सावित्री माता मंदिर पुष्कर: इतिहास, वास्तुकला, संरचना और मंदिर तक कैसे पहुंचे?

सावित्री माता मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर के रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान ब्रह्माजी की पहली पत्नी सावित्री माता को समर्पित है। यह मंदिर लगभग 750 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। तीर्थयात्री रोपवे और पैदल मंदिर तक पहुंच सकते है।

सावित्री माता मंदिर पुष्कर (Savitri Mata Temple Pushkar)

मंदिर का नाम:-सावित्री माता मंदिर (Savitri Mata Temple)
स्थान:-रत्नागिरि पहाड़ी, पुष्कर, अजमेर जिला, राजस्थान
समर्पित देवता:-देवी सावित्री (भगवान ब्रह्मा की प्रथम पत्नी)
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, रथ सप्तमी

सावित्री माता मंदिर पुष्कर का इतिहास

सावित्री माता मंदिर पुष्कर से जुड़ी पौराणिक कथा

पद्म पुराण के अध्याय 17 के सृष्टि खंड में वर्णित कथाओं के अनुसार वज्रनाभ (या वज्रनाश) नामक एक राक्षस ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था और वह लोगों को मार रहा था। इस अधर्म को समाप्त करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अपने हाथ में धारण किए हुए कमल के पुष्प को आयुध के रूप में प्रयोग किया और असुर का वध किया था। इस दौरान कमल की तीन पंखुड़ियां पृथ्वी के तीन अलग-अलग स्थानों पर गिरीं, जिससे तीन पवित्र सरोवरों ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर का निर्माण हुआ था।

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वज्रनाभ राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्मा ने ज्येष्ठ पुष्कर में एक पवित्र यज्ञ करने का निर्णय लिया। यज्ञ की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, उन्होंने चारों दिशाओं में पहाड़ियों का निर्माण किया—दक्षिण में रत्नागिरी, उत्तर में नीलगिरी, पश्चिम में संचूरा, और पूर्व में सूर्यगिरी—और वहां देवताओं को पहरेदार के रूप में नियुक्त किया था।

वैदिक परंपरा के अनुसार, कोई भी यजमान अपनी पत्नी के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं कर सकता। ब्रह्मा ने यज्ञ का आयोजन किया, किन्तु उनकी पत्नी सावित्री (जिन्हें सरस्वती का रूप भी माना जाता है) समय पर नहीं पहुंच सकीं। वे अपनी सखियों—लक्ष्मी, पार्वती और इन्द्राणी—की प्रतीक्षा कर रही थीं।

यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकलता जा रहा था। इस संकट को देखते हुए, ब्रह्मा जी ने देवराज इन्द्र को आदेश दिया कि वे तत्काल एक कन्या ढूंढकर लाएं जिससे विवाह कर यज्ञ को पूर्ण किया जा सके। इन्द्र ने एक स्थानीय गुर्जर (ग्वाला) कन्या को चुना। उसे पवित्र करने के लिए, उसे गाय के शरीर (योनि) से गुजारा गया, जिससे उसका नाम गायत्री पड़ा और उसे द्विज (ब्राह्मण) का दर्जा प्राप्त हुआ। ब्रह्मा ने गायत्री से विवाह कर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया था।

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जब सावित्री वहां पहुंचीं और उन्होंने ब्रह्मा जी को किसी अन्य स्त्री को बैठे देखा, तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध ने न केवल ब्रह्मा के भविष्य को, बल्कि पूरे हिंदू देवमंडल के पूजन विधान को बदल दिया था। क्रोधित देवी सावित्री ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया और कहा कि उनकी पूजा कभी कोई नहीं करेगा। देवताओं द्वारा माता सावित्री से प्रार्थना करने पर, उन्होंने अपने श्राप का प्रभाव कम कर दिया। उन्होंने कहा कि पुष्कर ही एकमात्र ऐसा स्थान होगा जहाँ लोग भगवान ब्रह्मा की पूजा कर सकेंगे।

सावित्री माता ने भगवान इंद्र को शक्तिहीन और युद्धों में आसानी से पराजित होने का श्राप दिया और भगवान विष्णु को मानव रूप में रहते हुए अपनी पत्नी से वियोग (दूर) होने का श्राप दिया था। उन्होंने अग्नि को भी श्राप दिया कि वह भस्म करने और नष्ट करने में सक्षम हो जाएँ और यज्ञ में सहायता करने वाले पुरोहित सदैव दरिद्र रहेंगे।

इन श्रापों के बाद सावित्री ने ब्रह्माजी के साथ रहने से इनकार कर दिया। वह यज्ञ स्थल छोड़कर पास की सबसे ऊंची पहाड़ी, रत्नगिरी पर चली गईं। वहाँ उन्होंने घोर तपस्या की और घाटी पर अपनी नजर बनाए रखी। स्थानीय मान्यताओं और पद्म पुराण के अनुसार, उनका क्रोध और तपस्या अंततः द्रवित होकर एक जलधारा के रूप में परिवर्तित हो गया, जिसे सावित्री झरना कहा जाता है, जो आज भी मंदिर के पास बहता है।

मंदिर का ऐतिहासिक निर्माण और कालक्रम

मंदिर के गर्भगृह में स्थापित मूर्तियां 7वीं शताब्दी से पूर्व की मानी जाती हैं। मंदिर का प्रारंभिक निर्माण मध्ययुगीन काल का माना जाता है , ऐतिहासिक विवरण इसे 1835 ईस्वी के आसपास मारवाड़ के महाराजा अजीत सिंह के पुरोहित जैसे क्षेत्रीय शासकों के संरक्षण से जोड़ते हैं। वर्तमान संरचना का पुनर्निर्माण 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बांगर परिवार द्वारा किया गया था।

सावित्री माता मंदिर पुष्कर की वास्तुकला और संरचना

सावित्री माता मंदिर पारंपरिक राजस्थानी शैली में बना हुआ है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से सफेद संगमरमर और स्थानीय पत्थर से किया गया है। मंदिर के ऊपर एक पारंपरिक उत्तर भारतीय शैली का शिखर बना हुआ है। गर्भगृह के सामने एक छोटा स्तंभयुक्त मंडप है, जहाँ भक्त एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं। दीवारों और स्तंभों पर जटिल नक्काशी की गई है।

इस मंदिर के मुख्य गर्भगृह में देवी सावित्री की प्रतिमा स्थापित है। और देवी सावित्री की प्रतिमा के बाई ओर देवी सरस्वती तथा दाई ओर देवी शारदा की प्रतिमा स्थापित है। यहाँ यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि सामान्य पौराणिक कथाओं में सावित्री और सरस्वती को एक ही माना जाता है, लेकिन इस मंदिर के विशिष्ट अनुष्ठानिक में उन्हें देवी के अलग-अलग स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है। इसके अतिरिक्त, मंदिर परिसर में गायत्री की मूर्ति भी स्थापित है।

सावित्री माता मंदिर पुष्कर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: सावित्री माता मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर में स्थित है।

हवाई मार्ग

पुष्कर तक हवाई मार्ग से पहुँचने के रणनीतिक रूप से दो हवाई अड्डे जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और नव विकसित किशनगढ़ हवाई अड्डा है।

  • जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो पुष्कर से लगभग 150-160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, अधिकांश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए प्राथमिक प्रवेश बिंदु बना हुआ है। यह हवाई अड्डा भारत के सभी प्रमुख महानगरों (दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, कोलकाता) और अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों (जैसे दुबई, मस्कट) से सीधे जुड़ा हुआ है। यह व्यापक नेटवर्क यात्रियों को उड़ान के समय और एयरलाइनों के चयन में लचीलापन प्रदान करता है, जो विशेष रूप से उन तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है जो सीमित समय के लिए यात्रा कर रहे हैं। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं। पुष्कर पहुंचने के बाद आप पैदल सीढियों से या रोपवे से मंदिर तक पहुंच सकते हो।
  • किशनगढ़ हवाई अड्डा: अजमेर के पास स्थित किशनगढ़ हवाई अड्डा, जिसे ‘अजमेर हवाई अड्डे’ के रूप में भी जाना जाता है, पुष्कर के लिए निकटतम हवाई अड्डा है, जो सावित्री माता मंदिर से केवल 40 से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत सरकार की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (UDAN) के तहत विकसित, यह हवाई अड्डा उन तीर्थयात्रियों के लिए है, जो जयपुर के ट्रैफिक से बचना चाहते हैं। वर्तमान में, यहाँ दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहरों से सीमित उड़ानें संचालित होती हैं। हवाई अड्डे से आप ऑटो, टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं। पुष्कर पहुंचने के बाद आप पैदल सीढियों से या रोपवे से मंदिर तक पहुंच सकते हो।

रेल मार्ग

अजमेर जंक्शन उत्तर-पश्चिम भारत के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों में से एक है। यह दिल्ली-अहमदाबाद-मुंबई मुख्य लाइन पर स्थित है, जो इसे देश के लगभग हर हिस्से से जोड़ता है। अजमेर के लिए नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद से सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। अजमेर जंक्शन पुष्कर से लगभग 14 से 15 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं। पुष्कर पहुंचने के बाद आप पैदल सीढियों से या रोपवे से मंदिर तक पहुंच सकते हो।

सड़क मार्ग

मंदिर अजमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके पुष्कर पहुँच सकते हैं। पुष्कर पहुंचने के बाद आप पैदल सीढियों से या रोपवे से मंदिर तक पहुंच सकते हो।


सावित्री माता मंदिर पुष्कर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. सावित्री माता का मंदिर कहां स्थित है?

    सावित्री माता मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर बना हुआ है, जहाँ से आप पुष्कर झील और घाटी के सुंदर नज़ारे देख सकते हैं। यहाँ पहुँचने के लिए आप ट्रेकिंग (पैदल सीढियों के माध्यम से) कर सकते हैं या रोपवे का उपयोग कर सकते हैं।

  2. सावित्री माता मंदिर रोपवे कहां स्थित है?

    सावित्री माता मंदिर रोपवे पुष्कर की बड़ी बस्ती क्षेत्र में स्थित है। यह रोपवे भक्तों को नीचे तलहटी से पहाड़ी की चोटी पर स्थित सावित्री माता मंदिर तक ले जाता है। यह उन लोगों के लिए बहुत सुविधाजनक है जो पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते है।

  3. सावित्री माता के मंदिर में कितनी सीढ़ियां हैं?

    पुष्कर में सावित्री माता मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 900 से अधिक सीढ़ियाँ हैं।

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