सुंधा माता मंदिर जालौर | Sundha Mata Temple Jalore

सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालौर जिले के सुंधा पर्वत पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। अरावली की पहाड़ियों पर लगभग 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर, चामुंडा देवी को समर्पित है और लगभग 900 वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। जालौर, राजस्थान की प्राचीन धरती पर बसा सुंधा माता मंदिर, न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि प्रकृति और इतिहास का अनूठा संगम भी है।

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सुंधा माता मंदिर जालौर (Sundha Mata Temple Jalore)

मंदिर का नाम:-सुंधा माता मंदिर (Sundha Mata Temple)
स्थान:-सुंधा पर्वत, दंतवाड़ा गाँव, तहसील भीनमाल, जिला जालौर, राजस्थान
समर्पित देवता:-चामुंडा देवी (सुंधा माता)
निर्माण वर्ष:-संभवतः 11वीं या 12वीं शताब्दी के आसपास
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि

सुंधा माता मंदिर जालौर का इतिहास

सुंधा माता मंदिर का निर्माण देवल प्रतिहारों द्वारा करवाया गया था, जिन्होंने जालोर के शाही (साम्राज्यवादी) चौहानों की सहायता से इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है, जिससे इसका निर्माण संभवतः 11वीं या 12वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास हुआ होगा।

सुंधा माता मंदिर परिसर में तीन ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण शिलालेख पाए गए हैं। पहला शिलालेख 1262 ईस्वी का है, जो चौहानों की विजय और परमारों के पतन का विस्तृत वर्णन करता है। दूसरा शिलालेख 1326 ईस्वी का है, जबकि तीसरा शिलालेख 1727 ईस्वी का है। ये शिलालेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिनकी तुलना हरिषेण शिलालेख और दिल्ली के मेहरौली स्तंभ शिलालेख जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अभिलेखों से की जा सकती है।

सुंधा माता मंदिर का ऐतिहासिक संदर्भ मेवाड़ और महाराणा प्रताप से भी जुड़ा हुआ है। वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध के बाद, मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने अपने कठिन समय में सुंधा माता के मंदिर में शरण ली थी। यह घटना मंदिर को न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि यह राजपूत इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय से जुड़ा है।

सुंधा माता मंदिर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण किंवदंतियाँ हैं। इस मंदिर को एक पवित्र शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके पीछे एक प्राचीन कथा है कि जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में तांडव नृत्य कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। सती के शरीर के ये अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। यह माना जाता है कि सुंधा पर्वत पर देवी सती का सिर गिरा था, जिसके कारण इस देवी को ‘अघटेश्वरी’ के रूप में भी जाना जाता है। ‘अघटेश्वरी’ का अर्थ है धड़ रहित देवी, क्योंकि यहाँ माँ के केवल सिर की ही पूजा की जाती है।

स्थानीय मान्यता यह भी है कि देवी चामुंडा ने बकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए सात अन्य शक्तियों के साथ इसी स्थान पर अवतार लिया था, और आज भी चामुंडा माता की मूर्ति के पीछे उन सात शक्तियों की छवियां देखी जा सकती हैं।

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प्राचीन काल में इस मंदिर में पूजा अर्चना “नाथ योगी” द्वारा की जाती थी। सिरोही जिले के सम्राट ने “सोनाणी”, “देडोल” और “सुंधा की ढाणी” गांवों की भूमि नाथ योगी रबाद नाथ जी को दी थी, जो उस समय सुंधा माता मंदिर में पूजा करते थे। नाथ योगी अजय नाथ जी की मृत्यु के बाद, पूजा करने के लिए कोई नहीं था इसलिए राम नाथ जी (उस समय मेंगलवा के अयास) को जिम्मेदारी लेने के लिए वहां ले जाया गया। मेंगलवा और चितरोड़ी गांवों की जमीन प्राचीन काल में जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह के राजा द्वारा इन नाथ योगियों को दी गई थी। इसलिए मेंगलवा के नाथ योगी “अयास” कहलाए। राम नाथ जी की मृत्यु के बाद, राम नाथ जी के शिष्य बद्री नाथ जी सुंधा माता मंदिर में अयास बन गए जैसे-जैसे समय बीतता गया, मंदिर का प्रबंधन करने वाला कोई नहीं रहा, इसलिए मंदिर की देखभाल और पर्यटन प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट सुंधा माता ट्रस्ट बनाया गया।

सुंधा माता मंदिर जालौर की वास्तुकला और संरचना

सुंधा माता मंदिर सफेद रंग के उच्च गुणवत्ता वाले संगमरमर पत्थर से निर्मित है, जिसकी शैली आबू के प्रसिद्ध दिलवाड़ा मंदिरों से काफी मिलती-जुलती है। जो राजस्थानी मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की दीवारों और खंभों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है, जो कारीगरी की उत्कृष्टता को दर्शाती है।

यह मंदिर माँ चामुंडा देवी को समर्पित है, जहां केवल माता के सिर की पूजा की जाती है। यह मान्यता है कि माँ चामुंडा का धड़ कोटड़ा नामक स्थान पर और उनके पैर सुंदरला पाल (जालौर) में स्थापित हैं। माँ चामुंडा के सम्मुख एक भूरेश्वर शिवलिंग भी प्रतिष्ठित है। मुख्य मंदिर में भगवान शिव और पार्वती की एक प्राचीन युगल मूर्ति तथा भगवान गणेश की मूर्ति भी स्थापित है, जिन्हें अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ माना जाता है। यह अरावली पर्वतमाला की 1220 मीटर ऊंचाई पर स्थित है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाता है।

सुंधा माता मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माँ चामुंडा की मूर्ति
सुंधा माता मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माँ चामुंडा की मूर्ति

सुंधा माता मंदिर जालौर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: सुंधा माता मंदिर अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी के शीर्ष पर, 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह राजस्थान के जालौर जिले में, भीनमाल तहसील के पास, सुंधा पर्वत पर बसा है।

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है, जो मंदिर से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। यहाँ से आप टैक्सी या लोकल ट्रांसपोर्ट की मदद से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: आबू रोड रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 64 किलोमीटर और जालौर रेलवे स्टेशन लगभग 105 किलोमीटर दूर है। दोनों स्टेशनों से आप टैक्सी, ऑटो या अन्य लोकल ट्रांसपोर्ट सेवाओं का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जो इसे निजी वाहन, सार्वजनिक बसों, और टैक्सी से पहुँचने के लिए उपयुक्त बनाता है। प्रमुख शहरों से दूरी निम्नलिखित है:
    • जोधपुर से लगभग 140 किलोमीटर
    • माउंट आबू से लगभग 64 किलोमीटर
    • भीनमाल से लगभग 20 किलोमीटर
    • जालौर (जिला मुख्यालय) से लगभग 105 किलोमीटर

मंदिर तक की अंतिम पहुँच

मंदिर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है, इसलिए आपको पहाड़ी के तल तक पहुँचने के बाद इन विकल्पों में से कोई एक चुनना होगा:

  • रोपवे (Ropeway): मंदिर तक पहुँचने के लिए एक रोपवे सुविधा उपलब्ध है।
  • पैदल चढ़ाई (Trekking): आप पैदल चढ़ाई करके भी मंदिर तक पहुँच सकते हैं। यह मार्ग थोड़ा कठिन है, लेकिन प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए उपयुक्त है।

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