मल्लिकार्जुन मंदिर, भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह आंध्र प्रदेश के नंद्याल जिले में श्रीशैलम की नल्लामल्ला पहाड़ियों में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव (मल्लिकार्जुन) और माता पार्वती (भ्रामराम्बा) को समर्पित है, और इसे एकमात्र ऐसा तीर्थ स्थल माना जाता है जो ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों का प्रतीक है। श्रीशैलम को “दक्षिण का कैलाश” कहा जाता है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम आंध्र प्रदेश (Mallikarjuna Temple Srisailam Andhra Pradesh)
मंदिर का नाम:- | मल्लिकार्जुन मंदिर (Mallikarjuna Temple) |
स्थान:- | श्रीशैलम, जिला – नंद्याल, आंध्र प्रदेश |
समर्पित देवता:- | भगवान शिव (मल्लिकार्जुन) और माता पार्वती (भ्रामराम्बा) |
निर्माण वर्ष:- | प्राचीन, दूसरी शताब्दी से सातवाहन काल से संबंधित, बाद में पुनर्निर्माण |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महाशिवरात्रि, श्रावण मास, कार्तिक पूर्णिमा |
प्रबंधन:- | श्रीशैलम देवस्थानम ट्रस्ट |
मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम आंध्र प्रदेश का इतिहास
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास सदियों पुराना यानी प्राचीन है, जिसकी जड़ें पौराणिक काल से लेकर आधुनिक युग तक फैली हुई हैं।
पौराणिक जड़ें और नामकरण
मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं और स्थानीय लोककथाओं में गहराई से निहित है, जो इसके नामकरण और पवित्रता को परिभाषित करते हैं।
कार्तिकेय से जुड़ी पौराणिक कथा
मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा शिव-पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय से संबंधित है। जब गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी विवाह योग्य हुए तो भगवान शिव जी और देवी पार्वती ने सोचा कि अब इन दोनों पुत्रों का विवाह करा देना चाहिए। इसके बाद उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया। लेकिन भगवान शिव और माता देवी पार्वती यह तय नहीं कर पा रहे थे कि दोनों पुत्रों में से किसका विवाह पहले होना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी के बीच एक प्रतियोगिता रखी।
प्रतियोगिता यह थी, की दोनों में से जो भी दुनिया का एक चक्कर लगाकर पहले वापस लौटेगा उसका विवाह पहले किया जाएगा। अपने माता-पिता की बात सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर संसार का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। दूसरी तरफ गणेश जी भी अपने वाहन चुहे पर सवार होकर अपने माता-पिता (शिव-पार्वती) का चक्कर लगाने लगे। जब गणेश जी से पूछा गया कि आप संसार का चक्कर लगाने क्यों नही गए, तो उन्होंने कहा कि मेरे लिए तो आप दोनों ही पूरा संसार हैं। और ऐसा कहा भी जाता है कि माता-पिता की परिक्रमा करना पूरी दुनिया की परिक्रमा करने के बराबर है। गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके ही संसार की परिक्रमा का फल प्राप्त कर लिया।
गणेश जी की ये बात सुनकर माता पार्वती और भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह ऋद्धि और सिद्धि से करा दिया। जब कार्तिकेय के वापस लौटने पर गणेश जी के विवाह के बारे में पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हुए और कैलाश पर्वत छोड़ कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। ये क्रौंच पर्वत दक्षिण भारत में नंद्याल जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है, इसे श्रीशैल और श्रीपर्वत भी कहा जाता है।
पुत्र के वियोग में भगवान शिव और देवी पार्वती भी उनका पीछा करते हुए श्रीशैलम पहुँचे। पुत्र के दर्शन की लालसा में भगवान शिव ने वहीं ज्योति रूप धारण कर लिया और ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, जिन्हें मल्लिकार्जुन के नाम से जाना गया। यह कथा शिव और पार्वती के पारिवारिक प्रेम और करुणा का प्रतीक मानी जाती है, जो इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव का एक महत्वपूर्ण कारण है।
अन्य स्थानीय किंवदंतियाँ
मल्लिकार्जुन मंदिर की कई अन्य स्थानीय किंवदंतियों से भी होती है, जो इसकी प्राचीनता और स्थानीय संस्कृति से जुड़ाव को दर्शाती हैं:
- चंद्रवती की कथा: एक राजकुमारी चंद्रवती अपने पिता से भागकर श्रीशैलम पहाड़ी पर रहने लगी। उसने एक बार देखा कि एक गाय एक छोटे शिवलिंग पर अपना दूध चढ़ा रही थी। शिव ने उसे सपने में मंदिर बनाने का निर्देश दिया। राजकुमारी ने चमेली के फूलों (स्थानीय रूप से ‘मल्ले’ के नाम से जाना जाता है) से उस लिंग की पूजा की, जिससे मंदिर का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा।
- चेंचु जनजाति का संबंध: एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव श्रीशैलम पहाड़ियों पर शिकार करने आए और एक चेंचु लड़की से प्रेम कर बैठे, जिससे उन्होंने विवाह किया। चेंचु जनजाति के लोग उन्हें “चेंचु मल्लय्या” कहकर पुकारते हैं और उनका सम्मान करते हैं। मंदिर के प्राकार (परिसर की दीवार) पर एक बेस-रिलीफ भी है जिसमें शिव को एक चेंचु लड़की के साथ दिखाया गया है, जो इस स्थानीय जुड़ाव को प्रमाणित करता है।
- वृद्ध मल्लिकार्जुन शिवलिंग: मुख्य मंदिर के उत्तरी भाग में वृद्ध मल्लिकार्जुन या मुदि मल्लिकार्जुन को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह शिवलिंग एक लकड़ी के जीवाश्म जैसा दिखता है और इसे लगभग 50,000 साल पुराना माना जाता है, संभवतः यह अर्जुन वृक्ष का जीवाश्म है। यह मंदिर की अत्यधिक प्राचीनता का एक संभावित प्रमाण प्रस्तुत करता है।
ऐतिहासिक विकास और राजवंशों का योगदान
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है, जो विभिन्न राजवंशों के संरक्षण और योगदान से समृद्ध हुआ है। इस मंदिर के अस्तित्व के प्रमाण दूसरी शताब्दी ईस्वी से मिलते हैं।
मंदिर के इतिहास के सबसे प्रारंभिक प्रमाण सातवाहन राजवंश के शिलालेखों में मिलते हैं, जो उन्हें दक्षिण भारत के पहले साम्राज्य निर्माताओं में से एक के रूप में दर्शाते हैं। राजा वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी के दूसरी शताब्दी ईस्वी के नासिक शिलालेख में श्रीशैलम पहाड़ी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इसके बाद, कई अन्य प्रमुख राजवंशों ने मंदिर के विकास और वास्तुकला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें पल्लव, चालुक्य, काकतीय, और रेड्डी राजा शामिल हैं। 17वीं शताब्दी में मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी मंदिर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
विभिन्न ऐतिहासिक उथल-पुथल के दौर में भी मंदिर का अस्तित्व बना रहा। मुगल काल के दौरान, कुछ समय के लिए यहाँ पूजा बंद कर दी गई थी। हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान इसे फिर से शुरू किया गया।
मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम आंध्र प्रदेश की वास्तुकला और संरचना
श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन मंदिर, आंध्र प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो अपनी भव्य वास्तुकला और जटिल संरचना के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें विभिन्न राजवंशों के योगदान का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
सामान्य संरचना और लेआउट:
- मंदिर एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो लगभग 28 फीट ऊंची और 600 फीट लंबी दीवारों से घिरा हुआ है। ये दीवारें, जिन्हें ‘परकोटा’ या ‘महा-प्राचीर’ कहा जाता है, विजयनगर साम्राज्य के शासक हरिहर द्वितीय द्वारा निर्मित मानी जाती हैं।
- मुख्य परिसर में दो प्रमुख मंदिर हैं: श्री मल्लिकार्जुन स्वामी (शिव) और माता भ्रामराम्बा देवी (शक्ति पीठ)।
- इन मुख्य मंदिरों के अलावा, परिसर में वृद्ध मल्लिकार्जुन, सहस्त्र लिंगेश्वर, अर्ध नारीश्वर, वीरमद, उमा महेश्वर जैसे कई छोटे मंदिर भी स्थित हैं।
वास्तुकला शैली:
- मंदिर की समग्र वास्तुकला द्रविड़ शैली में है, जिसकी विशेषता इसके ऊंचे गोपुरम (प्रवेश द्वार), विशाल मंडपम (स्तंभों वाले हॉल) और विस्तृत नक्काशीदार स्तंभ हैं।
- मंदिर के शुरुआती निर्माण में चालुक्य वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है, विशेषकर गर्भगृह और विमान की संरचना में। विमान (मुख्य गर्भगृह के ऊपर का मीनार) का पिरामिडनुमा आकार, जो सीढ़ियों जैसा दिखता है, पश्चिमी चालुक्य, कल्याणी चालुक्य और काकतीय काल की वास्तुकला में लोकप्रिय था।
- विजयनगर साम्राज्य के शासकों का मंदिर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिससे उनकी विशिष्ट वास्तुकला शैली की छाप मिलती है। सम्राट हरिहर राय ने मुख्य मंडपम और दक्षिणी गोपुरम का निर्माण करवाया था। कृष्णदेव राय ने सालू मंडपम और राजगोपुरम (मुख्य गोपुरम) का निर्माण करवाया, जिससे मंदिर की भव्यता और बढ़ गई। इन संरचनाओं में विजयनगर शैली की विशेषता, जैसे विस्तृत स्तंभों पर पौराणिक आकृतियों की नक्काशी, देखी जा सकती है।
- 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी ने मंदिर के उत्तरी गोपुरम का निर्माण करवाया था, जो मराठा वास्तुकला की कुछ विशेषताओं को दर्शाता है।
प्रमुख संरचनात्मक घटक:
- मंदिर में कई विशाल गोपुरम हैं, जिनमें से दक्षिणी और उत्तरी गोपुरम सबसे प्रमुख हैं। ये गोपुरम बहुमंजिला संरचनाएं हैं जिनमें जटिल मूर्तियों और नक्काशी से सजावट की गई है।
- मंडपम (स्तंभों वाले हॉल):
- मुख मंडपम: यह मल्लिकार्जुन मंदिर के सामने स्थित मुख्य हॉल है, जिसका निर्माण विजयनगर काल में हुआ था। इसके स्तंभों पर सुंदर नक्काशी की गई है।
- सालु मंडपम: कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित, ये मंडपम मंदिर परिसर की भव्यता में चार चांद लगाते हैं।
- वीरशिवा मंडपम: इस हॉल के 200 स्तंभों पर वीरशिवा देवताओं और पौराणिक आकृतियों की नक्काशी है।
- गर्भगृह: मल्लिकार्जुन मंदिर के गर्भगृह में मुख्य शिवलिंग स्थापित है, जिसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। पास में भ्रामराम्बा का अलग मंदिर है, जो इसे ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों बनाता है।
- स्तंभ (पिलर): मंदिर परिसर में हजारों स्तंभ हैं, जिनमें से प्रत्येक पर बारीक नक्काशी की गई है, जो विभिन्न देवताओं, पौराणिक दृश्यों और पशु-पक्षियों को दर्शाती है। कुछ स्तंभों को ‘नागराज’ के रूप में तराशा गया है।
- प्राचीर (दीवारें): परिसर की बाहरी दीवारें (परकोटा) मंदिर को सुरक्षा प्रदान करती हैं और उन पर भी कुछ नक्काशी और शिलालेख देखे जा सकते हैं।
- कुंड और झरने: मंदिर परिसर के भीतर और आसपास कई पवित्र कुंड और झरने हैं, जिनमें पातालगंगा प्रमुख है, जहाँ भक्त पवित्र स्नान करते हैं। 14वीं शताब्दी में प्रोलाया वेमा रेड्डी ने पातालगंगा से मंदिर तक सीढ़ीदार मार्ग का निर्माण करवाया था।
मूर्तिकला और नक्काशी:
- मंदिर की दीवारें, गोपुरम और स्तंभों पर असंख्य मूर्तियां और नक्काशी की गई है। इनमें शिव लीलाएं, दशावतार, देवी-देवताओं की आकृतियाँ, यक्ष, किन्नर, गंधर्व और विभिन्न पशु-पक्षी शामिल हैं।
- मंदिर में विशेष रूप से “अष्टदश शक्ति पीठों” की मूर्तियां और अन्य शैव परंपराओं से संबंधित कलाकृतियां भी मिलती हैं।
मल्लिकार्जुन मंदिर धार्मिक महत्व: ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ का संगम
मल्लिकार्जुन मंदिर का धार्मिक महत्व इसकी दोहरी पहचान में निहित है: यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और साथ ही देवी सती के 18 महाशक्तिपीठों में से भी एक है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 सबसे पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा ज्योतिर्लिंग है।
यह माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव और देवी पार्वती का स्थायी निवास स्थान है, जो इस स्थान की दिव्यता को और बढ़ाता है। महाभारत में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, जहाँ वर्णित है कि श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है।
मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम आंध्र प्रदेश तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: मल्लिकार्जुन मंदिर आंध्र प्रदेश के नंद्याल जिले में श्रीशैलम की नल्लामल्ला पहाड़ियों में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है।
मल्लिकार्जुन मंदिर, श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश तक पहुंचने के विकल्प
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुंचने के लिए, निकटतम हवाई अड्डा कुरनूल हवाई अड्डा है, जो श्रीशैलम से लगभग 187 किलोमीटर दूर है। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा हैदराबाद है, जो लगभग 210 किलोमीटर दूर है। दोनो हवाई अड्डों से टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से श्रीशैलम पहुंच सकते हो।
- रेल मार्ग: रेल मार्ग से मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुंचने के लिए, सीधी ट्रेन सेवा उपलब्ध नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कापुर रोड रेलवे स्टेशन (85 किलोमीटर) और कुंबुम रेलवे स्टेशन (60 किलोमीटर) हैं, जो भारतीय रेलवे के दक्षिण मध्य रेलवे नेटवर्क का हिस्सा हैं। इन स्टेशनों से, आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन के माध्यम से श्रीशैलम तक पहुंच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: श्रीशैलम सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, और यह राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के नेटवर्क का हिस्सा है। हैदराबाद, विजयवाड़ा, तिरुपति, और कुरनूल जैसे शहरों से नियमित सार्वजनिक और निजी बसें श्रीशैलम के लिए चलती हैं। आप टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन से भी श्रीशैलम पहुंच सकते हो।