सोमनाथ मंदिर जो गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटन के समुद्र तट पर स्थित है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम माना जाता है, जिसे ‘आदि-ज्योतिर्लिंग’ की उपाधि प्राप्त है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हिंदू धर्म में इसका अत्यंत महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिसके कारण इसे “चंद्रेश्वर” भी कहा जाता है। सोमनाथ मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास, और वास्तुकला का एक अनमोल रत्न भी है।
सोमनाथ मंदिर गुजरात (Somnath Temple Gujarat)
मंदिर का नाम:- | सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) |
अन्य नाम:- | सोमनाथ ज्योतिर्लिंग |
स्थान:- | प्रभास पाटन, वेरावल, जिला – गिर सोमनाथ, गुजरात |
समर्पित देवता:- | भगवान शिव (ज्योतिर्लिंग के रूप में) |
निर्माण वर्ष:- | प्राचीन मंदिर (वर्तमान संरचना का पुनर्निर्माण 1951 में पूरा हुआ था।) |
प्रसिद्ध त्यौहार:- | महाशिवरात्रि, श्रावण माह, कार्तिक पूर्णिमा |
प्रबंधन संस्था:- | श्री सोमनाथ ट्रस्ट |
सोमनाथ मंदिर गुजरात का इतिहास
सोमनाथ मंदिर का इतिहास केवल ऐतिहासिक तथ्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गहरी पौराणिक जड़ों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इसकी उपस्थिति से भी जुड़ा है।
पौराणिक उत्पत्ति और प्राचीनतम उल्लेख
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव (सोमराज) ने करवाया था। एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए, चंद्रदेव ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें श्राप से मुक्त किया। श्राप से मुक्त होने के बाद, चंद्रदेव ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर शिवलिंग के रूप में विराजमान हों। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की, और तभी से यह स्थान सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि चंद्रदेव ने कृतज्ञता में इस मंदिर का निर्माण सतयुग में सोने से करवाया था। चंद्रमा ने इसी स्थान पर अपनी कांति वापस पायी थी, इसलिए इस क्षेत्र को प्रभास पाटन कहा जाने लगा।
सोमनाथ मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से मिलता है, जो इसकी अत्यंत प्राचीनता को प्रमाणित करता है। इसके अतिरिक्त, शिवपुराण, स्कंदपुराण और श्रीमद्भागवत जैसे पौराणिक ग्रंथों में भी सोमनाथ की भव्यता का वर्णन मिलता है। कुछ प्राचीन ग्रंथों में यह भी उल्लेख है कि सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग पहले हवा में तैरता था, जो वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। 13वीं सदी के लेखक जखारिया अल काजिनी ने अपनी किताब ‘वंडर्स ऑफ क्रिएशन’ में इसका जिक्र किया है कि महमूद गजनवी ने जब मंदिर पर हमला किया तो उसने शिवलिंग को जमीन और छत के बीच हवा में तैरते हुए देखा था।
निर्माण और पुनर्निर्माण का प्रारंभिक चक्र
सोमनाथ मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से ही विनाश और पुनर्निर्माण के एक सतत चक्र से जुड़ा रहा है, जो इसकी निरंतरता और अटूट आस्था का प्रमाण है। सर्वप्रथम, मंदिर का ईसा के पूर्व अस्तित्व में था, जिसे पहला मंदिर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में चंद्रदेव ने इसे सोने से, त्रेता युग में रावण ने चांदी से, और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने चंदन से पुनर्निर्मित किया था।
ऐतिहासिक रूप से, द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया था। इसके बाद, 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद द्वारा इसे पहली बार तोड़े जाने के बाद, प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया था। नागभट्ट द्वितीय ने लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके तीसरी बार मंदिर का निर्माण कराया था।
आक्रमण और विनाश का काला अध्याय
सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए और इसे तोड़ा गया, जिससे यह भारत के सबसे अधिक बार नष्ट किए गए मंदिरों में से एक बन गया। इन आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य मंदिर की अपार धन-संपदा को लूटना और हिंदू आस्था पर प्रहार करना था।
प्रमुख आक्रमणकारी और उनके हमले:
- 725 ईस्वी: सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने पहली बार मंदिर को तोड़ा था।
- 1024-1026 ईस्वी: महमूद गजनवी ने लगभग 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। महमूद गजनवी के हमले को विशेष रूप से बर्बरतापूर्ण माना जाता है, जिसमें हजारों निहत्थे लोग मारे गए थे।
- 1297 ईस्वी: दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर कब्जा किया और सोमनाथ मंदिर को दोबारा तोड़ दिया तथा सारी धन-संपदा लूट ली।
- 1412 ईस्वी: मुजफ्फरशाह के पुत्र अहमद शाह ने भी मंदिर को तुड़वाया और लूटा था।
- 1665 ईस्वी: मुस्लिम शासक औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को पहली बार तोड़ा गया था।
- 1706 ईस्वी: औरंगजेब ने दूसरी बार मंदिर को तुड़वाया, क्योंकि हिंदू उस स्थान पर पूजा-अर्चना करने आते रहे थे।
पुनरुत्थान की गाथा: दृढ़ता और सांस्कृतिक चेतना
सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण एक सतत प्रक्रिया रही है, जिसमें विभिन्न ऐतिहासिक कालों में शासकों और जनता दोनों ने सक्रिय भूमिका निभाई है। यह पुनर्निर्माण की गाथा केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक दृढ़ता और राष्ट्रीय चेतना का एक शक्तिशाली प्रतीक है।
मध्यकालीन शासकों और स्थानीय राजाओं के प्रयास:
महमूद गजनवी के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद, गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। इसके बाद 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण में योगदान किया था। दिल्ली सल्तनत द्वारा तोड़े जाने के बाद भी इसे फिर से हिंदू राजाओं ने बनवाया।
मराठा काल में योगदान: रानी अहिल्याबाई होल्कर
जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया, तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया था। कई लोग मानते हैं कि सोमनाथ का मूल ज्योतिर्लिंग इसी अहिल्याबाई होल्कर मंदिर के अंदर है।
स्वतंत्रता के बाद का पुनर्निर्माण
वर्तमान में जो सोमनाथ मंदिर खड़ा है, उसका पुनर्निर्माण भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से बना था। उन्होंने 1947 में जूनागढ़ के विलय के बाद इस मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया था। सरदार पटेल के निधन के बाद, इस कार्य को K.M. मुंशी के निर्देशन में पूरा किया गया। 1 दिसंबर 1955 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया था।
सोमनाथ मंदिर गुजरात की वास्तुकला और संरचना
वर्तमान सोमनाथ मंदिर एक विशिष्ट भारतीय मंदिर वास्तुकला शैली, मारू-गुर्जर शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। वर्तमान में जो मंदिर बना हुआ है, उसे कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया है। भारत की आजादी के बाद, वर्तमान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हिंदू मंदिर वास्तुकला की मारू-गुर्जर शैली (जिसे चालुक्य शैली या सोलंकी शैली भी कहा जाता है) के अनुसार किया गया था।
वर्तमान सममित संरचना मूल तटीय स्थल पर पारंपरिक डिजाइनों के अनुसार बनाई गई है। मंदिर में गर्भगृह, सभा मंडप और नृत्य मंडप शामिल हैं। मुख्य शिखर 150 फीट ऊंचा है। शिखर के ऊपर कलश है, जिसका वजन लगभग 10 टन है। ध्वजदंड (flagpole) 27 फीट ऊंचा और 1 फीट परिधि का है। गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। दीवारों पर देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं के सुंदर चित्रण से सजावट की गई है।

मंदिर के निर्माण में बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग किया गया है। मारू-गुर्जर वास्तुकला की विशेषताओं में घुमावदार शिखर, मुक्त खड़ा कीर्ति तोरण, कुंड, मंडप की छत पर भारी नक्काशी, ऊँचे चबूतरे और कई तरफ से दिखने वाली बालकनी शामिल हैं। यह शैली अपनी बारीक नक्काशी और अलंकृत विवरणों के लिए जानी जाती है, जिसमें दीवारों पर मूर्तियों और छत पर विस्तृत नक्काशी शामिल है।
सोमनाथ मंदिर गुजरात का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
सोमनाथ मंदिर का महत्व इसके धार्मिक पहलुओं और इसके आसपास के पवित्र स्थलों से गहराई से जुड़ा है, जो इसे एक व्यापक तीर्थयात्रा केंद्र बनाता है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला है, जिसे ‘आदि-ज्योतिर्लिंग’ कहा जाता है। यह भारत में हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
यह मंदिर तीन नदियों – कपिला, हिरन और पौराणिक सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्थित है, जिसे पवित्र माना जाता है। इस संगम में स्नान का विशेष महत्व है। मंदिर के अंदर एक स्तंभ है, जिसे “बाण स्तंभ” कहा जाता है। बाण स्तंभ पर अद्वितीय शिलालेख है, जिसके अनुसार इस मंदिर की स्थिति ऐसी है कि अंटार्कटिका तक इसके दक्षिण में सीधी रेखा में कोई भूमि नहीं है। यह प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान और भौगोलिक ज्ञान की गहराई को उजागर करता है, जिससे मंदिर का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और दार्शनिक भी हो जाता है।
भालका तीर्थ एक उल्लेखनीय स्थान है जो सोमनाथ मंदिर के बहुत करीब स्थित है। यह वह स्थान माना जाता है जहाँ भगवान कृष्ण ने एक शिकारी के तीर से मारे जाने के बाद अपनी अंतिम सांस ली थी और वैकुंठ गमन किया था। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध कर्मों के लिए भी प्रसिद्ध है, विशेषकर चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में। यह बहुआयामी धार्मिक महत्व ही है जिसने इसे बार-बार के विनाश के बावजूद एक अटूट तीर्थस्थल बनाए रखा।
सोमनाथ मंदिर गुजरात तक कैसे पहुँचें?
मंदिर का स्थान: प्रभास पाटन, वेरावल, जिला – गिर सोमनाथ, गुजरात
सोमनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए कई सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार है:
- हवाई मार्ग: हवाई मार्ग से सोमनाथ तक पहुँचने के लिए, निकटतम हवाई अड्डा दीव हवाई अड्डा (Diu Airport) है, जो सोमनाथ से लगभग 75-82 किलोमीटर दूर है। दूसरा विकल्प राजकोट हवाई अड्डा (Rajkot Airport) है, जो सोमनाथ से लगभग 200 किलोमीटर दूर है। दोनो एयरपोर्ट से आप टैक्सी, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से सोमनाथ मंदिर तक पहुंच सकते हो।
- रेल मार्ग: रेल मार्ग से सोमनाथ तक पहुँचने के लिए, निकटतम रेलवे स्टेशन सोमनाथ रेलवे स्टेशन (Somnath Railway Station) है, जो मंदिर के बहुत पास स्थित है। स्टेशन से मंदिर तक पहुँचने के लिए ऑटो-रिक्शा या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं, और दूरी बहुत कम होने के कारण यह सुविधाजनक है। इसके अलावा, वेरावल रेलवे स्टेशन भी एक विकल्प है, जो सोमनाथ से लगभग 5 से 7 किलोमीटर दूर है, और वहाँ से भी टैक्सी या ऑटो रिक्शा ली जा सकती है।
- सड़क मार्ग: सोमनाथ सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, और यह राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के नेटवर्क का हिस्सा है। अहमदाबाद, राजकोट, जूनागढ़, वेरावल आदि शहरों से नियमित सार्वजनिक और निजी बसें सोमनाथ के लिए चलती हैं।