मुच्छल महावीर मंदिर, राजस्थान के पाली जिले के घाणेराव गांव में स्थित एक प्राचीन जैन तीर्थ स्थल है, जो भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर को समर्पित है। यह मंदिर अपनी विशेषता के लिए विश्वविख्यात है – यहाँ स्थापित भगवान महावीर की मूर्ति मूंछों और दाढ़ी से सुशोभित है, जो भारत में एकमात्र ऐसी मूर्ति है।
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और अरावली पहाड़ियों की गोद में बसा यह मंदिर सूकी नदी के किनारे अपनी शांति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी जाना जाता है। यह तीर्थ न केवल जैन भक्तों, बल्कि इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों, और प्रकृति उत्साहियों के लिए भी एक आकर्षक धार्मिक स्थल है।
मुच्छल महावीर मंदिर पाली (Muchchal Mahavir Temple Pali)
मंदिर का नाम:- | मुच्छल महावीर मंदिर (Muchchal Mahavir Temple) |
स्थान:- | घाणेराव, पाली जिला, राजस्थान (कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पास, सूकी नदी के किनारे) |
समर्पित देवता:- | भगवान महावीर (24वें जैन तीर्थंकर) |
निर्माण वर्ष:- | 10वीं-11वीं सदी |
मुख्य आकर्षण:- | भगवान महावीर की मूंछों वाली दुर्लभ मूर्ति |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महावीर जयंती, पर्युषण |
मुच्छल महावीर मंदिर पाली का इतिहास
मुच्छल महावीर मंदिर, पाली जिले के घाणेराव गांव में स्थित, एक प्राचीन जैन तीर्थ है, जिसकी स्थापना 10वीं-11वीं शताब्दी में हुई थी। और यह भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर को समर्पित है। मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है भगवान महावीर की मूर्ति, जिसमें मूंछें और दाढ़ी हैं, जो भारत में इस प्रकार की एकमात्र मूर्ति है।
स्थानीय किंवदंती के अनुसार इस मंदिर की प्रतिष्ठा के पश्चात मेवाड़ के एक महाराणा एक बार अपने सामन्तों के साथ यहा दर्शनार्थ आये मंदिर के पुजारी ने महाराणा को भगवान का पक्षालजल प्रेषित कर आदर दिया, पर जल में एक बाल देख सामन्तों में से किसी एक ने पुजारी को व्यंग में कह दिया। इतना ही नहीं पुजारी ने यह भी कह दिया की भगवान तो समय समय पर अपनी इच्छानुसार अनेक रूप धारण करते रहते हैं।
इस पर महाराणा ने पुजारी को यह सब सिद्ध करने का कहा भक्तिभाव वाले पुजारी ने इसे सच्चा करके दिखाने के लिये तीन दिन का समय मांगा। पुजारी ने तीन दिन तक अखण्ड व्रत करके तप किया जिससे सचमुच महावीर की प्रतिमा के मूंछे निकल आई। महाराणा आये और मुछाला महावीर के दर्शन किये किंन्तु वास्तविकता का पता लगाने के लिए वे प्रतिमा के पास जाकर मूंछ से एक बाल खींच लिया जिसमें से दूध की धारा प्रवाहित होने लगी और महाराणा कुंभा ने भगवान के आगे नतमस्तक होकर प्रणाम किया।
कुछ इतिहासकार इस कथा को महाराणा कुंभा (15वीं शताब्दी) से जोड़ते हैं, जिन्होंने मेवाड़ क्षेत्र में कई जैन मंदिरों को संरक्षण दिया था। कहते हैं आज भी महावीर की मूल प्रतिमा का मुखमण्डप दिन में अलग, शाम को अलग तथा प्रातः बिल्कुल अलग प्रकार से बन जाता है। यह मंदिर “गोरवाड़ पंच तीर्थ” का हिस्सा है, जिसमें रणकपुर, नरलाई, नाडोल, और वर्काना जैसे अन्य प्रमुख जैन तीर्थ शामिल हैं।
मुच्छल महावीर मंदिर पाली की वास्तुकला और संरचना
मुच्छल महावीर मंदिर घाणेराव गांव, पाली जिले में, कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पास और सूकी नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है और अपनी अनूठी वास्तुकला और संरचना के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर का गर्भगृह मुख्य आकर्षण है, जिसमें भगवान महावीर की 78 सेंटीमीटर ऊँची, सफेद संगमरमर की मूर्ति है, जो मूंछों और दाढ़ी के साथ पद्मासन मुद्रा में स्थापित है। मंदिर परिसर में 24 छोटे जिनालय (देवरी) हैं, जो 24 जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं, और प्राचीन बावड़ियाँ और कुएँ हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक समृद्धि को दर्शाते हैं।

मुच्छल महावीर मंदिर पाली तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: मुच्छल महावीर मंदिर, जो राजस्थान के पाली जिले के घाणेराव गांव में स्थित है।
मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल, और वायु मार्ग उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: पाली से मंदिर लगभग 73 किलोमीटर दूर है, जहा 1.5-2 घंटे में पहुँचा जा सकता है। घाणेराव पहुँचने के बाद, मंदिर लगभग 5 किलोमीटर दूर है, जिसे ऑटो-रिक्शा या पैदल चलकर पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: रेल यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन फालना (लगभग 40 किलोमीटर) और रानी (लगभग 30 किलोमीटर) हैं। टैक्सी या बस से घाणेराव पहुँचें, फिर मंदिर तक जाएँ।
- वायु मार्ग: हवाई यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (लगभग 115 किलोमीटर) और जोधपुर (लगभग 160 किलोमीटर) हैं।