुआ पत्थर का भी उपयोग किया गया, जबकि पित्तलहर मंदिर में कांस्य की मूर्तियाँ हैं।
- नक्काशी: छत, द्वार, स्तंभ और दीवारें जटिल डिज़ाइनों से सजी हैं, जिसमें जैन तीर्थंकरों, अप्सराओं, और पौराणिक दृश्यों को उकेरा गया है। विशेष रूप से लूणा वसाही मंदिर की “किच्छक” छत और विमल वसाही मंदिर का कमल के आकार का गुंबद प्रसिद्ध हैं।
- अकॉस्टिक्स: मंदिरों की संरचना ऐसी है कि एक छोर पर फुसफुसाहट दूसरे छोर तक सुनी जा सकती है, जो उनकी ध्वनि वास्तुकला की विशेषता है।
प्रत्येक मंदिर की संरचना
- विमल वसाही मंदिर: यह सबसे पुराना और सबसे बड़ा मंदिर है, जिसमें एक हॉल है जिसमें 52 स्तंभ हैं, प्रत्येक का डिज़ाइन अलग है। छत पर कमल का मोटिफ और आदिनाथ की मूर्ति, जिसकी आंखों में असली हीरे हैं, इसकी मुख्य विशेषता है।
- लूणा वसाही मंदिर: यह मंदिर तीन मंजिला है और “हाथी शाला” के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें 10 बड़े संगमरमर के हाथी हैं। नेमिनाथ की काली संगमरमर की मूर्ति भी यहाँ है।
- पित्तलहर मंदिर: यह मंदिर एक विशाल कांस्य मूर्ति (लगभग 4000 किग्रा) के लिए जाना जाता है, जो ऋषभदेव को समर्पित है।
- पार्श्वनाथ मंदिर: तीन मंजिला संरचना, सबसे ऊँचा मंदिर, जिसमें पार्श्वनाथ की मूर्ति पद्मासन मुद्रा में है। पौष कृष्ण पक्ष दशमी को सूर्य की किरणें मूर्ति पर पड़ती हैं, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।
- महावीर स्वामी मंदिर: सबसे छोटा मंदिर, जिसमें 1764 ई. में सिरोही कलाकारों द्वारा दीवारों पर चित्रकारी की गई। फूलों, कबूतरों, दरबारी दृश्यों, नर्तकियों, घोड़ों और हाथियों की नक्काशी इसकी विशेषता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: दिलवाड़ा जैन मंदिर, जो राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू में स्थित है।
यहां पहुंचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग शामिल हैं:
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (महाराणा प्रताप हवाई अड्डा) है, जो माउंट आबू से लगभग 185 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी या बस से माउंट आबू पहुंच सकते हैं, जो लगभग 4-5 घंटे ले सकता है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन आबू रोड है, जो माउंट आबू से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। आबू रोड से टैक्सी या बस से माउंट आबू तक पहुंच सकते हैं।
- सड़क मार्ग और स्थानीय परिवहन: माउंट आबू राष्ट्रीय राजमार्ग 62 और राज्य राजमार्गों से जुड़ा है। उदयपुर ( लगभग 185 किलोमीटर), अहमदाबाद (लगभग 230 किलोमीटर) और जयपुर (लगभग 500 किलोमीटर) से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। माउंट आबू पहुंचने के बाद, मंदिर तक ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या पैदल (लगभग 2.5 किलोमीटर) जाया जा सकता है।