चित्तौड़गढ़ किला, जो न केवल राजपूत शौर्य का प्रतीक है, बल्कि कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का भी घर है। इनमें से एक है कालिका माता मंदिर, जो माता काली को समर्पित एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। मंदिर चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है। यह मंदिर मेवाड़ के राजपूत शासकों की कुलदेवी का स्थान है। यह मंदिर 8वीं या 9वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजवंश के द्वारा सूर्य मंदिर के रूप में बनाया गया था, बाद में 14वीं शताब्दी में इसे कालिका माता मंदिर में परिवर्तित किया गया था।
कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ (Kalika Mata Temple Chittorgarh)
मंदिर का नाम:- | कालिका माता मंदिर (Kalika Mata Temple) |
स्थान:- | चित्तौड़गढ़ किला, चित्तौड़गढ़, राजस्थान |
समर्पित देवी:- | माता काली (मेवाड़ की कुलदेवी) |
निर्माण वर्ष:- | 8वीं शताब्दी (सूर्य मंदिर के रूप में) 14वीं शताब्दी में कालिका माता मंदिर बना |
मुख्य आकर्षण:- | ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता ,प्राचीन वास्तुकला |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | नवरात्रि, दुर्गा अष्टमी |
कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ का इतिहास
कालिका माता मंदिर का इतिहास 8वीं शताब्दी तक जाता है, जब इसे मूल रूप से सूर्य मंदिर के रूप में बनाया गया था। 14वीं शताब्दी में, मेवाड़ के शासकों ने इस मंदिर को माता काली को समर्पित कर दिया, जो उनकी कुलदेवी बन गईं। ऐसा माना जाता है कि राणा कुंभा ने इस परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
चित्तौड़गढ़ किला कई ऐतिहासिक युद्धों और बलिदानों का साक्षी रहा है, जिनमें अलाउद्दीन खिलजी (1303), बहादुर शाह (1535), और अकबर (1567) के आक्रमण शामिल हैं। इन युद्धों के दौरान मंदिर को भी नुकसान पहुँचा, लेकिन मेवाड़ के शासकों ने इसे बार-बार पुनर्स्थापित किया। मंदिर की यह स्थिरता इसे चित्तौड़ की वीरता और आस्था का प्रतीक बनाती है।
कालिका माता मंदिर का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किया जाता है, जो इसकी प्राचीन संरचना को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत है। 2020 में चित्तौर भक्ति सेवा ट्रस्ट (Chittor Bhakti Seva Trust) की स्थापना हुई, जिसके अध्यक्ष यशपाल सिंह शक्तावत हैं। यह मंदिर हजारों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है
कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ वास्तुकला और संरचना
कालिका माता मंदिर मूल रूप से सूर्य मंदिर के रूप में निर्मित, इसकी संरचना में गर्भगृह, मंडप, और प्रवेश द्वार शामिल हैं। गर्भगृह में माता काली की भव्य मूर्ति स्थापित है। मंदिर एक ऊँचे चबूतरे (जगती) पर बना है। मंदिर का शिखर (गुंबद) सादा और कम ऊँचाई वाला है, जो प्रारंभिक मध्यकालीन मंदिरों की शैली को दर्शाता है। मंदिर की दीवारों और खंभों पर बारीक नक्काशी देखने लायक है।

ये नक्काशियाँ सूर्य देव, अन्य देवी-देवताओं, और पौराणिक दृश्यों को दर्शाती हैं, जो मंदिर के मूल उद्देश्य को संकेत करती हैं। मंडप के खंभों पर उत्कीर्ण चित्रों में अप्सराएँ, युद्ध के दृश्य, और धार्मिक प्रतीक शामिल हैं। हालांकि मंदिर को कई बार पुनर्स्थापित किया गया, इसकी प्राचीन संरचना आज भी अपनी भव्यता को बरकरार रखे हुए है। माता काली की मूर्ति, जो गर्भगृह में स्थापित है, विशेष रूप से प्रभावशाली है।
कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: कालिका माता मंदिर, चित्तौड़गढ़ किले के अंदर स्थित है। और यह मंदिर किले के अंदर पाद्मिनी महल और विजय स्तंभ के बीच स्थित है। कालका माता मंदिर तक पहुँचने के लिए पहले चित्तौड़गढ़ शहर, फिर दुर्ग, और अंत में दुर्ग के दक्षिणी हिस्से तक का सफर तय करना होता है।
निम्न प्रकार से यहां पहुंचा जा सकता हैं –
- रेल मार्ग: चित्तौड़गढ़ जंक्शन (Chittorgarh Junction) एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है, जो किले से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। यहाँ से ऑटो-रिक्शा या टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती है।
- सड़क मार्ग: चित्तौड़गढ़ सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और राष्ट्रीय राजमार्ग NH 48 और NH 76 से होकर गुजरता है। आप बस या निजी वाहन से पहुँच सकते हैं। चित्तौड़गढ़ पहुँचने के बाद, किले तक स्थानीय परिवहन से पहुँचा जा सकता है।
- हवाई मार्ग: उदयपुर में स्थित महाराणा प्रताप हवाई अड्डा (Maharana Pratap Airport) चित्तौड़गढ़ से लगभग 92 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से चित्तौड़गढ़ तक पहुँचने के लिए आप टैक्सी या बस से पहुंच सकते हो।