कल्कि मंदिर जयपुर राजस्थान के जयपुर शहर के हवा महल के पास सिरेह देवरी बाजार में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार भगवान कल्कि को समर्पित है। इस मंदिर को 18वीं शताब्दी में महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था।
कल्कि मंदिर जयपुर (Kalki Temple Jaipur)
| मंदिर का नाम:- | कल्कि मंदिर (Kalki Temple) |
| स्थान:- | जयपुर, राजस्थान (हवा महल के पास सिरेह देवरी बाजार में) |
| समर्पित देवता:- | भगवान कल्कि (विष्णु के दसवें अवतार) |
| निर्माण वर्ष:- | 18वीं शताब्दी |
| निर्माणकर्ता:- | महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय (जयपुर के संस्थापक) |
कल्कि मंदिर जयपुर का इतिहास
कल्कि मंदिर का निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को एक महान शासक, खगोलशास्त्री और वास्तु विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने जयपुर को वास्तुशास्त्र और ज्योतिषीय सिद्धांतों के आधार पर एक सुनियोजित कॉस्मोलॉजिकल शहर के रूप में स्थापित किया था।
कल्कि मंदिर के निर्माण की निश्चित तिथि को लेकर ऐतिहासिक स्रोतों में कुछ विरोधाभास मौजूद है। कुछ संदर्भ दावा करते हैं कि निर्माण 1727 ईस्वी में शुरू हुआ था, जो जयपुर शहर की नींव रखने की तिथि के लगभग समकालीन है। जबकि अन्य स्रोत 1739 ईस्वी का उल्लेख करते हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्रोत यह भी दावा करता है कि इसे बनने में लगभग 30 साल लगे थे।
कवि श्री कृष्ण भट्ट ‘कलानिधि’, जो जयसिंह के दरबार में एक कुलीन व्यक्ति थे, वह अपनी पुस्तक में उद्धृत करते हैं कि जयसिंह द्वितीय ने अपने पौत्र श्री कलिक जी की स्मृति में भगवान कल्कि का मंदिर बनवाया था, जिनकी मृत्यु बचपन में हो गई थी।
कल्कि मंदिर की धर्मशास्त्रीय विशिष्टता का केंद्र बिंदु गर्भगृह के बाहर मंदिर प्रांगण में स्थापित एक संगमरमर की घोड़े की मूर्ति है। यह घोड़ा, जिसे देवव्रत या देवदत्त के नाम से जाना जाता है, कल्कि अवतार का वाहन माना जाता है। इस मूर्ति से जुड़ी सबसे दिलचस्प और गहन मान्यता यह है कि घोड़े के बाएँ पैर में एक निशान या घाव है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह घाव धीरे-धीरे भर रहा है। जिस दिन यह घाव पूरी तरह से भर जाएगा, उसी दिन भगवान कल्कि पृथ्वी पर अवतरित होंगे।

कल्कि मंदिर जयपुर की वास्तुकला और संरचना
कल्कि मंदिर पारंपरिक राजस्थानी शैली और जटिल कलात्मकता का एक सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करती है। मंदिर का निर्माण दक्षिणायान शिखर शैली (बुर्जनुमा दक्षिणी यान शैली) के आधार पर करवाया गया था। निर्माण में मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग किया गया है। संरचनात्मक रूप से मंदिर लगभग एक मंजिला है और मजबूत नींव पर निर्मित है।
इसका प्रवेश द्वार, जिसे सिंहद्वार कहा जाता है, ज़मीन से कुछ सीढ़ियाँ ऊपर है और बड़े पत्थरों से बना है। सिंहद्वार के बाद मंडप आता है, जो भक्तों के बैठने का हॉल है और एक विशाल शिखर (गुंबद) से ढका हुआ है। मुख्य गर्भगृह में भगवान कल्कि और देवी लक्ष्मी (जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं) की प्रतिमा स्थापित हैं। और गर्भगृह के ऊपर एक विशाल शिखर बना हुआ है।

मुख्य गर्भगृह का प्रवेश द्वार संगमरमर से बना हुआ है, जिस पर भगवान विष्णु के नौ पूर्व अवतारों की नक्काशी की गई है। इसके अतिरिक्त गर्भगृह की दीवार पर भगवान ब्रह्मा (दाहिनी ओर) और शिव-पार्वती (बाईं ओर, जो नंदी पर सवार है) की संगमरमर की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
मंदिर प्रांगण में एक अहाते में संगमरमर की घोड़े की मूर्ति स्थापित है, जिसे भगवान कल्की का वाहन माना जाता है।
कल्कि मंदिर जयपुर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: कल्कि मंदिर जयपुर राजस्थान के जयपुर शहर के हवा महल के पास सिरेह देवरी बाजार में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: सांगानेर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर जयपुर बस स्टैंड से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। बस स्टैंड से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
