एकलिंगजी मंदिर उदयपुर | Eklingji Temple Udaipur

एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर से 22 किलोमीटर दूर कैलाशपुरी गाँव में स्थित भगवान शिव का एक प्राचीन और पवित्र हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि मेवाड़ के शासकों के इतिहास से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि एकलिंगजी मेवाड़ के असली शासक (कुल देवता) हैं और शाही राजवंश के महाराणा उनके दीवान (मंत्री) के रूप में शासन करते हैं। इसका इतिहास 1200 साल से अधिक पुराना है, जो इसे राजस्थान के सबसे प्राचीन और पूजनीय मंदिरों में से एक बनाता है।

एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर की सामान्य जानकारी

मंदिर का नाम:-एकलिंगजी मंदिर (Eklingji Temple)
स्थान:-कैलाश पुरी, उदयपुर, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान शिव
निर्माण काल:-8वीं शताब्दी
संस्थापक:-बप्पा रावल
प्रसिद्धि:-मेवाड़ राजवंश के कुलदेवता के रूप
प्रसिद्ध त्यौहार:-महाशिवरात्रि

एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर का इतिहास

एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर की स्थापना 734 ईस्वी में बप्पा रावल द्वारा की गई थी, जो मेवाड़ वंश के संस्थापक थे। 15वीं सदी के ग्रंथ “एकलिंग महात्म्य” के अनुसार, बप्पा रावल को कैलाशपुरी में भगवान शिव के दर्शन हुए थे। यह दर्शन एक गाय के दूध स्वतः बहने की घटना से जुड़ा था, जिसे चमत्कार मानकर उन्होंने यहाँ मंदिर बनवाया था। यह मंदिर शुरू में साधारण संरचना वाला था और मेवाड़ के शासकों के लिए धार्मिक केंद्र बन गया था। यह समय माना जाता है जब मंदिर ने अपनी पहचान एकलिंगजी के रूप में स्थापित की, जो मेवाड़ के कुलदेवता के रूप में पूजे गए थे।

13वीं और 14वीं सदी में, एकलिंगजी मंदिर को दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था। इस दौरान कई आक्रमणकारियों ने मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप मूल संरचना और मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हो गईं थी। ये हमले मेवाड़ क्षेत्र पर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिशों का हिस्सा थे। हालाँकि, मंदिर की धार्मिक महत्ता के कारण स्थानीय लोगों और शासकों ने इसे बार-बार बचाने और पुनर्जनन के प्रयास किए थे। यह मंदिर के इतिहास में एक चुनौतीपूर्ण समय था, जब इसकी मूल पहचान खतरे में थी।

14वीं सदी में मेवाड़ के शासक हमीर सिंह ने एकलिंगजी मंदिर को फिर से जीवंत करने का काम किया था। उन्होंने क्षतिग्रस्त मंदिर का नवीनीकरण किया और मुख्य गर्भगृह में पहली स्थायी मूर्ति स्थापित की थी। यह पुनर्जनन मेवाड़ के पुनरुत्थान के समय हुआ था, जब हमीर सिंह ने क्षेत्र में अपनी शक्ति को मजबूत किया था। इस अवधि में मंदिर का विस्तार हुआ और यह धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था। हमीर सिंह का यह योगदान मंदिर के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

15वीं सदी में राणा कुंभा ने एकलिंगजी मंदिर का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण करवाया था। 1460 में एक शिलालेख में उन्हें “एकलिंग के व्यक्तिगत सेवक” के रूप में वर्णित किया गया, जो उनके गहरे समर्पण को दर्शाता है। राणा कुंभा ने मंदिर की संरचना को मजबूत किया और पास में एक विष्णु मंदिर भी बनवाया, जिससे इस परिसर का विस्तार हुआ था। उनके इन कार्यों ने मंदिर को एक भव्य रूप दिया था।

15वीं सदी के अंत में, मालवा सल्तनत के शासक घियास शाह ने एकलिंगजी मंदिर पर आक्रमण किया था। राणा कुंभा के पुत्र, राणा रैमल, ने इस आक्रमण का डटकर मुकाबला किया और मंदिर की रक्षा की थी। उन्होंने घियास शाह को हराया, उसे बंदी बनाया और फिरौती के रूप में प्राप्त धन का उपयोग 1473 से 1509 के बीच मंदिर के अंतिम प्रमुख पुनर्निर्माण के लिए किया था। इस दौरान वर्तमान काले संगमरमर का चतुर्मुखी शिवलिंग स्थापित किया गया था, जो आज भी मंदिर का मुख्य आकर्षण है। यह पुनर्निर्माण मंदिर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने इसे आज के स्वरूप में ढाला था।

16वीं सदी में मंदिर का प्रबंधन विभिन्न संप्रदायों के अधीन रहा था। शुरू में यह पशुपत संप्रदाय के पास था, फिर नाथ संप्रदाय ने इसे संभाला था, और अंततः रामानंदी संप्रदाय के अधीन आ गया था। इन संप्रदायों ने मंदिर की पूजा पद्धतियों और प्रबंधन में अपने प्रभाव छोड़े थे। मेवाड़ के शासकों का मंदिर से जुड़ाव बना रहा है, और आज भी मेवाड़ के वर्तमान महाराणा यहाँ विशेष अनुष्ठान करते हैं। आधुनिक समय में, यह मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक निरंतरता को दर्शाता है।

एकलिंगजी मंदिर की वास्तुकला और संरचना

एकलिंगजी मंदिर की बनावट राजस्थान की पुरानी मरु-गुर्जर शैली में है। यह शैली सफेद पत्थर और सुंदर नक्काशी के लिए जानी जाती है। मंदिर दो मंजिल का है और इसकी छत पिरामिड की तरह ऊँची और नुकीली है। बाहर की दीवारों पर सीढ़ियाँ बनी हैं, जो पास की इंद्रसागर झील तक जाती हैं। यह देखने में बहुत खूबसूरत लगता है और मंदिर को खास बनाता है।

मंदिर का मुख्य हिस्सा, जहाँ पूजा होती है, 50 फीट ऊँचा है। इसमें चार दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं में खुलते हैं। हर दरवाजे पर नंदी की मूर्ति है, जो भगवान शिव का प्रतीक है। पश्चिम और दक्षिण के दरवाजों पर चाँदी की परत चढ़ी है। अंदर काले संगमरमर का एक खास शिवलिंग है, जिसके चार चेहरे हैं। ये चार चेहरे भगवान शिव के चार रूपों सद्योजात, वामदेव, अघोर और ईशान को दिखाते हैं।

मंदिर में एक बड़ा सभा मंडप है, जहाँ लोग इकट्ठा होते हैं। यहाँ काले पत्थर से बनी एक बड़ी नंदी की मूर्ति है। इसके पीछे एक और नंदी की मूर्ति है, जो आठ धातुओं से बनी है और ताँबे की परत से ढकी है। प्रवेश द्वार पर चाँदी और पीतल से बनी नंदी की मूर्तियाँ भी हैं। ये मूर्तियाँ मंदिर को और भी शानदार बनाती हैं। साथ ही, सभा मंडप में बप्पा रावल की एक मूर्ति भी है, जो मंदिर के इतिहास को याद दिलाती है।

मंदिर का पूरा परिसर करीब 25 एकड़ में फैला है। इसमें 108 छोटे-छोटे मंदिर हैं, जो अलग-अलग देवताओं और संतों के लिए बने हैं। ये छोटे मंदिर मुख्य मंदिर के आसपास हैं। मंदिर में पानी की निकासी की एक खास व्यवस्था है, जो इंद्रसागर झील से जुड़ी है। यह पानी गोमुख नाम की संरचना से बाहर निकलता है। यह डिज़ाइन मंदिर को साफ रखने में मदद करता है और इसे धार्मिक रूप से भी खास बनाता है। इसके अलावा, मंदिर की दीवारों पर बनी नक्काशी और पत्थरों का काम इसे देखने लायक बनाता है।

एकलिंगजी मंदिर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का पता: एकलिंगजी मंदिर, राष्ट्रीय राजमार्ग 8, कैलाशपुरी, उदयपुर, राजस्थान, 313202

  • विमान (By Air): महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, जो मंदिर से 22 km दूर है, और निकटतम हवाई अड्डा है। यह दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं, जो लगभग 30-40 मिनट का समय लेता है।
  • रेल: उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन मंदिर से 24 km दूर है और दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, अहमदाबाद जैसे शहरों से सीधे जुड़ा है। स्टेशन से टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से आप मंदिर तक पहुँच सकते हैं, जो 30-40 मिनट में पूरा हो सकता है।
  • सड़क मार्ग: एकलिंगजी मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्थित है, जो उदयपुर से 22 km उत्तर में है। आप टैक्सी, बस या निजी वाहन से आसानी से पहुँच सकते हैं। उदयपुर शहर के केंद्र से मंदिर तक पहुँचने में लगभग 35-45 मिनट लगते हैं। सार्वजनिक बसें और टैक्सी भी उपलब्ध हैं, जो यात्रा को और सुविधाजनक बनाती हैं।

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