रसिया बालम मंदिर, माउंट आबू, सिरोही, राजस्थान में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो रसिया बालम और कुंवारी कन्या की लगभग 1100 साल से भी अधिक पुरानी अधूरी प्रेम कहानी के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे, अरावली की हसीन पहाड़ियों में बसा है। मंदिर का संबंध नक्की झील से है, जिसे रसिया बालम ने एक रात में अपने नाखूनों से खोदकर बनाया था, ताकि वह राजकुमारी से विवाह कर सके। यह मंदिर प्रेमी जोड़ों और नवविवाहितों के लिए एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है, जहाँ उनकी मनोकामनाएँ पूरी होने की मान्यता है।
रसिया बालम मंदिर माउंट आबू (Rasiya Balam Temple Mount Abu)
मंदिर का नाम:- | रसिया बालम मंदिर (Rasiya Balam Temple) |
स्थान:- | दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे, माउंट आबू, सिरोही, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | रसिया बालम और कुंवारी कन्या |
निर्माण:- | लगभग 1100 वर्ष से अधिक पुराना |
रसिया बालम मंदिर माउंट आबू (सिरोही) का इतिहास
रसिया बालम मंदिर का इतिहास माउंट आबू की प्रसिद्ध नक्की झील और रसिया बालम-कुंवारी कन्या की प्रेम कहानी से गहराई से जुड़ा है। रसिया बालम मंदिर लगभग 1100 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। रसिया बालम मंदिर में रसिया बालम और कुंवारी कन्या को समर्पित दो छोटे मंदिर दिलवाड़ा जैन मंदिरों के पीछे स्थित हैं।
किंवदंती के अनुसार, रसिया बालम एक प्रतिभाशाली मूर्तिकार था। बालमरसिया का जन्म गुजरात के पाटन में एक साधारण परिवार में हुआ था। वह माउंट आबू में दिलवाड़ा जैन मंदिर में मजदूरी करने आया था और उसे वहाँ की राजकुमारी (कुंवारी कन्या) से प्रेम हो गया। राजकुमारी भी उससे प्रेम करती थी। राजा ने उनकी शादी के लिए एक असंभव शर्त रखी: जो व्यक्ति एक रात में बिना औजारों के झील खोद देगा, उससे वह अपनी बेटी का विवाह कराएगा।
रसिया बालम, जो माँ अर्बुदा देवी (अधर देवी) का भक्त था, उसने उनका आशीर्वाद लिया और अपने नाखूनों से एक रात में नक्की झील खोद डाली। लेकिन राजकुमारी की माँ, जो इस विवाह के खिलाफ थी, तो उसने एक षड्यंत्र रचा। और उसने रात में ही मुर्गा बनकर मुर्गे की आवाज़ निकाली, जिससे रसिया बालम को लगा कि सुबह हो गई है और वह शर्त हार गया है। निराश होकर उसने अपने प्राण त्याग दिए। जब राजकुमारी को इस षड्यंत्र का पता चला, तो वह भी दुखी होकर पत्थर की मूर्ति बन गई। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रसिया बालम के श्राप के कारण राजकुमारी की माँ भी पत्थर बन गई। इस घटना के स्मरण में रसिया बालम और कुंवारी कन्या का मंदिर स्थापित हुआ था।
एक अन्य मान्यता है कि चार युग बीतने के बाद रसिया बालम और कुंवारी कन्या का मिलन होगा, जो मंदिर के दो पेड़ों (रसिया बालम का तोरण) और हवन कुंड से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है। मंदिर के पास पत्थरों के एक ढेर पर पत्थर फेंकने की स्थानीय परंपरा का उल्लेख मिलता है, जिसे राजकुमारी की माँ माना जाता है और यह प्रेमियों के रास्ते में बाधा के खिलाफ एक प्रतीकात्मक कार्य है। दुखद अंत और पत्थर फेंकने का कार्य इस प्रेम कहानी में स्थानीय समुदाय के भावनात्मक निवेश को प्रकट करता है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है।
रसिया बालम की प्रेमकथा आज भी माउंट आबू और सिरोही के आसपास के क्षेत्रों में लोकगीतों के रूप में प्रसिद्द है। रसिया बालम पर “रसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे…स्थानीय भाषा में ये लोकगीत प्रसिद्ध है। इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्तिकला का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर कुंवारी कन्या से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है।
रसिया बालम मंदिर माउंट आबू (सिरोही) की वास्तुकला और संरचना
रसिया बालम मंदिर, माउंट आबू, सिरोही, राजस्थान में दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे, अरावली की तलहटी में स्थित एक मंदिर है। यह मंदिर अपनी पौराणिक प्रेम कहानी और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है, लेकिन इसकी वास्तुकला और संरचना जटिल नक्काशी या भव्यता के बजाय सादगी और प्रतीकात्मकता पर आधारित है।
यहाँ दो प्रमुख छोटे मंदिर बने हुए हैं — एक रसिया बालम का, जिसमे रसिया बालम की मूर्ति स्थापित है और दूसरा कुंवारी कन्या का, जिसमे कुंवारी कन्या (राजकुमारी) की मूर्ति स्थापित है। ये मंदिर लगभग एक-दूसरे के आमने-सामने स्थित हैं।

मंदिर परिसर में दो पेड़ हैं, जिन्हें “रसिया बालम का तोरण” कहा जाता है। ये पेड़ प्रेम और मिलन के प्रतीक हैं। इन पेड़ों के बीच एक हवन कुंड स्थित है, जो धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा के लिए उपयोग किया जाता है। यह हवन कुंड रसिया बालम के तोरण के बीच स्थित है और मंदिर की आध्यात्मिकता को बढ़ाता है। किंवदंती है कि चार युग बीतने के बाद रसिया बालम और कुंवारी कन्या का मिलन होगा, और यह तोरण उस मिलन का प्रतीक है।

इन मंदिरो के पास एक पत्थरो का ढ़ेर है। भक्तो द्व्रारा यहाँ पत्थर फेंकने की स्थानीय परंपरा है, जिसे राजकुमारी की माँ माना जाता है और यह प्रेमियों के रास्ते में बाधा के खिलाफ एक प्रतीकात्मक कार्य है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है।

रसिया बालम मंदिर माउंट आबू (सिरोही) तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: रसिया बालम मंदिर, माउंट आबू, सिरोही, राजस्थान में दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे स्थित है।
माउंट आबू तक पहुंचने के विकल्प:
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है, जो माउंट आबू से लगभग 180 किलोमीटर दूर है। वहाँ से टैक्सी, बस या स्थानीय परिवहन से माउंट आबू पहुंचा जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, अहमदाबाद (230 किमी) या जोधपुर (270 किमी) के हवाई अड्डे का उपयोग किया जा सकता है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन आबू रोड है, जो माउंट आबू से 27 किलोमीटर दूर है। आबू रोड से माउंट आबू तक टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से पंहुचा जा सकता हैं।
- सड़क मार्ग: माउंट आबू राष्ट्रीय राजमार्ग 62 से जुड़ा है।
रसिया बालम मंदिर तक पहुंचने के विकल्प
रसिया बालम मंदिर दिलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे, माउंट आबू में स्थित है, जो मुख्य शहर से लगभग 2-3 किलोमीटर दूर है। माउंट आबू के मुख्य बाजार या बस स्टैंड से टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। दिलवाड़ा जैन मंदिर से मंदिर तक की दूरी बहुत कम है और पैदल भी आसानी से तय की जा सकती है।