रानी भटियानी मंदिर जसोल बालोतरा | Rani Bhatiyani Temple Jasol Balotra

रानी भटियानी मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील के जसोल गाँव में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मंदिर माता रानी भटियानी (स्वरूप कँवर) को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग माजीसा के रूप में पूजते हैं। मंदिर का प्रबंधन श्री रानी भटियानी मंदिर संस्थान द्वारा किया जाता है।

रानी भटियानी मंदिर जसोल बालोतरा (Rani Bhatiyani Temple Jasol Balotra)

मंदिर का नाम:-रानी भटियानी मंदिर (Rani Bhatiyani Temple)
स्थान:-जसोल गाँव, तहसील पचपदरा, जिला बालोतरा, राजस्थान
समर्पित देवता:-माता रानी भटियानी (माजीसा)
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि, वार्षिक मेला

रानी भटियानी मंदिर जसोल का इतिहास

रानी स्वरूप कंवर (रानी भटियानी) का जीवन त्याग, पीड़ा और अंततः दैवीय महिमा की एक मार्मिक गाथा है, जिसने उन्हें पश्चिमी राजस्थान की एक पूजनीय लोक देवी के रूप में स्थापित किया था।

जोगीदास जी ने जैसलमर में एक छोटा सा गांव बसाया, उन्होंने गांव का नाम जोगीदास रखा। जोगीदासजी की दो शादी हुई थी, पहली शादी राज कुवर के साथ हुई थी, और दूसरी शादी बदन कूवर के साथ हुई थी। लेकिन दोनो पत्नी से उनकी कोई संतान नहीं थी।

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एक दिन जोगीदासजी ने ऋषि की आज्ञा लेकर कुलदेवी मां का व्रत धारण किया और कठौर तपस्या की इसी कारण कुलदेवी माँ खुश हुई ओर वरदान दिया कहा की “हे जादम जेसान… मैं आपके घर कन्या के रूप में खुद कुम कुम रे पगले आऊगी” और इतना कहते ही कुलदेवी अदृश्य हो गई। इसके नौ महीने बाद श्री जोगीदासजी की पत्नी बदन कुवर ने एक कन्या को जन्म दिया और उनका नाम स्वरूप कुंवर रखा। कन्या के जन्म के बाद जोगीदासजी तीन पुत्र हुए जिनका नाम हरनाथ सिंह, रायसिंह और लाल चंद था।

उसके बाद स्वरूप कुंवर का विवाह जसोल के महारावल कल्याण सिंह जी से हुआ था। कल्याण सिंह जी का पहला विवाह सिरोही के देवड़ा राजपूत श्री मानसिंह जी की बेटी फुल कुंवर के साथ हुआ था लेकिन कोई संतान नहीं हुई थी। कल्याण सिंह जी पहली पत्नी देवड़ी जी ने मान सम्मान से स्वरूप कुंवर स्वागत किया और रावले में लिया, और दोनों प्रेम से रहने लगी थी।

भटियाणी जी पाठ पूजा करते ओर भगवान का स्मरण करती, शादी के नों महीने बीत जाने के बाद भटियाणी जी ने पुत्र को जन्म दिया, कल्याण सिंह जी बहुत खुश हुए पूरे जसोल मे खुशियां छाई ओर पुरे जसोल में मिठाई बांटी गई और सब ने खुशियां मनाई। पुत्र का नाम करण करवाया और नाम लाल सिंह (लाल बन्ना) रखा। भटियाणी जी ने देवड़ी जी कहा कि आप भी कुलदेवी का पूजा पाठ करो तो आपको भी पुत्र होगा, उनके कहे अनुसार देवड़ी जी ने भी कुलदेवी का स्मरण किया एवं पुजा पाठ किया और उनको भी पुत्र हुआ जिनका नाम प्रताप सिंह रखा।

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रावल कल्याण सिंह जी और उनकी दोनो रानियां बहुत खुश थी। उसके बाद राज महल में देवड़ी जी की दासी उनके कान भरने लगी और कहने लगी कि देवड़ी जी मुझे तो आपकी बर्बादी दिखाईं दे रही है क्योंकि रानी भटियाणी जी के तो आने से रावल सा के तो भाग्य खुल गए, लेकिन आपका मान सम्मान कम हो गया और उनका पुत्र लाल सिंह तो बड़े है इसलिए उतराधिकारी तो वो ही बनेंगे।

दासी इसी तरह देवड़ी जी के कान भरती रही और देवड़ी जी के मन में हीनता आने लगी जिससे देवड़ी जी के कलेजे में आग भभकने लगी, देवड़ी जी को दासी ने इतना भड़का दिया था कि वो दिन रात यहीं सोचने लगी कि कुछ भी करके लाल सिंह को रास्ते से हटाना है। जब श्रावण महीने की तीज आई भटियाणी जी को तीज में जुला जुलने ओर घूमर नृत्य का बड़ा ही शोक था तीज के त्यौहार पर जब बाग में ढोल बजा तो उधर कुल की सब औरतें तैयार होकर सोलह श्रृंगार करके राज महल में आई ओर भटियाणी जी को आने के लिए कहा, तो भटियाणी जी ने देवड़ी जी से कहा कि आप भी पधारे।

देवड़ी जी ने कहा मेरा स्वास्थ अच्छा नही है। भटियाणी जी ने देवड़ी जी से कहा कि लाल बन्ना सो रहे है आप उनका ध्यान रखना ओर इतना कहने के बाद मे वो सभी कुल की महिलाओं के साथ मे बाग में जुला व घूमर नृत्य करने के लिए रवाना हुए, उधर देवड़ी को तो इसी दिन का इंतजार था ओर गहरी नींद में सो रहे लाल बन्ना को जगाकर दूध में विष मिलाकर पिला दिया।

लाल बन्ना ने तो दूध पीते ही वहीं पर प्राण छोड़ दिया, उधर रानी भटियाणी ने बाग में कदम रखते ही उनके तो कलेजे में जैसे कि आग जलने लगी उनको लगा कि कुछ तो हुआ है ओर तो वहां से वे राजमहल की ओर भागे ओर महल मे आके लाल बन्ना को देखा तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी ओर अपने कलेजे के टुकड़े को गोदी में लेकर सीने से लगा कर खूब रोए। उसके बाद रानी भटियाणी ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए थे।

जैसे ही भटियाणी जी ने पुत्र वियोग में प्राण त्यागे उसी रात उनकी मां को सपना आया कि मेरी बेटी के साथ अनहोनी घटना घटी है। सुबह उठ कर उन्होंने अपने पति जोगीदासजी को सपने के बारे में बताया। जब दोनो सपने के बारे में बात करे थे, उसी समय दो ढोली आए और बोले हम मालाणी के लिए जा रहे है। बाईसा से मिल के आऊंगा और आपके लिए समाचार लेकर आऊंगा। अब ढोली क्या है की जहा जहा बाईसा उसके गांव की होती है, वहा से बक्शीस (भेंट या उपहार) लाते है। और वो अलग अलग गांव से घूमते हुए जाते।

इधर जसोल में यह घटना हुई यहां से पत्रवाहक (समाचार ले जाने वाला) जोगीदास गांव पहुंचा। तब तक वो ढोली वहा से निकल चुका था। वहां से उनके परिवार वाले आए और रानी भटियाणी का अंतिम संस्कार किया गया। उसके बाद 7-8 दिन गुजरे और वह ढोली जसोल पहुंचा। जैसे ही वह राजमहल पहुंचता है और वह स्वराज करना शुरू कर देता है। और जब वह देखता है की सबके सिर पर सफेद पगड़ियां है, उसे लगता है, की यह कुछ घटना घटी है या मृत्यु हुई है।

वहां ढोली कहता है कि में तो बाईसा से बक्शीस लेने आया था। तब वह उसे बताया गया की तेरी बाईसा अब तेरी स्वर्गसिधार गई। तब वह वहां कहने लगा आपने जोगिसा तक समाचार नही पहुंचाया, तब उन्होंने कहा आपको मालूम है कि समाचार दिया या नही, तू जिस काम से आया काम से वो बात कर, में तो बाईसा से बक्शीस लेने आया था। अब तो तू शमशान में जा तेरी बक्शीस वही मिलेगी।

उसके बाद वह ढोली शमशान में पहुंचा और वो वहा जाकर वियोग करने लगा रोने लगा। और कहने लगा बाईसा मुझे पता नही था, ये लोग आपका ये हाल करेंगे और आपके पिताजी ने खुशी का समाचार देने के लिए कहा था। ये दुख का समाचार लेके के वहां नहीं जा सकता में यहां अपने प्राण त्याग दूंगा। जब ये ढोली विलाप कर रहा था, इतने में वहा रानी भटियानी प्रकट हुई। उन्होंने उस ढोली को गलें लगाया और कहा मेने मेरा शरीर त्यागा है, मेरी आत्मा आज भी अजर और अमर है। मेरा यहां राज चलेगा, जो दुखी आएगा में उसको सुखी करूंगी।

तू जिस काम से आया वो बोल, की बाईसा में तो बक्शीस लेने आया था। तो बाईसा ने कहा तेरे को बक्शीस जरूर मिलेगी। बाईसा ने अपनी पोशाक और पायल बक्शीस के रूप में दी। और कहा तुझे जहा अपमानित किया है और बाहर निकाला है। अब तू ठिकाने के अंदर जाना और बताना बाईसा ने मुझे ये बक्शीस दी है। उसके बाद ढोली ठिकाने के अंदर पहुंचता है और वह बताता है की बाईसा मुझे मिले और ये बक्शीस दी है। और उनके पीछे बारहवा करने लिए मना किया है।

उसके अंदर आते हुए देवड़ी जी देख लेती है, उन्होंने ठाकुर साहब को बुलाया। और कहा कि आप ढोली की बातों में मत आओ ये बहकी बहकी बातें कर रहा है। मरा हुआ कभी वापस नहीं आता है और ना ही प्रकट होता है। इसको शायद कोई भूतप्रेत मिला होगा। ये वहा जाकर ये बातें करेगा और हमारी लड़ाई करवाएगा। इसको जेल में डाल दो, उसके बाद ढोली को जेल में डाल दिया।

अब वह जेल से फिर बाईसा को याद करता है। और कहता है कि में शमशान से तो निकल जाता अब इस कैद से कैसे बाहर निकलू। तो फिर चमत्कार हुआ और जेल के ताले टूट गए और वो वहा से निकल गया और जोगिदास रवाना हो गया। उसके बाद पूरे गांव को पता चल गया की उस ढोली को रानी ने दर्शन दिए है।

जसोल प्रजापति जाति की एक जन्मजात अंधी अम्या बाई थी, यह बात पूरा गांव जानता था। जब अम्या बाई अपने मवेशी चराने के लिए उस शमशान से गुजर रही थी। तो उनको ढोली वाली बात याद आई, तो उन्होंने सोचा कि में भी मां से फरियाद करू मेरे को भी शायद आंख मिल जाए। उन्होंने वहा जाकर मां से अर्ज़ लगाई “है रानीसा आपने वास्तव में प्रकट होकर दर्शन दिए है और चमत्कार है, तो मुझे भी एक चमत्कार दो। पूरा गांव जानता है, में जन्म से अंधी हूं, उन्होंने उस ढोली पर विश्वास नहीं किया पर लोग मेरे पर विश्वास जरूर करेंगे।”

जैसे ही मां प्रकट हुई उनकी आंख दे दी। वो बहुत खुश हुई। और खुशी के साथ गांव में आई और ये बात सबको बताई। सब गांव वाले मिलकर कल्याण सिंह जी ठिकाने पहुंचे। और उनको सब बात बताई और अम्या बाई भी साथ में थी। उनको बताया कि आपकी रानी देवी रूप में है। अम्या बाई के साथ हुए चमत्कार को कल्याण सिंह जी मान लिया।

में आपके साथ वहां चलूंगा पर मेरा भी एक प्रण है। में वहा कुछ वस्तु रखुंगा उसको वहा कुछ कर दिया तो में चमत्कार मानूंगा। जैसे ही वह ठिकाने से बाहर आते है वहा बाहर सुखा हुआ खेजड़ी का तिनका था उसे लिया, और वह शमशान पहुंचे और उन्होंने उस तिनके को वहा लगाया और कहा यह हरा भरा हो जाए तो में मानूंगा की यह देवी है। दो चार दिन बाद वह तिनका हरा भरा हो गया और एक बड़ा वृक्ष बन गया। उसके बाद से रानी भटियानी को पूजा जाने लगा।

रानी भटियानी मंदिर जसोल बालोतरा की वास्तुकला और संरचना

यह मंदिर माता रानी भटियानी (स्वरूप कँवर) को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग माजीसा के रूप में पूजते हैं। मंदिर का प्रबंधन श्री रानी भटियानी मंदिर संस्थान द्वारा किया जाता है।

रानी भटियानी मंदिर जसोल प्रवेश द्वार
रानी भटियानी मंदिर जसोल प्रवेश द्वार

मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली में है, जो जटिल नक्काशी और सजावट के लिए जानी जाती है। मंदिर के गर्भगृह में माता रानी भटियानी की मूर्ति स्थापित है, जो रंग-बिरंगे वस्त्रों और आभूषणों से सजी है। यह भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है और पूजा का मुख्य स्थान है। परिसर में सवाई सिंह भोमिया और अन्य वीरों की छतरियाँ (स्मारक) हैं, जो मरुस्थलीय वातावरण में ऐतिहासिकता का आभास कराते हैं।

रानी भटियानी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माता रानी भटियानी (माजिसा) की मूर्ति
रानी भटियानी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माता रानी भटियानी (माजिसा) की मूर्ति

रानी भटियानी मंदिर जसोल बाड़मेर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: रानी भटियानी मंदिर राजस्थान के बालोतरा जिले की पचपदरा तहसील के जसोल गाँव में स्थित है।

मंदिर तक पहुंचने के तरीके निम्न प्रकार है:

  • सड़क मार्ग: सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे आम और सुविधाजनक तरीका है। बाड़मेर से जसोल की दूरी लगभग 53 किलोमीटर है। आप बाड़मेर से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन का उपयोग करके आसानी से जसोल पहुँच सकते हैं। बालोतरा से जसोल लगभग 15-20 किलोमीटर दूर है। बालोतरा से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर तक पहुंच सकते है।
  • रेल मार्ग: रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए बालोतरा जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो जसोल से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से जसोल तक पहुँच सकते हैं। बाड़मेर रेलवे स्टेशन एक अन्य विकल्प है, जो जसोल से 53 किलोमीटर दूर है।
  • हवाई मार्ग: हवाई यात्रा के लिए बाड़मेर में कोई हवाई अड्डा नहीं है, लेकिन निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो जसोल से लगभग 165 किलोमीटर दूर है। जोधपुर हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से बालोतरा या बाड़मेर तक पहुंच सकते हैं, और उसके बाद फिर जसोल तक का सफर पूरा कर सकते हैं।

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