राजस्थान का प्रतापगढ़ जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक विरासत और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र गोतमेश्वर महादेव मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। जहां आज भी खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। गोतमेश्वर महादेव मंदिर को स्थानीय और आदिवासी समुदायों द्वारा एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में पूजा जाता है, जहाँ गंगाकुंड में स्नान करने की परंपरा को पापमुक्ति का साधन माना जाता है। माना जाता है की इस मंदिर का संबंध महर्षि गौतम से जुड़ा हुआ है।
गौतमेश्वर महादेव मंदिर प्रतापगढ़ (Gautameshwar Mahadev Temple Pratapgarh)
मंदिर का नाम:- | गौतमेश्वर महादेव मंदिर (Gautameshwar Mahadev Temple) |
स्थान:- | अरनोद तहसील, प्रतापगढ़ जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान शिव (खंडित शिवलिंग) |
निर्माण वर्ष:- | प्राचीन मंदिर (लोक मान्यताओं के अनुसार) |
मुख्य आकर्षण:- | स्वयंभू शिवलिंग, मंदाकिनी कुंड (मोक्षदायिनी कुंड) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महाशिवरात्रि, श्रावण मास |
गौतमेश्वर महादेव मंदिर प्रतापगढ़ का इतिहास
मंदिर के निर्माण की सटीक तिथि और इतिहास के बारे में ऐतिहासिक साक्ष्य सीमित हैं। हालांकि, स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर प्राचीन काल से मौजूद है और इसे एक स्वयंभू शिवलिंग का स्थल माना जाता है।
माना जाता है की मंदिर का सम्बंध महर्षि गौतम से जुडा हुआ है। कथा के अनुसार, गौतम ऋषि पर गाय की हत्या का आरोप लगा था, लेकिन उन्होंने मंदिर के कुंड (जिसे मोक्षदायिनी कुंड या मंदाकिनी कुंड के नाम से भी जाना जाता है) में स्नान करके अपने पाप से मुक्ति पाई थी। मंदिर में स्नान करने वाले भक्तों को पाप से मुक्ति का प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट) दिया जाता है, जो इसकी एक अनूठी विशेषता है। यह प्रमाणपत्र 11 या 12 रुपये में पुजारी द्वारा जारी किया जाता है, और इसे पाप से मुक्ति का आधिकारिक प्रमाण माना जाता है। गौतमेश्वर महादेव मंदिर को आदिवासियों का हरिद्वार भी कहते है।
मंदिर के इतिहास का एक प्रमुख पहलू स्थानीय कथाओं में वर्णित है, जो मोहम्मद गजनवी के साथ जुड़ा है। कथा के अनुसार, गजनवी ने इस मंदिर पर आक्रमण किया और शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन उसे चमत्कारिक घटनाओं का सामना करना पड़ा:
- पहली बार प्रहार करने पर शिवलिंग से दूध बहने लगा।
- दूसरे प्रहार पर दही बहा।
- तीसरे प्रहार पर एक भौंरों का झुंड (मधुमक्खियों का झुंड) उसकी सेना पर टूट पड़ा, जिससे उसकी सेना पराजित हो गई और उसे पीछे हटना पड़ा था।
इसके बाद, गजनवी ने मंदिर की पवित्रता को स्वीकार करते हुए मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और एक शिलालेख (पत्थर का शिलालेख) स्थापित किया, जो आज भी मंदिर के बाहर मौजूद है। इस शिलालेख में निम्नलिखित बातें लिखी गई हैं:
- कोई भी मुस्लिम यदि मंदिर को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करेगा, तो उसे सूअर की हत्या का पाप झेलना पड़ेगा।
- कोई भी हिंदू यदि ऐसा करेगा, तो उसे गाय की हत्या का पाप झेलना पड़ेगा।
यह शिलालेख मंदिर की रक्षा और उसकी ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
हिंदू धर्म में खंडित प्रतिमाओं की पूजा वर्जित मानी जाती है, लेकिन गौतमेश्वर महादेव मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है। यह मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है।
गौतमेश्वर महादेव मंदिर प्रतापगढ़ की वास्तुकला और संरचना
गौतमेश्वर महादेव मंदिर, राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में अरनोद तहसील से लगभग 3 किलोमीटर दूर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
मंदिर की वास्तुकला मुख्य रूप से प्राकृतिक गुफा पर आधारित है, जो मानव-निर्मित संरचनाओं की तुलना में अधिक प्राचीन और स्वाभाविक है। गुफा का प्रवेश संकरा है, और भक्तों को एक संकरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। गुफा के अंदर भगवान गौतमेश्वर, अर्थात् भगवान शिव, को समर्पित क्षेत्र है, जहाँ एक खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। यह खंडित शिवलिंग इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता है, क्योंकि हिंदू धर्मशास्त्रों में खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी जाती है, लेकिन यहाँ यह पूजनीय है।

मंदिर की संरचना में दो पथ शामिल हैं: एक प्रवेश के लिए और दूसरा निकास के लिए। ये पथ गुफा की प्राकृतिक संरचना के अनुसार बने हुए हैं और भक्तों को आसानी से आने-जाने में सहायक हैं। प्रवेश पथ संकरा है, और निकास पथ भी समान रूप से व्यवस्थित है, जो भीड़ प्रबंधन में मदद करता है।
मंदिर के पास एक पवित्र कुंड है, जिसे “मोक्षदायिनी कुंड” या “मंदाकिनी कुंड” के नाम से जाना जाता है। यह कुंड मंदिर की संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यहाँ स्नान करने की मान्यता है कि यह पापों से मुक्ति दिलाता है। कुंड का पानी प्राकृतिक स्रोत से आता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, जो गुफा तक जाने में सहायक हैं।
गौतमेश्वर महादेव मंदिर प्रतापगढ़ तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: गौतमेश्वर महादेव मंदिर लालगढ़ गाँव, अरनोद-तहसील, प्रतापगढ़, राजस्थान में स्थित है।
नीचे विस्तार से बताया गया है कि आप इस मंदिर तक कैसे पहुँच सकते हैं:
- हवाई मार्ग: गौतमेश्वर महादेव मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में स्थित, महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है। उदयपुर हवाई अड्डे से गौतमेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से पहुंच सकते हैं। हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 187 किलोमीटर है।
- रेल मार्ग: प्रतापगढ़, राजस्थान में कोई प्रमुख रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए निकटतम रेलवे स्टेशन निम्नलिखित हैं:
- चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन: यह मंदिर से लगभग 110 किलोमीटर दूर है। आप चित्तौड़गढ़ से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से प्रतापगढ़ शहर तक पहुंच सकते हैं, और उसके बाद मंदिर तक।
- उदयपुर रेलवे स्टेशन: यह मंदिर से लगभग 145 किलोमीटर दूर है। आप उदयपुर से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से प्रतापगढ़ शहर तक पहुंच सकते हैं, और उसके बाद मंदिर तक।
- सड़क मार्ग: गौतमेश्वर महादेव मंदिर के लिए पहले आपको प्रतापगढ़ शहर तक पहुचना होगा ,यहाँ पहुचने के बाद, गौतमेश्वर मंदिर यहां से लगभग 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप स्थानीय बस, टैक्सी या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।