शाकंभरी माता मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के उदयपुरवाटी तहसील में सकराय गांव में अरावली पहाड़ियों की गोद में बसा एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस मंदिर को सकराय धाम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर माता दुर्गा के सौम्य अवतार शाकंभरी माता को समर्पित है, जिन्हें “सब्जियों की देवी” के रूप में पूजा जाता है। शाकंभरी माता चौहान वंश की कुलदेवी हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान, मंदिर भजनों, गरबा और लंगर के साथ लाखों भक्तों से जीवंत हो उठता है।
शाकंभरी माता मंदिर सीकर (Shakambhari Mata Temple Sikar)
मंदिर का नाम:- | शाकंभरी माता मंदिर (Shakambhari Mata Temple) |
अन्य नाम:- | सकराय धाम (Sakrai Dham) |
स्थान:- | सकराय गांव, उदयपुरवाटी तहसील, सीकर, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | शाकंभरी माता ब्रह्माणी और रुद्राणी के रूप (आदिशक्ति मां दुर्गा का अवतार) |
निर्माण वर्ष:- | 7वीं शताब्दी |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | नवरात्रि (चैत्र और आश्विन मास) |
शाकंभरी माता मंदिर सीकर का इतिहास
शाकंभरी माता मंदिर एक प्राचीन शक्तिपीठ है, जिसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है।
देवी शाकंभरी की पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों में मां शाकंभरी देवी को आदिशक्ति मां दुर्गा का एक सौम्य स्वरूप माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दुर्गम नामक एक महान दैत्य था। उस दुष्टात्मा दानव के पिता राजा रूरू थे। उसने हिमालय पर्वत पर कई वर्षों तक ब्रह्माजी की तपस्या की थी। और ब्रह्माजी से वरदान में चारों वेदों को प्राप्त कर लिया, ऋषियों की सभी शक्तियां दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई तथा यह आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया कि देवताओं को समर्पित समस्त पूजा उसे प्राप्त होनी चाहिये।
उसके बाद उस दैत्य ने लोगों पर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया और धर्म के क्षय ने गंभीर सूखे को जन्म दिया और सौ वर्षों तक कोई वर्षा नहीं हुई थी। उस दैत्य के अत्याचार से परेशान होकर ऋषि मुनि और अन्य लोग हिमालय पर्वत पर पहुंचे और देवी जगदम्बा की उपासना करने लगे थे।
ऋषि मुनि और अन्य लोगो की तपस्या से खुश होकर देवी फल, सब्जी, जड़ी-बूटी, अनाज, दाल और पशुओं के खाने योग्य कोमल एवं अनेक रस से सम्पन्न नवीन घास फूस लिए हुए प्रकट हुईं और अपने हाथ से उन्हें खाने के लिये दिये थे। शाक का तात्पर्य सब्जी होता है, इस प्रकार माता का नाम उसी दिन से ”शाकम्भरी” पड गया था।
ऋषियों और लोगों की दुर्दशा को देख कर उनकी अनगिनत आँखों से लगातार नौ दिन एवं रात्रि तक आँसू बहते रहे। यह आँसू एक नदी में परिवर्तित हो गए जिससे सूखे का समापन हो गया था। वे अनगिनत आँखें भी रखती थीं। इसलिए उन्हें सताक्षी के नाम से जाना जाता है।
उसके बाद मां जगदम्बा ने शाकंभरी देवी का अवतार लिया और दुर्गम नामक दैत्य का अंत किया था। तब वेदों का ज्ञान और ऋषियों की सभी शक्तियां जो दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई थीं, दानव दुर्गम को मारने से सभी शक्तियां सूर्य के समान चमकदार सुनहरे प्रकाश में परिवर्तित हो गयीं और शाकम्बरी देवी के शरीर में प्रवेश कर गयीं थी। उसके बाद शाकम्बरी देवी ने सभी वेद और शक्तियां को देवताओं को वापस कर दिया था।
कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके थे। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है।
शाकंभरी के सिद्धपीठों में सकराय धाम का स्थान
देशभर में मां शाकंभरी देवी के तीन प्रमुख सिद्धपीठ माने जाते हैं: सकराय पीठ (सीकर), सांभर पीठ (राजस्थान), और सहारनपुर पीठ (उत्तर प्रदेश)। सीकर का सकराय धाम पंचकोसी सिद्धपीठ कहलाता है, और इसकी महिमा का वर्णन श्रीदेवी भागवत में मिलता है।
मंदिर का पुरातात्विक कालक्रम और स्थापत्य नींव
सीकर स्थित शाकंभरी माता मंदिर की ऐतिहासिकता शिलालेखों और पुरालेखीय साक्ष्यों पर आधारित है। शिलालेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार शाकंभरी माता मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर की नींव 7वीं शताब्दी में खंडेलवाल वैश्यों (धूसर और धरकट) द्वारा डाली गई थी और वे इसके मूल संरक्षक हैं, यह शक्तिपीठ समय के साथ अनेक समुदायों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था। शाकंभरी माता चौहान वंश के साथ-साथ मोदी, अग्रवाल और अन्य कई समुदायों द्वारा भी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं।
एक शिलालेख, जिसका उल्लेख विक्रम संवत 749 (अनुमानित 692 ईस्वी) के रूप में मिलता है। इस अभिलेख के प्रथम छंद में गणपति, द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका (देवी शंकरा), और तृतीय छंद में धनदाता कुबेर जी की भावपूर्ण स्तुति लिखी हुई है। यह शिलालेख 7वीं शताब्दी के अंत तक मंदिर परिसर में बहु-देवता पूजा के प्रचलन और मंदिर के स्थापित महत्व की पुष्टि करता है। आरंभिक काल से ही इस शक्तिपीठ पर नाथ सम्प्रदाय का गहरा वर्चस्व रहा है, जो वर्तमान समय में भी कायम है।
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण पुरालेखीय साक्ष्य मंदिर के मुख्य दरवाजे और गुंबज की दीवार पर लगी पीतल की पट्टिकाओं में मौजूद है। इन पट्टिकाओं पर ब्राह्मणी व पाली भाषा में लेख अंकित हैं। ये लेख संवत 759 (लगभग 702 ईस्वी) में उस समय के क्षेत्रीय शासकों द्वारा माता के मंदिर का जीर्णोद्धार (नवीनीकरण) करवाए जाने की जानकारी देते हैं।
इतिहास में यह उल्लेख मिलता है कि 8वीं शताब्दी के महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य इस स्थान पर आए थे और उन्होंने यहाँ अपना आश्रम भी स्थापित किया था। उनका आगमन मंदिर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दार्शनिक मोड़ था। शंकराचार्य ने यहाँ निवास करते हुए देवी की मुख्य प्रतिमा के दाहिनी ओर भीमा और भ्रामरी देवी तथा बाईं ओर शताक्षी देवी की मूर्तियों की स्थापना की थी।
वर्तमान में, मंदिर परिसर का प्रबंधन और संचालन सामाजिक कल्याण पर भी ध्यान केंद्रित करता है। मंदिर गौशाला का संचालन करता है, जहाँ गायों के साथ-साथ ऊंट और घोड़ों की भी देखभाल की जाती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन (अन्न क्षेत्र) और रुकने की भी व्यापक व्यवस्था है।
शाकंभरी माता मंदिर सीकर की वास्तुकला और संरचना
शाकम्भरी माता मंदिर सीकर में पारंपरिक राजस्थानी वास्तुकला की झलक मिलती है, जिसमें जटिल नक्काशी और चित्रकारी का काम शामिल है। यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। मंदिर का प्रवेश द्वार भव्य और सुंदर कलाकृतियों से सजा हुआ है। मुख्य मंदिर की एक आकर्षक विशेषता सभा मंडप की छत पर की गई काँच की सुंदर कारीगरी है। तथा मंदिर के मुख्य गर्भगृह में शाकंभरी देवी की रुद्राणी और ब्रह्माणी के रूप में प्रतिमा स्थापित है। जिनके बीच एक स्वतः प्रकट हुई छोटी मुख्य प्रतिमा भी विराजमान है।
मंदिर के गर्भगृह में सुंदर चांदी का काम किया गया है। मुख्य मंदिर एक विशाल सभा मंडप और ऊँचे शिखर (गुंबद) से युक्त है, जो इसे एक भव्य रूप प्रदान करता है। मंदिर की परिक्रमा में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं, जो सुंदर स्थापत्य कला का प्रदर्शन करती हैं। मंदिर परिसर के आसपास जटाशंकर महादेव मंदिर और आत्म मुनि आश्रम भी स्थित हैं, जो इसके धार्मिक और वास्तुशिल्प महत्व को बढ़ाते हैं।
शाकंभरी माता मंदिर सीकर के त्योहार और उत्सव
सकराय धाम सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है, लेकिन चैत्र और आश्विन मास के दोनों नवरात्रों के दौरान यहाँ अच्छी खासी भीड़ होती है। इसके अतिरिक्त, भादवा सुदी अष्टमी को यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन होता है। इन धार्मिक पर्वों के दौरान, जात जडूला (बच्चों का मुंडन संस्कार) उतारने जैसे पारंपरिक रीति-रिवाज भी यहाँ संपन्न होते हैं।
शाकंभरी माता मंदिर सीकर तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: शाकंभरी माता का मंदिर (जिसे श्री सकराय माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है) राजस्थान में सीकर और झुंझुनू जिले की सीमा के पास उदयपुरवाटी कस्बे के पास सकराय गांव में अरावली की हरी-भरी वादियों में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने का विकल्प इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) मंदिर से लगभग 137 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन सीकर जंक्शन रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मंदिर सीकर बस स्टैंड से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। यात्री टैक्सी, बस या अन्य सड़क परिवहन सेवाएँ लेकर सीकर पहुँच सकते हैं। सीकर पहुँचने के बाद आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। शाकंभरी माता मंदिर जयपुर से लगभग 125 किलोमीटर दूर है।