जैसलमेर किला, जिसे ‘सोनार किला’ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के जैसलमेर शहर में एक जीवंत किला है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। इस किले के भीतर सात प्राचीन जैन मंदिरों का समूह स्थित है, जो श्वेतांबर जैन संप्रदाय को समर्पित हैं। ये मंदिर भगवान पार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, ऋषभदेव, शीतलनाथ, कुंथुनाथ, संभवनाथ, और शांतिनाथ जैसे तीर्थंकरों को समर्पित हैं। 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच निर्मित, ये मंदिर अपनी जटिल नक्काशी, पीले बलुआ पत्थर की वास्तुकला, और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर किले के जैन मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का भी प्रतीक हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करते हैं।
जैसलमेर किले के जैन मंदिर (Jaisalmer Fort Jain Temples)
मंदिर का नाम:- | जैसलमेर किले के जैन मंदिर (Jaisalmer Fort Jain Temples) |
स्थान:- | जैसलमेर किला, जैसलमेर, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान पार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, ऋषभदेव, शीतलनाथ, कुंथुनाथ, संभवनाथ, शांतिनाथ |
निर्माण वर्ष:- | 12वीं से 16वीं शताब्दी (प्रमुख मंदिर: चंद्रप्रभु मंदिर, 1509 ई.) |
जैसलमेर किले के जैन मंदिर का इतिहास
जैसलमेर दुर्ग, जिसे ‘सोनार किला’ या ‘स्वर्ण दुर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के जैसलमेर शहर में स्थित एक ऐतिहासिक किला है। इस विशाल किले की नींव 1156 ईस्वी में भाटी राजपूत शासक रावल जैसल द्वारा त्रिकूट पर्वत पर रखी गई थी। यह दुर्ग स्थानीय पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है।
जैसलमेर दुर्ग के भीतर सात जैन मंदिरों का एक समूह स्थित है, जिनमें विभिन्न जैन तीर्थंकरों भगवान ऋषभदेव, चंद्रप्रभु, पार्श्वनाथ, शीतलनाथ, संभवनाथ, कुंथुनाथ, और शांतिनाथ को समर्पित मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच निर्मित हुए, जो जैन धर्म के प्रचार और भट्टी शासकों के संरक्षण का परिणाम थे।
ये मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा केंद्र माने जाते हैं। जैसलमेर किले के जैन मंदिर इस प्रकार हैं:
मंदिर | समर्पित तीर्थंकर |
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चंद्रप्रभु मंदिर | भगवान चंद्रप्रभु (8वें जैन तीर्थंकर) |
पार्श्वनाथ मंदिर | भगवान पार्श्वनाथ (23वें जैन तीर्थंकर) |
ऋषभदेव मंदिर | भगवान ऋषभदेव (प्रथम जैन तीर्थंकर) |
शीतलनाथ मंदिर | भगवान शीतलनाथ (10वें जैन तीर्थंकर) |
संभवनाथ मंदिर | भगवान संभवनाथ (तीसरे जैन तीर्थंकर) |
कुंथुनाथ मंदिर | भगवान कुंथुनाथ (17वें जैन तीर्थंकर) |
शांतिनाथ मंदिर | भगवान शांतिनाथ (16वें जैन तीर्थंकर) |
जैसलमेर किले के जैन मंदिर की वास्तुकला और संरचना
जैसलमेर किले के भीतर स्थित जैन मंदिरों का समूह अपनी अनूठी वास्तुकला और जटिल नक्काशी के लिए जाना जाता है। यद्यपि इन सभी मंदिरों में सुनहरे पीले बलुआ पत्थर, दिलवाड़ा शैली का प्रभाव, और विस्तृत शिल्प कौशल जैसी सामान्य विशेषताएं हैं, प्रत्येक मंदिर की अपनी विशिष्ट संरचनात्मक और कलात्मक पहचान है।
ये मंदिर जटिल नक्काशीदार स्तंभों, गुंबददार छतों, मंडपों (सभा कक्षों), गर्भगृहों (मुख्य पवित्र स्थान) और जालीदार खिड़कियों (जालियाँ) से सुसज्जित हैं। नक्काशी में जैन पौराणिक कथाओं, दिव्य प्राणियों, पशुओं, पक्षियों और पुष्प रूपांकनों को दर्शाया गया है।
जैसलमेर किले के जैन मंदिर की वास्तुकला और संरचना मंदिर अनुसार इस प्रकार हैं:
- चंद्रप्रभु मंदिर (Chandraprabhu Temple): यह किला परिसर में प्रवेश करने पर दिखाई देने वाला पहला और सबसे प्रमुख जैन मंदिर है। यह मंदिर 8वें जैन तीर्थंकर चंद्रप्रभु को समर्पित है। चंद्रप्रभु मंदिर तीन मंजिला है। इसकी जटिल नक्काशी और विस्तृत संरचना रणकपुर के मंदिरों से कुछ समानताएं साझा करती है। कुछ स्रोतों का मानना है कि यह 15वीं शताब्दी में एक हिंदू मंदिर से परिवर्तित किया गया था, जो इसकी वास्तुकला में हिंदू और जैन तत्वों के मिश्रण को दर्शाता है। मंदिर में एक पुस्तकालय भी है, जिसमें प्राचीन जैन ग्रंथ और हस्तलिपियाँ संग्रहीत हैं।
- ऋषभदेव मंदिर (Rishabhdev Temple): यह चंद्रप्रभु मंदिर के पास ही स्थित है। यह प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को समर्पित है। यह भी अपनी अत्यंत जटिल और विस्तृत नक्काशी के लिए जाना जाता है। इसकी एक विशेषता यह है कि मुख्य सभामंडप के स्तंभों पर हिंदू देवी-देवताओं का रूपांकन है, जैसे राधाकृष्ण, वंशी वादन करते हुए कृष्ण, गणेश, शिव-पार्वती, सरस्वती, इंद्र और विष्णु। यह हिंदू और जैन कला शैलियों के मिश्रण का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- पार्श्वनाथ मंदिर (Parshvanath Temple): यह जैसलमेर किले के भीतर जैन मंदिरों के समूह में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है। इसमें चिंतामणि पार्श्वनाथ की 105 सेंटीमीटर ऊंची, सफेद रंग की, पद्मासन मुद्रा में स्थापित सुंदर प्रतिमा है। माना जाता है कि यह प्रतिमा ऐतिहासिक रूप से लोद्रवा से लाई गई थी। यह मंदिर अपनी भव्यता और इसमें निहित मूर्तियों की विशाल संख्या (लगभग 1253 मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ) के लिए प्रसिद्ध है। दीवारों, स्तंभों और गुंबददार छतों पर की गई नक्काशी अत्यंत सूक्ष्म और विस्तृत है, जिसमें दिव्य नर्तकों, संगीतकारों, जानवरों, पक्षियों और जटिल पुष्प रूपांकनों को दर्शाया गया है।
- शीतलनाथ मंदिर (Shitalnath Temple): यह चंद्रप्रभु मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। यह 10वें जैन तीर्थंकर शीतलनाथ को समर्पित है। इस मंदिर की मुख्य विशेषता इसकी अष्टधातु (आठ कीमती धातुओं के मिश्रण) से बनी तीर्थंकर शीतलनाथ की मूर्ति है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग करती है। इसकी वास्तुकला भी किले के अन्य जैन मंदिरों की सामान्य शैली का अनुसरण करती है, जिसमें सुंदर नक्काशी और शांतिपूर्ण वातावरण शामिल है।
- शांतिनाथ और कुंथुनाथ मंदिर (Shantinath and Kunthunath Temples): ये मंदिर अक्सर एक ही परिसर में या एक-दूसरे के निकट स्थित हैं, जो उनकी वास्तुकला में भी कुछ समानताएं दर्शाते हैं। शांतिनाथ मंदिर 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ को और कुंथुनाथ मंदिर 17वें तीर्थंकर कुंथुनाथ को समर्पित है। कुंथुनाथ मंदिर को हस्तिनापुर के प्रसिद्ध जैन मंदिर की प्रतिकृति माना जाता है। ये मंदिर भी अपनी सूक्ष्म नक्काशी, विस्तृत डिजाइनों और कलात्मक अलंकरणों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो किले के अन्य जैन मंदिरों की उच्च कलात्मक गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
- संभवनाथ मंदिर (Sambhavnath Temple): यह पार्श्वनाथ मंदिर के पास स्थित है। यह तीसरे जैन तीर्थंकर संभवनाथ को समर्पित है। इस मंदिर में 604 से अधिक मूर्तियां हैं, जो इसकी भव्यता में इजाफा करती हैं। इसकी एक अनूठी विशेषता इसके तहखाने में स्थित ज्ञान भंडार है। यह जैन धर्म से संबंधित दुर्लभ पांडुलिपियों, ग्रंथों और प्राचीन दस्तावेजों का एक विशाल संग्रह है, जिनमें से कुछ ताड़ के पत्तों पर लिखे हुए हैं। यह ज्ञान भंडार मंदिर को केवल एक पूजा स्थल से कहीं अधिक, एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र भी बनाता है।
जैसलमेर किले के जैन मंदिर अपनी वास्तुकला, संरचना, और ऐतिहासिक महत्व के लिए एक अद्भुत उदाहरण हैं। इन मंदिरों की जटिल नक्काशी, पीले बलुआ पत्थर का उपयोग, और प्राचीन ग्रंथों का संरक्षण उन्हें राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। ये मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि वास्तुकला और इतिहास के प्रेमियों के लिए भी एक आकर्षण हैं।
जैसलमेर किले के जैन मंदिर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: ये मंदिर राजस्थान के जैसलमेर शहर के जैसलमेर किले के अंदर स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग जैसलमेर किले तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है। जैसलमेर शहर के केंद्र में स्थित किला पैदल या ऑटो-रिक्शा से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: रेल मार्ग से जैसलमेर किले तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जैसलमेर रेलवे स्टेशन है, जो किले से लगभग 2 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से ऑटो-रिक्शा या टैक्सी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से जैसलमेर किले तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो किले से लगभग 285 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।