सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही | Sarneshwar Mahadev Temple Sirohi

सारणेश्वर महादेव मंदिर, सिरोही, राजस्थान में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो सिरणवा पहाड़ियों की तलहटी में शहर के केंद्र में बसा है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर सिरोही के देवड़ा चौहान राजवंश का कुलदेवता स्थल है और स्थानीय समुदाय की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

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सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही (Sarneshwar Mahadev Temple Sirohi)

मंदिर का नाम:-सारणेश्वर महादेव मंदिर (Sarneshwar Mahadev Temple)
स्थान:-सिरोही शहर, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान शिव (सारणेश्वर महादेव)
निर्माण:-1298 ईस्वी
प्रसिद्ध त्यौहार:-महाशिवरात्रि, सावन

सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही का इतिहास

सारणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना सिरोही के तीसरे शासक महाराव विजयराजजी (1250-1311 ईस्वी) ने की थी। सिरोही राज्य की स्थापना 1206 ईस्वी में देवड़ा चौहान वंश द्वारा हुई थी, और यह मंदिर इस वंश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।

मंदिर की स्थापना की कहानी 1298 ईस्वी की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना से जुड़ी है। उस समय दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात के सोलंकी साम्राज्य पर आक्रमण किया और सिद्धपुर में रुद्रमल शिवालय को नष्ट कर दिया था।

उन्होंने वहाँ के पवित्र शिवलिंग को गाय की खाल में लपेटकर और जंजीरों से बाँधकर दिल्ली की ओर ले जाने का प्रयास किया था। इस अपमान से क्रुद्ध होकर, सिरोही के महाराव विजयराजजी ने अपने भतीजे जालोर के कान्हड़देव सोनिगरा और मेवाड़ के महाराणा रतन सिंह के साथ मिलकर सुल्तान की सेना का पीछा किया।

सिरनावा पहाड़ियों की तलहटी में एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें सिरोही, जालोर, और मेवाड़ की संयुक्त सेनाओं ने शिवलिंग को सुरक्षित बचाया। युद्ध में विजय के बाद, दीपावली के दिन महाराव विजयराजजी ने रुद्रमल के शिवलिंग को सिरनावा पहाड़ी के शुक्ल तीर्थ के सामने स्थापित किया था।

इस युद्ध में तलवारों (क्षार) के व्यापक उपयोग के कारण मंदिर का नाम प्रारंभ में “क्षारणेश्वर” रखा गया था। लेकिन समय के साथ, यह नाम “सारणेश्वर” में बदल गया। यह शिवलिंग आज भी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है और भक्तों द्वारा अत्यंत पवित्र माना जाता है।

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परन्तु 10 महीने बाद खिलजी एक विशाल सेना को तैयार कर अपना बदला लेने की दृष्टि से उसने 1299 ईस्वी सन् के भाद्र मास में सिरोही पर आक्रमण किया। उसने संकल्प लिया कि वो क्षारणेश्वर के शिवलिंग को तोडकर उसके टुकडे-टुकडे करेगा एवं सिरोही नरेश का सिर काटेगा। तब सिरोही की प्रजा ने सिरोही नरेश से विनती की कि धर्म की रक्षा के लिए वे सब मर मिटने को तैयार है। उस भीषण युद्ध में ब्राहमणों ने इतना बलिदान दिया कि सवा मण जनेव; यज्ञो पवितद्ध उतरी थी एवं रबारियो ने सिरणवा पहाड के हर पत्थर एवं पेड के पीछे खडे होकर गोफन से सेना पर ऐसा भीषण प्रहार किया कि उसे पराजित होना पडा।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी पर ईश्वरीय प्रकोप हुआ और उसे भंयकर कोढ हो गया जो भगवान शंकर के शुक्ल तीर्थ के जल से स्नान करने से ठीक हुआ था। तब सुल्तान ने हार मानी एवं यह वचन दिया कि वो पुनः कभी सिरोही पर आक्रमण नही करेगा और अपने साथ जो धन था वो भगवान शंकर को अर्पित कर चला गया, जिससे अन्दर का सफेद परकोटा बना है।

इस युद्ध में गोफन द्वारा रेबारियों के महान योगदान के कारण महाराव विजयराजजी ने रेबारियों को सम्मानित करते हुए, भादवा महीने की शुक्ल पक्ष की ग्यारश के दिन, जिस दिन उनकी विजय हुई थी, पर श्री क्षारणेश्वर महादेव का मेला रखा एंव रेबारियों को उस एक दिन के लिए मंदिर का चार्ज सौपा गया और यह परम्परा आज दिन तक चली आ रही हैं।

सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही की वास्तुकला और संरचना

मंदिर की वास्तुकला की एक प्रमुख विशेषता इसका किले जैसा डिजाइन है, जिसमें प्रभावशाली चारदीवारी (दो लंबी दीवारें), बुर्ज और चौकी (प्रहरीदुर्ग), और अतिरिक्त प्रहरीदुर्गों से घिरे एक भव्य प्रवेश द्वार की विशेषता है।

मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक प्राचीन शिवलिंग को समर्पित है, जो 1298 ईस्वी में सिद्धपुर (गुजरात) के रुद्रमाल शिवालय से लाया गया था। गर्भगृह में शक्ति (दुर्गा) की मूर्ति भी स्थापित है, जो शिव के साथ पूजनीय है।

मंदिर दो परकोटों से घिरा है:

  • आंतरिक परकोटा: यह सफेद पत्थरों से बना है और सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दान से निर्मित हुआ था। यह परकोटा मंदिर की शोभा बढ़ाता है और इसकी ऐतिहासिक कहानी को दर्शाता है।
  • बाहरी परकोटा: यह मंदिर को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है और सिरणवा पहाड़ी पर फैला हुआ है। परकोटों के साथ कई प्रहरी बुर्ज (वॉचटावर) हैं, जो मंदिर की रक्षात्मक प्रकृति को और मजबूत करते हैं।
  • प्रवेश द्वार: मंदिर का प्रवेश द्वार एक प्रभावशाली गेट है, जिसके दोनों ओर दो प्रहरी बुर्ज हैं। यह गेट मंदिर की शाही और रक्षात्मक विरासत को दर्शाता है।

मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं:

  • चामुंडा माता मंदिर: परिसर में एक महत्वपूर्ण उप-मंदिर।
  • हनुमान मंदिर: प्रवेश द्वार पर हनुमान की मूर्ति, जिसे 1470 ईस्वी में महारानी अपूर्वा देवी ने स्थापित किया था।
  • विष्णु और शिव मंदिर: परिसर में कई छोटे मंदिर हैं, जिनमें समय के साथ पॉलिश हुई मूर्तियाँ हैं।
  • 108 छोटे शिवलिंग: मुख्य शिवलिंग के चारों ओर 108 छोटे शिवलिंग स्थापित हैं, जो मंदिर की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाते हैं।
  • गणेश और हनुमान के छोटे वेदी: प्रवेश द्वार से पहले दो छोटी वेदियाँ हैं—बाईं ओर हनुमान (भक्ति के लिए) और दाईं ओर गणेश (सौभाग्य के लिए)।

मंदिर के पास कई जल स्रोत हैं, जो इसकी पवित्रता को बढ़ाते हैं:

  • शुक्ल तीर्थ: मंदिर के निकट एक पवित्र जल स्रोत, जिसके जल को चिकित्सीय गुणों वाला माना जाता है। किंवदंती है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का कुष्ठ रोग इस जल से ठीक हुआ था।
  • मंदाकिनी तालाब: यह तालाब पवित्र स्नान के लिए उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से महाशिवरात्रि और अन्य त्योहारों के दौरान। तालाब के किनारे देवड़ा चौहान शासकों के छत्रियाँ (स्मारक) हैं।
  • गोमुख: मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक गाय के मुख के आकार का तालाब है, जो वर्षा ऋतु में मंदाकिनी तालाब तक बहता है।
  • अन्य तालाब: परिसर में कई छोटे तालाब हैं, जो पहाड़ी से आने वाले प्राकृतिक स्रोतों से भरे हुए हैं।

मंदिर के प्रवेश द्वार पर तीन बड़ी हाथियों की मूर्तियाँ हैं, जो काले रंग में रंगी हुई हैं और सशस्त्र पुरुषों द्वारा सवार की जाती हैं। दो मूर्तियाँ प्रवेश द्वार पर और एक मूर्ति सामने है। ये मूर्तियाँ मंदिर की शाही और रक्षात्मक विरासत को दर्शाती हैं।

सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: सारणेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान के सिरोही शहर के मध्य में, सिरणवा पहाड़ी के पास स्थित है।

सारणेश्वर महादेव मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा उदयपुर है, जो सिरोही से लगभग 178 किमी दूर है। उदयपुर हवाई अड्डे से सिरोही तक टैक्सी या बस से पंहुचा जा सकता है।
  • रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन सिरोही रोड रेलवे स्टेशन (पिंडवाड़ा के नाम से भी जाना जाता है), मंदिर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। वैकल्पिक रूप से, आबू रोड रेलवे स्टेशन (लगभग 28 किलोमीटर) भी उपयोग किया जा सकता है। सिरोही रोड स्टेशन से मंदिर तक टैक्सी या ऑटो-रिक्शा उपलब्ध हैं।
  • सड़क मार्ग: सिरोही राष्ट्रीय राजमार्ग 62 और अन्य राज्य राजमार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा है। सिरोही बस स्टैंड से मंदिर तक ऑटो-रिक्शा या टैक्सी ले सकते हैं। यदि आप निजी वाहन से यात्रा कर रहे हैं, तो सिरोही तक पहुंचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 62 का उपयोग करें।

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