ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश | Omkareshwar Temple Mandhata Madhya Pradesh

ओंकारेश्वर मंदिर (ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग) मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो नर्मदा नदी के मध्य में स्थित मांधाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर भव्यता से स्थापित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे हिंदू धर्म में सर्वोच्च पवित्रता और गहन आस्था का केंद्र माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव (ओंकारेश्वर) और माता पार्वती को समर्पित है और ‘ॐ’ के आकार वाले द्वीप के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे धार्मिक और प्राकृतिक रूप से अनूठा बनाता है। नर्मदा नदी और मांधाता पर्वत के बीच बसा यह मंदिर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और नर्मदा परिक्रमा के तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख केंद्र है।

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ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश (Omkareshwar Temple Mandhata Madhya Pradesh)

मंदिर का नाम:-ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता (Omkareshwar Temple Mandhata Madhya Pradesh)
अन्य नाम:-ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर महादेव मंदिर
स्थान:-मांधाता द्वीप, खंडवा जिला, मध्य प्रदेश
समर्पित देवता:-भगवान शिव (ओंकारेश्वर) और माता पार्वती
निर्माण वर्ष:-प्राचीन काल (सटीक समय ज्ञात नहीं, किंवदंतियों के अनुसार पौराणिक काल)
मुख्य आकर्षण:-प्राकृतिक “ॐ” आकार
प्रसिद्ध त्यौहार:-महाशिवरात्रि, श्रावण मास

ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश का इतिहास

ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन और पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है। ओंकारेश्वर के धार्मिक महत्व का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और वायु पुराण में मिलता है।

पौराणिक उत्पत्ति और कथाएँ

राजा मान्धाता की तपस्या और भगवान शिव का वरदान

ओंकारेश्वर नगरी का मूल और पौराणिक नाम ‘मान्धाता’ है, जो इसके प्राचीन शाही और धार्मिक संबंधों को दर्शाता है। पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यवंशी राजा मान्धाता (जिस वंश से भगवान राम संबंधित थे) ने नर्मदा किनारे के पर्वत पर अत्यंत कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राजा को यहीं निवास करने का वरदान दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से भी जानी जाने लगी। इस पर्वत को तब से मान्धाता-पर्वत कहा जाने लगा, और संपूर्ण मान्धाता-पर्वत को ही भगवान शिव का रूप माना जाता है, जो इस स्थान की गहरी पवित्रता को दर्शाता है।

विंध्य पर्वत की कथा और ज्योतिर्लिंग का द्विभाजन

शिवपुराण में वर्णित एक महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, एक बार नारद मुनि (एक भ्रमणशील वैदिक ऋषि) विंध्य पर्वत पर आए और इस बात से क्रोधित हो गए कि उस क्षेत्र में भगवान शिव का कोई निवास नहीं था। इसलिए, विंध्य पर्वत के भगवान ने इस भूल का पश्चाताप करने के लिए तपस्या शुरू कर दी। उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया, जो पार्थिव देवता के रूप में थे।

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उनकी आस्था और धैर्य ने महादेव (भगवान शिव) को प्रभावित किया और उन्होंने पर्वत देवता से कहा कि वे इस द्वीप पर प्रणव लिंग के रूप में निवास करेंगे। और यह दो भागों में विभाजित होगा – ममलेश्वर और ओंकारेश्वर। ममलेश्वर एक पार्थिव लिंग था, जबकि ओंकारेश्वर एक ज्योति लिंग (प्रकाश स्तंभ) था। तभी से इस स्थान का नाम ओंकारेश्वर पड़ा और ज्योतिर्लिंग की पूजा के लिए एक मंदिर का निर्माण किया गया। यह कथा स्पष्ट करती है कि दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक्‌ होते हुए भी उनकी सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है, जो ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के एकीकृत महत्व को दर्शाता है।

पवित्र हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर कम से कम 5500 साल पहले से अस्तित्व में था। इस मंदिर का उल्लेख कई पुराणों (प्राचीन हिंदू ग्रंथों) में मिलता है जो इसके महत्व और उत्पत्ति के बारे में बताते हैं।

ऐतिहासिक विकास और शासकों का योगदान

परमार शासकों की भूमिका

इतिहासकारों का मानना है कि मालवा के परमार राजाओं ने 11वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। केदारेश्वर मंदिर, जो ओंकारेश्वर परिसर का एक हिस्सा है, का निर्माण 13वीं सदी में परमार शासकों द्वारा कराया गया था। मान्धाता दुर्ग की चारदीवारी का निर्माण भी परमार शासकों द्वारा 13वीं सदी में कराया गया था, जो इस क्षेत्र के सामरिक और प्रशासनिक महत्व को दर्शाता है। गौरी सोमनाथ मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में परमारों ने करवाया था, जो उनकी स्थापत्य कला के प्रति रुचि और धार्मिक संरक्षण को दर्शाता है। पूरे मुगल शासन के दौरान, यह मंदिर चौहान राजाओं के अधीन रहा, लेकिन मंदिर का ज़्यादा जीर्णोद्धार नहीं हुआ।

देवी अहिल्याबाई होलकर का योगदान और ममलेश्वर मंदिर का निर्माण

देवी अहिल्याबाई होलकर का ओंकारेश्वर के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उनके समय से यहां एक विशेष प्रथा चली आ रही है, जिसमें नित्य मृत्तिका के 18 सहस्र शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करने के पश्चात उन्हें नर्मदा में विसर्जित कर दिया जाता है। यह उनकी गहरी धार्मिक निष्ठा और मंदिर के प्रति समर्पण को दर्शाता है। नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित ममलेश्वर मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था, जो ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ पूजित होने वाले दूसरे स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।

1947 में भारत की स्वतंत्रता तक यह मंदिर ब्रिटिश शासन के अधीन रहा। उसके बाद, खंडवा प्रशासन की सहायता से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मंदिर की ज़िम्मेदारी संभाली, जो आज भी जारी है।

ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश की वास्तुकला और संरचना

ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के मध्य स्थित मांधाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है, जो इसे एक अनूठी और पवित्र भौगोलिक पहचान प्रदान करता है। इस द्वीप का प्राकृतिक आकार हिंदू पवित्र चिन्ह “ॐ” के समान है, जो इसके नामकरण और आध्यात्मिक महत्व का मूल आधार है। नर्मदा के तट पर स्थित होने के कारण, इस स्थान का विशेष धार्मिक महत्व है, क्योंकि यह मान्यता है कि नर्मदा के हर कंकर को शंकर (शिवलिंग) का स्वरूप प्राप्त है।

ओंकारेश्वर में दो प्रमुख मंदिर हैं: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित ममलेश्वर (प्राचीन नाम अमरेश्वर) मंदिर। धार्मिक रूप से, इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जिन्हें सामूहिक रूप से ओंकारममलेश्वर कहा जाता है। यात्रियों के लिए एक विशिष्ट परंपरा है कि वे पहले ओंकारेश्वर का दर्शन करें और लौटते समय ममलेश्वर का दर्शन करें, जो इस एकीकृत तीर्थयात्रा के महत्व को दर्शाता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक प्रभावशाली पांच मंजिला इमारत है, जो इसकी भव्यता और जटिलता को दर्शाती है। जिसमें प्रत्येक मंजिल पर विभिन्न देवताओं की स्थापना है। नीचे से ऊपर की ओर, ये देवता हैं: श्री ओंकारेश्वर, श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ, श्री गुप्तेश्वर, और सबसे ऊपर ध्वजधारी शिखर देवता। ऊंचा शिखर आकाश की ओर उठता है, जो मंदिर की दिव्यता को दर्शाता है।

ज्योतिर्लिंग भूतल पर गर्भगृह में स्थापित है, जो आंशिक रूप से जल में डूबा हुआ है। ओंकारेश्वर मंदिर की एक अनूठी विशेषता यह है कि ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर के नीचे नहीं, बल्कि बगल में स्थित है। इस मंदिर में दो कमरों के बीच से होकर गर्भगृह तक जाना पड़ता है, और भीतर अंधेरा रहने के कारण यहां निरंतर प्रकाश जलता रहता है, जो एक रहस्यमय और पवित्र वातावरण बनाता है। मंदिर में नक्काशीदार पत्थरों के करीब 60 बड़े-बड़े खंभे हैं, जो इसकी स्थापत्य कला की समृद्धि को दर्शाते हैं।

ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग
ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग

मंदिर मुख्य रूप से स्थानीय रूप से प्राप्त बलुआ पत्थर से बना है, जो विस्तृत नक्काशी और मूर्तिकार्य के लिए उपयुक्त है। दीवारों और स्तंभों पर हिंदू देवताओं, जैसे गणेश, अन्नपूर्णा, और पंचमुखी गणेश, और पौराणिक दृश्यों को दर्शाने वाली नक्काशी है, जो प्राचीन कारीगरों की कलात्मक क्षमता को प्रदर्शित करती है।

अन्य संरचनाएं और परिसर

मंदिर परिसर में अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं भी हैं, जो इसकी समग्र वास्तुकला को समृद्ध करती हैं:

  • गौरी सोमनाथ मंदिर: गौरी सोमनाथ मंदिर, जो ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास स्थित है, अपनी स्थापत्य शैली में खजुराहो मंदिर समूह से काफी मिलता-जुलता है, जो इसकी कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में परमार शासकों ने करवाया था, जो उस काल की क्षेत्रीय कला और वास्तुकला पर उनके प्रभाव को दर्शाता है। यह मंदिर तीन मंजिला है। मंदिर के गर्भगृह में 6 फीट ऊंचा एक विशाल शिवलिंग है जो काले पत्थर से बना है।
  • सिद्धनाथ मंदिर: सिद्धनाथ मंदिर प्रारंभिक मध्यकालीन ब्राह्मणिक वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है, जिसमें मंदिर के खंभों और दीवारों पर विस्तृत नक्काशी की गई है, जिसमें पत्थर पर उकेरी गई प्रभावशाली पेंटिंग भी शामिल हैं।
  • केदारेश्वर मंदिर: यह 11वीं शताब्दी का है और उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर से मिलता-जुलता जटिल वास्तुकला है। यह नर्मदा और कावेरी नदियों के संगम पर, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से 4 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • कुबेर भंडारी मंदिर: कुबेर भंडारी मंदिर ओंकारेश्वर परिसर के पास स्थित है, जहां मान्यता है कि शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी और शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे उन्हें देवताओं का धनपति बनाया गया।
  • जैन सिद्धवरकूट: जैन संप्रदाय का तीर्थ सिद्धवरकूट भी ओंकारेश्वर के नजदीक ही स्थित है, जहां जैन धर्म के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से कुछ का नवीनीकरण किया गया है।
  • श्री गोविंदा भगवत्पाद गुफा: श्री गोविंदा भगवत्पाद गुफा मंदिर के पास स्थित है, जो आदि शंकराचार्य के आध्यात्मिक पथ से जुड़ी है।

ओंकारेश्वर मंदिर मांधाता मध्य प्रदेश तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: ओंकारेश्वर मंदिर, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के मांधाता द्वीप पर स्थित है।

मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:-

  • हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से ओंकारेश्वर तक पहुंचने के लिए, निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा, इंदौर है, जो मंदिर से लगभग 87 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है।
  • रेल मार्ग: रेल मार्ग से ओंकारेश्वर तक पहुंचने के लिए, निकटतम रेलवे स्टेशन ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से मंदिर तक ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन से पहुंचा जा सकता है।
  • सड़क मार्ग: ओंकारेश्वर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, और यह राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के नेटवर्क का हिस्सा है। इस मंदिर की प्रमुख शहरों से दूरी निम्नलिखित हैं:
    • खंडवा: लगभग 75 किलोमीटर
    • इंदौर: लगभग 80 किलोमीटर
    • उज्जैन: लगभग 144 किलोमीटर
    • भोपाल: लगभग 259 किलोमीटर
    • रतलाम: लगभग 202 किलोमीटर

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