तनोट माता मंदिर जैसलमेर | Tanot Mata Temple Jaisalmer

तनोट माता मंदिर, राजस्थान के जैसलमेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट तनोट गाँव में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर तनोट माता को समर्पित है, जिन्हें देवी हिंगलाज का अवतार और सैनिकों की रक्षक माना जाता है। भारत-पाक युद्ध के दौरान इस मंदिर से जुड़े चमत्कारी किस्सों ने इसे पूरे देश में ख्याति दिलाई।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

तनोट माता मंदिर जैसलमेर (Tanot Mata Temple Jaisalmer)

मंदिर का नाम:-तनोट माता मंदिर (Tanot Mata Temple)
स्थान:-तनोट गांव, जैसलमेर जिला, राजस्थान (भारत-पाक सीमा के निकट)
समर्पित देवता:-तनोट माता (हिंगलाज माता का अवतार)
निर्माण वर्ष:-8वीं शताब्दी
प्रसिद्ध त्यौहार:-नवरात्रि, 16 दिसंबर (लोंगेवाला विजय दिवस)

तनोट माता मंदिर जैसलमेर का इतिहास

तनोट माता मंदिर, जैसलमेर का एक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। तनोट माता मंदिर की स्थापना और निर्माण 8वीं शताब्दी में भाटी राजपूत राजा तणुराव ने करवाया था।

मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख किवदंती है। पौराणिक कथा के अनुसार, माड़ प्रदेश (जैसलमेर राज्य) के निवासी मामड़िया चारण, एक चारण समुदाय के व्यक्ति थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने हिंगलाज माता की सात बार पैदल यात्रा की थी। एक रात, हिंगलाज माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और उनसे पूछा कि उन्हें पुत्र चाहिए या पुत्री, तो चारण ने कहा कि माता स्वयं उनके घर जन्म लें।

इसके परिणामस्वरूप, उनके घर में सात पुत्रियों और एक पुत्र का जन्म हुआ, जिनमें से एक पुत्री आवड़ मा थीं, जिन्हें तनोट माता के नाम से जाना जाने लगा था। यह भी माना जाता है कि तनोट माता बाद में करणी माता के रूप में पुनर्जन्म लीं, जो बीकानेर क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं। तनोट माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है, जो बलूचिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) में एक प्रसिद्ध देवी हैं।

युद्ध और चमत्कारिक घटनाएँ

मंदिर का इतिहास विशेष रूप से 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों से जुड़ा है, जो इसे चमत्कारिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करते हैं।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

1965 के युद्ध के दौरान, पाकिस्तानी सेना ने तनोट गाँव पर लगभग 3000 बम गिराए, लेकिन मंदिर और इसके आसपास का क्षेत्र चमत्कारिक रूप से सुरक्षित रहा। इनमें से 450 बम मंदिर परिसर में गिरे, लेकिन वे फटे नहीं, जो तनोट माता की रक्षात्मक शक्ति का प्रतीक माना गया। ये अनफटे बम आज भी मंदिर के संग्रहालय में प्रदर्शित हैं।

1971 के युद्ध में, लोंगेवाला की लड़ाई के दौरान, पाकिस्तानी टैंक रेत में फंस गए, और भारतीय वायु सेना ने उन्हें नष्ट कर दिया। इस दौरान भी मंदिर पर हमले हुए, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था। इन घटनाओं ने तनोट माता को “बम वाली माता” और “थार की वैष्णो देवी” के नाम से प्रसिद्ध कर दिया, और स्थानीय लोगों तथा सैनिकों ने माता को अपनी रक्षक माना था।

युद्ध के बाद का विकास

1965 के युद्ध के बाद, मंदिर का प्रबंधन भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने संभाला, और 1971 के युद्ध के बाद इसकी भूमिका और मजबूत हुई थी। भारतीय सेना ने लोंगेवाला की जीत को चिह्नित करने के लिए मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ (विजय टावर) बनवाया, जो युद्ध की वीरता को दर्शाता है। BSF ने मंदिर का विस्तार किया और एक युद्ध संग्रहालय बनाया, जहाँ अनफटे पाकिस्तानी बम, टैंक, और युद्ध से जुड़े अन्य अवशेष प्रदर्शित हैं।

हर साल 16 दिसंबर को, लोंगेवाला विजय की स्मृति में विजय दिवस मनाया जाता है, जिसमें BSF और स्थानीय समुदाय भाग लेते हैं। मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक का दर्जा भी दिया गया है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।

तनोट माता मंदिर जैसलमेर की वास्तुकला और संरचना

तनोट माता मंदिर एक दो मंजिला इमारत है, जिसमें एक केंद्रीय गुंबद है जो इसकी भव्यता को बढ़ाता है। दीवारों पर रंगीन चित्र और जटिल नक्काशी की गई है, जो स्थानीय कारीगरों की कुशलता को दर्शाती है। मंदिर में एक बड़ा आंगन है, जहाँ भक्त अपनी प्रार्थनाएँ और पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

मंदिर का केंद्रीय भाग गर्भगृह है, जहाँ तनोट माता की मुख्य प्रतिमा स्थापित है। यह अपेक्षाकृत छोटा और साधारण है, जो देवी के प्रति भक्तों की गहरी आस्था को दर्शाता है।

गर्भगृह में स्थापित तनोट माता की मुख्य प्रतिमा
गर्भगृह में स्थापित तनोट माता की मुख्य प्रतिमा

इसमें राजस्थानी वास्तुकला के तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, जैसे जटिल नक्काशी, गुंबद, और बड़े आंगन। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे संरक्षित स्मारक का दर्जा दिया गया है, जो इसके ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प महत्व को रेखांकित करता है।

भारतीय सेना ने लोंगेवाला की जीत को चिह्नित करने के लिए मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ (विजय टावर) बनवाया, जो युद्ध की वीरता को दर्शाता है। मंदिर परिसर के भीतर एक छोटा संग्रहालय या प्रदर्शन कक्ष है, जहाँ अनफटे पाकिस्तानी बम, टैंक, और युद्ध से जुड़े अन्य अवशेष प्रदर्शित हैं।

तनोट माता मंदिर परिसर में स्थापित विजय स्तंभ (विजय टावर)
तनोट माता मंदिर परिसर में स्थापित विजय स्तंभ (विजय टावर)

तनोट माता मंदिर जैसलमेर तक कैसे पहुँचें?

मंदिर का स्थान: तनोट माता मंदिर भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट जैसलमेर जिले के तनोट गाँव में स्थित है।

मंदिर तक पहुंचने के विकल्प इस प्रकार है:

  • सड़क मार्ग: सड़क मार्ग तनोट माता मंदिर तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका है। जैसलमेर से मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। जैसलमेर में आप टैक्सी, कैब, बस या स्थानीय परिवहन से मंदिर पहुंच सकते है। रास्ते में पवन ऊर्जा संयंत्र (विंडमिल्स) और रेगिस्तानी जीवन जैसे दृश्य देखने को मिलते हैं, जो यात्रा को और रोचक बनाते हैं। चूंकि यह सीमावर्ती क्षेत्र है, यात्रा के दौरान BSF के सुरक्षा चेकपॉइंट पर रुकना पड़ सकता है। हालांकि, यह पर्यटकों के लिए खुला है और सुरक्षित माना जाता है।
  • रेल मार्ग: रेल मार्ग से तनोट माता मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जैसलमेर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 123 किलोमीटर दूर है। जैसलमेर रेलवे स्टेशन से आप तनोट माता मंदिर तक टैक्सी, कैब, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से पहुंच सकते है।
  • हवाई मार्ग: हुई मार्ग से तनोट माता मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो जैसलमेर से लगभग 300 किलोमीटर दूर है। जैसलमेर पहुँचने के बाद आप तनोट माता मंदिर तक टैक्सी, कैब, बस या अन्य स्थानीय परिवहन से जा सकता है।

तनोट माता मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. तनोट माता मंदिर कहां स्थित है

    तनोट माता मंदिर भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट जैसलमेर जिले के तनोट गाँव में स्थित है।

  2. जैसलमेर से तनोट माता कितने किलोमीटर पड़ती है?

    जैसलमेर से तनोट माता मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है।

  3. तनोट माता मंदिर से पाकिस्तान बॉर्डर कितनी दूर है?

    तनोट माता मंदिर पाकिस्तान बॉर्डर से लगभग 18-20 किलोमीटर दूर है।

  4. तनोट माता मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?

    तनोट माता मंदिर की स्थापना और निर्माण 8वीं शताब्दी में भाटी राजपूत राजा तणुराव ने करवाया था।


जैसलमेर के अन्य प्रसिद्ध मंदिरो के बारे में पढ़े:-

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now