मिरपुर जैन मंदिर, सिरोही, राजस्थान में स्थित एक प्राचीन और पवित्र जैन तीर्थ है, जो जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। सिरोही जिले के मिरपुर गाँव में बसा यह मंदिर राजस्थान के सबसे पुराने संगमरमर मंदिरों में से एक है। मिरपुर जैन मंदिर सिरोही के स्थानीय समुदाय और जैन तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
मिरपुर जैन मंदिर सिरोही (Mirpur Jain Temple Sirohi)
मंदिर का नाम:- | मिरपुर जैन मंदिर (Mirpur Jain Temple) |
स्थान:- | मिरपुर गाँव, सिरोही जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान पार्श्वनाथ (23वें तीर्थंकर) |
निर्माण वर्ष:- | 9वीं शताब्दी |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महावीर जयंती, पार्श्वनाथ जयंती |
मिरपुर जैन मंदिर सिरोही का इतिहास
मिरपुर जैन मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में में राजपूतों के शासनकाल के दौरान किया गया था। 13वीं शताब्दी में, मंदिर को गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा द्वारा नष्ट कर दिया गया था, जो उस समय के धार्मिक और राजनीतिक संघर्षों का हिस्सा था। हालांकि, 15वीं शताब्दी में जैन समुदाय और स्थानीय शासकों के प्रयासों से इसका पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के स्तंभों पर अंकित शिलालेख विक्रम संवत 1550 और 1556 में जीर्णोद्धार का प्रमाण देते हैं।
मंदिर में 1162 ईस्वी से लेकर 19वीं शताब्दी तक के शिलालेख हैं, जो हमीरगढ़ (मिरपुर का प्राचीन नाम) के इतिहास और मंदिर की प्राचीनता को दर्शाते हैं। इनमें से सात शिलालेख 12वीं से 15वीं शताब्दी के हैं, जो मंदिर के जीर्णोद्धार और स्थानीय शासकों के योगदान को दस्तावेज करते हैं। ये शिलालेख मिरपुर और सिरोही के ऐतिहासिक विकास को समझने में महत्वपूर्ण हैं।
1904 में, सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी, सिरोही ने नंदिया शासकों से मंदिर के आसपास की भूमि खरीदी और तब से इसका प्रबंधन कर रही है। आज यह मंदिर जैन तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख केंद्र है। मीरपुर जैन मंदिर राजस्थान के सबसे पुराने संगमरमर मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की प्राचीन कला ने बाद के दिलवाड़ा और रणकपुर मंदिरों के लिए एक मॉडल के रूप में काम किया था।
मिरपुर जैन मंदिर सिरोही की वास्तुकला और संरचना
मिरपुर जैन मंदिर सिरोही, राजस्थान में एक प्राचीन जैन तीर्थ है, जो अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह 9वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और भगवान पार्श्वनाथ, जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर को समर्पित है। इसे राजस्थान के सबसे पुराने और शानदार संगमरमर के स्मारकों में से एक माना जाता है।
मंदिर का मुख्य भाग एक ऊँचे आधार (पट) पर बना है, जिस पर नक्काशीदार स्तंभ और परिक्रमा पथ हैं। ये स्तंभ भारतीय पौराणिक कथाओं, जैसे यक्ष-यक्षिणियाँ और जैन प्रतीक, को दर्शाते हैं। छत पर बारीक नक्काशी वाले गुंबद और अद्वितीय मोटिफ्स हैं, जो अन्य जैन मंदिरों में कम देखे जाते हैं। मंदिर की दीवारों और मेहराबों पर फूल, पत्तियाँ, और जैन प्रतीकों की बारीक कारीगरी है, जो इसे सुंदर बनाती है।
मंदिर परिसर में भगवान पार्श्वनाथ का मुख्य मंदिर है, जिसके गर्भगृह में भगवान पार्श्वनाथ की लगभग 90 सेंटीमीटर ऊँची प्राचीन संगमरमर की मूर्ति स्थापित है, जिसे भगवान भीडभंजन पार्श्वनाथजी के नाम से जाना जाता है। मंदिर परिसर में अन्य तीर्थंकरों, जैसे सुपार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, और शांतिनाथ को समर्पित छोटे मंदिर भी हैं।
मंदिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 1 एकड़ है, जिसमे धर्मशाला और भोजनशाला भी शामिल है। मंदिर अरावली पहाड़ियों के बीच बसा है, और इसके आसपास हरे-भरे बगीचे और शांत वातावरण हैं, जो ध्यान और प्रार्थना के लिए आदर्श हैं।
मिरपुर जैन मंदिर सिरोही तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: मिरपुर जैन मंदिर, सिरोही, राजस्थान के मिरपुर गाँव में स्थित एक प्राचीन श्वेतांबर जैन तीर्थ है।
मिरपुर जैन मंदिर, सिरोही तक पहुंचने के तरीके इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: मंदिर सिरोही शहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर माउंट आबू से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन पिंडवारा (सिरोही रोड) है, जो मंदिर से लगभग 46 किलोमीटर दूर है। वैकल्पिक रूप से, आबू रोड (लगभग 50 किलोमीटर) भी उपयोग किया जा सकता है। रेलवे स्टैशन से मंदिर तक टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से पहुंच सकते हो।
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, जो मंदिर से लगभग 146 किलोमीटर दूर है। उदयपुर से सिरोही तक टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से पहुंच सकते है। सिरोही से मंदिर तक टेक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से पहुंच सकते है।