श्री हथुंडी तीर्थ, जिसे राता महावीरजी के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के पाली जिले के बीजापुर गांव में स्थित जैन धर्म का एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर को समर्पित है और 4वीं शताब्दी में स्थापित 135 सेंटीमीटर ऊँची, लाल रंग की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसा यह तीर्थ अपनी शांति, आध्यात्मिकता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है।
श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) पाली [Shri Hathundi Teerth (Rata Mahavirji) Pali]
मंदिर का नाम:- | श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) |
स्थान:- | बीजापुर गाँव, पाली ज़िला, राजस्थान |
समर्पित देवता:- | भगवान महावीर स्वामी (राता महावीरजी) |
धर्म:- | जैन धर्म (श्वेतांबर संप्रदाय) |
निर्माण वर्ष:- | 313 ई. (विक्रम संवत 370) (लगभग) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महावीर जयंती, पर्युषण |
श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) पाली का इतिहास
श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) बीजापुर, पाली में एक प्राचीन जैन तीर्थ है, जिसकी स्थापना 313 ई. (विक्रम संवत 370) में हुई थी। यह माना जाता है कि श्री वीरदेव श्रेष्ठी ने आचार्य श्री सिद्धार्सूरी की प्रेरणा से इसकी नींव रखी थी। शुरू में यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित था, लेकिन बाद में भगवान महावीर की लाल रंग की मूर्ति की स्थापना के बाद यह राता महावीरजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मूर्ति को ईंटों, रेत और चूने से बनाया गया है, और यह 135 सेंटीमीटर ऊँची है, पद्मासन मुद्रा में स्थापित है। इसके आधार पर अष्टपद शेर-हाथी का अनूठा प्रतीक है, जिससे मंदिर का नाम ‘हस्तिकुंडी’ या ‘हथुंडी’ पड़ा।
10वीं शताब्दी में, 916 ई. (विक्रम संवत 973) में, राजा हरिवर्धन के पुत्र विदग्धराज ने जैन धर्म अपनाकर मंदिर का जीर्णोद्धार किया। यह पुनर्निर्माण मंदिर की वास्तुशिल्पीय और धार्मिक महत्व को और मजबूत करता है। 13वीं शताब्दी में अलमशाह के आक्रमण के दौरान मूर्ति को पास के गाँव में छिपाया गया, जिससे इसकी रक्षा हुई थी।
20वीं शताब्दी में, 1949 ई. (विक्रम संवत 2006) में, आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीजी महाराज साहब के मार्गदर्शन में मंदिर का पुनर्जनन किया गया। इस दौरान मंदिर को आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया, जैसे धर्मशाला, भोजनशाला, और स्वच्छता व्यवस्था, ताकि भक्तों और पर्यटकों को सुविधा हो।
श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) पाली की वास्तुकला और संरचना
मंदिर जैन धर्म की परंपरागत वास्तुकला को दर्शाता है, जो सादगी और मूर्ति पर ध्यान केंद्रित करती है। इसका निर्माण मुख्य रूप से स्थानीय सामग्री जैसे ईंट, रेत, और चूने से किया गया है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर में जटिल नक्काशी या मूर्तियाँ कम हैं, लेकिन भगवान महावीर की मूर्ति और उसके आसपास की संरचनाएँ ऐतिहासिक महत्व रखती हैं।
मंदिर का गर्भगृह भगवान महावीर की 135 सेंटीमीटर ऊँची, लाल रंग की मूर्ति को समेटे हुए है, जो पद्मासन मुद्रा में है। इस मूर्ति को ईंटों, रेत, और चूने से बनाया गया है, और इसके आधार पर शेर-हाथी का अनूठा प्रतीक है, जो जैन धर्म के अहिंसा और शांति के सिद्धांतों को दर्शाता है। मंदिर परिसर में 24 छोटे मंदिर (देवरी) हैं, जो 24 तीर्थंकरों को समर्पित हैं, जो जैन धर्म की समग्रता को प्रदर्शित करते हैं।
मंदिर परिसर में प्राचीन कुएँ, बावड़ियाँ, और महलों के अवशेष हैं, जो एक बड़े शहर की उपस्थिति का संकेत देते हैं, जो पहले यहाँ था। ये संरचनाएँ मंदिर की ऐतिहासिकता को और बढ़ाती हैं और बीजापुर क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। मंदिर की वास्तुकला और संरचना इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। भगवान महावीर की मूर्ति और उसके आसपास की नक्काशी जैन धर्म के अहिंसा, सत्य, और करुणा के सिद्धांतों को जीवंत करती हैं। मंदिर का शांत और प्राकृतिक परिवेश, जिसमें हरे-भरे पहाड़ और प्राचीन संरचनाएँ शामिल हैं, इसे ध्यान और भक्ति के लिए आदर्श बनाता है।
श्री हथुंडी तीर्थ (राता महावीरजी) पाली तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: श्री हथुंडी तीर्थ, जिसे राता महावीरजी के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के पाली जिले के बीजापुर गांव में स्थित एक प्राचीन और पवित्र जैन तीर्थ स्थल है।
मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल, और वायु मार्ग उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार है:
- सड़क मार्ग: पाली से बीजापुर लगभग 35-40 किलोमीटर दूर है, जहाँ 45 मिनट से 1 घंटे में पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: रेल यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जवाई बांध (लगभग 20 किलोमीटर) और फालना (लगभग 32 किलोमीटर) हैं। उसके बाद टैक्सी या ऑटो से बीजापुर तक जाएँ।
- वायु मार्ग: हवाई यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है, जो लगभग 100 किलोमीटर दूर है।