गोविंद देवजी मंदिर जयपुर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना, त्योहार और मंदिर तक पहुंचने की जानकारी

गोविंद देवजी मंदिर राजस्थान के जयपुर के सिटी पैलेस परिसर में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के गोविंद देव रूप और राधारानी को समर्पित है। यह मंदिर 1735 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित किया गया था, जबकि इसकी मूल मूर्ति वृंदावन से मुगल आक्रमणों से बचाने के लिए लाई गई थी। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि राजपूत शासकों की भक्ति और इतिहास से जुड़ा हुआ है। कछवाहा राजवंश का कुलदेवता होने के कारण यह राजपरिवार के लिए विशेष महत्व रखता है।

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गोविंद देवजी मंदिर जयपुर (Govind Dev Ji Temple Jaipur)

मंदिर का नाम:-गोविंद देवजी मंदिर (Govind Dev Ji Temple)
स्थान:-सिटी पैलेस परिसर, जयपुर, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान कृष्ण के गोविंद देव रूप और राधारानी
निर्माण वर्ष:-1735 ई. (जयपुर में)
मूल मंदिर वृंदावन में 1590 ईस्वी
निर्माणकर्ता:-महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय (जयपुर)
महाराजा मान सिंह प्रथम (वृंदावन, अकबर की सहायता से)
प्रसिद्ध त्यौहार:-जन्माष्टमी, होली

गोविंद देवजी मंदिर जयपुर का इतिहास

गोविंद देवजी के विग्रह/मूर्ति का पौराणिक आधार

गोविंद देवजी के विग्रह की दिव्यता की जड़ें हिंदू पौराणिक कथाओं में 5000 वर्ष पुरानी बताई जाती हैं। यह माना जाता है कि गोविंद देवजी की मूल मूर्ति स्वयं भगवान कृष्ण के प्रपौत्र, वज्रनाभ ने 13 वर्ष उम्र में बनाई थी। उनकी दादी ने कृष्ण के स्वरूप का वर्णन किया, जिसके आधार पर पहली मूर्ति (मदन मोहन जी) में केवल चरण, दूसरी (गोपी नाथ जी) में वक्षस्थल और तीसरी (गोविंद देव जी) में पूरा स्वरूप कृष्ण जैसा बना। इसे ‘बजरकृत’ कहा जाता है।

विग्रह का लुप्त होना और पुनर्खोज (16वीं शताब्दी)

लंबे समय तक, गोविंद देवजी का विग्रह कथित तौर पर दफन रहा, संभवतः इसे इस्लामी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए भूमिगत कर दिया गया था। 16वीं शताब्दी में, चैतन्य महाप्रभु के नेतृत्व में भक्ति आंदोलन के उत्कर्ष के दौरान, इस विग्रह की पुनर्खोज हुई थी। किंवदंती के अनुसार, चैतन्य महाप्रभु ने अपने प्रमुख शिष्य श्री रूपा गोस्वामी को वृंदावन में विग्रह को खोजने का निर्देश दिया था। लगभग 1525 ईस्वी में, रूपा गोस्वामी ने गोमा टीला नामक स्थान पर विग्रह को पुनः प्राप्त किया था। यह खोज एक गाय द्वारा एक निश्चित स्थान पर दूध बहाए जाने की रहस्यमय घटना से जुड़ी हुई है, जिसने विग्रह के दफन स्थान को उजागर किया था।

गौड़ीय वैष्णव में केंद्रीय स्थान

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गोविंद देवजी का विग्रह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिए असाधारण महत्व रखता है और इसे वृंदावन के ‘सप्त देवालयों’ (सात प्रमुख मंदिरों) में से एक माना जाता है। 16वीं शताब्दी में ये सप्त देवालय गौड़ीय भक्ति आंदोलन के बौद्धिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान के केंद्र थे। गोविंद देवजी की मूर्ति की पुनर्खोज और बाद में इसकी भव्य प्रतिष्ठा, वृंदावन में भक्ति के उस स्वर्ण युग का प्रतीक है जो राजपूत और मुगल संरक्षण के तहत फला-फूला था।

संरक्षण का स्वर्ण युग: मान सिंह प्रथम और सम्राट अकबर

गोविंद देवजी के लिए मूल भव्य मंदिर का निर्माण वृंदावन में किया गया था। इसका निर्माण आमेर के महाराजा मान सिंह प्रथम द्वारा 1570 ईस्वी के आसपास शुरू किया गया था। यह निर्माण कार्य लगभग 5 से 10 वर्षों में पूरा हुआ था। मुगल सम्राट अकबर ने इस भव्य संरचना के निर्माण के लिए लाल बलुआ पत्थर दान किया था। मंदिर के निर्माण में अकबर की भागीदारी का उल्लेख उस समय के शिलालेखों में भी मिलता है।

वास्तुकला की भव्यता और धार्मिक प्रतिष्ठा

वृंदावन में मूल मंदिर एक वास्तुकलात्मक चमत्कार था। यह एक विशाल सात मंजिला संरचना थी, जो अपने समय के सबसे बड़े मंदिरों में गिनी जाती थी। इसकी वास्तुकला में गोथिक शैली (तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली) का प्रभाव देखा जाता था, जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता था। इस मंदिर की प्रतिष्ठा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के महान संत जीव गोस्वामी द्वारा की गई थी। इसके अलावा, सम्राट अकबर ने इस मंदिर की सेवा और गायों के भरण-पोषण के लिए 135 एकड़ भूमि भी दान की थी।

1670 ई. का संकट और धार्मिक पलायन

17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की धार्मिक नीतियों में गंभीर बदलाव आया, जिसका चरमोत्कर्ष सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था। 1670 ईस्वी में, औरंगजेब जिसे धार्मिक कट्टरता के लिए जाना जाता था, ने वृंदावन के मंदिरों पर हमला करने का आदेश दिया था। इस हमले का लक्ष्य हिंदू धार्मिक स्थलों को नष्ट करना था।

मूल सात मंजिला मंदिर को भारी नुकसान पहुँचा, जिसके परिणामस्वरूप उसकी ऊपरी चार मंजिलें नष्ट हो गईं, जिससे मंदिर की भव्यता का एक बड़ा हिस्सा समाप्त हो गया था। इस विनाश से बचाने के लिए, गोविंद देवजी के विग्रह को गुप्त रूप से वृंदावन से हटा दिया गया था। यह पलायन एक बड़ी धार्मिक निकासी का हिस्सा था, जिसके तहत सप्त देवालयों के कई अन्य महत्वपूर्ण विग्रहों को भी सुरक्षित राजपूत क्षेत्रों में ले जाया गया था।

आमेर और जयपुर में स्थानांतरण

विग्रह को पहले आमेर घाटी ले जाया गया, जहाँ उसे कनक वृंदावन में महाराजा राम सिंह (या उनके वंशज) के संरक्षण में रखा गया था। वर्ष 1714 ईस्वी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, जयपुर शहर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने विग्रह को आमेर से जयपुर लाने का निर्णय लिया था। यह विग्रह को न केवल सुरक्षा प्रदान करने, बल्कि नए शहर जयपुर को एक मजबूत धार्मिक आधार प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण कदम था। विग्रह को सबसे पहले सिटी पैलेस परिसर के भीतर स्थित सूरज महल में स्थापित किया गया था। अंततः इसे 1890 ईस्वी में एक परवर्ती शासक राजा मान सिंह द्वारा वर्तमान गोविंद देवजी मंदिर में औपचारिक रूप से स्थानांतरित किया गया था।

सिटी पैलेस परिसर के भीतर अद्वितीय स्थान

यह मंदिर सिटी पैलेस परिसर (जय निवास उद्यान) के भीतर स्थित है। मंदिर को विशेष रूप से इस तरह से डिज़ाइन और संरेखित किया गया था कि महाराजा अपने व्यक्तिगत निवास स्थान, चंद्र महल से सीधे गोविंद देवजी के विग्रह के ‘प्रत्यक्ष दर्शन’ (दर्शन) कर सकें।

गोविंद देवजी मंदिर जयपुर की वास्तुकला और संरचना

यह मंदिर चंद्र महल और बादल महल के बीच सिटी पैलेस परिसर में स्थित है। इस मंदिर की शैली को ‘हवेली शैली’ के साथ-साथ हिंदू, मुस्लिम और पश्चिमी शैलियों के तत्वों का ‘सुंदर सह-अस्तित्व’ है। यह बलुआ पत्थर और संगमरमर से निर्मित है, जिसमें सोने की परत चढ़ी छतें, जटिल चांदी का कार्य और यूरोपीय शैली के झूमर प्रमुख हैं। मंदिर का आंतरिक भाग भव्य चित्रकारी, सुंदर झूमरों और महीन नक्काशी से अलंकृत है। मंदिर का डिजाइन राजसी निवास से जुड़ा होने के कारण सादगीपूर्ण लेकिन भव्य है, जो शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है।

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में गोविंद देवजी का विग्रह (मूर्ति) काले पत्थर का बना है, जबकि राधाजी का विग्रह धातु का है। देवताओं को प्रत्येक आरती में भिन्न वेशभूषा और आभूषण पहनाए जाते हैं, तथा भोजन चांदी के बर्तनों में चढ़ाया जाता है। मंदिर परिसर के भीतर एक विशाल सत्संग हॉल भी स्थित है, जो इसकी उपयोगिता और बढ़ते भक्त समुदाय को दर्शाता है। इस हॉल के निर्माण में आधुनिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया गया है, जिसकी नींव 12 मीटर गहरी है और निर्माण में 290 टन स्टील और 2000 घन मीटर कंक्रीट का उपयोग किया गया था।

गोविंद देवजी मंदिर जयपुर के गर्भगृह में स्थापित गोविंद देवजी का विग्रह (मूर्ति)
गोविंद देवजी मंदिर जयपुर के गर्भगृह में स्थापित गोविंद देवजी का विग्रह (मूर्ति)

मंदिर का सत्संग हॉल दुनिया की सबसे चौड़ी कंक्रीट की इमारत होने का गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड रखता है। यह छत स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग फर्म NM रूफ डिज़ाइनर्स (NMRD) लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन और निर्मित है। इस वास्तुशिल्प उपलब्धि को 2009 में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा मान्यता दी गई थी।

गोविंद देवजी मंदिर जयपुर के त्योहार

यह मंदिर जयपुर के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का केंद्र है। जन्माष्टमी (कृष्ण का जन्म), राधाष्टमी (राधा का जन्म), और होली जैसे प्रमुख हिंदू त्योहारों को यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इन समारोहों में बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक आकर्षित होते हैं, जो वैश्विक स्तर पर भक्ति और भारतीय परंपराओं के प्रति रुचि को दर्शाते हैं।

गोविंद देवजी मंदिर जयपुर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: गोविंद देवजी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर के सिटी पैलेस में स्थित है।

Govind Dev Ji Temple Jaipur Google Map Location:

मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: सांगानेर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा गोविंद देवजी मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन गोविंद देवजी मंदिर से लगभग 6 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर जयपुर बस स्टैंड से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। बस स्टैंड से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
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