नारायणी माता मंदिर राजस्थान के अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में बरवा डूंगरी की तलहटी में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान देवी नारायणी माता को समर्पित है। यह अलवर शहर से लगभग 80 किलोमीटर दूर, सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों को शांति और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक प्रदान करता है। और यह विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल भानगढ़ किले से मात्र लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
नारायणी माता मंदिर अलवर (Narayani Mata Temple Alwar)
मंदिर का नाम:- | नारायणी माता मंदिर (Narayani Mata Temple) |
स्थान:- | बरवा डूंगरी की तलहटी, राजगढ़ तहसील, अलवर, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | देवी नारायणी माता |
निर्माण वर्ष:- | 11वीं शताब्दी |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | 1993 तक वार्षिक मेला आयोजित होता था, जो अब प्रतिबंधित है; नवरात्रि जैसे सामान्य हिंदू त्योहार मनाए जा सकते हैं। |
नारायणी माता मंदिर अलवर का इतिहास
नारायणी माता मंदिर का इतिहास 11वीं शताब्दी तक जाता है, जो इसे प्राचीन किंवदंतियों और आध्यात्मिक महत्व का केंद्र बनाता है।
देवी नारायणी: जीवन, सतीत्व और लोक आख्यान
लोक कथाओं के अनुसार उनका जन्म चैत्र शुक्ल नवमी, विक्रम संवत 1006 को मौरागढ़ निवासी विजयराम और उनकी पत्नी रामवती के यहाँ हुआ था। पारंपरिक रूप से, उन्हें नाई या सैन समाज से संबंधित माना जाता है, यही कारण है कि यह समुदाय उन्हें अपनी कुल देवी के रूप में पूजता है। उनकी किंवदंती विवाह और सतीत्व के दुखद घटनाक्रम पर आधारित है। विवाह के पश्चात जब वह पहली बार अपने पति के साथ ससुराल जा रही थीं, तब रास्ते में उनके पति को एक विषैले सर्प ने डस लिया, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।
पति की आकस्मिक मृत्यु से नारायणी देवी ने अपने पति के शव के साथ स्वयं को सती करने का दृढ़ निश्चय किया था। देवी के सती होने की प्रक्रिया में एक स्थानीय मीणा व्यक्ति का हस्तक्षेप ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब उन्हें चिता के लिए सहायता की आवश्यकता थी, तब एक स्थानीय मीणा व्यक्ति ने, जिसे उन्होंने धर्म का भाई माना, लकड़ियाँ एकत्र करने और चिता तैयार करने में मदद की थी।
सती होने से पहले, नारायणी माता की सहायता करने वाले मीणा को वरदान मांगने के लिए कहा, जिसने निस्वार्थ सेवा की थी। मीणा व्यक्ति ने अपने क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी को दूर करने की प्रार्थना की थी। माता ने तब उसे एक अभूतपूर्व वरदान दिया: वह बिना पीछे मुड़े जितनी दूर तक दौड़ता जाएगा, वहाँ तक जलधारा निरंतर बहती रहेगी।
वह व्यक्ति तीन कोस (जो कि लगभग 9 किलोमीटर के बराबर होता है) तक बिना मुड़े लगातार दौड़ता रहा। इस दूरी के बाद उसने पीछे मुड़कर देख लिया था। चमत्कार यह है कि आज भी, मंदिर से ठीक 9 किलोमीटर की दूरी तक जल का स्तर उच्च रहता है, और उसके बाद यह अचानक गिर जाता है।
मंदिर का निर्माण
नारायणी माता मंदिर की ऐतिहासिक नींव 11वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब इसका निर्माण प्रतिहार शैली में करवाया गया था। माना जाता है की उस समय वहां पर राजा दुल्हेराय का शासन था और नांगल पावटा के जागीरदार ठाकुर बुधसिंह ने नारायणी माता के मंदिर की स्थापना कराई थी। उन्होंने पानी के कुंडों की स्थापना भी कराई। बाद मे अलवर नरेश जय सिंह ने पानी के कुंडों को बड़े आकार में परिवर्तित कर दिया था।
नारायणी माता मंदिर अलवर की वास्तुकला और संरचना
नारायणी माता मंदिर प्रतिहार शैली की वास्तुकला का उदाहरण है, जो मध्यकालीन राजस्थान में प्रचलित थी। मंदिर की संरचना के केंद्र में एक गर्भगृह है, जहाँ माता नारायणी की मूर्ति स्थापित है। और गर्भगृह के चारों ओर एक परिक्रमा पथ बना हुआ है, जहां भक्त मंदिर की परिक्रमा पूरी करते है। इसके बाद एक हॉल है, जहाँ कई घंटियाँ लटकी हैं, जो श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाई गई हैं। मंदिर परिसर का सबसे विशिष्ट भौतिक पहलू यहाँ के जलकुंड और निरंतर बहने वाली प्राकृतिक जलधारा है। मंदिर के ठीक सामने संगमरमर का एक कुंड है, जिसमें पीछे की पहाड़ियों से बहती हुई प्राकृतिक जलधारा पहुँचती है। मंदिर परिसर में एक भव्य किले जैसा प्रवेश द्वार है।

नारायणी माता मंदिर अलवर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: नारायणी माता मंदिर राजस्थान के अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में बरवा डूंगरी की तलहटी में स्थित है। यह अलवर जिला मुख्यालय से यह लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है। राज्य की राजधानी जयपुर से यह 90 किलोमीटर और दौसा से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 94 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके अलवर शहर तक पहुँच सकते हैं। अलवर पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते हो।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन अलवर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर अलवर बस स्टैंड से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी, बस, या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर पहुँचने के बाद, आप स्थानीय बस, टैक्सी, या ऑटो-रिक्शा से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। यह मंदिर जयपुर से 90 किलोमीटर और दौसा से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।