सिरे मंदिर जालौर | Sire Mandir Jalore

सिरे मंदिर, जालौर, राजस्थान का एक प्राचीन और ऐतिहासिक तीर्थस्थल है, जो भगवान शिव को समर्पित है और नाथ संप्रदाय की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। स्थानीय रूप से रत्नेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कन्याचल (कनकाचल) पहाड़ी पर जालौर किले (स्वर्णगिरी दुर्ग) के पास स्थित है।

सिरे मंदिर जालौर (Sire Mandir Jalore)

मंदिर का नाम:-सिरे मंदिर (Sire Mandir)
स्थान:-कन्याचल (कनकाचल) पहाड़ी, जालौर शहर, जालौर जिला, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान शिव (रत्नेश्वर मंदिर), नाथ संप्रदाय की तपोभूमि
निर्माण वर्ष:-विक्रम संवत 1708 (1651 ईस्वी)
निर्माता:-राजा रतन सिंह
प्रसिद्ध त्यौहार:-महाशिवरात्रि, सावन माह

सिरे मंदिर जालौर का इतिहास

सिरे मंदिर की स्थापना राजा रतन सिंह ने विक्रम संवत 1708 (1651 ईस्वी) में की थी। यह मंदिर रत्नेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और नाथ संप्रदाय की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण कन्याचल पहाड़ी पर किया गया, जो जालौर किले के पास स्थित है और 646 मीटर की ऊंचाई पर है। इसकी स्थापना के समय, यह क्षेत्र योगी जालंधर नाथ और अन्य संतों की तपस्या के लिए जाना जाता था।

मंदिर का पौराणिक महत्व योगी जालंधर नाथ की तपस्या से जुड़ा है, जिन्होंने भंवर गुफा में कठोर तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर शरण ली थी। इसके अलावा, ऋषि जाबालि का भी इस स्थान से संबंध है, जिन्होंने यहां तपस्या की थी। मंदिर के पास योगी जालंधर नाथ के पदचिन्हों के निशान भी मौजूद हैं, जो इसके पौराणिक महत्व को दर्शाते हैं। ये कथाएं मंदिर को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाती हैं।

1803 ई. में तत्कालीन मारवाड़ (जोधपुर) की गद्दी पर बैठे भीम सिंह ने गद्दी के अपने सभी संभावित उत्तराधिकारियों को मारने के प्रयास में अपने छोटे भाई मान सिंह को मारने की कोशिश की, तब मान सिंह जी वहां से भागकर जालौर किले में शरण ली थी। भीमसिंह जी ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण कर मानसिंह को पकड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी लेकिन कई समय तक जोधपुर की सेना जालौर दुर्ग को घेरे रही लेकिन दुर्ग को भेद नहीं सकी।

अंत में 1803 ई. में जब दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त हो गई तो मानसिंह जी ने निराश होकर जोधपुर सेना के सेनापति सिंघवी इंद्रराज से समझौते की बात की और जब दिवाली तक किला खाली करने का निर्णय हुआ तो दुर्ग के पास पहाड़ी पर तपस्या कर रहे नाथ संप्रदाय के योगी गुरु अयास देवनाथ ने मानसिंह जी को गुप्त संदेश भेजा कि उन्हें परम योगी जालंधर नाथ जी ने स्वप्न में कहा है कि यदि वे (मानसिंह) कार्तिक सुदी 6 तक सामना करेंगे और किला खाली नहीं करेंगे तो वे जोधपुर के शासक बन जाएंगे।

मानसिंह जी ने योगी की सलाह मान ली और कुछ दिन और सामना किया और इसी बीच कार्तिक सुदी 4, 19 अक्टूबर 1803 को जोधपुर के शासक भीमसिंह जी की मृत्यु हो गई तथा जालौर दुर्ग के बाहर घेरा डाले बैठी जोधपुर सेना के सेनापति इंदरचंद सिंघवी की भी मृत्यु हो गई। मानसिंह जी को स्वयं धूमधाम से जोधपुर ले जाया गया और उनका राज्याभिषेक किया गया।

उसके बाद मानसिंह कृतज्ञता स्वरूप, उन्होंने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इसके आसपास के क्षेत्रों को विकसित किया। उन्होंने मर्दाना और जनाना महलों का निर्माण करवाया, साथ ही नाथ संप्रदाय के आश्रम और जालौर किले का भी पुनर्निर्माण किया था।

सिरे मंदिर जालौर की वास्तुकला और संरचना

सिरे मंदिर, जिसे रत्नेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जालौर, राजस्थान के कन्याचल (या कनकाचल) पहाड़ी पर स्थित है, जो 646 मीटर की ऊंचाई पर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और नाथ संप्रदाय की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध है।

मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें पारंपरिक मंदिरों की तरह गुंबद, स्तंभ, और नक्काशीदार दीवारें शामिल हैं। निर्माण में संगमरमर और पत्थर का उपयोग किया गया है, जो इसकी टिकाऊ और भव्य उपस्थिति को बढ़ाता है।

मंदिर की संरचनात्मक विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • मंदिर के चारों ओर एक परकोटा है, जिसमें सभी दिशाओं में द्वार बने हुए हैं। यह संरचना मंदिर की सुरक्षा और पारंपरिक राजस्थानी वास्तुकला को दर्शाती है।
  • प्रवेश द्वार पर एक विशाल हाथी की प्रतिमा है, जिसमें दोनों तरफ हाथी का मुख बना हुआ है, और उस पर एक पालकी है, जिसमें नाथ योगी की आकृति है। यह प्रतिमा मंदिर की कलात्मकता और धार्मिक महत्व को बढ़ाती है।
  • भंवर गुफा यह मंदिर का एक प्रमुख हिस्सा है, जो पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बना है। गुफा के अंदर एक मंडप (हॉल) है, जिसमें कलात्मक स्तंभ हैं, जिन पर नाथ योगियों की प्रतिमाएं अंकित हैं। गुफा के अंदर एक तोरण द्वार (ornamental gate) और सोने की कारीगरी वाले चित्र हैं। गुफा के बाहर एक चबूतरा (platform) है, जिस पर सुआनाथजी, भवानीनाथजी, भैरुनाथजी, हंसनाथजी, फूलनाथजी, सेवानाथजी, पूर्णनाथजी, केसरनाथजी, और भोलानाथजी जैसे नाथ योगियों की प्रतिमाएं और उनकी समाधियां स्थापित हैं। यह गुफा नाथ संप्रदाय की तपस्या और आध्यात्मिक परंपराओं को दर्शाती है।
  • मंदिर के अंदर एक कुंड (जलाशय) या बावड़ी है, जिसका जल चमत्कारी माना जाता है। यह प्राचीन संरचना पानी के संरक्षण और धार्मिक महत्व को दर्शाती है।
  • रत्नेश्वर मंदिर यह मंदिर का मुख्य भाग है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इसका पुनर्निर्माण जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने करवाया था, जो इसकी ऐतिहासिकता को और बढ़ाता है।
  • मर्दाना और जनाना महल मानसिंह द्वारा बनवाए गए ये महल मंदिर परिसर की भव्यता को बढ़ाते हैं। ये संरचनाएं पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग आवास सुविधाएं प्रदान करती थीं।
  • मंदिर परिसर में एक प्राचीन कूप (वेल) और एक शिलालेख है, जिसमें चरण युगल (पदचिह्न) अंकित हैं। ये तथ्य मंदिर की प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
सिरे मंदिर जालौर का मुख्य मंदिर
सिरे मंदिर जालौर का मुख्य मंदिर
सिरे मंदिर जालौर के मुख्य मंदिर का गर्भगृह
सिरे मंदिर जालौर के मुख्य मंदिर का गर्भगृह

आधुनिक विकास और सुधार

हाल के वर्षों में, मंदिर तक पहुंचने के लिए एक पक्की सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है, जो यात्रियों के लिए सुगमता प्रदान करेगा। पहाड़ी के आधार पर एक विशाल प्रवेश द्वार और उद्यान बनाया गया है, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाता है। इसके अलावा, सिद्ध शांतिनाथ जी महाराज की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है, जिन्हें मंदिर के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है।

सिरे मंदिर जालौर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: सिरे मंदिर कन्याचल (या कनकाचल) पहाड़ी पर, 646 मीटर की ऊंचाई पर, जालौर किले के पास, स्वर्णगिरी दुर्ग के निकट स्थित है। यह जालौर शहर से लगभग 3 किलोमीटर दूर है।

नीचे मंदिर तक पहुँचने के तरीकों का विस्तृत विवरण दिया गया है:

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है, जो मंदिर से लगभग 144 किलोमीटर दूर है। जोधपुर हवाई अड्डा से, आप टैक्सी या अन्य लोकल ट्रांसपोर्ट सेवाओं का उपयोग करके जालौर तक पहुँच सकते हैं। जालौर शहर पहुँचने के बाद, मंदिर तक की 3 किलोमीटर की दूरी पैदल या स्थानीय वाहनों (जैसे ऑटो-रिक्शा या टैक्सी) से तय करें।
  • रेल मार्ग: रेल मार्ग से मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जालौर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। यह स्टेशन उत्तर पश्चिम रेलवे लाइन पर स्थित है। स्टेशन से, आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा, या अन्य लोकल ट्रांसपोर्ट सेवाओं का उपयोग करके जालौर शहर तक पहुँच सकते हैं। फिर, मंदिर तक की 3 किलोमीटर की दूरी पैदल या स्थानीय वाहन से तय करें।
  • सड़क मार्ग: मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जो इसे निजी वाहन, सार्वजनिक बसों, और टैक्सी से पहुँचने के लिए उपयुक्त बनाता है। प्रमुख शहरों से दूरी निम्नलिखित है:
    • जोधपुर से लगभग 144 किलोमीटर
    • उदयपुर से लगभग 200 किलोमीटर
    • अहमदाबाद से लगभग 250 किलोमीटर
    • भीनमाल से लगभग 54 किलोमीटर