पांडुपोल हनुमान जी मंदिर राजस्थान के अलवर जिले की अरावली पर्वतमाला की तलहटी में सरिस्का बाघ अभयारण्य के घने जंगलों के बीच स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है, जिनकी स्वयंभू मूर्ति लेटे हुए रूप में है। “पांडुपोल” नाम पांडवों से जुड़ा है, जो महाभारत काल में वनवास के दौरान यहां आए थे। यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुई थी।
पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर (Pandupol Hanuman Temple Alwar)
मंदिर का नाम:- | पांडुपोल हनुमान मंदिर (Pandupol Hanuman Temple) |
स्थान:- | सरिस्का बाघ अभयारण्य, अलवर जिला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान हनुमान (स्वयंभू लेटी हुई प्रतिमा) |
निर्माण वर्ष:- | लगभग 5000 वर्ष पुराना (महाभारत काल से जुड़ा) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | हनुमान जयंती: भव्य पूजा और भजन लक्खी मेला: भादो शुक्ल अष्टमी (सितंबर) को, 50,000+ भक्त राम नवमी और नवरात्रि: विशेष आरतियां मंगलवार/शनिवार: विशेष दर्शन दिवस |
पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर का इतिहास
पांडुपोल हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से गहराई से जुड़ा हुआ है, जो इसे एक पौराणिक महत्व प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि पांडवो ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ अज्ञातवास के दौरान वे इस क्षेत्र में आए थे, जिसे उस समय विराटनगर के नाम से जाना जाता था।
महाभारत काल की एक कथा का केंद्रीय भाग भीम और हनुमान के बीच की घटना से जुड़ा है। एक दिन वन में विचरण करते हुए द्रौपदी के पास एक हजार पंखुड़ियों वाला दिव्य कमल उड़ता हुआ आकर गिरा। इसकी सुंदरता से प्रभावित होकर द्रौपदी ने भीम से ऐसे फूल लाने को कहा था, उसके बाद भीम उसी दिशा में चल पड़े, जहां से कमल आया था।
भीम की परीक्षा लेने के लिए हनुमान जी वानर बनकर रास्ते में लेट गए। जब भीम यहां से गुजर रहा था तो उन्होंने लेटे हुए वानर को यहां से हटने के लिए कहा। लेकिन वो नहीं हटे वानर रूप में हनुमान ने कहां कि मैं यहां से नहीं हट सकता, तुम चाहो तो मेरी पूंछ यहां से उठाकर रास्ते से हटा सकते हो।
ऐसा कहने पर भीम ने उनकी पूंछ उठाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन वो बहुत प्रयास के बाद उसको हिला भी नहीं पाए थे। तब भीम ने पूछा कि आप कौन है अपना परिचय दिजिए। तब वानर रूप हनुमान ने अपना परिचय दिया। इसके बाद पांडवों ने इस स्थान पर हनुमान जी की पूजा अर्चना की थी। तब से इस स्थान पर लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बनाकर उसको पूजा जाने लगा था।
एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास पर थे, तब कौरवों की खोजी सेना के आने पर भीम ने अपनी गदा से पहाड़ को तोड़कर बाहर निकलने का रास्ता निकाला था। भीम ने अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया कि पहाड़ में एक छेद हो गया। जिससे उनके लिए एक विशाल दरवाजा या दर्रा (पोल) बन गया था। इसी भू-आकृतिक घटना के कारण इस स्थान का नाम ‘पांडुपोल’ पड़ा, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘पांडव द्वारा निर्मित द्वार’।
पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर की वास्तुकला और संरचना
पांडुपोल हनुमान मंदिर की वास्तुकला सरल लेकिन चमत्कारिक है, जो प्राकृतिक सौंदर्य पर आधारित है। मंदिर में प्रवेश के लिए एक प्रवेश द्वार बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी की शयन मुद्रा (reclining position) में स्थापित प्रतिमा है। मूर्ति स्वयंभू है और लेटे हुए रूप में चट्टान पर उकेरी गई लगती है। कोई भव्य गुंबद या मंडप नहीं है, लेकिन सादगी ही इसकी मुख्य आकर्षण है, जो आध्यात्मिक शांति को बढ़ावा देती है।

मंदिर के पास कुछ ही दूरी पर पांडुपोल है। जहां पर सीढियों के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यह स्थल भीम के बल के प्रतीक है। यही से निकलने वाला 35 फुट का झरना शामिल है। यहाँ निरंतर पानी की धारा बहती रहती है, जो कठोर चट्टानों से निकलती है। इस जलधारा का धार्मिक महत्व भी अत्यंत गहरा है। मंदिर के पास एक पवित्र जलकुंड भी है। भक्तों में यह प्रबल मान्यता है कि इस पवित्र कुंड में डुबकी लगाने से सभी पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है।

पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर का लक्खी मेला
पांडुपोल हनुमान जी का वार्षिक लक्खी मेला (लाखों का मेला) भाद्रपद मास में आयोजित किया जाता है। यह एक तीन दिवसीय आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेने के लिए अलवर पहुँचते हैं। चूंकि मंगलवार हनुमान जी का शुभ दिन माना जाता है, इसलिए मेले का मुख्य दिवस अक्सर मंगलवार को होता है।
पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: पांडुपोल हनुमान जी मंदिर राजस्थान के अलवर जिले की अरावली पर्वतमाला की तलहटी में सरिस्का टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके अलवर शहर तक पहुँच सकते हैं। अलवर पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंच सकते हो।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन अलवर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 56 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर अलवर बस स्टैंड से लगभग 56 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी, बस, या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर पहुँचने के बाद, आप स्थानीय बस, टैक्सी, या ऑटो-रिक्शा से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जयपुर से इस मंदिर की दूरी लगभग 127 किलोमीटर है।