सूर्य नारायण मंदिर पाली | Surya Narayan Temple Pali

राजस्थान की पवित्र भूमि अपने प्राचीन मंदिरों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। पाली जिले के रणकपुर में स्थित सूर्य नारायण मंदिर, जिसे सन टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है, भगवान सूर्य को समर्पित एक ऐसा ही ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल है। 13वीं सदी में निर्मित और 15वीं सदी में पुनर्निर्मित, यह मंदिर अपनी नागर शैली की वास्तुकला और जटिल नक्काशी के लिए विख्यात है। रणकपुर जैन मंदिर के निकट होने के कारण यह पर्यटकों और भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।

सूर्य नारायण मंदिर पाली (Surya Narayan Temple Pali)

मंदिर का नाम:-सूर्य नारायण मंदिर (Surya Narayan Temple)
स्थान:-रणकपुर, पाली, राजस्थान
समर्पित देवता:-भगवान सूर्य
निर्माण वर्ष:-13वीं शताब्दी (अनुमानित)
प्रसिद्ध त्यौहार:-मकर संक्रांति, सूर्य सप्तमी

सूर्य नारायण मंदिर पाली का इतिहास

सूर्य नारायण मंदिर का इतिहास मध्यकालीन राजस्थान की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी में मेवाड़ शासकों के संरक्षण में हुआ था, और 15वीं सदी में राणकपुर जैन मंदिर के निर्माण के साथ इसका पुनर्निर्माण किया गया। मेवाड़ के राणा कुम्भा और जैन मंदिर के संस्थापक ने इस क्षेत्र को धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। सूर्य नारायण मंदिर की स्थापना सूर्य भक्ति को बढ़ावा देने और वैदिक परंपराओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी। मंदिर की दीवारों पर नक्काशी और शिलालेख इसकी मध्यकालीन उत्पत्ति और मेवाड़ शासकों के संरक्षण को दर्शाते हैं।

पौराणिक दृष्टिकोण से, सूर्य देव की पूजा वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य को स्वास्थ्य, ऊर्जा, और समृद्धि का देवता माना जाता है, और ऋग्वेद में उनके कई भजन उल्लेखित हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, सूर्य नारायण मंदिर में सूर्य नमस्कार और अर्घ्य देने से शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश होता है। कुछ कथाओं में मंदिर को मेवाड़ के शासकों द्वारा सूर्य देव के आशीर्वाद के लिए बनवाया गया माना जाता है, ताकि उनके राज्य में समृद्धि और शांति बनी रहे। मंदिर का राणकपुर जैन मंदिर के साथ निकटता इसे धार्मिक सामंजस्य का प्रतीक बनाती है, जहाँ हिंदू और जैन परंपराएँ एक साथ फलती-फूलती हैं। मंदिर की प्राचीन नक्काशी और स्थानीय लोककथाएँ इसकी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्ता को और मजबूत करती हैं।

सूर्य नारायण मंदिर पाली की वास्तुकला और संरचना

सूर्य नारायण मंदिर रणकपुर में विश्व प्रसिद्ध रणकपुर जैन मंदिर से मात्र 500 मीटर की दूरी पर, अरावली की तलहटी में स्थित है। यह मंदिर अपनी नागर शैली की वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, जो सफेद संगमरमर और बलुआ पत्थर से निर्मित है। मंदिर का अष्टकोणीय मंडप इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता है, जो जटिल नक्काशी और सूर्य से संबंधित प्रतीकों से सज्जित है। मंदिर की दीवारों पर सूर्य देव, वैदिक प्रतीक, और पौराणिक दृश्यों की नक्काशी देखी जा सकती है, जो मध्यकालीन राजस्थानी कला की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।

मंदिर के गर्भगृह में सूर्य देव की भव्य मूर्ति स्थापित है, जो सात घोड़ों वाले रथ पर विराजमान हैं। यह मूर्ति सूर्य की गतिशीलता और ऊर्जा का प्रतीक है, और इसके चारों ओर छोटी-छोटी नक्काशियाँ वैदिक कहानियों को चित्रित करती हैं। मंदिर का खुला प्रांगण सूर्योदय के समय विशेष रूप से आकर्षक होता है, जब सुनहरी किरणें मूर्ति और नक्काशी पर पड़ती हैं।

मंदिर का प्राकृतिक परिवेश, जिसमें अरावली की हरियाली और शांत वातावरण शामिल है, इसे ध्यान और पूजा के लिए आदर्श बनाता है। रणकपुर जैन मंदिर की संगमरमर की भव्यता की तुलना में सूर्य नारायण मंदिर की सादगी और सूर्य-केंद्रित वास्तुकला इसे अनूठा बनाती है। यह मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर की संरचना से भी प्रेरित प्रतीत होता है, हालांकि इसका आकार छोटा है।

सूर्य नारायण मंदिर पाली तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: सूर्य नारायण मंदिर जिसे सन टेम्पल के रूप में भी जाना जाता है, पाली जिले के राणकपुर गाँव में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है।

सूर्य नारायण मंदिर, राणकपुर, पाली, राजस्थान तक पहुँचने के तरीके:

  • सड़क मार्ग: सड़क मार्ग मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है, क्योंकि यह पाली, उदयपुर, और जोधपुर जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है। पाली से मंदिर की दुरी लगभग 90-100 किलोमीटर है।
  • रेल मार्ग: फालना रेलवे स्टेशन (लगभग 30-35 किलोमीटर) निकटतम है। यहाँ से टैक्सी या बस से राणकपुर पहुँचा जा सकता है, जो लगभग 45 मिनट से 1 घंटे का समय लेता है।
  • हवाई मार्ग: हवाई यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (महाराणा प्रताप हवाई अड्डा) है, जो लगभग 90 किलोमीटर दूर है। जोधपुर हवाई अड्डा (लगभग 170 किलोमीटर) दूसरा विकल्प है।

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