श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर, राजस्थान के बाड़मेर जिले में नाकोड़ा गांव (मेवानगर) में स्थित एक प्राचीन और पवित्र जैन तीर्थ स्थल है, जो 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। यह मंदिर अपनी चमत्कारी मूर्ति, भैरवदेव के दर्शन, और 1500 फीट ऊँची पहाड़ी पर लूनी नदी के तट के पास बने मनोरम दृश्य के लिए प्रसिद्ध है। जैन धर्म में यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ है, जो देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर बाड़मेर (Nakoda Parshvanath Jain Temple Barmer)
मंदिर का नाम:- | श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर (Nakoda Parshvanath Jain Temple) |
स्थान:- | नाकोड़ा (मेवानगर), बाड़मेर राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान पार्श्वनाथ (23वें जैन तीर्थकर) |
निर्माण वर्ष:- | तीसरी शताब्दी |
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर बाड़मेर का इतिहास
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर का इतिहास तीसरी शताब्दी से जुड़ा हुआ है। तीसरी शताब्दी में, वीरमपुर और नाकोडा दो शहर थे, प्रत्येक 20 मील की दूरी पर, क्रमशः वीरसेन और नाकोर सेन द्वारा स्थापित किए गए थे। दोनों स्थानों पर, 52 कक्षों वाले बड़े जैन मंदिर थे और उनके अभिषेक समारोह, प्रसिद्ध आचार्य स्थूलभद्र के हाथों किए गए थे।
तब से लेकर वीरमपुर नगर में वीरमदत्त द्दारा बनाया आठवे जैन तीर्थन्कर श्री चन्द्रप्रभ जी का मंदिर कई बार जीर्णोद्दार होने के बाद प्रतिष्ठा होने पर अस्तित्व में वि.सं. 909 से पूर्व तक रहा था। जब वि.सं. 909 में मूलनायक रूप से चौबीसवें जैन तीर्थन्कर श्री महावीर स्वामी की मूर्ति यहाँ स्थापित होने पर इस तीर्थ के मूलनायक श्री महावीर स्वामी रहे। वि.सं. 1223 तक जीर्णोद्दार होने के बाद तक रहे।
वि.सं. 1280 में जब मुगल बादशाह आलमशाह ने इस तीर्थ क्षेत्र पर आक्रमण किया तब यह तीर्थ उजड़ गया और यहाँ की जैन प्रतिमाओं को नाकोरसेन के बसाए नाकोर नगर (वर्तमान सिणधरी के पास आए नाकोड़ा गाँव) के सुरक्षित कालीद्रह (नागद्रह) तालाब में छिपा दिया। वि.सं. 1429 में इस तालाब से श्यावर्णी श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा मिली और वीरमपुर (नाकोड़ा) मंदिर में प्रतिष्ठित करने पर यह श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथजी के नाम से तीर्थ पुनः आबाद हो गया। लेकिन वि.सं. 1443 वैशाख शुक्ल 13 को मुगल बादशाह बाबाशाह (बाबीजान) के आक्रमण के कारण यह तीर्थ फिर उजड़ गया।
वि.सं. 1511 में रावल वीदा द्दारा पुनः वीरमपुर को बसाया गया। उजड़ा वीरमपुर वापिस आबाद होने पर अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी के स्वप्न संकेत से पुनः श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा कालीद्रह (नागद्रह) तालाब से प्राप्त हुई और आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी ने वि.सं. 1512 में वीरमपुर में इसकी पुनः प्रतिष्ठा करवाई। इसके बाद यह तीर्थ पुनः प्रकाश में आया। जो सतरहवीं शताब्दी के उत्तरार्थ एवं अठाहरवी शताब्दी के आरम्भ में यहाँ के नगर सेठ नानगजी संखवाल (संखलेचा) के सिर के लम्बे बालो की चोटी का शासकीय राजकुमार द्दारा अपने घोड़े पर बैठने वाली मक्खियों को उडाने के लिए झंवरी बनाने की घटना ने इस तीर्थ को उजाड़ दिया।
नानग सेठ यहाँ से 2700 से अधिक जैन धर्मावलम्बियों के परिवार के साथ तीर्थ यात्रा का बहाना बनाकर जैसलमेर आदि क्षेत्रों में बस गए । वीरमपुर (नाकोड़ा पार्श्वनाथ) पुनः उजड़ गया जो अब तक विकसित होने के बाद भी आबादी के रूप में आबाद नहीं हुआ।सत्रहवी शताब्दी के उत्तरार्थ से लेकर बीसवीं शताब्दी के मध्यान्त तक यह नाकोड़ा तीर्थ (वीरमपुर) प्राकृतिक थपेड़ों को सहता हुआ जीर्ण-शीर्ण स्थिति में आ गया।
प्रथम बार नाकोड़ा अधिष्ठायक श्री भैरवदेवजी के स्वप्न संकेत के बाद वि.सं. 1958 में जैन साध्वी श्री सुन्दरश्रीजी यहाँ पधारी और वि.सं. 1960 में इस तीर्थ का जीर्णोद्दार करवाना आरम्भ कर दिया। जीर्णोद्दार होने के बाद वि.सं. 1991 माघ शुक्ल 13 को पन्यास श्री हिम्मतविजयजी (आचार्य श्रीमद्विजय हिमाचलसूरिजी) से इसकी प्रतिष्ठा करवाने के बाद से लेकर अब तक यह तीर्थ दिनों दिन विकास एवं विस्तार की ऊंचाईयों को छू रहा है। अब इस तीर्थ की यात्रा पर प्रतिवर्ष हजारों श्रद्दालू भक्त आते रहने के कारण तीर्थ की आय में बढोतरी भी होने से तीर्थ विकास के नए – नए आयाम खड़े कर उत्थान की ओर अग्रसर हो रहा है।
मंदिर परिसर में लगभग 246 शिलालेख मौजूद हैं, जो इसके विस्तार, जीर्णोद्धार और सदियों से हुए अतिरिक्त निर्माण के प्रमाण हैं। आज भी यहां निर्माण कार्य जारी है।
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर बाड़मेर की वास्तुकला और संरचना
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर, बाड़मेर, राजस्थान में स्थित एक अत्यंत प्राचीन और पूजनीय तीर्थस्थल है। इसकी वास्तुकला और संरचना इसे जैन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण बनाती है। मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से सफेद मकराना संगमरमर का उपयोग किया गया है। इस संगमरमर पर बेहतरीन और जटिल नक्काशी की गई है, जो इसकी सुंदरता को बढ़ाती है।

मुख्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित है। उनकी प्रतिमा काले रंग की है, लगभग 58 सेंटीमीटर (लगभग 2 फीट) ऊंची है, और पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इस परिसर में श्री आदिनाथ, श्री शांतिनाथ, पुंडरीक स्वामी (16वीं शताब्दी), चारभुजा (500-600 वर्ष पुराने), और शिव मंदिर शामिल हैं।
मंदिर परिसर में धर्मशाला और भोजनशाला जैसे अतिरिक्त संरचनाएँ हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर बाड़मेर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: श्री नाकोड़ा जी जैन मंदिर नाकोड़ा, बाड़मेर, राजस्थान में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के तरीके इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक तरीका है। यह बालोतरा से लगभग 13 किलोमीटर और बाड़मेर से लगभग 106 किलोमीटर दूर है। बालोतरा या बाड़मेर से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते है।
- रेल मार्ग: रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन बालोतरा रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 13 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- हवाई मार्ग: हवाई यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से नाकोड़ा तक पहुँच सकते है।